सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह अनुमति दे दी है कि वह 2003 से 2016 के बीच बने सभी कोयला बिजलीघरों को उत्सर्जन मानकों में ढील दे सके। ये प्लांट अब 450 मिलीग्राम प्रति नॉर्मल क्यूबिक मीटर NOx (नाइट्रोजन के ऑक्साइड) उत्सर्जित कर सकेंगे। पहले से तय मानक 300 मिलीग्राम है। जानकार कहते हैं कि प्रदूषण करने वाले सेक्टर पर लगाम लगाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि सभी उद्योगों से निकलने वाले कुल पार्टिकुलेट मैटर का 60% इमीशन पावर सेक्टर से ही है। इसमें 45% SO2 और 35% NOx इमीशन के लिये पावर सेक्टर ज़िम्मेदार हैं। सरकार की दलील है कि बिजलीघरों के लिये अलग-अलग पावर लोड पर ऑपरेट करते हुए 300 मिलीग्राम से कम उत्सर्जन करना मुमकिन नहीं है।
कार्बन टैक्स का असर, CO2 इमीशन में 2% गिरावट
“अब तक की सबसे बड़ी स्टडी” होने का दावा करने वाले शोध में कहा गया है कि उद्योगों पर कार्बन टैक्स लगाने का असर इमीशन गिरने के रूप में दिखा है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि जिन देशों में 2007 में कार्बन टैक्स लगाया गया वहां 2007 से 2017 के बीच औसत CO2 इमीशन में 2% गिरावट दर्ज की गई जबकि दूसरे देशों में यह सालाना 3% की दर से बढ़ा। इस अध्ययन में 142 देशों के 20 साल के डाटा का विश्लेषण किया गया। इनमें से 42 देशों में अध्ययन खत्म होते होते किसी न किसी प्रकार का कार्बन टैक्स था।
NGT ने UP के उच्च अधिकारी को ईंट भट्टों के मामले में फटकारा
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसके तहत ईंट भट्टों को दिल्ली-एनसीआर में चलाने की अनुमति दी गई थी। हरित अदालत ने तब तक एनसीआर में ईंट भट्टों के चलने पर रोक लगाई थी जब तक केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड इसने निकलने वाली गंदगी के पर्यावरणीय प्रभाव पर रिपोर्ट न जमा कर दे। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट 6 जुलाई को जमा की लेकिन यूपी के मुख्य सचिव ने 29 मार्च को ही भट्टे चलाने का आदेश दिया था। प्रदूषण बोर्ड ने एनसीआर के हाल को देखते हुये अपनी रिपोर्ट में कहा है सर्दियों (अक्टूबर-फरवरी) में ईंट भट्टों पर रोक लगाने की सिफारिश की है और कहा है कि केवल मार्च से जून के बीच ही एहतियात के साथ सीमित संख्या में भट्टे चलाये जायें।
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