जोशीमठ के एक बड़े हिस्से में भूधंसाव और सैकड़ों घरों में दरारें आने की सूचना के एक महीने बाद, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सीमावर्ती क्षेत्रों के आस-पास सभी राजमार्ग परियोजनाओं के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। इस एसओपी में पर्यावरण की सुरक्षा के उपायों पर जोर दिया गया है, जैसे भूस्खलन और आपदाओं का प्रबंधन; सुरंग खोदने या ड्रिलिंग के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां; और नदी के जलग्रहण क्षेत्र और जल-विज्ञान का संरक्षण।
मंत्रालय के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि यदि प्रस्तावित मार्ग किसी पहाड़ी क्षेत्र से होकर गुजर रहा है, तो एक प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान द्वारा यह व्यापक अध्ययन किया जाना चाहिए कि परियोजना क्षेत्र में भूस्खलन और भूकंपीय गतिविधि का खतरा कितना है, ढलान की स्थिरता क्या है, वहां का इकोसिस्टम कितना नाज़ुक है इत्यादि। और इन सबको ध्यान में रखते हुए सुरक्षित और इको-फ्रेंडली निर्माण पद्धति अपनानी चाहिए।
हालांकि पर्यावरण कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं का कहना है कि उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है और इस प्रकार की नीतियां राज्य में विवादास्पद चारधाम सड़क परियोजना शुरू होने से पहले लाई जानी चाहिए थीं।
जी-20 बैठक में भारत ने जैव-विविधता के संरक्षण और इकोसिस्टम की बहाली पर दिया जोर
जी-20 एनवायरनमेंट एंड क्लाइमेट सस्टेनेबिलिटी वर्किंग ग्रुप (ईसीएसडब्ल्यूजी) ने पिछले हफ्ते बेंगलुरू में अपनी पहली बैठक में भू-क्षरण को रोकने, जैव-विविधता को समृद्ध करने और ईकोसिस्टम की बहाली में तेजी लाने की दिशा में काम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
जी-20 की अध्यक्षता कर रहे भारत ने तीन प्राथमिकताओं पर जोर दिया: भू-क्षरण को रोकना, पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) की बहाली में तेजी लाना और जैव-विविधता को समृद्ध करना; एक सतत और जलवायु-अनुकूल ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा देना और संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना।
पर्यावरण मंत्रालय ने बताया कि बैठक के पहले दिन जंगल की आग और खनन-प्रभावित क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के प्रयासों पर चर्चा हुई।
बैठक के दूसरे दिन मानवजनित कारणों से प्रभावित भूमि-आधारित इकोसिस्टम को बहाल करने के तरीकों और ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क को समृद्ध करने पर चर्चा हुई। स्टील और बायोवेस्ट जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सर्कुलर इकॉनमी के निर्माण पर भी चर्चा हुई।
ब्लू इकॉनमी से संबंधित चर्चाएं समुद्री प्लास्टिक कचरे की समस्या और इसके प्रतिकूल प्रभावों और तटीय ईकोसिस्टम के संरक्षण जैसे मुद्दों पर केंद्रित थीं।
जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने और महासागरों की कार्बन संग्रहण क्षमता को बनाए रखने के लिए यह प्रयास महत्वपूर्ण हैं। ब्लू इकोनॉमी की सफलता स्थानीय तटीय समुदायों को भी समृद्ध करेगी।
तीन राज्यों में अवैध रेत खनन की होगी जांच
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्य सचिवों को एक माह के भीतर अवैध रेत खनन की स्थिति का जायजा लेने का निर्देश दिया है।
