बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित वाल्मिकीनगर टाइगर रिजर्व में जीव जंतु भारी मुश्किल में हैं
गंडक नदी में इस साल आयी भीषण बाढ़ की वाल्मिकीनगर टाइगर रिजर्व के एक तेंदुए को अपनी जान गंवानी पड़ी। भीषण बाढ़ की वजह से वह बहकर यूपी के कुशीनगर के एक गांव में चला गया था, वहां ग्रामीणों ने पीटकर उसकी हत्या कर दी।
मई, 2021
अचानक आयी बाढ़ की वजह से गंडक नदी के किनारे संरक्षित घड़ियालों के सैकड़ों अंडे क्षतिग्रस्त हो गये। पहले मई महीने में इतनी बाढ़ नहीं आती थी, इसलिए इसके संरक्षण में जुटे वनकर्मी सतर्क नहीं थे। इस वजह से घड़ियालों के संरक्षण के अभियान को भारी धक्का पहुंचा है।
जुलाई, 2020
बाढ़ की वजह से बहकर नौतन के शिवराजपुर में बहकर पहुंचे दो दर्जन से अधिक हिरणों का गांव वालों ने शिकार कर लिया। बार-बार सूचना देने पर भी पुलिस या वन विभाग के लोग नहीं पहुंचे।
जुलाई, 2017
वाल्मिकीनगर से सटे नेपाल के चितवन फारेस्ट से तकरीबन एक दर्जन गैंडे बाढ़ में बहकर भारत के इलाके में आ गये थे। वन विभाग के कर्मियों ने उन्हें जैसे-तैसे पकड़कर नेपाल के वन विभाग को सौंपा।
ये उदाहरण उन कुछ घटनाओं के हैं, जो बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित वाल्मिकीनगर टाइगर रिजर्व में आम हैं। 901 वर्ग किमी में फैले वाल्मिकीनगर जंगल का लगभग 881 वर्ग किमी वन्य प्राणी अभयारण्य के तहत आता है और इसमें से 335.6 वर्ग किमी का क्षेत्र नेशनल फॉरेस्ट है। हालिया आंकड़ों के मुताबिक इस जंगल में 48 बाघ और सौ से अधिक तेंदुए हैं। यह 5620 स्तनधारी जीवों, 1520 किस्म के पक्षियों और 32 तरह के सरीसृपों का घर है। इसके अलावा इससे सटा दोन का जंगल है और गंडक नदी के किनारे लंबी दूरी तक ऊंची घास के मैदान हैं, इनमें भी कई तरह के हिरण और दुर्लभ जीवजंतु रहते हैं। गंडक नदी को हाल के वर्षों में घड़ियालों के ठिकाने के रूप में विकसित किया जा रहा है।
मगर पिछले कुछ वर्षों में जलवायु संकट और दूसरे कारणों की वजह से इस इलाके में गंडक और बूढ़ी गंडक नदी में आने वाली अनियमित बाढ़ ने इस इलाके की मानव आबादी के साथ-साथ इस संरक्षित वन के विलुप्तप्राय जीवों को भी परेशान करना शुरू कर दिया है। सीमित संसाधन, बाढ़ का अनुमान लगाने में अक्षम होने और समुचित प्रशिक्षण के अभाव में राज्य का वन विभाग इन पशुओं को समुचित सुरक्षा देने में विफल साबित हो रहा है।
वाल्मिकीनगर में रहने वाले गूंज संस्था से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता अजय झा जो वन्य प्राणियों के मसले पर भी लगातार सक्रिय रहते हैं, कहते हैं- पिछले कुछ साल से लगातार इस इलाके में आ रही बाढ़ से यहां के चार-पांच गांव, खास तौर पर चकदहवा के तीन-चार टोले बुरी तरह प्रभावित होते हैं, इन गांवों में जंगल का इलाका भी आता है। इसके अलावा दोन के इलाके में मनोर, भपसा, छोटी भपसा और हरहा जैसी छोटी नदी में आने वाले फ्लैश फ्लड से जंगली जानवर परेशानी में पड़ते हैं। बाढ़ की वजह से नेपाल के चितवन फारेस्ट से जानवर बहकर यहां आ जाते हैं और यहां से जानवर बहकर मोतीहारी और गोपालगंज तक चले जाते हैं। वाल्मिकीनगर में फिर भी कुछ प्रशिक्षित वनकर्मी हैं, दूसरे इलाकों में ऐसे कर्मी नहीं हैं। जिससे इन जानवरों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि वाल्मिकीनगर जंगल में बाढ़ का आना हाल के दिनों में शुरू हुआ है, यह इलाका हमेशा से बाढ़ प्रभावित रहा है। गंडक नदी की बाढ़ से इस जंगल का विध्वंस भी होता रहा है और पुनर्निर्माण भी। मगर जानकार पहले की बाढ़ को इतना नुकसानदेह नहीं मानते थे। क्योंकि तब बाढ़ का समय लगभग तय रहता था और जानवर भी अलर्ट होकर ऊंचे जगहों में शरण ले लेते थे। मगर अब हाल के वर्षों में जलवायु संकट की वजह से फ्लैश फ्लड और अचानक बाढ़ आने की घटना बढ़ गयी है। इसका नुकसान यहां के लोगों को भी हो रहा है और संरक्षित वन प्राणियों को भी।
