एक नये विश्लेषण में पाया गया है कि ज़्यादातर बहुराष्ट्रीय कंपनियां – जिनके बारे में साइंस बेस्ड टार्गेट इनीशिएटिव (एसबीटीआई) ने कहा था कि वे तापमान वृद्धि को 1.5 से 2.0 डिग्री तक सीमित रखने के हिसाब से काम कर रही हैं – ग्लोबल वॉर्मिंग को काबू में रखने के लक्ष्य के मुताबिक नहीं चल रही हैं। न्यू क्लाइमेट इनीशिएटिव (एनसीआई) ने पाया है कि 18 में 11 बहुराष्ट्रीय कंपनियों का काम बहुत ही विवादित है क्योंकि वो जो तकनीक इस्तेमाल कर रही है उनका फायदा स्पष्ट नहीं है।
विश्लेषण के मुताबिर नेस्ले, आइका और यूनिलीवर जैसी बहुत सारी बड़ी कंपनियों की क्लाइमेट योजनाओ में “बहुत कम ईमानदारी” दिखती है। इससे पहले एसबीटीआई ने हज़ारों कंपनियों की कार्यशैली को वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के अनुकूल पाया था। एनसीआई के मुताबिक यह कन्फिक्ट ऑफ इंटरेस्ट का मामला है क्योंकि जिन कंपनियों का मूल्यांकन एसबीटीआई करती है उनमें से कुछ एसबीटी की फंडिंग करती हैं।
एक्सट्रीम वेदर का अनुभव कर पर्यावरण के लिये लोगों की चिन्ता बढ़ाती है, ग्रीन वोटिंग के लिये रुझान भी
एक अध्ययन में पाया गया है कि यूरोप में क्लाइमेट चेंज को लेकर लोगों के निजी अनुभव उनमें पर्यावरण को लेकर “महत्वपूर्ण और बड़े” सरोकार जगाते हैं। तापमान में विसंगति,भीषण गर्मी और सूखा इन अनुभवों में शामिल है। इस अध्ययन में इस बात का विश्लेषण किया गया है कि एक्सट्रीम वेदर का अनुभव करके कैसे पर्यावरण के लिये लोगों का दृष्टिकोण बदलता है और यूरोप में इससे लोग ग्रीन पार्टियों के लिये वोट देने का मन बना रहे हैं।
लेकिन लोगों की सोच पर होने वाला यह असर यूरोप में अलग अलग जगहों पर अलग अलग है। विज्ञान पत्रिका नेचर में छपा शोध कहता है कि ठंडे इलाकों और समशीतोष्ण अटलांटिक क्लाइमेट में यह प्रभाव अधिक है और गर्म मेडिटिरेनियन इलाकों में कम। विरोधाभास यह है कि भारत में भले ही बढ़ते जलवायु प्रभाव महसूस किये जा रहे हों लेकिन यहां की एकमात्र राष्ट्रीय ग्रीन पार्टी समर्थन जुटाने में असफल रही है। अभी हो रहे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों में पार्टी के पास न फंड है और न उसे उम्मीदवार मिल रहे हैं।
वैश्विक जैव विविधता लक्ष्य हासिल करने के लिये चाहिये कर्ज़ और न्यायोचित टैक्स व्यवस्था
एक नये अध्ययन में कहा गया है कि वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों को हासिल न कर पाने में सरकारी फंडिंग की कमी मुख्य वजह है और दक्षिण गोलार्ध के देशों में यह समस्या अधिक विकट है। इस स्टडी में टैक्स ढांचे में सुधार और कर्ज़ के लिये एक न्यायोचित व्यवस्था को ज़रूरी बताया गया है जिससे इस क्षेत्र में सरकारी फंडिंग बढ़े और हानिकारक वित्तीय प्रवाह को रोका जा सके। इस अध्ययन में कहा गया है कि “सिर्फ फंडिंग के गैप भरने की कोशिश से आगे बढ़ना चाहिये और जैव विविधता को हानि के निहित कारणों (राजनैतिक और आर्थिक) को संबोधित करने की कोशिश करनी चाहिये।”
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
‘जंगलों के क्षेत्रफल के साथ उनकी गुणवत्ता देखना बहुत ज़रूरी है’
-
बाकू सम्मेलन के बाद विकासशील देशों ने खटखटाया अंतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाज़ा
-
बाकू सम्मेलन: राजनीतिक उठापटक के बावजूद क्लाइमेट-एक्शन की उम्मीद कायम
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
-
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़