दुबई में जारी क्लाइमेट कांफ्रेंस में (कॉप28) में इस साल तेल, गैस और कोयले का कारोबार बढ़ाने वाले 2,500 लॉबीकर्ता पहुंचे हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस संकट पर अपनी गहरी चिंता और निराशा जताई है। जलवायु परिवर्तन पर दुनिया की सभी सरकारों का यह सबसे बड़ा सालाना सम्मेलन है लेकिन पहले दिन से ही विवादों में रहा है।
गार्डियन अखबार ने एक विश्लेषण का हवाला देते हुए कहा है कि 2,456 जीवाश्म ईंधन लॉबीकर्ताओं को जलवायु वार्ता में आने की अनुमति दी गई है यानी कि वार्ता में मौजूद हर 30 लोगों में से एक व्यक्ति लॉबीकर्ता है। पिछले साल शर्म-अल शेख में ऐसे लॉबीकर्ताओं का रिकॉर्ड जमावड़ा हुआ लेकिन इस साल तो यह संख्या शर्म-अल-शेख की संख्या की भी चार गुना है। शेल, टोटल और एक्सॉनमोबिल जैसी तेल और गैस कंपनियों के हितों को आगे बढ़ाने की होड़ में लगे लॉबीकर्ताओं की संख्या, ब्राज़ील को छोड़कर हर देश के प्रतिनिधिमंडल से अधिक है। इसके लेकर पर्यावरण कार्यकर्ताओं में रोष है।
इससे पहले इस कांफ्रेंस की शुरुआत में बीबीसी की इस ख़बर के बाद विवाद हो गया था जिसमें कहा गया कि मेज़बान देश संयुक्त अरब अमीरात इस कांफ्रेंस के आयोजन का इस्तेमाल दुनिया के तमाम देशों के साथ तेल और गैस के व्यापारिक सौदों के लिये कर रहा है। इस कांफ्रेंस के अध्यक्ष और आबूधाबी नेशनल ऑइल कंपनी के सीईओ अल जबेर ने इन आरोपों से साफ इनकार किया लेकिन तेल और गैस कंपनियों का दबदबा सम्मेलन में साफ दिख रहा है।
इसी बीच मंगलवार को ग्लोबल स्टॉकटेक का नया ड्राफ्ट जारी हुआ। इस ड्राफ्ट में आकलन किया गया है कि पेरिस संधि के वादों को पूरा करने में सभी देश कितना सफल रहे हैं। इसमें हरित ऊर्जा बढ़ाने और CO2 इमीशन कम करने (मिटिगेशन), जीवाश्म ईंधन के प्रयोग और अब तक किए गए उत्सर्जन की ज़िम्मेदारी के साथ-साथ इक्विटी को लेकर विकल्पों पर बात की गई है।
वार्ता में जो ड्राफ्ट रखा गया उसमें वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 2022 के मुकाबले तीन गुना बढ़ाकर, 2030 तक 11,000 गीगावॉट करने का लक्ष्य है, जबकि ऊर्जा दक्षता यानी एनर्जी एफिशिएंसी को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
‘जंगलों के क्षेत्रफल के साथ उनकी गुणवत्ता देखना बहुत ज़रूरी है’
-
भारत के नेट जीरो लक्ष्य पर कोयला आधारित स्टील निर्माण का खतरा: रिपोर्ट
-
सिर्फ जीवित रहना काफ़ी नहीं: भारत के शहरों को अधिक बेहतर बनाने की ज़रूरत
-
प्लास्टिक संधि पर भारत की उलझन, एक ओर प्रदूषण तो दूसरी ओर रोज़गार खोने का संकट
-
बाकू में खींचतान की कहानी: विकसित देशों ने कैसे क्लाइमेट फाइनेंस के आंकड़े को $300 बिलियन तक सीमित रखा