बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से फसल पर चोट, किसानों पर दोहरी मार

मार्च के मध्य में देश के कई हिस्सों में हुई बारिश से खेतों में खड़ी रबी की फसल को भारी नुकसान हुआ है। दिल्ली, यूपी, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना,  कर्नाटक और महाराष्ट्र में कई जगह तेज़ हवा के साथ बरसात हुई। 

शानिवार से सोमवार तक देश में कई जगह बारिश के साथ ओलावृष्टि भी हुई। इससे जहां तापमान में अचानक गिरावट हुई वहीं गेहूं, सरसों, ज्वार और आलू समेत कई फसलों को नुकसान हुआ है।

बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की आशंका देखते हुए मौसम विभाग (आईएमडी) ने पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के किसानों को सलाह दी है कि वह गेहूं और अन्य रबी फसलों की कटाई फिलहाल टाल दें।

पकी हुई फसलों के मामले में आईएमडी ने किसानों को कुछ राज्यों में सरसों और चना जैसी फसलों की जल्द से जल्द कटाई करने और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर संग्रहीत करने की सलाह दी है।

किसानों को फसल गिरने से बचाने के लिए गेहूं की फसल की सिंचाई नहीं करने को भी कहा गया है।

वहीं मार्च की शुरुआत में फसल के नुकसान के बाद, महाराष्ट्र के किसानों को एक झटका और लगा है। 16-17 मार्च को हुई भारी बारिश और ओलावृष्टि से उनकी तैयार फसल बर्बाद हो गई है।

बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से हजारों किसान प्रभावित हुए हैं, जिससे मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र क्षेत्रों में फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है।

जंगलों में बढ़ती आग, मार्च की शुरुआत में दिखी 115% वृद्धि  

फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) ने उपग्रह की मदद से जो आंकड़े जुटाये गये हैं उनके मुताबिक इस साल मार्च के पहले 12 दिनों में जंगलों में 42,799 जगह आग का पता चला है। पिछले साल इसी दौरान 19,929 आग की घटनाएं दर्ज की गई थीं यानी कुल 115% की वृद्धि। एफएसआई के मुताबिक  बीते सोमवार को देश के जंगलों में कुल 772 जगह बड़ी आग धधकते देखी गईं। इनमें उड़ीसा के जंगलों में सबसे अधिक 202 जगह बड़ी आग देखी गईं। इसके बाद मिज़ोरम (110), छत्तीसगढ़ (61), मेघालय (59), मणिपुर (52) और आंधप्रदेश (48) में बड़ी आग दिखीं।   

बरसात में कमी आग की प्रमुख वजह माना जा रहा है। इस साल फरवरी में देश में केवल 7.2 मिमी बारिश दर्ज की गई जो कि 1901 के बाद से अब तक फरवरी में हुई छठी सबसे कम बारिश है। मध्य भारत में 99% कम बारिश हुई जबकि उत्तर भारत में 76% की कमी दर्ज की गई। दक्षिण प्रायद्वीपीय क्षेत्र में भी 54% कम बारिश हुई जबकि पूर्व और उत्तर पूर्व में 35% की कमी दर्ज हुई। इस साल फरवरी का औसत तापमान (29.66 डिग्री) भी इतिहास का सबसे अधिक तापमान रहा। 

तकरीबन सारी आग की घटनायें मानव जनित होती हैं। गर्मी, हीटवेव और सूखा वातावरण और सर्दियों के मौसम में कम बारिश से आग फैलना आसान हो रहा है. दूसरी ओर फॉरेस्ट मिस मैनेजमेंट

और वन आरक्षियों की कमी और और जंगलों में रहने वाले समुदायों को बाहर कर देना भी इसका कारण है। 

रिकॉर्डतोड़ चक्रवाती तूफान फ्रेडी ने मचाई तबाही, मलावी में 200 से अधिक मरे 

चक्रवाती तूफान फ्रेडी ने दक्षिणी अफ्रीका में महीने भर के भीतर दूसरी बार चोट की है। इससे दो अफ्रीकी देशों मलावी और मोज़ाम्बिक में काफी तबाही हुई है।  मलावी में 200 से अधिक लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है। मलावी के व्यवसायिक केंद्र ब्लेटटायर में सबसे अधिक मौतें हुई हैं और मरने वालों में कई बच्चे भी हैं। मोज़ाम्बिक में 20 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। राहत के काम में लगी एजेंसियों का कहना है कि आपदा और जल भराव के कारण आने वाले दिनों में हैजे का संकट हो सकता है। 

फ्रैडी इतिहास में उन गिने चुने चक्रवातों में है जो महीने भर से अधिक वक्त तक बने रहे।  इसने 34 दिन में उत्तर-पश्चिम ऑस्ट्रेलिया से चलकर पूरा हिन्द महासागर पार कर अफ्रीका तक का 8,000 किलोमीटर का सफर तय किया है यह सबसे अधिक समय तक प्रभावी रहने वाले चक्रवात का रिकॉर्ड बनाने की ओर अग्रसर  बना दिया है। 