न्यायाधिकरण का कहना है कि इस मामले में जिला स्तर पर निगरानी के अलावा राज्य स्तर पर भी निगरानी की आवश्यकता है।
इसलिए मध्य प्रदेश में भिंड, मुरैना और ग्वालियर, उत्तर प्रदेश में आगरा, इटावा एवं झांसी और राजस्थान में धौलपुर और भरतपुर के पुलिस अधीक्षकों और जिलाधिकारियों को इस विषय पर निगरानी करने के लिए कहा गया है।एनजीटी ने अपने आदेश में तीनों राज्यों को 31 मार्च, 2023 तक रिपोर्ट देने को कहा है।
न्यायाधिकरण ने कहा है कि तीनों राज्य स्थिति को संभालने के लिए गंभीरता से लेने में नाकाम रहे हैं। 6 फरवरी, 2023 को एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि इन राज्यों में बड़े पैमाने पर कानून का उल्लंघन हो रहा है।
चंबल में पहुंच रहा ग्रासिम का औद्योगिक कचरा, एनजीटी ने बिठाई जांच
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मध्य प्रदेश के नागदा शहर में ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड की साइट के खिलाफ औद्योगिक प्रदूषण के आरोपों की जांच के आदेश दिए हैं। एनजीटी ने चार-सदस्यीय समिति को साइट का दौरा करने और छह सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
ग्रासिम इंडस्ट्रीज पर आरोप है कि वह केमिकल-युक्त पानी को खुली भूमि पर डाल रही है, जिससे मिट्टी और जल को नुकसान पहुंच रहा है। कोर्ट को बताया गया है कि परिसर से केमिकल-युक्त पानी को ‘अधिकारियों द्वारा जानबूझकर एक औद्योगिक नाले में छोड़ा जाता है, जो लगभग 300 मीटर की दूरी पर स्थित चंबल नदी में मिलता है’।
शिकायतकर्ता के अनुसार, इस प्रकार यह जहरीला पानी चंबल नदी के नीचे की ओर गांधी सागर बांध की तरफ बह जाता है। इसी पानी की आपूर्ति और खपत नागदा और कछरोड़ शहरों में की जाती है।
भारत-बांग्लादेश के बीच जलमार्गों का नहीं हो पा रहा इस्तेमाल
भारत और बांग्लादेश के बीच के नदी मार्ग दोनों देशों के लिए आर्थिक और भौगोलिक स्तर पर काफी मायने रखते हैं। हालांकि पर्यावरण प्रबंधन से जुड़े मसलों के कारण इनमें से अधिकांश मार्ग बेकार पड़े हैं।
भारत और बांग्लादेश के बीच 1972 में हुई एक संधि में मालवाहन के लिए 11 जलमार्गों के इस्तेमाल की बात कही गई थी। लेकिन फिलहाल इनमें से सिर्फ तीन मार्गों पर ही नियमित तौर पर माल ढुलाई की जा रही है। बाकी मार्ग बड़े जहाजों के आने-जाने के लिए पर्याप्त रूप से गहरे नहीं है। इनमें से कुछ मार्ग कभी-कभार प्रयोग में लाए जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जहां साल में एक बार भी कोई गतिविधि नहीं हुई है।
अगर इन सभी जलमार्गों का नियमित रूप से इस्तेमाल किया जाए तो बांग्लादेश को इससे काफी आर्थिक लाभ मिल सकता है। विश्व बैंक ने 2016 के एक अध्ययन में बताया था कि जलमार्ग के जरिए एक टन सामान ले जाने पर एक किलोमीटर की लागत 0.99 बांग्लादेशी टका (0.79 रुपए) पड़ती है, जबकि रेलवे से माल ढुलाई का खर्च 2.74 टका (2.19 रुपए) होता है। और सड़क मार्ग से यह लागत 4.50 बांग्लादेश टका (3.60 रुपए) पड़ती है।
भारत के लिए भी जलमार्गों का जियो-पॉलिटिकल महत्व बहुत है। दरअसल भारत की दिलचस्पी जलमार्गों का उपयोग करके अलग-थलग पड़े पूर्वोत्तर राज्यों को भौगोलिक मुख्यभूमि, या मेनलैंड से जोड़ने में है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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