भारत में 1998 से लगातार गर्मियों के मिजाज़ में ‘स्पष्ट बदलाव’ दिख रहा है। जलवायु संकट को इस परिवर्तन की वजह बताने जानकारों का कहना है कि उन्होंने 1971 से अब तक के आंकड़ों का अध्ययन किया है और पाया है कि गर्मियों में तापमान का ग्राफ बढ़ रहा है और पिछले 22 साल में भारतीय उपमहाद्वीप में हीट वेव की संख्या दो गुनी हो गयी है। इस साल मौसम विभाग ने जो भविष्यवाणी की है उसके मुताबिक गर्मियों में दिन में उबलती गर्मी पड़ेगी और रातों में काफी अधिक तापमान रहेगा। आधिकारिक रूप से सर्दियों के खत्म होने की घोषणा से पहले ही छत्तीसगढ़, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में सामान्य से अधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया है।
कुछ जानकारों का कहना है कि मौसम के इस पैटर्न के पीछे एन-निनो प्रभाव के ऊपर ला-निना वाले सालों का हावी होना है। उधर एक शोध के मुताबिक जलवायु संकट के कारण बड़ी भारतीय कंपनियों को अगले 5 साल में रु 7.14 लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है।
पिछले 1000 साल में अटलांटिक समुद्र धारा सबसे कमज़ोर: शोध
शोधकर्ताओं के मुताबिक अटलांटिक समुद्र धारा पिछले 1000 साल में अभी सबसे कमज़ोर दिख रही हैं। महत्वपूर्ण है कि दुनिया में मौसम का मिजाज़ तय करने में अटलांटिक समुद्र धारा का बड़ा प्रभाव होता है। इसे जिसे नॉर्थ अटलांटिक ड्रिफ्ट या अटलांटिक मेरिडायोनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एएमओसी) कहा जाता है जो विषुवतीय क्षेत्र से गर्म पानी को उत्तरी गोलार्ध की ओर भेजती है। इससे ठंडे देशों को गर्मी मिलती है। एएमओसी के अभाव में यूनाइटेड किंगडम में सर्दियों का औसत तापमान 5 डिग्री और कम हो सकता है।
नेचर जियोसाइंस में छपे नये शोध में कई दूसरे अध्ययनों से मिले आंकड़ों के आधार पर एक ग्राफ तैयार किया गया है जो यह बताता है कि पिछले 1,600 सालों में एएमओसी किस तरह बदला है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध तक यह प्रभाव सामान्य रहा लेकिन 1850 से इसमें एक कमज़ोरी देखी गयी जो बीसवीं सदी के मध्य तक आते-आते काफी स्पष्ट हो गई है।
चमोली आपदा में “मानव गतिविधि न होने” का दावा गलत: विशेषज्ञ
जानकारों ने DRDO के एक शीर्ष अधिकारी के बयान की आलोचना की, जिसमें कहा गया था कि उत्तराखंड के चमोली जिले में पिछले महीने हिमस्खलन और घातक बाढ़ के लिए मानवीय गतिविधि “तत्काल कारण नहीं” थी। डीआरडीओ के तहत काम करने वाली रिसर्च बॉडी जियो इन्फोर्मेटिक्स रिसर्च इस्टेबलिशमेंट (जीआरई) के निदेशक लोकेश कुमार सिन्हा ने कहा था की त्रासदी एक मानव प्रेरित आपदा नहीं थी। ग्लोबल वार्मिंग और हिमालय में बढ़ता तापमान, चमोली आपदा का मुख्य कारण हो सकते हैं।
कई जानकार इस बात से बिलकुल सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि 200 से अधिक लोग दो बांधों पर काम कर रहे थे जो कि हिमनदों के काफी करीब हैं। अगर ये बांध यहां नहीं बनाये जा रहे होते, तो बाढ़ से जान-माल को कोई नुकसान नहीं होता। विशेषज्ञों का ये भी मानना है की आपदा पर कोई भी निष्कर्ष निकालने करने से पहले इस मुद्दे का गंभीरता से अध्ययन करना चाहिये। उनका कहना है कि उत्तराखंड पर कोई भी अनियोजित निर्माण या मानव जनित दबाव आत्मघाती हो सकता है ।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
सबसे गर्म अक्टूबर के बाद नवंबर भी रहेगा गर्म, सर्दी के कोई संकेत नहीं: आईएमडी
-
चक्रवात ‘दाना’: 4 की मौत; फसलों को भारी नुकसान, लाखों हुए विस्थापित
-
चक्रवात ‘दाना’ के कारण ओडिशा, बंगाल में भारी बारिश, 4 की मौत; लाखों हुए विस्थापित
-
असुरक्षित स्थानों पर रहते हैं 70 फीसदी हिम तेंदुए
-
जलवायु संकट हो रहा अपरिवर्तनीय, रिकॉर्ड स्तर पर क्लाइमेट संकेतक