स्वास्थ्य पर रिसर्च और शोध करने वाली दुनिया की 200 से अधिक पत्रिकाओं (जर्नल) ने एक संपादकीय में विश्व नेताओं से अपील की है कि वह क्लाइमेंट चेंज के खिलाफ कड़े कदम उठायें। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के मुताबिक पहली बार इतने सारे प्रकाशनों ने एक ही संदेश एक साथ जारी किया है जो दिखाता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर हालात कितना गंभीर हैं। जानकारों का कहना है कि विज्ञान बिल्कुल स्पष्ट है और वह एक ही बात कह रहा है कि जलवायु परिवर्तन पर आंखें बंद नहीं रखी जा सकती। इस साल नवंबर में ग्लासगो में हो रहे जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन से ठीक पहले जिस संपादकीय में यह बात कही गई है वह ब्रिटिश मेडिकल जर्नल, द लांसेट, इंडियन मेडिकल जर्नल और चायनीज़ साइंस बुलेटिन जैसे कई प्रकाशनों में आयेगा।
ओडिशा में होगा एनटीपीसी का मेडिकल कॉलेज
ओडिशा के सुंदरगढ़ ज़िले में सरकारी ताप बिजली कंपनी एनटीपीसी एक मेडिकल कॉलेज खोल रही है जिसमें 500 बिस्तरों वाला अस्पताल होगा। यहां मेडिकल साइंस की 22 शाखाओं में हर साल 100 एमबीबीएस छात्रों को एडमिशन मिलेगा। राज्य सरकार ने कहा है कि इसके लिये कंपनी को 21 एकड़ ज़मीन दी गई है और कंपनी इसमें 350 करोड़ का निवेश करेगी। संभावना है कि यह मेडिकल कॉलेज साल 2022-23 से शुरू हो जायेगा।
इसके अलावा एनटीपीसी मध्यप्रदेश के खरगौन ज़िले में एक इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (आईटीआई) भी लगायेगी। कंपनी ने कहा है कि वह सामुदायिक सुविधाओं के लिये 13 करोड़ का निवेश करेगी।
मीट और दूध उद्योग के इमीशन जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन से अधिक
दुनिया की 20 बड़ी मीट कंपनियों का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन जर्मनी, ब्रिटेन या फ्रांस जैसे किसी भी देश से होने वाले इमीशन से अधिक है। इन कंपनियों को करोड़ों डॉलर वित्तीय मदद के तौर पर भी मिल रहे हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अपने एक विश्लेषण में यह बात कही है। मीट के लिये जानवरों को पालने, चारा खिलाने और मांस की प्रोसेसिंग करने से लेकर उसकी पैकिंग आदि में जो इमीशन होता है वह दुनिया के कुल इमीशन का करीब 14.5% है और अमीर देशों को मीट इंडस्ट्री में काफी सुधार करने और खाने पीने की आदतें बदलने की ज़रूरत है क्योंकि वहां औद्योगिक मीट का बाज़ार काफी बड़ा है। इस बारे में विस्तार से यहां भी पढ़ा जा सकता है।
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