छत्तीसगढ़ सरकार की एक संस्था की जांच में आरोप लगाया गया है कि राज्य के हसदेव अरण्य जंगल में खनन के लिए मंजूरी हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेजों में फर्जीवाड़ा किया गया था। रिपोर्ट के निष्कर्ष प्रभावित क्षेत्र के निवासियों के दावों से मेल खाते हैं, जिन्होंने लंबे समय से तर्क दिया है कि खनन के लिए उनसे कभी सहमति नहीं ली गई थी।
छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग (सीजीएसटीसी) द्वारा की गई जांच, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में 1,252 हेक्टेयर विस्तार परसा कोयला ब्लॉक से संबंधित है। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक सीजीएसटीसी ने 4 नवंबर को सरगुजा के जिला मजिस्ट्रेट को संबोधित एक पत्र में अपनी जांच के निष्कर्षों को सार्वजनिक किया। आयोग के अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि उन्होंने इस बारे में राज्य सरकार और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को लिखा, लेकिन इनमें से किसी भी अधिकारी ने हमारे निष्कर्षों का जवाब नहीं दिया।
महत्वपूर्ण है कि हसदेव अरण्य भारत के सबसे घने जंगलों में एक है। और यहां आदिवासी समुदाय कोयला खनन को लेकर लंबे समय से विरोध कर रहे हैं।
बड़े स्टील निर्माता ग्रीन एनर्जी पर स्विच करने में हो रहे विफल: सर्वेक्षण
दुनिया के सबसे बड़े इस्पात निर्माता कम कार्बन उत्पादन वाली टेक्नोलॉजी अपनाने में सुस्त हैं और इनमें से कुछ अभी भी अपनी ऊर्जा के लिए पूरी तरह से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं। यह बात शुक्रवार को 18 अग्रणी कंपनियों के एक सर्वेक्षण से पता चली।
वैश्विक CO2 उत्सर्जन के 7% हिस्से के लिए स्टील जिम्मेदार है, जो लगभग भारत के सालाना उत्सर्जन बराबर है। ब्लास्ट फर्नेस प्रत्येक टन स्टील उत्पादन के लिए 2 मीट्रिक टन CO2 का उत्पादन करती है। वैकल्पिक टेक्नोलॉजी उपलब्ध हैं, जिनमें इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (ईएएफ) शामिल हैं जिन्हें नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित किया जा सकता है, और कोयले के बजाय “हरित हाइड्रोजन” का उपयोग करके लोहे का उत्पादन करने के प्रयास चल रहे हैं।
लेकिन सिडनी स्थित क्लाइमेट ग्रुप एक्शन स्पीक्स लाउडर (एएसएल) ने कहा कि स्टील इंडस्ट्री के कुछ सबसे बड़े नाम अभी भी 2022-2023 में अपनी 99% ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं। एएसएल की रणनीति निदेशक और सर्वेक्षण की लेखिका लॉरा केली ने कहा, स्टील को “हार्ड टु अबेट” (यानी बड़ी कठिनाई से कार्बन उत्सर्जन घटाने वाला) क्षेत्र माना जाता है, लेकिन मुख्य बाधा करने की सामर्थ्य या इच्छा शक्ति है न कि टेक्नोलॉजी का अभाव।
यूरोप के मध्य दक्षिणपंथी 2035 से पेट्रोल कारों पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ लगा रहे ज़ोर
यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा राजनीतिक समूह यूरोप के ऑटो उद्योग के सामने आने वाले “अभूतपूर्व दबाव” को रोकने के लिए IC इंजनों पर आगामी प्रतिबंध को उलटने पर जोर दे रहा है। फाइनेंसियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक यूरोपियन पीपुल्स पार्टी (ईपीपी) ने जो पोजीशन पेपर तैयार किया है उसमें आईसी इंजन वाली नई कारों पर 2035 से जो प्रतिबंध प्रस्तावित है उसे “वापस लिया जाना चाहिए”। इसमें यह भी कहा गया है कि बायो फ्यूल या दूसरे कम कार्बन छोड़ने वाले वैकल्पिक इंधनों पर चलने वाले परंपरागत वाहनों को जारी रखा जाये।
यूरोपियन कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लियेन इस पार्टी की सदस्य हैं। ईपीपी का कहना है कि जो कार निर्माता अगले साल से प्रस्तावित इमीशन लिमिट से अधिक की गाड़ियां बना रहे हैं उन पर लगने वाले दंड पर पुनर्विचार करना चाहिए। पार्टी ने कहा कि कई अरब यूरो का यह दंड इलैक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए था लेकिन अब ईवी वाहनों की सेल में गिरावट से साफ है कि यह कदम उल्टा साबित हुआ है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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