घटती सांसें: उत्तर भारत की हवा में दुनिया में कहीं भी पाये जाने वाले हानिकारक वायु प्रदूषकों से 10 गुना अधिक घातक प्रदूषक हैं। फोटो – Canva

वायु प्रदूषण से भारतीयों की ज़िंदगी हो रही 10 साल कम: शोध

शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इस्टिट्यूट की नई रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण भारतीयों की उम्र 9 साल कम कर सकता है।  इसकी वजह है कि उत्तर भारत की हवा में दुनिया में कहीं भी पाये जाने वाले हानिकारक वायु प्रदूषकों से 10 गुना अधिक घातक प्रदूषक हैं। 

स्टडी कहती है कि उत्तर भारत में 48 करोड़ लोग “सबसे खराब” स्तर के वायु प्रदूषण में रह रहे हैं और ज़हरीली हवा का दायरा पूरे देश में बढ़ रहा है और स्वच्छ हवा के लिये नीतिगत काम कम से कम 5 साल का जीवन बढ़ा सकता है। प्रदूषित हवा के फैलने से अब महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में 2000 के दशक के शुरुआती सालों के मुकाबले आयु प्रत्याशा दो से ढाई साल कम हो रही है। 

हवा साफ करने में नहीं बल्कि धुंआं फैलाने पर किया अधिक खर्च

कम और मध्य आय वाले जिन देशों को हवा साफ करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय फंड मिलते हैं उनमें पिछले 30 सालों में यानी 1990 और 2019 के बीच वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 153% की वृद्धि हुई है। इसके बावजूद यहां वायु प्रदूषण से निपटने वाली परियोजनाओं में डेवलपमेंट फंडिंग द्वारा कुल 1% से भी कम खर्च किया गया  है। ‘द स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर क्वालिटी फंडिंग 2021’ नाम से प्रकाशित यह रिपोर्ट एक क्लीन एयर फंड नाम की एक वैश्विक दानदाता संगठन की ओर से तैयार की गई है। 

इस शोध से यह भी पता चलता है कि सरकारों ने जीवाश्म ईंधन उपयोग करने वाली परियोजनाओं को वायु  प्रदूषण कम करने वाली परियोजनाओं  की तुलना में अधिक प्राथमिकता दी। रिपोर्ट में कहा गया है  कि सरकारों ने उन परियोजनाओं पर विकास सहायता में 21% अधिक खर्च किया है जो जीवाश्म ईंधन का उपयोग करती  है  वही दूसरी और वायु प्रदूषण को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य वाली परियोजनाओं पर सरकार ने कम खर्च किया है। इस बारे में विस्तार से यहां पढ़ा जा सकता है। 

एक-तिहाई देशों में एयर क्वॉलिटी को लेकर कानूनी प्रावधान नहीं: UNEP 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने वायु गुणवत्ता से जुड़े कानूनों और मानकों का आकलन किया है जिसमें पता चलता है कि हर तीन में एक देश में ऐसे एयर पॉल्यूशन स्टैंडर्ड यानी साफ हवा के मानक नहीं हैं जिनका पालन करने की कानूनी बाध्यता हो। जहां पर ऐसे नियम कानून हैं भी तो वह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के दिशानिर्देशों से मेल नहीं खाते।  रिपोर्ट कहती है कि जिन देशों के पास ऐसे कानून बनाने की संवैधानिक शक्ति है उनमें से 31% उसका प्रयोग नहीं कर रहे। दुनिया के 49% देश वायु प्रदूषण को केवल एक आउटडोर समस्या मानते हैं।

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