उद्योगों से होने वाला उत्सर्जन एनसीआर में वायु गुणवत्ता पर डाल रहा प्रतिकूल प्रभाव। फोटो: Photo: Hindustan Times

जनता चाहती है वायु प्रदूषण चुनावों में बने मुद्दा

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले किये गये एक सर्वे में 75 प्रतिशत लोगों को लगता है कि वायु प्रदूषण को एक चुनावी मुद्दा होना चाहिये। इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज़ बर्डन इनीशिएटिव के मुताबिक 2019 में करीब   2 लाख लोगों की मौत के पीछे वायु प्रदूषण एक कारण था। इस लिहाज से दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड और यूगव द्वारा यूपी के 6 शहरों में कराया गया यह सर्वे काफी अहम है। आगरा, मेरठ, लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर और  कानपुर में कुल 1215 लोगों के बीच कराये गये सर्वे में 80 प्रतिशत लोगों को पता था कि देश के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 10 यूपी में हैं। लगभग आधे लोगों को एहसास था कि उनके शहर की हवा ख़राब है। करीब 87% लोगों का कहना था कि हरियाली बढ़ाने, ईवी के इस्तेमाल और साफ ऊर्जा के इस्तेमाल से हालात में आमबलचूल परिवर्तन की ज़रूरत है। 

हरियाणा, यूपी, राजस्थान के उद्योगों को चेतावनी: 30 सितंबर तक स्वच्छ ईंधन का प्रयोग शुरू करें नहीं तो काम बंद 

देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में इस साल 30 सितंबर तक पीएनजी या बायोमास ईंधन का उपयोग शुरू करें, या बंद का सामना करें, यह चेतावनी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के भीतर स्थित हरियाणा, उत्तर प्रदेश (यूपी) और राजस्थान के सभी उद्योगों को जारी की गई है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने कहा कि संबंधित कंपनियों, एसोसिएशंस और राज्य सरकारों के साथ बातचीत के बाद यह निर्णय लिया गया है। सीएक्यूएम के आदेश में बताया गया है कि बड़ी संख्या में संघों (एसोसिएशंस), महासंघों (फेडरेशंस) और व्यक्तियों ने पीएनजी [पाइप्ड नेचुरल गैस] के अलावा बायोमास ईंधन के उपयोग की अनुमति के लिए अपने अनुरोध प्रस्तुत किए हैं, और कहा कि बायोमास आधारित ईंधन एचएसडी [हाई-स्पीड डीजल] और कोयला जैसे जीवाश्म ईंधनों की तुलना में पर्यावरण के अधिक अनुकूल हैं। पैनल ने अपने आदेश में तीनों राज्यों से कहा कि दिल्ली के उद्योग पहले ही पीएनजी आदि स्वच्छ ईंधनों को अपना चुके हैं।

चेन्नई में वायु प्रदूषण डब्ल्यूएचओ के मानकों से 5 गुना अधिक: ग्रीनपीस अध्ययन

ग्रीनपीस के एक अध्ययन में कहा गया है कि 2021 में चेन्नई की वायु गुणवत्ता का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सीमा से पांच गुना अधिक था। पीएम 2.5 के स्तर के लिए डब्ल्यूएचओ की वार्षिक सीमा 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। जबकि चेन्नई में नवंबर 2020 से नवंबर 2021 के बीच पीएम2.5 का वार्षिक औसत 27 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने बताया कि मनाली और कोडुंगैयूर टीएनपीसीबी स्टेशनों ने डब्ल्यूएचओ मानकों की तुलना में छह गुना अधिक पीएम 2.5 स्तर (30 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) दर्ज किया, जबकि पेरुंगुडी, रोयापुरम और वेलाचेरी के स्टेशनों ने तीन से चार गुना अधिक दर्ज किया। विशेषज्ञों ने बताया कि चेन्नई केंद्र सरकार की ‘मिलियन-प्लस सिटी’ योजना का हिस्सा है, जिसमें लगभग 30 शहर हैं। लेकिन यह योजना प्रदूषण के सटीक स्रोतों को चिन्हित नहीं करती है, बल्कि उन्हें आम तौर पर वाहनों, निर्माण या सड़क की धूल के रूप में वर्गीकृत करती है।

वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए एग्रीगेटर्स मई तक बढ़ाएं ईवी फ्लीट 

वायु प्रदूषण को कम करने के लिए केंद्र ने दिल्ली सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि सभी कैब कंपनियां और डिलीवरी सेवाएं अगले तीन महीनों के भीतर 10% इलेक्ट्रिक दो-पहिया और 5% इलेक्ट्रिक चार-पहिया वाहन उपलब्ध करवाएं। पर्यावरण और वन विभाग की मसौदा अधिसूचना ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग को बढ़ाया जाए। यह भी कहा गया है कि परिवहन क्षेत्र दिल्ली में PM2.5 उत्सर्जन का प्राथमिक स्रोत है। दिल्ली में वाहनों से होने वाला उत्सर्जन NO2, CO का 80% है।

वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए केंद्र का बजट घटा: हरित थिंकटैंक्स

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के अनुसार विभिन्न थिंकटैंक्स का कहना है कि सरकार ने 2022-23 के बजट में वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए आवंटन को घटा दिया है। दिल्ली स्थित लीगल इनिशिएटिव फॉर फारेस्ट एंड एनवायरनमेंट और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च बताते हैं कि हालांकि मंत्रालय का समग्र बजट 2021-22 में 2,520 करोड़ रुपए से 20% बढ़कर 2022-23 में 3,030 करोड़ रुपए हो गया है, लेकिन वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए आवंटित राशि पर्याप्त नहीं है।

लाइफ के विश्लेषण में कहा गया है कि ‘प्रदूषण नियंत्रण’ के लिए मिले 460 करोड़ रुपयों से उन 132 शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की लागत देना भी संभव नहीं है जहां राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) लागू है। इसमें वह 4000 प्रदूषित शहर और कस्बे शामिल नहीं हैं जो एनसीएपी के दायरे से बाहर हैं। सीपीआर ने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के लिए वित्तीय आवंटन में कमी आई है वहीं एनसीएपी के लिए आवंटन यथावत है।

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