फाइनेंस पर ज़ोर: जी-20 अध्यक्ष के तौर पर भारत क्लाइमेट फाइनेंस पर फोकस रखेगा। फोटो - g20.org

भारत अगले साल जी-20 अध्यक्ष के नाते क्लाइमेट फाइनेंस पर ज़ोर देगा

अगले साल जी-20 देशों की अध्यक्षता भारत कर रहा है और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कहा है भारत बहुराष्ट्रीय विकास बैंको और कर्ज़ की स्थिति के साथ  जलवायु वित्त यानी क्लाइमेट फाइनेंस पर ध्यान केंद्रित करेगा। हाल ही में सम्पन्न हुई अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और विश्व बैंक (वर्ल्ड बैंक) की सालाना मीटिंग में सीतारमण ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर बने संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कंवेन्शन (UNFCCC) का क्लाइमेट फाइनेंस के विषय पर बड़ा रोल है लेकिन उसके अलावा दूसरी संस्थाओं को भी इसमें भूमिका निभानी होगी। 

इस बीच मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नाशीद ने इसी बैठक में घोषणा की कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सर्वाधिक ग्रसित 20 देश 685 बिलियन डॉलर की “अन्यायपूर्ण” कर्ज़ अदायगी  को रोकने पर विचार कर रहे हैं। विश्व बैंक के एक प्रवक्ता ने इस बात को स्वीकार किया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का गरीब देशों पर भारी असर पड़ रहा है और विश्व बैंक कर्ज़ पर आधारित एक सम्पूर्ण समाधान के लिये प्रतिबद्ध है। 

वैश्विक एविएशन सेक्टर ने किया 2050 के लिये “एस्पिरेशनल” नेट लक्ष्य का संकल्प 

वैश्विक एविएशन सेक्टर 2050 के लिये एक “एस्पिरेशनल” नेट ज़ीरो लक्ष्य पर सहमत हो गया है। यानी इस नेट ज़ीरो लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश के हिसाब से कदम उठाये जायेंगे। अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) द्वारा मॉन्ट्रियल में आयोजित बैठक में दुनिया के 193 देशों ने इस लक्ष्य पर हामी भरी है। 

एयरलाइंस से होने वाला इमीशन ग्लोबल वॉर्मिंग का एक बड़ा कारक है। इस योजना के तहत हर एयरलाइन को अपना एक बेसलाइन वर्ष निर्धारित करना होगा और उससे अधिक इमीशन को कम या निरस्त करने के कदम उठाने होंगे। हालांकि  पर्यावरणविद् हालांकि इस योजना को बहुत कमज़ोर मानते हैं क्योंकि इसमें लक्ष्य को हासिल करने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। 

जलवायु संकट: वांछित रफ्तार और पैमाने पर नहीं लागू हो रहे राष्ट्रीय संकल्प (एनडीसी) 

वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (डब्लूआरआई) ने “स्टेट ऑफ एनडीसीज़ – 2022” के नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। एनडीसी (नेशनली डिटर्माइंड कांट्रिब्यूशन) पेरिस संधि के तहत किये गये वह संकल्प हैं जिनके तहत ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के लिये सभी देशों को कदम उठाने हैं। अलग अलग देशों के यह संकल्प अलग-अलग हैं लेकिन डब्लूआरआई की रिपोर्ट बताती है कि तमाम देश अपने क्लाइमेट एक्शन प्लान मज़बूत तो रह रहे हैं लेकिन यह काम उस पैमाने और रफ्तार पर नहीं हो रहा जो कि दिनों-दिन बढ़ रहे जलवायु संकट से लड़ने के लिये ज़रूरी है।   

रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन अभी किये गये वादों से छह गुना कम करने होंगे। तभी धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री के नीचे रखा जा सकेगा। विकासशील देशों के लिये क्लाइमेट फाइनेंस की भारी कमी एक बड़ी दिक्कत है। एडाप्टेशन यानी अनुकूलन की दिशा में उठाये कदम दोगुने हुये हैं और न्यायसंगत अपेक्षा (इक्विटी) पर काफी ज़ोर है।

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