खोज़ी पत्रकारों के समूह रिपोर्टर्स कलेक्टिव के ताज़ा विश्लेषण में पता चला है कि केंद्र सरकार द्वारा कोल ब्लॉकों की नीलामी में जिस तरह के नियम के तहत दोबारा नीलामी की उससे छत्तीसगढ़ को सालाना 900 करोड़ का घाटा होगा। रिपोर्टर्स कलेक्टिव का यह विश्लेषण कई समाचार पोर्टल्स पर प्रकाशित हुआ है और इसमें कहा गया है कि सरकार ने फायदे के लिये गुटबंदी होने का हवाला देकर 2015 में की गई दो कोयला ब्लॉक्स की नीलामी को रद्द किया लेकिन बाद में पिछले साल यानी 2020 में 19 कोयला खदानों को पहले से कम कीमतों पर नीलाम कर दिया। ख़बर के मुताबिक एक जटिल सूत्र के तहत फ्लोर प्राइस को बहुत निचले स्तर पर रखा गया और नीलामी के लिए एक ऐसे वक्त को चुना गया जब कोयले का सालाना 85% उपभोग करने वाला ऊर्जा क्षेत्र मंद पड़ा था और उसमें कोयले की मांग भी घटती जा रही थी। महत्वपूर्ण है कि समाचार वेबसाइट स्क्रॉल ने पिछले साल इसे लेकर ख़बर प्रकाशित की थी।
ब्लू हाइड्रोजन “आंखों में धूल झोंकने जैसा”, प्राकृतिक गैस के मुकाबले 20% अधिक ग्रीन हाउस उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार
अमेरिका की कॉर्नेल और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि ब्लू हाइड्रोजन साफ ऊर्जा वहीं बल्कि “आंखों में धूल झोंकने जैसा” है। ब्लू हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन से बनाई जाती है और निकलने वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड को स्थाई रूप से धरती में दबा दिया जाता है जिसे सीसीएस तकनीक कहते हैं। जानकारों का कहना है ब्लू हाइड्रोजन बनाने में मीथेन इमीशन भी होता है और सीसीएस तकनीक लागू करने में जीवाश्म ईंधन जलाया जाता है।
शोध बताता है कि ब्लू हाइड्रोजन, ग्रे हाइड्रोजन (यह भी जीवाश्म ईंधन से बनती है लेकिन इस प्रक्रिया में निकलने वाली CO2 को हवा में छोड़ दिया जाता है) के मुकाबले सिर्फ 12% कम कार्बन इमीशन करती है इसलिये कार्बन मुक्त धरती बनाने में इसका कोई रोल नहीं हो सकता। इसके उलट ग्रीन हाइड्रोजन पानी के इलेक्ट्रोलिसिस से बनाई जाती है और उस प्रक्रिया में हवा केवल ऑक्सीजन छोड़ी जाती है।
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