भारत में 200,000 से अधिक वेटलैंड्स हैं, लेकिन संरक्षण के लिए आधिकारिक तौर पर अधिसूचित केवल 102 हैं। इनमें से भी अधिकांश राजस्थान (75), गोवा (25), उत्तर प्रदेश (1), और चंडीगढ़ (1) में हैं। हिंदुस्तान टाइम्स में जयश्री नंदी की रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में यह आंकड़े दिए हैं।
भारत के क्षेत्र का लगभग 4.8 प्रतिशत वेटलैंड्स हैं। देश की लगभग 6 प्रतिशत आबादी आजीविका के लिए सीधे उन पर निर्भर है। इनमें झीलें, तालाब, नदियां, दलदल और स्वैंप शामिल हैं।
वेटलैंड्स बाढ़ नियंत्रण और कार्बन स्टोरेज में सहायक होते हैं और स्थानीय जैव-विविधता (बायोडायवर्सिटी) के लिए भी जरूरी होते हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण कई वेटलैंड्स खतरे में हैं।
आरटीआई के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि भूमि और जल राज्य के विषय हैं, इसलिए वेटलैंड्स का संरक्षण उनकी जिम्मेदारी है। इस कारण से नोटिफिकेशन की प्रगति धीमी है। वर्तमान में केवल 102 वेटलैंड्स और 89 रामसर साइट्स कानूनी रूप से संरक्षित हैं।
वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017, के अंतर्गत राज्य सरकारों को वेटलैंड्स को अधिसूचित करने का अधिकार है।
दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को वेटलैंड्स की पहचान करके सीमांकन पूरा करने का आदेश दिया था। हालांकि, अब तक केवल मणिपुर ने 30 वेटलैंड्स के सीमांकन का काम पूरा किया है।
रामसर कन्वेंशन का “बुद्धिमानी से उपयोग” (वाइज यूज़) का सिद्धांत 2017 के वेटलैंड संरक्षण नियमों में भी दोहराया गया है। हालांकि, इसकी परिभाषा अभी भी अस्पष्ट है और इसमें स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव है। आलोचकों का कहना है कि नए नियम 2010 के नियमों की तुलना में कमजोर हैं।
नए नियमों के तहत विशेष मामलों में केंद्र सरकार की अनुमति लेकर निषिद्ध गतिविधियां भी की जा सकती हैं। इन नियमों में यह भी उल्लेख नहीं है कि वेटलैंड संरक्षण में स्थानीय समुदाय कैसे मदद कर सकते हैं।
वेटलैंड्स पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के अस्तित्व लिए महत्वपूर्ण हैं।
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