इन सर्दियों में मुंबई की हवा पिछले सीजन की तुलना में काफी खराब रही।

प्रमुख शहरों की वायु गुणवत्ता में दो हफ़्तों बाद कुछ सुधार

पिछले दो हफ़्तों से देश के कई शहरों, विशेषकर मुंबई, में ख़राब वायु गुणवत्ता में कुछ सुधार हुआ है।  केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 13 फरवरी को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 186 शहरों में से केवल बर्नीहाट (333) में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘बेहद खराब’ रहा। दस शहरों में हवा ‘बेहतर’ रही, जबकि 77 शहरों की श्रेणी ‘संतोषजनक’, 84 में ‘मध्यम’ रही। वहीं 14 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘खराब’ दर्ज किया गया। पिछले हफ्ते दिल्ली-मुंबई समेत नौ शहरों में हवा का स्तर ‘बेहद ख़राब’ दर्ज किया गया था।    

वहीं दो सप्ताह तक लगातार ‘खराब’ और ‘बहुत खराब’ रहने के बाद, मुंबई की वायु गुणवत्ता में सोमवार को कुछ सुधार हुआ। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के अनुसार शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक 176 रहा, जिसे ‘मध्यम’ माना जाता है।

राजधानी दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक सोमवार को 135 रहा, जो पिछले साल 13 अक्टूबर के बाद से सबसे कम है। पर्वतीय क्षेत्रों से 48 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही उत्तर-पश्चिमी ठंडी हवाओं ने दिल्ली के प्रदूषक तत्वों का प्रभाव कम किया है।

पिछले सालों की तुलना में गिरा मुंबई की हवा का स्तर, नगरपालिका ने किए राहत के उपाय

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि इन सर्दियों में मुंबई की वायु पिछले सीजन की तुलना में काफी खराब रही है

पिछले 92 दिनों में 66 दिन ‘खराब’ और ‘बहुत खराब’ वायु गुणवत्ता वाले रहे, जबकि पिछले तीन वर्षों में यह औसत संख्या केवल 28 थी। पिछले साल 22 अक्टूबर के बाद से शहर में एक भी दिन हवा का स्तर ‘संतोषजनक’ नहीं रहा है। पिछली सर्दियों में इसी दौरान 12 दिन ऐसे थे जब हवा का स्तर ‘संतोषजनक’ था।

जानकारों के मुताबिक मुंबई के प्रदूषण में अचानक वृद्धि बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से ‘ट्रिपल डिप ला नीना‘ के कारण हुई है। इस प्रक्रिया की वजह से मुंबई में हवा के पैटर्न में बदलाव आया है।

शहर में बिगड़ती हवा पर बढ़ती चिंताओं के बीच बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए ‘क्लीन एयर मुंबई’ पहल के तहत सात-चरणीय योजना बनाई है

नगरपालिका के उपायों में प्रमुख हैं सस्टेनेबल कंस्ट्रंक्शन के लिए बिल्डरों को दिशानिर्देश जारी करना, सड़क की धूल को कम करने के उपाय, सस्टेनेबल परिवहन के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग, और अपशिष्ट प्रबंधन आदि। इन उपायों को लागू करने के लिए बीएमसी ने 25 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया है।

लंदन के वैज्ञानिकों को लकड़ी के धुएं में मिला आर्सेनिक

लंदन में वैज्ञानिकों को लकड़ी के धुएं से निकलने वाले रसायनों में आर्सेनिक मिला है। एक सर्वेक्षण से पता चला कि घर में लकड़ी जलाने वाले लगभग 9 प्रतिशत लोग निर्माण स्थलों से बेकार लकड़ी ला रहे थे। शोधकर्ताओं ने 30 पुरुषों को दो हफ्ते तक दाढ़ी बढ़ाने के लिए कहा, फिर उनकी दाढ़ी के बालों को उनके शरीर में मौजूद आर्सेनिक की मात्रा का विश्लेषण करने के लिए इकट्ठा किया।

अध्ययन में पाया गया कि धूम्रपान के अलावा लकड़ी जलने से पुरुषों की दाढ़ी में  आर्सेनिक का प्रभाव बढ़ा। शोधकर्ताओं ने कहा  कि उनके आसपास लकड़ी जलाना आर्सेनिक बढ़ने का एक प्रमुख कारण था। लकड़ी काटने वाले पुरुषों की दाढ़ी में भी अधिक आर्सेनिक पाया गया।

आर्सेनिक अपने अकार्बनिक रूप में अत्यधिक  हानिकारक होता है, और इसके लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर और त्वचा के घाव होने का खतरा बढ़ जाता है

आईआईटी खड़गपुर ने 2021 में एक अध्ययन में पाया था कि भारत के कुल भूमि क्षेत्र के लगभग 20 प्रतिशत भाग में मौजूद भूजल में आर्सेनिक का विषाक्त स्तर है। जिसके कारण देश में 250 मिलियन से अधिक लोग इस जहरीले तत्व के संपर्क में आते हैं।

ऐसे में हवा में आर्सेनिक का मिलना लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं और बढ़ा देता है।

भारत और चीन में वायु प्रदूषण को बदतर बनाने में ‘नाइट्रेट रेडिकल्स’ का हाथ

नेचर जियोसाइंसेस में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार भारत और चीन में बढ़ रहे प्रदूषण की एक बड़ी वजह रात के समय पैदा होनेवाले ‘नाइट्रेट रेडिकल्स’ हैं, जो वातावरण में हानिकारक ओजोन और पीएम 2.5 सूक्ष्म कणों की मात्रा को बढ़ाते हैं।

जहां यूरोप और अमेरिका के शहरों में रात के समय ‘नाइट्रेट रेडिकल’ में गिरावट आई है, वहीं भारत और चीन के कुछ हिस्सों में इनमें तेजी से वृद्धि हुई है।

इस अध्ययन के अनुसार भारत के कुछ हिस्सों, विशेषकर उत्तर में, रात के समय ‘नाइट्रेट रेडिकल्स’ में वृद्धि देखी गई है। यदि भारत में भी लॉस एंजिल्स और चीन की तरह यह जारी रहा, तो भविष्य में वायु गुणवत्ता में सुधार करना कठिन होगा।

लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि मुख्य रूप से परिवहन और उद्योगों से होने वाले वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड का उत्सर्जन कम करने से रात के समय ‘नाइट्रेट रेडिकल’ के बनने पर लगाम लगाई जा सकती है।

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