सरकार ने कोयला कंपनियों पर वह कानूनी बंदिश हटा ली है जिसके तहत उन्हें खान से निकाले कोयले को बिजलीघरों को भेजने से पहले धोना होता था। पर्यावरण मंत्रालय ने अपने ताज़ा नोट में कहा है कि कोयले के धोने से उसमें राख के तत्व (एश-कन्टेन्ट) कम नहीं होता। इस ताज़ा नोट द्वारा सरकार ने 2014 के अपने निर्देश को वापस ले लिया है। वह निर्देश अंतरराष्ट्रीय मंच पर क्लाइमेट चेंज से लड़ने के भारत के संकल्प के तहत था जिसमें भारत ने कहा था कि वह कोयले का प्रयोग भले न घटा सके लेकिन साफ ईंधन का प्रयोग कर कार्बन उत्सर्जन को कम करने की कोशिश करेगा
अंग्रेज़ी अखबार बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इंडस्ट्री के हवाले के कहा है कि धोने से कोयले में मौजूद की राख औसतन 40-45% से घटकर 33% हो जाती है। इसी को आधार बना कर 2014 के निर्देश में सरकार ने कहा था कि खान से 500-750 और 750-1000 किलोमीटर दूर स्थित बिजलीघरों को भेजे जाने वाले कोयले का एश-कन्टेन्ट 34% से अधिक नहीं होना चाहिये। पर्यावरण मंत्रालय ने ताज़ा नोट बिजली मंत्रालय, कोयला मंत्रालय और नीति आयोग के साथ मशविरा कर तैयार किया है।
क्या चीन ने बना लिया है ज़ीरो इमीशन जेट इंजन?
चीन की वुहान यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा इंज़न बनाया है जिससे पूरी दुनिया में बिना कार्बन उत्सर्जन के जहाज़ उड़ सकते हैं। इसमें कम्प्रेस्ड एयर और बिजली का इस्तेमाल होगा। इसमें हवा को अत्यधिक प्रेशर में रखकर गर्म कर माइक्रोवेव के ज़रिये प्लाज्मा अवस्था – जब इलेक्ट्रॉन परमाणु से अलग होने लगते हैं – में परिवर्तित किया जायेगा। इसी से उत्पन्न शक्ति जीवाश्म ईंधन से चलने वाले आधुनिक जेट-इंजन की तरह काम कर सकती है।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में प्लाज्मा थ्रस्टर इंजन का प्रयोग कर चुकी है लेकिन अधिक घर्षण वाली परिस्थितियों में ज्यादा शक्ति (थ्रस्ट) की ज़रूरत होती है। उधर इलेक्ट्रिसिटी एयरक्राफ्ट अमूमन 500 किलोमीटर से अधिक दूरी तय नहीं कर पाते।
ऑस्ट्रेलिया: कोरोना की आड़ में पानी तले कोयला खनन को मंज़ूरी
ख़बर है कि न्यू साउथ वेल्स सरकार ने एक अमेरिकी कंपनी को वोरोनोरा वॉटर रिज़रवॉयर के नीचे कोयला खनन करने की इजाज़त दे दी है। अमेरिकी कंपनी पीबॉडी एनर्जी को यह मंज़ूरी तब दी गई जब पूरे देश का ध्यान कोरोना महामारी से निबटने में लगा है। यह जलाशय उस बांध का एक हिस्सा है जो सिडनी को पानी सप्लाई करता है। इस प्रोजेक्ट के खिलाफ पहले ही प्रदर्शन हो चुके हैं क्योंकि यह डर है कि खनन की वजह से पेयजल धातुओं और दूसरे हानिकारक तत्वों से प्रदूषित हो सकता है। दिलचस्प है कि ग्रेटर सिडनी दुनिया का अकेला हिस्सा है जहां सरकारी जलाशय तले इस तरह की माइनिंग को इजाज़त दी जा रही है। एक बड़ी चिन्ता यह भी है कि यह सारा पानी खान में समा सकता है जबकि पिछले 20 में से 12 साल न्यू साउथ वेल्स ने सूखे से लड़ने में बिताये हैं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ अदालत में अपील की संभावना है।
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