यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसके मुताबिक वायु प्रदूषण यूरोप में हर साल 1,200 से अधिक बच्चों और किशोरों की मौत का कारण बनता है। अत्यधिक वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से अस्थमा बढ़ जाता है, जो पहले से ही यूरोप में 9% बच्चों और किशोरों को प्रभावित कर रहा है। इसके साथ ही सांस का संक्रमण, एलर्जी और फेफड़ों के काम करने की ताकत कम हो जाती है।
अध्ययन में यूरोपीय संघ के 27 देशों समेत कुल 30 देशों पर अध्ययन किया गया लेकिन इसमें रूस, यूक्रेन और यूनाइटेड किंगडम जैसे प्रमुख औद्योगिक देशों को शामिल नहीं किया, जहाँ वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या और भी अधिक हो सकती है। हालांकि यूरोप के मुकाबले एशियाई देशों में हालात कई गुना अधिक ख़राब हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है कि दुनिया भर में हर साल 17 लाख बच्चों की मौत के पीछे वायु प्रदूषण एक कारण होता है। भारत में हर साल 5 साल से कम उम्र के लगभग 1 लाख बच्चे वायु प्रदूषण से अपनी जान गंवाते हैं।
साथ ही विशेषज्ञों का मानना है की बढ़ता वायु प्रदूषण गर्भ में पल रहे बच्चों, गर्भवती महिलाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। मिसाल के तौर पे संभवतः समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन, मृत जन्म या जन्मजात असामान्यताएं हो सकती हैं।
थाईलैंड में वायु प्रदूषण के कारण लाखों लोगों ने काटे अस्पताल के चक्कर
थाईलैंड के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है की देश के कई हिस्सों में धुएं और धुंध का प्रकोप बढ़ता चला जा रहा है। आंकड़ों के अनुसार में थाईलैंड में साल की शुरुआत से अब तक 24 लाख लोग वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण अस्पताल आ चुके हैं। वायु गुणवत्ता पर नज़र रखने वाली आई क्यू एयर के अनुसार, बीते गुरुवार सुबह बैंकॉक और उत्तरी शहर चियांग माई दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में थे।
श्वसन संबंधी समस्याएं, त्वचा में जलन (डर्मेटाइटिस), आंखों में सूजन और गले में खराश सबसे आम बीमारियों में से एक थे। स्वास्थ्य अधिकारियों ने लोगों से उच्च गुणवत्ता वाले N-95 प्रदूषण रोधी मास्क का उपयोग करने, खिड़कियां और दरवाजे बंद करने, बाहर कम से कम समय बिताने और घर के अंदर ही व्यायाम करने का आग्रह किया है।
शिशुओं में खराब संज्ञान के साथ वायु प्रदूषण करता है जीवन के सभी चरणों को प्रभावित
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में खराब वायु गुणवत्ता दो साल से कम उम्र के शिशुओं में खराब संज्ञान का कारण हो सकती है यानी वायु प्रदूषण इन छोटे बच्चों के सोचने और जानकारी को हासिल करने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है। इस उम्र में मस्तिष्क के विकास की रफ्तार सबसे तेज़ होती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर कोई कदम न उठाया जाये तो बच्चों के मस्तिष्क के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पूरे जीवन के लिये हो सकते हैं। इस शोध के प्रमुख रिसर्चर यूके की ईस्ट एंजेलिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन स्पेंसर हैं। उनके मुताबिक शुरुआती काम से यही पता चल रहा है कि खराब वायु गुणवत्ता से बच्चे में संज्ञानात्मक हानि होती है जिस कारण भावनात्मक और व्यवहार से जुड़ी समस्यायें हो सकती हैं जिसका प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है।
इस शोध में विश्वविद्यालय ने लखनऊ की कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब के साथ मिलकर काम किया और स्टडी के नतीजे ई-लाइफ जर्नल में प्रकाशित हुये हैं। यह बात चिंताजनक है क्योंकि इस साल की शुरुआत में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में औसतन आंठवी सबसे प्रदूषित हवा है, जबकि दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 12 भारत के हैं।
सिर्फ यही नहीं, इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने पिछले 10 वर्षों में किए गए 35,000 से अधिक अध्ययनों के विश्लेषण के आधार पर पाया है कि वायु प्रदूषण व्यक्ति के जीवन के सभी चरणों को प्रभावित करता है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि जब वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभाव की बात की जाती है तो ज़्यादा ध्यान समय से पहले होने वाली मौतों की संख्या पर दिया जाता है। लेकिन लम्बी बीमारियों के विकसित होने में वायु प्रदुषण के योगदान पर ध्यान नहीं दिया जाता है। शोध के अनुसार प्रदूषित कणों के संपर्क में आने से गर्भपात हो सकता है, स्पर्म की संख्या कम हो सकती है और बच्चों के फेफड़ों का विकास रुक सकता है। बाद में वयस्कता में, यह कैंसर और स्ट्रोक जैसी पुरानी बीमारियों का कारण भी बन सकता है।
नींद की ख़राब गुणवत्ता का एक कारण वायु प्रदुषण
स्लीप हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण, गर्मी, कार्बन डाई के साथ ऑक्साइड का उच्च स्तर और आस पास का शोर रात की अच्छी नींद लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। यह शोध बेडरूम में कई पर्यावरणीय वेरिएबल को मापने और अच्छी नींद के साथ उनके संबंधों का विश्लेषण करने वाली पहली रिसर्च है जिसे नींद के लिए उपलब्ध समय के सापेक्ष सोने में बिताए गए समय के रूप में परिभाषित किया गया है।
अध्ययन में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ग्रीन हार्ट प्रोजेक्ट के 62 प्रतिभागियों को शामिल किया गया था, जो लुइसविले निवासियों के हृदय स्वास्थ्य पर 8,000 परिपक्व पेड़ लगाने के प्रभावों की जांच करता है। गतिविधि मॉनिटर और नींद लॉग का उपयोग करके प्रतिभागियों को दो सप्ताह तक ट्रैक करने के बाद, निष्कर्षों से पता चला कि वायु प्रदूषण के उच्च स्तर, कार्बन डाइऑक्साइड, शोर और बेडरूम में तापमान सभी स्वतंत्र रूप से कम प्रभावी नींद से जुड़े हैं ।
भारत के स्थानीय पेड़ और फसल वायु प्रदूषण से निपटने में हो सकते हैं मददगार
भारत में पाए जाने वाले कुछ स्थानीय पेड़ और फसलें प्रदूषकों को अवशोषित और फ़िल्टर करके वायु प्रदूषण के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकती हैं। एक नए अध्ययन के अनुसार पीपल, नीम, आम जैसे पेड़ और मक्का, अरहर और कुसुम जैसी फसलें वायु प्रदूषण के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
पटना, बिहार में किए गए एक अध्ययन के दौरान इन पेड़ों ने उच्चतम वायु प्रदूषण सहिष्णुता सूचकांक (एपीटीआई) मूल्यों का प्रदर्शन किया। विभिन्न पेड़ों और फसलों की प्रजातियों ने वायु प्रदूषण के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया दी। पौधों में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर ऑक्सीकरण प्रदूषकों के प्रतिकूल प्रभाव के प्रति उनकी सहनशीलता को निर्धारित करता है। पीपल के बाद आम के पेड़ में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर अधिक पाया गया।
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