बड़े बोल: न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा बुलाये गये सम्मेलन में सभी नेताओं ने बड़ी बड़ी बातें तो की लेकिन नेट ज़ीरो इमीशन के लिये किसी भी देश के पास कोई पुख्ता योजना नहीं थी। फोटो

धरती बचाने के लिये विश्व नेताओं के पास कोई योजना नहीं

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने पिछले हफ्ते तमाम बड़े देशों के नेताओं को न्यूयॉर्क बुलाया। गुट्रिस ने इन नेताओं से नेट ज़ीरो इमीशन के लिये एक पुख्ता योजना के साथ आने को कहा था लेकिन किसी भी बड़े देश के पास कार्बन इमीशन को कम करने के लिये कोई प्रभावी योजना नहीं है। पिछले साल प्रकाशित हुई IPCC की विशेष रिपोर्ट के मुताबिक अगले 10 सालों में दुनिया का नेट इमीशन 2010 के मुकाबले 45% कम किया जाना ज़रूरी है और 2050 तक दुनिया को नेट-ज़ीरो इमीशन पर ला खड़ा करना होगा। हालांकि तमाम देशों के बढ़ते उत्सर्जन और ढुलमुल रवैये को देखते हुये यह लक्ष्य पाना नामुमकिन है।

ग्रेटा थनबर्ग को मिला “ऑल्टरनेटिव नोबेल प्राइज़”

जलवायु परिवर्तन के ख़तरों के प्रति दुनिया को आगाह कर रही 16 वर्षीय छात्रा ग्रेटा थनबर्ग को 2019 का राइट इवलीहुड  अवॉर्ड दिया जायेगा। इसकी घोषणा पिछले बुधवार को स्टाकहोम में की गई। इस  सम्मान को “ऑल्टरनेटिव नोबेल प्राइज़” (वैकल्पिक नोबेल सम्मान) के नाम से भी जाना जाता है। ग्रेटा को यह सम्मान वैज्ञानिक तथ्यों के मद्देनज़र क्लाइमेट एक्शन के लिये एक राजनीतिक जागरूकता पैदा करने और आपातकालीन कदम उठाने की मांग के लिये दिया  जा रहा है।

भारत का “एडाप्टेशन फंड” बहुत कम

भारत भले ही सौर ऊर्जा की राह में तेज़ी से आगे बढ़ा हो लेकिन, ग्लोबल वॉर्मिंग के असर से निबटने के लिये वह तैयार नहीं दिखता। पर्यावरण मंत्रालय को इस साल कुल 2900 करोड़ का बजट दिया गया है जिसमें नेशनल एडाप्टेशन फंड के हिस्से केवल 100 करोड़ ही है। यह फंड सूखे, बाढ़, चक्रवाती तूफान और जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभावों के खिलाफ तैयारी में इस्तेमाल होता है। पंजाब औऱ केरल जैसे राज्यों के लिये दी गई रकम भी बहुत कम है। जानकार इस फंड को लेकर इसलिये भी चिन्ता जता रहे हैं क्योंकि भारत में बाढ़, सूखे और साइक्लोन जैसी घटनायें लगातार बढ़ रही हैं और इनके प्रभाव का सामना करना हमारे क्लाइमेट एक्शन का प्रमुख हिस्सा होना चाहिये

रुस बना पेरिस समझौते का हिस्सा

दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों में से एक रूस अब आधिकारिक रूप से पेरिस समझौते का हिस्सा बन गया है। अब तक रूस की कोई क्लाइमेट पॉलिसी नहीं थी। यह देखते हुये इसे एक अच्छा संकेत माना जा रहा है। रूस इस वक्त कार्बन इमीशन (उत्सर्जन)को घटाने के लिये दो घरेलू योजनाओं को रिव्यू कर रहा है।

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दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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