जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी और वर्षा के एक साथ पड़ने की घटनाएं अधिक तीव्र, गंभीर और व्यापक हो जाएंगीं, एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा है। अर्थ्स फ्यूचर नामक जर्नल में छपे इस अध्ययन में कहा गया है कि शुष्क-ऊष्म, यानि ड्राई-हॉट स्थितियों के मुकाबले ऐसी आर्द्र-ऊष्म, या वेट-हॉट स्थितियों की घटनाएं कहीं अधिक होंगीं।
वैज्ञानिकों ने कहा कि तापमान में प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि पर हवा की नमी धारण करने की क्षमता 6 से 7 प्रतिशत बढ़ जाती है। यह गर्म और आर्द्र हवा बारिश के लिए अधिक पानी उपलब्ध कराती है, जिससे आर्द्र-ऊष्म चरम मौसमी घटनाओं की संभावना अधिक होती है। ऐसी परिस्थितियों में पहले हीटवेव मिट्टी को सुखा देती है, जिससे उसकी पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है। इसके बाद जब बारिश होती है तो पानी मिट्टी के भीतर नहीं जा पाता और सतह पर ही रह जाता है, जिससे बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं बढ़ती हैं, और फसलों को नुकसान पहुंचता है।
अध्ययन के अनुसार बाढ़ और भूस्खलन की यह घटनाएं और बढ़ेंगीं, ख़ास तौर पर घनी आबादी वाले इलाकों में जहां पहले से ही भूगर्भीय आपदाओं का खतरा अधिक है। उत्सर्जन के मौजूदा स्तरों के आधार पर बनाए गए क्लाइमेट मॉडल्स की मदद से वैज्ञानिकों ने बताया कि शुष्क-ऊष्म स्थितियों के मुकाबले आर्द्र-ऊष्म स्थितियों का विस्तार बड़े क्षेत्र पर होगा और यह अधिक तीव्र भी होंगी।
उन्होंने कहा कि 2021 में यूरोप में आने वाली बाढ़ इस प्रक्रिया का एक उदाहरण है। उस साल गर्मी में रिकॉर्ड तापमान ने मिट्टी को सुखा दिया। उसके तुरंत बाद सूखी मिट्टी की सतह पर भारी बारिश हुई और बड़े पैमाने पर भूस्खलन और अचानक आनेवाली बाढ़ की घटनाएं हुईं, घर बह गए और कई लोगों की जानें चली गईं।
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि जलवायु अनुकूलन (एडॉप्टेशन) नीतियां बनाते समय यदि इन वेट-हॉट स्थितियों को ध्यान में नहीं रखा गया तो इससे हमारी खाद्य, पेयजल और ऊर्जा सुरक्षा पर ‘अकल्पनीय’ प्रभाव पड़ेगा।
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