कमज़ोर योजना: मरुस्थलीकरण पर दिल्ली में विश्व सम्मेलन तो ज़ोर-शोर से हुआ लेकिन नतीजा कुछ खास नहीं दिखा है। Photo: Ángeles Estrada, IISD/ENB

मरुस्थलीकरण सम्मेलन ढीली ढाली घोषणा के साथ खत्म

मरुस्थलीकरण पर 14 वां विश्व सम्मेलन एक ढीले ढाले ऐलान के साथ खत्म हो गया। बेकार होती ज़मीन  दुनिया  की सबसे बड़ी चिंताओं में एक है लेकिन इसे लेकर जो आखिरी घोषणा हुई उसमें इरादे की कमी साफ दिखी है।

अंतिम घोषणापत्र में ख़राब होती ज़मीन और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंध को अधिक महत्व नहीं दिया गया है। इससे आने वाले दिनों में मरुस्थलीकरण और क्लाइमेट चेंज सम्मेलनों के बीच तालमेल की संभावना नहीं के बराबर है। साथ ही जो एजेंसियां जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये पैसा खर्च कर रही हैं उन्हें इस लड़ाई में शामिल करना अब मुश्किल होगा जबकि अंतिम रूप दिये जाने से पहले इन बातों को घोषणापत्र में रखा गया था।  आपदाओं से लड़ने की तैयारी यानी अनुकूलन (जिसे क्लाइमेट चेंज की भाषा में एडाप्टेशन कहा जाता है) को भी घोषणापत्र से हटा दिया गया है जबकि यह ख़राब होती ज़मीन और सूखे से लड़ने की दिशा में बड़ा हथियार है। इसी तरह आदिवासियों और फॉरेस्ट इकोसिस्टम से जुड़े कई मुद्दे – जो पहले घोषणापत्र के ड्राफ्ट में थे – आखिरी घोषणा में नहीं दिखे।

मुंबई में अब तक बाढ़ आपदा संभावित क्षेत्रों की पहचान नहीं

मुंबई की स्थानीय नागरिक इकाइयों जैसे म्युनिसिपल कारपोरेशन, डेवलोपमेंट अथॉरिटी आदि  ने 2005 में आई भयानक बाढ़ के बावजूद अब तक कोई फ्लड-रिस्क ज़ोन मेप तैयार नहीं किया है जिसके आधार पर बाढ़ संभावित क्षेत्रों की पहचान और उससे निपटने के लिये आपदा प्रबंधन का खाका तैयार हो सके। इस काम की ज़िम्मेदारी ब्रह्नमुंबई म्युनिस्पल कॉरपोरेशन (BMC) और मुंबई मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MMRDA) है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त किये गये विशेषज्ञों के एक पैनल ने कोर्ट में जमा की गई अपनी एक रिपोर्ट में यह बात कही है। साल 2005 में मिथी नदी में जल-स्तर बढ़ जाने से मुंबई में भारी बाढ़ आ गई थी।  रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बाढ़ के बाद मिथी नदी को चौड़ा किया गया है जिसे लेकर कई सवाल उठे हैं।   

जलवायु परिवर्तन संकट को लेकर अमेरिका का UN एजेंसियों पर दबाव!  

क्या विस्थापन पर काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की माइग्रेशन एजेंसी पर अमेरिकी सरकार का दबाव है? इंटरनेशनल ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर माइग्रेशन (IOM) के अमेरिका स्थित एक अधिकारी ने दुनिया भर में अपने सहकर्मियों  को जो ई-मेल लिखा है उससे यह बात पता चलती है। यह ई-मेल 28 अगस्त को लिखा गया और इसके लीक होने से हड़कंप मच गया है। ई-मेल से पता चलता है कि अमेरिका के ब्यूरो ऑफ पॉपुलेशन, रिफ्यूजी और माइग्रेशन (PRM) ने UN माइग्रेशन एजेंसी से कहा है कि किसी भी ऐसे प्रोग्राम से  जुड़े दस्तावेज़ में,  जिसे चलाने के लिये अमेरिकी सरकार आर्थिक मदद करती हो,  अमेरिका सरकार की वर्तमान राजनीति के खिलाफ बात नहीं होनी चाहिये।  इस अधिकारी ने लिखा है कि जलवायु परिवर्तन संकट और सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल (SDG) से जुड़े तथ्य इन शर्तों में शामिल हैं और दस्तावेज़ में लिखी  किसी बात के छपने से पहले उसे अमेरिकी सरकार को दिखाना और उससे मंज़ूरी लेनी पड़ सकती है।

जंगल बचाने के लिये अमेज़न देशों में करार, आदिवासी ब्राज़ीली राष्ट्रपति के खिलाफ एकजुट

भयानक आग से तबाह हुये जंगलों को बचाने के लिये सात अमेज़न देशों ने करार किया है। कोलंबिया, बोलीविया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राज़ील, सूरीनाम और गुयाना ने अमेज़न पर संकट से लड़ने के लिये एक आपदा प्रबंधन रणनीति के लिये मीटिंग की। मंज़ूरी लेना पड़ सकता है। इन देशों में अमेज़न क्षेत्र में पेड़ लगाने, जंगलों के कटान पर नज़र रखने और आदिवासियों की भूमिका पर चर्चा की।

उधर अमेज़न पर छाये संकट को देखते हुये आपस में संघर्षरत कई कबीले ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोल्सनारो के खिलाफ एकजुट हो गये हैं। इन आदिवासियों को लगता है कि अमेज़न में लगी आग जानबूझ कर आदिवासियों को भगाने और उद्योगपतियों को क़ब्ज़ा देने के लिये लगाई गई है।

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