बड़े लक्ष्य की ओर: 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को पार कर जाएगा भारत ।

भारत 2030 तक करेगा 400 से 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत 2030 तक अपने अक्षय ऊर्जा भंडार में सालाना 35 से 40 गीगावाट की बढ़ोत्तरी करेगा, जो हर साल 3 करोड़ से अधिक घरों को बिजली देने के लिए पर्याप्त है। 

इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस एंड क्लाइमेट एनर्जी फाइनेंस ने अनुमान लगाया है कि ऊर्जा खपत में दुनिया के तीसरे सबसे बड़े देश भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 2030 तक 405 गीगावाट हो जाएगी। उम्मीद है कि यह सरकार के इस दशक के अंत तक 50 प्रतिशत बिजली उत्पादन गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से करने के लक्ष्य को भी पार कर जाएगी। 

भारत सरकार का अनुमान इससे भी अधिक है। उनका मानना है कि इसी समय सीमा में 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन होगा। वर्तमान में, जीवाश्म ईंधन भारत की स्थापित ऊर्जा क्षमता का 59 प्रतिशत है, लेकिन 2030 तक ऊर्जा मिश्रण में इसका सिर्फ 31.6 प्रतिशत भाग रहने की उम्मीद है।

लेकिन कोयले को बंद करके हरित ऊर्जा की ओर बढ़ने के लिए धन की आवश्यकता है। हाल के अनुमानों में कहा गया है कि भारत को अपने 2030 के ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लगभग 223 बिलियन डॉलर यानी करीब 18 लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी।

वित्त वर्ष 2029/30 तक सालाना 35-40 गीगावाट की दर से बढ़ेगी भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता

भारत में घरेलू कोयला ऊर्जा का विस्तार करने के लिए नए सिरे से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन आईईईएफए के अनुसार देश की अक्षय ऊर्जा क्षमता वित्त वर्ष 2029/30 तक हर साल 35-40 गीगावाट बढ़ने का अनुमान है, जबकि थर्मल पावर की भागीदारी कम हो जाएगी।

रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% ऊर्जा उत्पादन के अपने लक्ष्य को पार कर जाएगा। इसमें उद्योगों की अक्षय ऊर्जा प्रतिबद्धताओं और अक्षय ऊर्जा की मांग-और-आपूर्ति में संभावित उछाल से सहायता मिलेगी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यूक्रेन युद्ध के कारण घरेलू स्तर पर उत्पादित ताप ऊर्जा का उपयोग संभवतः एक “अल्पकालिक समस्या” है।  यूटिलिटी-स्केल सोलर के क्षेत्र में 2030 तक कुछ शीर्ष उद्योगों ने संयुक्त रूप से लगभग 231 गीगावाट की अतिरिक्त क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। इसमें राज्य की एनटीपीसी 60 गीगावॉट, अदानी ग्रीन एनर्जी 45 गीगावॉट और टाटा पावर, रीन्यू पावर और एक्मे सोलर 25-25 गीगावॉट के लक्ष्य हेतु प्रतिबद्ध हैं।

जून 2022 में भारत ने घोषणा की थी कि 2030 तक देश का हरित हाइड्रोजन लक्ष्य 5 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लगभग 118 गीगावाट की अतिरिक्त अक्षय ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता होगी।

चीन का मुकाबला: भारत के नेतृत्व वाले आईएसए ने की सौर उपकरण बाजार में विविधता की मांग

नई दिल्ली में सौर ऊर्जा पर एक सम्मेलन के दौरान अधिकारियों ने कहा कि देशों को जीवाश्म ईंधन से दूर, सौर ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने के मार्ग में व्यवधानों को कम करने के लिए, सौर उपकरणों की आपूर्ति श्रृंखला को भौगोलिक दृष्टि से और अधिक विविध होने की जरुरत है। 

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, फ़िलहाल सौर ऊर्जा के लिए आवश्यक 75% उपकरणों का निर्माण चीन में किया जाता है। भारत और फ्रांस के नेतृत्व वाला 110-सदस्यीय अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) इस आपूर्ति श्रृंखला में विविधता चाहता है। सौर ऊर्जा की कीमतें कम हो रही हैं लेकिन माल ढुलाई की कीमतें बढ़ रही हैं। आईएसए के निदेशक अजय माथुर ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि सौर ऊर्जा की सस्ती कीमतों से अधिक देश लाभान्वित हों, ऐसे कई क्षेत्र होने चाहिए जहां से सौर फोटोवोल्टिक उत्पाद, उत्पादक से आपूर्तिकर्ता तक ले जाए जा सकें।

आईईए ने कहा कि हालांकि चीन के योगदान से लागत में 80% से अधिक की गिरावट आई है जिससे सौर फोटोवोल्टिक को विश्व स्तर पर सबसे सस्ती बिजली उत्पादन तकनीक बनने में सहायता मिली है, लेकिन चीन ने आपूर्ति-मांग के असंतुलन को भी बढ़ावा दिया है।

केंद्र ने पवनचक्कियों की रीपॉवरिंग के लिए मसौदा नीति जारी की

सरकार ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं की राष्ट्रीय रीपॉवरिंग नीति का एक संशोधित मसौदा जारी किया है जबकि सब-मेगावाट स्केल की पवन टर्बाइनों वाली अधिकांश पुरानी पवन ऊर्जा परियोजनाओं को अभी रीपॉवर किया जाना बाकी है।

सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि अपतटीय परियोजना क्षेत्रों के प्रति वर्गकिमी ऊर्जा उत्पादन को अधिकतम करके पवन ऊर्जा संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए रीपॉवरिंग नीति लाई जा रही है। नीति का संशोधित मसौदा तैयार करते समय “विभिन्न हितधारकों” के प्रतिनिधियों से बातचीत की गई थी। ईटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2 मेगावाट की क्षमता से कम के विंड टर्बाइन, टर्बाइन जिनकी डिजाइन लाइफ पूरी हो चुकी है और एक क्षेत्र में मौजूदा विंड टर्बाइन्स का एक सेट रीपॉवरिंग के योग्य माना जाएगा।

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