चीन से होने वाले आयात पर निर्भरता कम करने के लिये नीति आयोग ने एक प्रस्ताव रखा है। इसके तहत भारत में इलैक्ट्रिक कार बैटरियों का उत्पादन बढ़ाने के लिये अगले 10 सालों में करीब 460 करोड़ डॉलर (करीब 34,000 करोड़ रुपये) की सब्सिडी दी जायेगी। यदि यह प्रस्ताव पास होता है तो अगले वित्त वर्ष में इसके लिये करीब 12.2 लाख डॉलर (करीब 9 करोड़ रुपये) दिये जायेंगे और हर साल इस मदद को बढ़ाया जायेगा। भारत का घरेलू बैटरी बाज़ार अभी करीब 5 गीगावॉट-घंटा का है और संभावना है कि 2030 तक यह 230 गीगावॉट-घंटा हो जायेगा। नीति आयोग का प्रस्ताव यह भी है कि 2022 के बाद चीन से आयात होने वाली लीथियम-आयन बैटरियों पर आयात शुल्क 5% से बढ़ाकर 15% कर दिया जाये ताकि घरेलू उत्पादकों का बाज़ार में हिस्सा बढ़ सके।
EV में रखरखाव का खर्च IC इंजन कारों के मुकाबले आधा
एक गैर-लाभकारी संस्था कन्जूमर रिपोर्ट्स का ताज़ा शोध बताता है कि गैसोलीन पर चलने वाले वाहनों के मुकाबले इलैक्ट्रिक वाहनों के रखरखाव का खर्च आधा होता है। इस शोध के तहत अमेरिका में इन दो तरह की गाड़ियों और प्लग-इन हाइब्रिड वाहनों को 2 लाख मील से अधिक चलाकर उनका लाइफ टाइम रखरखाव और रिपेयर का खर्च निकाला गया। जहां बैटरी वाहनों और हाइब्रिड में यह खर्च करीब 2.25 रुपये प्रति मील था वहीं गैसोलीन वाहनों में यह दोगुना 4.60 रुपये प्रति मील रहा। इसी संस्था की एक अलग रिसर्च बताती है कि बैटरी वाहन गैसोलीन वाहनों के मुकाबले 60% कम उत्सर्जन करते हैं।
टेस्ला ने की आधुनिक बैटरियों की घोषणा
टेस्ला मोटर्स का दावा है कि उसने नई “टैबलेस बैटरियां” बनाकर बैटरी टेक्नोलॉजी क्षेत्र में एक कामयाबी हासिल की है। कंपनी का कहना है कि इससे मौजूदा लीथियम आयन बैटरियों की रेंज 16% तक बढ़ जायेगी। टैबलेस बैटरी में बैटरी और लोड के बीच का धातु संपर्क हटा दिया जाता है जिससे इलेक्ट्रोन को 250 से लेकर 50 मिलीमीटर तक की कम दूरी तय करनी पड़ती है। दावा किया जा रहा है कि यह बैटरी 5 गुना अधिक एनर्जी स्टोर करेगी और खर्च में प्रति किलोवॉट-घंटा करीब 14% कमी आयेगी।
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