भारत की वर्तमान अक्षय ऊर्जा क्षमता 125 गीगावाट तक पहुंच गई है।

नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की नीलामी में होगी तीन गुना वृद्धि

भारत 2030 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य की ओर बढ़ने के क्रम में नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के आवंटन के लिए नीलामी की क्षमता में तीन गुना वृद्धि करेगा

ब्लूमबर्गएनईएफ की एक रिपोर्ट बताती है कि सरकार की नई टाइमलाइन के अनुसार मार्च 2024 तक कुल 50 गीगावाट सौर और पवन परियोजनाओं की स्थापना हेतु अनुबंध किए जाएंगे। पिछले पांच वित्तीय वर्षों में हर साल औसतन 15 गीगावाट की नीलामी की गई थी।

सरकार के कैलेंडर के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष की पहली दो तिमाहियों में 15-15 गीगावाट परियोजनाओं की नीलामी करने की योजना है। अगली दोनों तिमाहियों में करीब 10-10 गीगावाट की नीलामी की जाएगी।

राज्य-संचालित ऊर्जा कंपनियां सोलर एनर्जी कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, एनटीपीसी लिमिटेड, एनएचपीसी लिमिटेड और एसजेवीएन लिमिटेड सरकार की ओर नीलामी आयोजित करेंगी।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की नवीनतम मासिक रिपोर्ट के अनुसार, बड़े हाइड्रो और परमाणु संयंत्रों को छोड़कर भारत की वर्तमान कुल अक्षय ऊर्जा क्षमता मार्च 2023 में 125 गीगावाट तक पहुंच गई। वर्तमान में, नवीकरणीय ऊर्जा देश की कुल स्थापित ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 26.53 प्रतिशत है।

नवीकरणीय क्षेत्र के विकास के साथ रेगुलेशन की मांग बढ़ी

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के विकास और आने वाले वर्षों में इसके महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को देखते हुए, इस क्षेत्र के रेगुलेशन को लेकर सवाल उठने लगे हैं।

वर्तमान में, अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए, आरई सेक्टर को देश के कुछ भूमि, जल या खनिज उपयोग नियमों से छूट दी गई है।

मोंगाबे की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन प्राकृतिक संसाधनों के बढ़ते उपयोग की वजह से कुछ विशेषज्ञों का मानना है की नवीकरणीय सेक्टर के रेगुलेशन की आवश्यकता है।

भारत ने 2030 तक लगभग 270 गीगावाट सौर क्षमता सहित, गैर-जीवाश्म ईंधन से 500 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है।

जहां एक ओर नवीकरणीय ऊर्जा के विकास से कार्बन उत्सर्जन में कटौती का मार्ग प्रशस्त होता है, वहीं संसाधनों की उपलब्धता पर भी दबाव बढ़ता है।

संसाधन जैसे बड़ी परियोजनाओं की स्थापना के लिए भूमि, बिजली संयंत्रों के संचालन और रखरखाव के लिए पानी, उपकरण का जीवन पूरा हो जाने पर अपशिष्ट प्रबंधन और उपकरण के लिए उपयोग किए जाने वाले खनिज आदि इस उद्योग का अहम हिस्सा हैं।

यूरोपीय संघ, अमेरिका को ‘ग्रीन शिप’ सप्लाई कर रहा है भारत

भारत ने वैश्विक शिपिंग हब बनने की महत्वाकांक्षा को बढ़ावा देते हुए, पारंपरिक जहाज निर्माता देशों जैसे नॉर्वे, जर्मनी और अमेरिका को ‘ग्रीन शिप’ सप्लाई करना शुरू कर दिया है

‘ग्रीन शिप’ ऐसे जहाज होते हैं जो आमतौर पर कम प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन जैसे मेथनॉल, बिजली, ग्रीन हाइड्रोजन और हाइब्रिड बैटरी पर चलते हैं।

दुनिया भर में भारी मात्रा में सामानों को ढोने के लिए जिम्मेदार जहाजों से प्रचुर मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। इसलिए, जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों का फोकस शिपिंग उद्योग पर भी है। 

रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण उत्पन्न वैश्विक ऊर्जा संकट के बाद से यह मुद्दा गंभीर हो गया है, और ‘ग्रीन शिप’ को लेकर नए सिरे से रुचि जगी है।

हाल ही में, राज्य-संचालित कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) ने नॉर्वे को दो इलेक्ट्रिक कार्गो फेरीज डिलीवर कीं। सीएसएल के पास अभी कई और ऑर्डर लंबित हैं।

एप्पल ने भारत में खोले कार्बन न्यूट्रल शोरूम

एप्पल ने भारत में मुंबई और दिल्ली में दो कार्बन न्यूट्रल स्टोर खोले हैं, जिनका परिचालन 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा पर होगा।

एप्पल का दावा है कि मुंबई स्टोर को इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह दुनिया के सबसे अधिक एनर्जी-एफिशिएंट स्टोर्स में से एक है।  

इस स्टोर के पास एक समर्पित सौर ऐरे है और यह अपने संचालन के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं है। 

एप्पल 2030 तक कंपनी को कार्बन न्यूट्रल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

हालांकि, मुंबई के स्टोर की छत टिम्बर से बनी है। छत में 1,000 टाइलें हैं और प्रत्येक टाइल टिम्बर के 408 टुकड़ों से बनी है। इसकी बनावट में 450,000 से अधिक टिम्बर एलिमेंट्स का प्रयोग किया गया है।
यही कारण है कि आलोचक कंपनी की कार्बन न्यूट्रल होने की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करते हैं। उनका कहना है कि कंपनी की आपूर्ति श्रृंखला की जड़ में खनिज और धातु उद्योग हैं और यह ई-कचरे के विशाल स्तर को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी है। साथ ही यह नेचर-बेस्ड कार्बन रिमूवल परियोजनाओं पर निर्भर है।

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