हिमाचल के कुल्लू में राहत और बचाव कार्य में जुटे एसडीआरएफ के जवान। फोटो: @HP_SDRF/ Twitter

हिमाचल बाढ़ की मार: ‘ज़िन्दगी 25 साल पीछे चली गई’

हिमाचल में आई बाढ़ को करीब एक महीना हो गया है और इसके कई हिस्से अभी भी संकट से जूझ रहे हैं। राज्य में कुल्लू, मंडी, सोलन और किन्नौर के इलाकों में सबसे अधिक फर्क पड़ा है। हिमाचल में ऐसी बाढ़ पहले कभी नहीं हुई। हमारी टीम ने मंडी शहर से 15 किलोमीटर दूर पंडोह गांव का दौरा किया जो व्यास नदी के तट पर बसा है। यहां 9 और 10 जुलाई को बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया था।

पहली मुलाकात 72 साल की कुशमिन्दर कौर से होती है। उन जैसे बुज़ुर्गों ने जीवन में पहली बार ऐसी बाढ़ देखी।

“मैं शादी के बाद यहां आई और मुझे यहां रहते हुये 50 साल बीत गए। ऐसा पानी और ऐसी बर्बादी पहले कभी अपनी ज़िंदगी में नहीं देखी। इस बार यहां किसी का कुछ नहीं बच पाया और घंटे दो घंटे में सब कुछ तबाह हो गया।”

पंडोह करीब दो हज़ार लोगों की आबादी वाला छोटा सा कस्बा है। कुशमिन्दर कहती हैं कि शहर में आठ फुट तक पानी और घरों में मलबा भर गया। सारा सामान बह गया और वाहन पानी में तैरते हुए दिखे। लोगों को शहर छोड़कर भागना पड़ा।

व्यास नदी का बहाव इतना तेज़ था कि वह यहां बना 100 साल पुराना लोहे का एक पुल बहा ले गई। उस पुल के नदी किनारे गिरे अवशेषों को दिखाते हुए स्थानीय लोग बताते हैं कि बाढ़ में फंसे कुछ लोगों को आखिरी वक्त में आपदा प्रबंधन के जवानों ने बचाया वरना वह भी बह गए होते।

पंडोह में जेसीबी और बड़ी मशीनों के स्पेयर पार्ट बेचने वाले गुरुदेव कुमार सैनी अपने बर्बाद हो चुकी दुकान को देख रहे हैं। वह कहते हैं, “सब कुछ बह गया। दुकान में करीब 25 से 30 लाख रुपए का कीमती सामान था। हम लोगों की ज़िंदगी 20 से 25 साल पीछे चली गई है।”

कस्बे में पानी का बहाव अचानक बढ़ने का मुख्य कारण कुछ दूरी पर बने पंडोह बांध से अचानक पानी छोड़ा जाना था। पंडोह के सभी लोगों ने भाखड़ा-व्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) को इस आपदा के लिए जिम्मेदार ठहराया।

स्थानीय निवासी और पत्रकार बालक राम कहते हैं, “बांध के कर्मचारियों के पास मौसम विभाग द्वारा दी गई सूचना उपलब्ध थी। लोगों को चेतावनी सही समय पर दी जानी चाहिए जो कि नहीं किया गया और अचानक पानी छोड़ दिया। चेतावनी सायरन बजाने का अर्थ है कि नदी के पास न जाएं। यह चेतावनी नहीं दी गई कि पानी इतना होगा कि लोगों के घरों में घुस जाए।”

बीबीएमबी के सुपरिटेंडिंग इंजीनियर अजय पाल सिंह ने हमसे बातचीत में बांध कर्मियों की ओर से किसी भी कोताही या लापरवाही से इनकार किया।

उनके मुताबिक, “लोग तकनीकी बातें नहीं समझते। कोई मिसमैनेजमेंट नहीं हुआ। पंडोह कोई स्टोरेज डैम नहीं है। हम पानी को रोक कर नहीं रख सकते। जितना पानी ऊपर से आता है उसे छोड़ना होता है। जो पानी आया वही नीचे गया। हमने पूरी चेतावनी दी हुई थी। एक स्तर से अधिक पानी को नहीं रोका जा सकता।”

असल में व्यास नदी पर कई बांध बने हैं, और आधा दर्जन से अधिक बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के बांध हैं और कई छोटी परियोजनाएं इस नदी या उसकी सहायक नदियों के बेसिन में हैं। इन बांधों के गेट अचानक खुलने से 8 और 9 जुलाई को व्यास का जलस्तर बहुत बढ़ गया और पंडोह बांध में बहुत सारा पानी आ गया। सामान्य से कई गुना अधिक पानी नदी में छोड़ना पड़ा।

क्या ख़राब मौसम की पूर्व चेतावनी होने पर बांध के पानी को लगातार नदी में छोड़कर आपदा को टाला नहीं जा सकता था? इस सवाल पर अजय पाल कहते हैं, 8 और 9 जुलाई को व्यास के जलागम क्षेत्र में अचानक भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं के बाद यह संकट पैदा हुआ।

पाल के मुताबिक, “उस दिन मौसम अप्रत्याशित था। ऊपरी क्षेत्र में बादल फटते हैं। ऐसा नहीं था कि हमें 4 घंटे पहले ही पता चल जाए कि बादल फटेगा और पानी बढ़ेगा। आधे घंटे में ही पानी बहुत बढ़ गया। यह अभूतपूर्व घटना थी।”

(यह स्टोरी न्यूज़लॉन्ड्री से साभार ली गई है।)

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