इसरो की भूस्खलन एटलस में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और टिहरी सबसे संकटग्रस्त 

भारतीय अंतरिक्ष  अनुसंधान संगठन यानी इसरो के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिस  सेंटर ने सैटेलाइट तस्वीरों से रिस्क असेसमेंट किया है और देश के 147 ज़िलों की लिस्ट जारी की है जिनमें भूस्खलन या लैंडस्लाइड का ख़तरा है। इस भूस्खलन एटलस में मिज़ोरम, उत्तराखंड, हिमाचल और अरुणाचल जैसे पर्वतीय राज्यों के अलावा केरल जैसे समुद्र तटीय राज्यों का ब्यौरा है।  

इसरो के वैज्ञानिकों ने 1998 से 2022 के बीच हुई भूस्खलन की घटनाओं के आधार पर सभी राज्यों में लैंडस्लाइड हॉटस्पाट एरिया बताये हैं। मिज़ोरम जैसे छोटे से राज्य में पिछले 25 साल में यानी 1998 से 2022 के बीच  12,385 लैंडस्लाइड हुये हैं। इनमें  2017 में ही करीब 8,926 घटनायें हुईं। उत्तराखंड में इसी दौरान 11,219 भूस्खलन हुये जबकि केरल – जहां 2018 में भयानक बाढ़ आई थी – वहां अब तक 6,039 भूस्खलन की घटनायें हुई हैं। 

महत्वपूर्ण है कि उत्तराखंड के सभी ज़िले इस लिस्ट में शामिल हैं। नेशनल रिमोट सेंसिग सेंटर ने जो लिस्ट बनाई है उसमें उत्तराखंड के  रुद्रप्रयाग और टिहरी पहले और दूसरे नंबर पर हैं। रुद्रप्रयाग ज़िले में ही केदारनाथ धाम है जहां 2013 में भयानक आपदा आई थी। और टिहरी वह ज़िला है जहां से होकर यमुनोत्री और गंगोत्री का सड़क मार्ग जाता है।  चमोली, पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चम्पावत और उत्तरकाशी तो हैं ही हरिद्वार और उधमसिंह नगर जैसे मैदानी ज़िले भी 147 ज़िलों की लिस्ट में हैं जहां भूस्खलन का खतरा है। 

जलवायु परिवर्तन: तापमान वृद्धि से यूके में बाढ़ से क्षति 20% बढ़ेगी 

शोधकर्ताओं ने जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ के प्रभावों और क्षति को आंकते हुये ब्रिटेन का “फ्यूचर फ्लड मैप” बनाया है। इससे पता चलता है कि अगली एक सदी में बाढ़ के कारण सालाना आर्थिक क्षति कोई 20 प्रतिशत  बढ़ जायेगी। क्लाइमेट चेंज के कारण विशेष रूप से उन रिहायशी और व्यवसायिक “हॉटस्पॉट्स” को अधिक नुकसान होगा जो कि बाढ़ के रास्ते में आते हैं। शोध बताते हैं कि अगर सदी के अंत तक वादों के मुताबिक धरती की तापमान वृद्धि को 1.8 डिग्री तक रोका भी जाये तो भी दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड के अलावा साउथ वेल्स के इलाकों में भारी बाढ़ का प्रभाव होगा।   

ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्र (ट्रॉपिक्स) में बढ़ रहे तापमान से कॉफी का उत्पादन कम, दाम बढ़ेंगे 

नई रिसर्च बताती है कि कॉफी उत्पादक क्षेत्र में बदलते क्लाइमेट के प्रभाव के कारण कॉफी की उपज में भारी कमी होने वाली है। ऐसा अनुमान है कि 2050 तक दुनिया में कॉफी पैदावार के लिये उपयुक्त क्षेत्र आधा रह जायेगा जिससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कॉफी के दाम बढ़ेंगे। शोधकर्ताओं ने पाया है कि पिछले 40 साल में उन इलाकों में ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हालात बदले हैं जहां कॉफी का उत्पादन होता है। 1980 से 2020 के बीच जहां तापमान बहुत कम हुआ करता था वहीं पर अब तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो रहा है।
दुनिया में 2.5 करोड़ कॉफी उत्पादक किसान हैं जिनमें से अधिकतर छोटे उत्पादक हैं। दुनिया में 90 प्रतिशत कॉफी उत्पादक किसानों के पास 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल के बागान हैं और वे क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को वह नहीं झेल पायेंगे। जानकारों का कहना है कि अगर 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि होती है तो 2050 तक अरेबिका जैसी लोकप्रिय कॉफी के लिये उत्पादन क्षेत्र 90 प्रतिशत घट जायेगा। ब्राज़ील, विएतनाम और इथ्योपिया जैसे देशों के साथ भारत भी दुनिया के 10 सबसे बड़े कॉफी उत्पादक देशों में है।

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