हावर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं को सॉलिड स्टेट लीथियम आयन बैटरी में कामयाबी मिली है जिसमें एक बार में 10,000 साइकिल की रिचार्ज क्षमता है। माना जा रहा है कि शोधकर्ताओं ने दो इलेक्ट्रोड्स के बीच में अलग अलग क्षमता की सॉलिड स्टेट परतें लगाकर डेन्ड्राइट फॉर्मेशन की दिक्कत को काबू करने की कोशिश की गई है। डेन्ड्राइट फॉर्मेशन के कारण आग लगने का खतरा बढ़ता है और बैटरी की रेंज कम होती है लेकिन दो इलेक्ट्रोड्स के बीच में ये परतें डेन्ड्राइट्स को रोक देती हैं।
अगर बड़े स्तर पर कार उत्पादन में यह प्रयोग सफल होता है बैटरियां अधिकतम 20 मिनट में रिचार्ज हो पायेंगी और कारें 10 से 15 साल तक चलेंगी जो कि अभी चल रही आई-सी इंजन कारों जैसा ही होगा।
नासा के पूर्व वैज्ञानिक बना रहे हैं वायरलैस बैटरी चार्जिंग
अमेरिका की कोर्नेल यूनिवर्सिटी में काम कर रहे नासा के एक पूर्व वैज्ञानिक और उनकी टीम इलैक्ट्रिक कारों के लिये एक ऐसा वायरलैस चार्जिंग सिस्टम तैयार कर रहे हैं जो सड़क पर बिछा होगा। इस प्रयोग के सफल होने का मतलब है कि कार को रोक कर किसी चार्जिंग स्टेशन पर चार्ज नहीं करना होगा बल्कि वह सड़क पर चलते हुये चार्ज हो जायेगी।
अमेरिका की कॉरनेल यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग विभाग में प्रो खुर्रम अफरीदी की टीम एक्टिव वेरिएबल रिएक्टेंस रेक्टिफायर (एवीआर) टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है। इसमें धातु का एक टुकड़ा कार के नीचे लगा होगा और दूसरा टुकड़ा सड़क की उस लेन में फिट किया जायेगा जिस पर कार चार्जिंग के लिये दौड़ेगी। सड़क पर लगा सिस्टम बिजली के मूल स्रोत से जड़ा होगा। इस तरह से चलती हुई कार को अनलिमिटेड रेन्ज मिल सकती है जो अभी कर इलैक्ट्रिक कारों या वाहनों की दुनिया में एक सपना है। प्रो खुर्रम कहते हैं कि इस तरह से कार चालक को न तो चार्जिंग के लिये रुकना पड़ेगा और न चार्जिंग स्टेशन तक जाने के लिये अपना रास्ता बदलना पड़ेगा।
अभी हालांकि ये टेक्नोलॉजी का प्रयोग सड़क के उन्हीं हिस्सों के लिये हो रहा है जहां बहुत सारी कारें चल रही हों – जैसे कि कार पूल लेन – और एक कार के सड़क पर चलने से पर्याप्त करंट पैदा नहीं होगा और कार चार्जिंग नहीं हो पायेगी जब तक की वही कार पूरे दिन उस हिस्से पर चलती रहे।
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