“आत्मनिर्भर” अभियान के तहत मोदी सरकार ने 18 जून को पांच राज्यों की 41 कोयला खदानों की नीलामी का ऐलान किया। इनमें से 29 खदानें तो देश के तीन राज्यों झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही हैं। इन खदानों से अधिकतम उत्पादन 22.5 करोड़ टन तक बताया गया है। सरकार का कहना है कि इस खनन से भारत का कोयला आयात घटेगा जिससे विदेशी मुद्रा बचेगी और वह आत्मनिर्भर बनेगा। पावर के अलावा स्टील, सीमेंट और खाद उद्योग के मद्देनज़र ये फैसला लिया गया है। सरकार का कहना है कि इससे करीब ₹ 33,000 करोड़ का निवेश आयेगा और राज्यों को हर साल ₹ 20,000 करोड़ की राजस्व मिलेगा। साथ ही 2.8 लाख नौकरियों का दावा किया गया है।
उधर मज़दूर संगठनों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है और कहा है कि कोयले को कमर्शियल माइनिंग के लिये न खोला जाये। झारखंड और छत्तीसगढ़ सरकारों ने भी इस फैसले का विरोध किया है। झारखंड ने तो इस नीलामी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
आंध्र प्रदेश: पावर सेक्टर बजट का 57% कृषि के लिये मुफ्त बिजली में खर्च होगा
आंध्र प्रदेश सरकार ने एनर्ज़ी सेक्टर के लिये बजट में ₹ 6984.73 करोड़ रखा है जबकि पिछले साल यह बजट ₹11,639 करोड़ था। उससे भी अहम बात यह है कि इसमें से ₹ 4000 करोड़, कृषि क्षेत्र में “नौ घंटे मुफ्त बिजली के लिये खर्च किये जायेंगे”। यह खर्च पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर घोषित YSR 9 घंटे मुफ्त बिजली योजना के तहत किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश ग्रीन इनर्जी कार्पोरेशन (APGEC) इसके लिये राज्य भर में कुल 8 GW से 10 GW क्षमता के सौर ऊर्जा के पैनल लगायेगी।
साफ ऊर्जा की राह के रोड़े हटायेगा जर्मनी
जर्मनी साफ ऊर्जा के राह से अड़चनें हटाने के लिये कानूनों में बदलाव कर रहा है। समाचार एजेंसी रायटर ने कहा है कि जर्मन सरकार देश में कुल सौर ऊर्जा के लिये अब तक रखी गई 52 GW की सीलिंग हटा रही है। इसके अलावा वह घरों से 1000 मीटर दूर पवन चक्कियों को लगाने की अनुमति दे रही है। जर्मनी का लक्ष्य है कि 2030 तक उसकी कुल ऊर्जा का 65% हिस्सा क्लीन एनर्जी हो।
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