CO2 इमीशन घटा: गिरती अर्थव्यवस्था, साफ ऊर्जा का उत्पादन और कोरोना वायरस का असर, भारत का CO2 उत्सर्जन रिकॉर्ड ढलान पर है | Photo: Kleinman Centre for Energy

कोरोना का असर: 40 साल में पहली बार घटा CO2 उत्सर्जन

भारत में पिछले चार दशकों में पहली बार CO2 उत्सर्जन घटा है और इसके पीछे एक बड़ी वजह है कोरोना वायरस जिसने पूरी दुनिया को आतंकित किया हुआ है। जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग से जुड़ी गतिविधियों पर नज़र रखने वाली वेबसाइट कार्बन ब्रीफ में छपे एक विश्लेषण के मुताबिक CO2 इमीशन ग्राफ में यह चार दशक की सबसे बड़ी गिरावट है। विश्लेषण कहता है कि भारत की अर्थव्यवस्था पहले ही मन्दी में चल रही थी और साफ ऊर्जा का प्रयोग बढ़ रहा था लेकिन जब मार्च में तालाबन्दी की गई तो CO2 इमीशन 15% घट गया। अप्रैल में गिरावट का अनुमान (पूरे आंकड़े आना अभी बाकी है) 30% है।

CO2 के ग्राफ में यह रिकॉर्ड गिरावट 1982-83 के बाद दर्ज की गई है। इस विश्लेषण को करने वाले दो शोधकर्ता लॉरी मिल्लीविर्ता और सुनील दहिया सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर से जुड़े हैं जिन्होंने साल 2019-20 के कार्बन उत्सर्जन का अध्ययन किया। यही वह दौर था जब भारत की अर्थव्यवस्था ढुलमुल रही तो साफ ऊर्जा क्षमता और उत्पादन बढ़ा जिससे कार्बन इमीशन में गिरावट दर्ज हो रही थी। वित्तवर्ष 2019-20 में कुल करीब 1% की गिरावट हुई जो कि 30 मिलियन टन (3 करोड़ टन) कार्बन के बराबर है। इसी वित्त वर्ष में कोल इंडिया की कोयले की बिक्री 4.3% कम हुई लेकिन कोयले का आयात 3.2% बढ़ा यानी कोयले के इस्तेमाल में कुल 2% गिरावट हुई।

विश्लेषण के मुताबिक “यह गिरावट पिछले दो दशक के इतिहास में किसी भी साल में हुई अब तक की सबसे बड़ी गिरावट के रूप में दर्ज की गयी है। यह ट्रेंड मार्च महीने में उस वक्त और गहरा गया, जब कोयले की बिक्री में 10% की गिरावट दर्ज की गयी। उधर, मार्च में कोयले के आयात में 27.5% की वृद्धि देखी गयी। इसका अर्थ यह हुआ कि बिजली उत्पादन में कमी के चलते उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले कुल कोयले की खपत में 15% की गिरावट देखी गयी। बिक्री में अभूतपूर्व कमी के बावजूद मार्च में कोयला उत्पादन में 6.5% की बढ़ोत्तरी हुई। इतना ही नहीं, कोयले की बिक्री से अधिक इसके उत्खनन में वृद्धि दर्ज की गयी। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस कमी की मुख्य वजह मांग में भारी गिरावट है।”

कोयले और तेल जैसे ईंधनों से जुड़े संकट को रेखांकित करते हुये विश्लेषण कहता है कि यह नवीनीकरण ऊर्जा (साफ ऊर्जा) की दिशा में आगे बढ़ने का सुनहरा मौका है। इसलिये इसमें निवेश बढ़ाया जाना चाहिये। विश्लेषण हवा की बेहतर क्वॉलिटी के मद्देनज़र एयर क्वॉलिटी के मानकों में और सुधार लाने की बात भी कहता है।

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