क्लाइमेट एक्शन नदारद: ग्लासगो सम्मेलन में बड़े-बड़े वादों के बावजूद दुनिया की सरकारों ने पिछले एक साल में कुछ नहीं किया फोटो - Dati Bendo_WikimediaCommons

क्लाइमेट एक्शन में फिसड्डी साबित हुईं दुनिया की ज़्यादातर सरकारें

दुनिया की अधिकतर सरकारें क्लाइमेट एक्शन में फेल रही हैं और पिछले एक साल में उन्होंने बातों के सिवा कुछ खास नहीं किया। पिछले साल नवंबर में ग्लासगो सम्मेलन (कॉप 26) में सभी देशों ने 2030 के लिये तय किये गये क्लाइमेट लक्ष्य के हासिल करने के लिये संकल्प लिये थे जिसके लिये इस साल 23 सितम्बर की समय सीमा रखी गयी थी। इस डेडलाइन के पूरा होने पर अब पता चला है कि जिन 200 देशों ने ग्लासगो संधि पर दस्तख़त किये उनमें से महज़ 23 देशों ने संयुक्त राष्ट्र सचिवालय में अपनी योजना की अपडेटेड  जानकारी दी है।

इनमें से भी अधिकतर देशों ने जमा किये गये दस्तावेज़ में यह बताने के बजाय कि वह अपने क्लाइमेट एक्शन को कैसे अधिक प्रभावी बनायेंगे, केवल नीतिगत ब्यौरे ही बताये हैं। अगले सम्मेलन से पहले एडाप्टेशन फाइनेंस को लेकर ग्लासगो में किये गये वादों पर लगभग कुछ नहीं किया गया। सितंबर के अन्त तक अमेरिका, यूके, यूरोपीय कमीशन, स्पेन और कनाडा ने कुछ नहीं किया। एडाप्टेशन फंड जिन 356 मिलियन डॉलर की बात कही गई थी उसमें 230 मिलियन (कुल फंड का 65%) अभी दिया ही नहीं गया।  

ढांचागत परियोजनाओं को जल्दी स्वीकृति देने के लिये सिंगल विंडो सिस्टम 

सरकार ने तय किया है कि साल के अंत तक देश में सभी पर्यावरण, वन, वाइल्ड लाइफ और तटीय क्षेत्र में रेग्युलेशन (सीआरज़ेड) से जुड़ी स्वीकृतियां सिंगल विंडो क्लीयरेंस के तहत देने की शुरुआत हो जायेगी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी मिलने में देरी को खत्म करने के लिये ऐसा किया जा रहा है। परिवेश नाम से पहले ही इस तरह की अनुमतियों के लिये एक व्यवस्था चल रही है।  लेकिन सरकार परिवेश 2.0 शुरू कर रही है जिसमें केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारियों वाली स्टीयरिंग कमेटी होगी जो किसी प्रोजेक्ट का आकलन एक ही समय  साथ-साथ करेगी। 

अरावली में बैंक्वेट हॉल, मनोरंजक परिसरों ने मांगी मंजूरी

उधर पर्यावरण मंत्रालय की परिवेश वेबसाइट पर दस्तावेजों के अनुसार, हरियाणा की अरावली पहाड़ियों में कई बैंक्वेट हॉल, मनोरंजक परिसरों और आवास परियोजनाओं ने वन मंजूरी के लिए आवेदन किया है।  ये ऐसी परियोजनाएं हैं जो वन संरक्षण कानून की धारा 4 के तहत अधिसूचित भूमि पर स्थित हैं, और कुछ मामलों में, पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (पीएलपीए) की धारा 5 के तहत आने वाली ज़मीन पर हैं। पिछले महीने ऐसे 30 से अधिक परियोजना प्रस्ताव वन मंजूरी के लिए प्रस्तुत किये गए

पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा कि इन परियोजनाओं को वन मंजूरी देना उल्लंघन को नियमित करने जैसा होगा क्योंकि वे साइट-विशिष्ट गतिविधियां नहीं हैं और वन भूमि के बाहर भी की जा सकती हैं। गुरुग्राम स्थित वन विशेषज्ञ चेतन अग्रवाल ने हिन्दुस्तान टाइम्स से कहा, “एक शादी या बैंक्वेट हॉल या बगीचा कहीं भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा, हरियाणा में 3.6% पर देश में सबसे कम वन क्षेत्र है, इसलिए इसे निर्माण की अनुमति देने के बजाय अपने जंगलों को बचाने और पुनर्जीवित करने का प्रयास करना चाहिए। 

दिल्ली में ई-बसों को लाने से बच सकती हैं कई लोगों की जान

जापान के क्यूशू विश्वविद्यालय के शोध में कहा गया है कि अगर दिल्ली की सारी बसों को इलैक्ट्रिक बसों में तब्दील कर दिया जाये तो शहर में  वाहनों से निकलने वाले 76 प्रतिशत प्रदूषण को कम किया जा सकता है। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक सीएनजी चालित बसें पार्टिकुलेट मैटर समेत कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जित करती हैं जबकि इलैक्ट्रिक बसों से कोई इमीशन नहीं होते हैं।  अभी दिल्ली में 7000 से अधिक सीएनजी से चलने वाली और केवल 250 इलैक्ट्रिक बसें ही हैं। हालांकि दिल्ली सरकार ने कहा है कि 2025 तक महानगर में 8000 ई बसें होंगी। 

मोंगाबे हिन्दी से बातचीत में इस अध्ययन के शोधकर्ता तावोस हसन भट ने कहा कि अगर दिल्ली चलने वाली सारी बसें सिर्फ इलेक्ट्रिक बसें ही हो तो पीएम 2.5 का कुल उत्सर्जन हर साल 44 टन तक कम किया जा सकता है।  भट के मुताबिक इससे वायु प्रदूषण से हर साल होने वाले 1370 मौतों को रोका जा सकता है। कई लोग सांस की बीमारी से भी बच जाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसी स्थिति में हर साल स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले में लगभग 311 करोड़ रुपये की बचत भी होगी।   

एनजीटी ने मार्बल स्लरी का इस्तेमाल बंद करने को कहा 

देश की हरित अदालत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को मार्बल स्लरी के उपयोग और उसकी अनियमित डंपिंग को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी करने के लिए कहा है। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया गया है कि मार्बल पॉलिश इकाइयों द्वारा भूजल का अवैध दोहन नहीं किया जाए।

साथ ही उद्योगों को जीरो लिक्विड डिस्चार्ज मानकों का पालन करना चाहिए। इतना ही नहीं इससे जुड़े उद्योगों के पास कैप्टिव या संयुक्त मार्बल स्लरी के उपयोग की योजना होनी चाहिए।

डाउन टु अर्थ में प्रकाशित ख़बर में कहा गया है कि कोर्ट का यह आदेश  26 फरवरी, 2022 को एनजीटी में एस श्रीनिवास राव द्वारा दायर आवेदन के जवाब में आया है। अपने आवेदन में उन्होंने आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में हरिश्चंद्रपुरम रेलवे स्टेशन के पास कृषि भूमि पर मार्बल स्लरी की अवैज्ञानिक तरीके से की जा रही डंपिंग की शिकायत कोर्ट से की थी। निम्मदा, पेद्दाबम्मीदी और येत्तुरलाप्पु में स्थित मार्बल पॉलिश इकाइयों से मार्बल स्लरी पैदा हो रही है। अपने 28 सितंबर 2022 को दिए आदेश में एनजीटी ने कहा है कि मार्बल स्लरी को जमा करना पर्यावरण के लिए फायदेमंद नहीं है, जबकि इसका व्यावसायिक उपयोग पता है। 

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