यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अभी ठोस कदम न उठाए गए तो सदी के अंत तक समुद्री की सतह का करीब 95 फीसदी हिस्सा बदल चुका होगा।
वैज्ञानिकों की मानें तो यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए अभी ठोस कदम न उठाए गए तो सदी के अंत तक समुद्री सतह का करीब 95 फीसदी तक हिस्सा बदल चुका होगा। यह जानकारी हाल ही में एनओएए और उसके सहयोगियों द्वारा किए शोध में सामने आई है, जोकि जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित हुआ है।
वैज्ञानिकों की मानें तो कितनी समुद्री सतह की जलवायु में बदलाव आएगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि भविष्य में वैश्विक स्तर पर कितना उत्सर्जन होगा। यही वजह है कि वैज्ञानिकों ने 35.6 फीसदी से 95 फीसदी हिस्से की जलवायु में बदलाव आने की सम्भावना व्यक्त की है। इस शोध से यह भी पता चला है कि उत्तरी और दक्षिणी दोनों गोलार्धों के उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में बदलाव का खतरा सबसे ज्यादा है।
यहां समुद्री सतह की जलवायु से वैज्ञानिकों का मतलब सतह पर पानी के तापमान, अम्लता और अर्गोनाइट की मात्रा से है। देखा जाए तो समुद्री जीवों के दृष्टिकोण से अर्गोनाइट बहुत मायने रखता है, यह बड़ी संख्या में समुद्री जीवों का आधार होता है। इसका उपयोग समुद्री जीव अपनी हड्डियों और खोल को बनाने के लिए करते हैं।
क्यों आ रहे हैं यह बदलाव
समुद्री सतह की जलवायु में आने वाले बदलावों को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर महासागर की जलवायु का एक मॉडल तैयार किया है। जिसमें उन्होंने इसे तीन अवधियों, 19 वीं शताब्दी की शुरुवात (1795 से 1834), 20 वीं शताब्दी के अंत (1965 से 2004) और 21 वीं सदी के अंत यानी (2065 से 2104) के बीच बांटकर अध्ययन किया है। जलवायु में आ रह बदलावों को जानने के लिए उन्होंने उत्सर्जन के दो परिदृश्यों, आरसीपी 4.5 और आरसीपी 8.5 का उपयोग किया है और इसके आधार पर जलवायु में आने वाले बदलावों को समझने का प्रयास किया है।
इस मॉडलिंग के निष्कर्ष से पता चला है कि 19 वीं और 20 वीं शताब्दी में जो जलवायु थी वो 21 वीं सदी में पूरी तरह बदल चुकी है। हालांकि 19वीं और 20वीं शताब्दी के बीच समुद्र की जलवायु में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आए थे। वहीं शोध के मुताबिक 21 वीं शताब्दी के अंत तक समुद्र की सतह का 81.9 फीसदी तक हिस्सा भविष्य में पूरी तरह एक नई जलवायु का अनुभव करेगा, जैसी जलवायु पहले कभी अस्तित्व में नहीं थी। इस नई जलवायु में तापमान और अम्लता पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा होंगें और अर्गोनाइट की मात्रा काफी घट जाएगी। इस तरह यह नई जलवायु जीवों के लिए नई चुनौतियों को पैदा करेगी।
शोधकर्ताओं के अनुसार इन सबके लिए काफी हद तक वैश्विक स्तर पर होता उत्सर्जन जिम्मेवार है जिसकी वजह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं। अनुमान है कि आरसीपी 4.5 के तहत समुद्र की सतह के करीब 35.6 फीसदी हिस्से में जलवायु बदल जाएगी जबकि आरसीपी 8.5 के तहत यह बदलाव 95 फीसदी हिस्से में दिखाई देंगें। गौरतलब है कि आरसीपी 8.5 का मतलब है कि उत्सर्जन जैसे बढ़ रहा है उसका बढ़ना भविष्य में भी इसी तरह जारी रहेगा।
क्या होगा इसका प्रभाव
शोध से पता चला है कि जिस तरह धरती पर जलवायु में बदलाव आ रहा है उसका असर समुद्र और वहां रहने वाले जीवों पर भी पड़ रहा है। इससे उनके अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है।
नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी से जुड़ी और इस शोध की प्रमुख शोधकर्ता केटी लोटरहोस ने इसके प्रभाव के बारे में बताया कि बढ़ते कार्बन प्रदूषण के कारण समुद्र की संरचना में बदलाव आ जाएगा, जिसका असर सतह की सभी प्रजातियों पर पड़ेगा। हालांकि देखा जाए तो समुद्र में रहने वाली कई प्रजातियां तापमान और अम्लता में होने वाली वृद्धि से बचने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर प्रवास करने के काबिल होती हैं।
यहीं नहीं कुछ अपनी आदतों में बदलाव करके भी इससे बच जाती हैं। पर जब हर जगह तापमान और लवणता में वृद्धि हो जाएगी तो उनके लिए भी भविष्य में इससे बचना और तालमेल बैठाना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में उन प्रजातियों के पास इस बदलती जलवायु को अपनाने या फिर मरने के आलावा कोई विकल्प शेष नहीं बचेगा।
ये स्टोरी डाउन टू अर्थ हिन्दी से साभार ली गई है।
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