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया से जुड़े रिसर्चर समीर सिंहा जो इस इलाके में लंबे समय से घड़ियालों के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं, कहते हैं- जंगल के लिए बाढ़ का आना या आग लगना एक आपदा तो है, मगर इसे कभी बहुत नुकसानदेह नहीं माना जाता। क्योंकि इसके जरिये जंगल का पुनर्निर्माण भी होता है। असम के काजीरंगा नेशनल पार्क में तो हर साल बाढ़ आती है। उसी तरह हमारे यहां वाल्मिकीनगर फारेस्ट में बाढ़ आती है। इससे जंगल में उपजाऊ मिट्टी भी आती है और नये पेड़ उगते हैं। जंगली जानवर भी इस तरह के बाढ़ के अभ्यस्त होते हैं और वे समय से पहले ऊंची जगहों पर शरण ले लेते हैं। वन विभाग के कर्मी भी इसकी तैयारी करते हैं।
मगर हाल के वर्षों में इस इलाके में बाढ़ का पैटर्न बदल गया है। इसी वजह से असल परेशानी है। वे कहते हैं, जैसे इस साल मई महीने में बाढ़ आ गयी। हमलोगों ने घड़ियालों के अंडे के संरक्षण का इंतजाम तो किया था, मगर मई में ऐसा हो जायेगा इसका अंदाजा नहीं था। न उस हिसाब से प्लानिंग की थी। जिस वजह से हमें बड़ा नुकसान हो गया। वे कहते हैं, बाढ़ के इस बदले मिजाज से जंगली जानवर भी परिचित नहीं हो पाये हैं। इसलिए उनके बहने की घटनाएं भी बढ़ी है और उनके शिकार किये जाने का खतरा भी।
समीर सिंहा कहते हैं, इसके बावजूद अगर सही तैयारी हो तो इस संकट से आराम से बचा जा सकता है। वे असल के काजीरंगा नेशनल पार्क का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वहां समय से पहले इसकी समुचित तैयारी होती है। संसाधन भी पर्याप्त हैं और वनकर्मियों का नियमित प्रशिक्षण भी होता है। मगर वाल्मिकीनगर में इन चीजों का अभाव है। वाल्मिकीनगर में टाइगर रिजर्व होने के कारण फिर भी थोड़ी तैयारी होती है। मगर आगे मोतीहारी और गोपालगंज के इलाके में जहां ये जानवर बहकर चले जाते हैं, वहां के वनकर्मी बिल्कुल अप्रशिक्षित और संसाधनहीन हैं। उन्हें न वनप्राणियों को बचाने की संवेदनशीलता है, न उसकी ट्रेनिंग। लिहाजा जब जानवर इन इलाके में पहुंच जाते हैं तो या तो वे गांव के लोगों के गुस्से या फिर शिकारियों की भेंट चढ़ जाते हैं।
वे कहते हैं, इसके अलावा गंडक की बाढ़ की वजह से वाल्मिकीनगर में कटाव की घटनाएं भी बढ़ी है। चुनभट्ठा के पास 300-400 मीटर तक जंगल कटकर गंडक नदी में समा चुका है। बगहा के स्थानीय पत्रकार इजराइल भी इस बात की तस्दीक करते हैं कि गंडक नदी के कटाव की रफ्तार तेज होने से वन प्रमंडल दो के वाल्मीकि नगर के चुनभठ्ठा व मदनपुर वन क्षेत्र के कांटी उपखंड के वन कक्ष संख्या दो का नर्सरी जंगल का आधा पाट गंडक नदी में विलीन हो गया। संरक्षित जंगल में गंडक नदी का कटाव तेज होने से जंगल व जानवरों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। इस कटाव को तत्काल रोकने के लिए वाल्मीकि टाईगर रिजर्व के अधिकारियों ने जल संसाधन विभाग बगहा के कनिय अभियंता से बातचीत की है। मगर जिस जंगल क्षेत्र में गंडक नदी का कटाव हो रहा है, वह जंगल क्षेत्र पानी से घिरा हुआ है। कटाव स्थल पर जाने के लिए वनपथ भी पानी में डूब गए हैं।
अगर बिहार सरकार बाढ़ से राज्य के इकलौते जंगल को बचाना चाहता है तो इसके लिए उसे न सिर्फ वाल्मिकीनगर रिजर्व फारेस्ट बल्कि गंडक के पूरे रास्ते में वनकर्मियों को प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें समुचित संसाधन उपलब्ध कराना होगा। जल संसाधन विभाग और वन विभाग को इस मसले में एकजुट होकर काम करना होगा।
इस संबंध में जब हमने वाल्मिकीनगर टाइगर रिजर्व के फील्ड डाइरेक्टर हेमकांत राय से फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वे इस वक्त देहरादून में एक ट्रेनिंग में हैं। अभी वे बात करने की स्थिति में नहीं हैं।
ये स्टोरी डाउन टू अर्थ हिन्दी से साभार ली गई है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
प्लास्टिक संधि पर भारत की उलझन, एक ओर प्रदूषण तो दूसरी ओर रोज़गार खोने का संकट
-
बाकू में खींचतान की कहानी: विकसित देशों ने कैसे क्लाइमेट फाइनेंस के आंकड़े को $300 बिलियन तक सीमित रखा
-
बड़े पैमाने पर रोपण नहीं वैज्ञानिक तरीकों से संरक्षण है मैंग्रोव को बचाने का उपाय
-
बाकू में ग्लोबल नॉर्थ के देशों ने किया ‘धोखा’, क्लाइमेट फाइनेंस पर नहीं बनी बात, वार्ता असफल
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर जी20 का ठंडा रुख