छोटे और विकासशील देश स्थानीय समुदायों को जलवायु परिवर्तन से हो रही हानि से बचाने के लिए प्रयासरत हैं। Photo: Erik Karits/Pixabay

संकटग्रस्त देशों ने लॉस एंड डैमेज की असरदार रणनीति के लिये शोधकर्ताओं से मिलाया हाथ

दुनिया के सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) ने जलवायु आपदाओं से बेहतर तरीके से निपटने के लिये लघु द्वीपीय देशों (एसआईएस) के साथ हाथ मिलाया है। नेपाल, बांग्लादेश, सेनेगल, वानूआतू और मलावी जैसे देश बांग्लादेश में इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड डेवलपमेंट और यूके के इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट के साथ मिलकर काम करेंगे ताकि जलवायु आपदाओं के लिए धन और संसाधनों (लॉस एंड डैमेज फंड) के वितरण हेतु राष्ट्रीय स्तर एक सुविधाओं का रोडमैप बन सके। 

यह गठबंधन स्थानीय समुदायों को मदद करेगा ताकि वह जलवायु आघातों को लेकर अपनी सरकारों को स्थानीय लोगों के दृष्टिकोण और समझ के बारे में बता सकें। इसके अलावा जलवायु संकट से लड़ने के लिये अमीर देशों द्वारा मिलने वाले किसी भी लॉस एंड डैमेज (हानि और क्षति निधि) फंड के उपयोग के लिये देशों को तैयार किया जायेगा।

चीन ने जलवायु संबंधी मामलों की सुनवाई के लिए जजों को दिए निर्देश

चीन के सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट ने जलवायु संबंधी मामलों की सुनवाई के लिए जजों को दिशानिर्देश जारी किए हैं।

यह दिशानिर्देश जजों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे मुकदमों पर फैसला देते समय कॉर्पोरेट उत्सर्जन में कमी के साथ विकास को भी ध्यान में रखें।

यह दस्तावेज़ चीन की अदालतों को लो-कार्बन टेक्नोलॉजी, ऊर्जा संरक्षण, कार्बन व्यापार और ग्रीन फाइनेंस से संबंधित मामलों की सुनवाई करने की अनुमति देता है।

जजों को जलवायु अनुकूलन और शमन को बढ़ावा देने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया है।

इस दस्तावेज़ के अनुसार, जजों को कार्बन ट्रेडिंग बाज़ार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिसके कारण हाल के दिनों में कई तरह के मुकदमे हुए हैं।

यूरोपीय संघ ने तैयार की ग्रीन बॉन्ड जारी करने के नियमों की पहली खेप

यूरोपीय संघ अपने नेट-जीरो लक्ष्यों को पूरा करने के उद्देश्य से ग्रीन बांड जारी करने के नियमों की पहली खेप तैयार की है। हालांकि, इन नियमों का अनुपालन स्वैच्छिक आधार पर होगा।

इन नियमों को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है जिससे निवेशकों को उच्च-गुणवत्ता वाले ग्रीन बॉन्ड और कंपनियों की पहचान करने में आसानी हो और ग्रीनवाशिंग को कम किया जा सके। नियमों के अंतर्गत एक प्रकिया तय की गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह बताया जा सके कि बॉन्ड की बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग कैसे हो रहा है।

बाहरी समीक्षकों द्वारा बॉन्ड के सत्यापन के लिए भी मानक तय किए गए हैं। ग्रीन बॉन्ड जारी करने वाली कपनियों को अब यह दिखाना होगा कि प्राप्त निवेश उनकी नेट-जीरो ट्रांजिशन योजनाओं में कैसे सहायक होगा।

नए नियमों पर औपचारिक मुहर लगनी बाकी है, जिसके बाद इन्हें लागू होने में एक साल का समय लगेगा।

जलवायु परिवर्तन को आईसीजे के दायरे में लाने का ऑस्ट्रेलिया ने किया समर्थन

जलवायु संकट पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) द्वारा निर्णय करने के वानूआतू के प्रस्ताव का ऑस्ट्रेलिया ने समर्थन किया है।  

वानूआतू जल्द ही संयुक्त राष्ट्र महासभा के सामने अपना प्रस्ताव पेश करेगा, जिसमें क्लाइमेट एक्शन पर विभिन्न देशों के दायित्वों पर राय मांगी जाएगी।

वानूआतू चाहता है कि आईसीजे विशेष रूप से लघु द्वीपीय विकासशील देशों पर ध्यान केंद्रित करे, जिनपर जलवायु परिवर्तन का जोखिम सबसे अधिक है।

गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार ऑस्ट्रेलिया सभी प्रमुख उत्सर्जकों — वर्तमान और ऐतिहासिक — को इन दायित्वों के दायरे में लाने का प्रयास कर सकता है,  क्योंकि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का यह सबसे अच्छा तरीका है।

ऑस्ट्रेलिया के अलावा कम से कम 69 अन्य विकसित और विकासशील देशों ने अब तक वानूआतू के प्रस्ताव का समर्थन किया है।

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