विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में छह बड़े एयरशेड हैं जिनके बीच वायु प्रदूषक घूमते रहते हैं। इनमें से कुछ एयरशेड ऐसे हैं जिनका कुछ हिस्सा पाकिस्तान में है। रिपोर्ट ने कहा है कि भारत सरकार के मौजूदा उपाय पार्टिकुलेट मैटर को कम कर सकते हैं, लेकिन प्रदूषण में भारी कमी तभी संभव है जब एयरशेड में फैले क्षेत्र समन्वित नीतियां लागू करें।
एयरशेड एक सामान्य भौगोलिक क्षेत्र होता है जहां प्रदूषक फंस जाते हैं और पूरे क्षेत्र की वायु गुणवत्ता एक जैसी हो जाती है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए न केवल इसके स्रोतों से निबटने की आवश्यकता है, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय सीमाओं के बीच समन्वय भी जरूरी है। भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण एशियाई देशों के वैज्ञानिकों को वायु प्रदूषण से निबटने के लिए ‘एयरशेड एप्रोच’ अपनाते हुए एक संवाद स्थापित करना चाहिए।
इन प्रयासों से पीएम2.5 से उत्पन्न खतरे में औसतन कमी आएगी और सालाना 7,50,000 से अधिक लोगों की जान बचेगी।
उत्तर भारत में धान की बुवाई में देरी बनती है प्रदूषण का कारण: रिपोर्ट
पंजाब और हरियाणा के कुछ जिलों में धान की बुवाई और पराली जलाने में देरी से एक सोपानी प्रभाव (कैस्केडिंग इफ़ेक्ट) उत्पन्न होता है जिससे पिछले एक दशक में आस-पास के क्षेत्रों में अत्यधिक प्रदूषण फैला है, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक नए शोध पत्र में कहा गया है।
पंजाब के उत्तरी और पश्चिमी जिलों में धान की बुआई और उसके बाद पराली जलाने में सबसे ज्यादा देरी होती है। अगर इन जिलों ने धान की बुआई में देरी नहीं की होती तो राष्ट्रीय राजधानी जैसे इलाकों में होने वाला प्रदूषण बहुत कम होता।
शोधकर्ताओं ने पाया कि 2008-2019 के दौरान बायोमास जलने में देरी के अभाव में, हवा के बहाव के मार्ग में आस-पास के शहरों जैसे नई दिल्ली, बठिंडा और जींद में लगातार 11 प्रतिशत से लेकर 21 प्रतिशत तक कम पीएम2.5 दर्ज किया गया।
उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे जिलों में एक संशोधित भूजल नीति से बुवाई की तारीखें आगे बढ़ाकर उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता सुधारी जा सकती है, और भूजल का संरक्षण भी किया जा सकता है।
बिहार के इस शहर में हर घंटे ख़राब हो रही है हवा
वैसे तो बिहार के कई शहर वायु प्रदूषण के मामले में अव्वल हैं, लेकिन अगर पश्चिम चंपारण की बात करें तो जिला मुख्यालय बेतिया की हालत बेहद ही खराब है। एक महीने से ज्यादा हो गया लेकिन नगर का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) घटने का नाम नहीं ले रहा है, जो पिछले एक माह से 400 के इर्द-गिर्द ही रह रहा है। 400 के आसपास के एक्यूआई को काफी खतरनाक माना जाता है। जिला प्रशासन और नगर निगम के तमाम प्रयासों के बाद इसमें गिरावट देखने को नहीं मिल रही है।
सुबह जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स 350 के आसपास रह रहा है, तो वहीं शाम होते ही 400 के आसपास पहुंच जा रहा है। इस कारण नगर वासी एक माह से ज्यादा अवधि से जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है।
सूर्योदय के बाद जैसे जैसे शहर में चहल-पहल बढ़ती है, प्रदूषकों का ग्राफ बढ़ता शुरू हो जाता है। ऐसे में स्थिति हर एक घंटे के साथ बदतर होती चली जा रही है, जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है।
दिल्ली में अब रियल टाइम आधार पर होगी वायु प्रदूषण के स्रोतों की पहचान
दिल्ली में प्रदूषण के सभी संभावित स्रोतों की पहचान करने और उनसे निबटने की तैयारी कर रही दिल्ली सरकार ने प्रदूषण के स्तर का अध्ययन करने के लिए हाई-टेक और डेटा संचालित परियोजनाओं की शुरुआत की है।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 23 दिसंबर को ‘रियल टाइम सोर्स अपोर्शनमेंट प्रोजेक्ट’ की प्रगति की समीक्षा की। यह परियोजना दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आईआईटी कानपुर, आईआईटी दिल्ली और टेरी के साथ सहयोग से शुरू की गई है।
रियल टाइम सोर्स अपोर्शनमेंट स्टडी में अत्याधुनिक वायु विश्लेषणकर्ताओं और एक मोबाइल वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली के साथ एक सुपरसाइट शामिल है, जो दिल्ली के ऊपर हवा में विभिन्न पदार्थों के स्तर को मापेगा।
यह परियोजना 1 नवंबर 2022 से शुरू हो गई है और इसके विभिन्न संकेतकों से संबंधित डेटा उपलब्ध कराया जा रहा है। रियलटाइम डेटा के आधार पर सरकार को प्रदूषण के स्रोतों (जैसे वाहनों का निकास, धूल, बायोमास जलाना और उद्योगों से उत्सर्जन) की सही पहचान करने में मदद मिलेगी।
सुपरसाइट डेटा घंटे, दैनिक और साप्ताहिक आधार पर वायु प्रदूषण के स्तर का पूर्वानुमान लगाने में भी मदद करेगा।
यह पूर्वानुमान दिल्ली सरकार को प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए सक्रिय कदम उठाने और प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए संसाधन आवंटित करने में सहायता करेंगे।
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