Newsletter - September 24, 2021
एक नये अध्ययन से इस आलोचना को बल मिला है कि जंगल को बढ़ाने के लिये पेड़ लगाने का तरीका काम नहीं आता। यह शोध बताता है कि बड़े स्तर पर पेड़ लगा देने से फॉरेस्ट कवर नहीं बढ़ता और न ही स्थानीय लोगों को इससे फायदा पहुंचता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा इलाके में 1965 में शुरू हुए वृक्षारोपण पर फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो और देहरादून स्थित सेंटर फॉर इकोलॉजी, डेवलपमेंट एंड रिसर्च के एक अध्ययन में यह बात कही गई है।
इस स्टडी में फॉरेस्ट कैनोपी और फॉरेस्ट कम्पोजिशन का अध्ययन करने के लिये सैटेलाइट की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया। जिन इलाकों में 40% ट्री कैनोपी कही गई थी, अध्ययन में पाया गया कि वहां नये पौंधों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। अध्ययन में पाया गया कि नये प्लांटेशन के परिपक्व हो जाने के कोई 20 साल बाद भी यहां जंगल का घनत्व नहीं बढ़ा। लोगों के घरों पर सर्वे करने से पता चला कि जो प्रजातियां लगाई गईं उनसे स्थानीय लोगों को कोई आर्थिक लाभ भी नहीं मिला।
जलवायु संकट से 2050 तक विस्थापित होंगे 21 करोड़ लोग: विश्व बैंक
विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट कहती है कि जलवायु संकट से दुनिया में अगले 30 साल में 21.6 करोड़ लोग विस्थापित हो सकते हैं। दुनिया के 6 बड़े क्षेत्रों में स्थित देशों के भीतर यह विस्थापन होगा। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2030 तक पलायन संकट की प्रबल संभावना वाले क्षेत्रों का पता चलेगा और अगले दो दशकों में वहां हालात बिगड़ेंगे। इस ग्राउंडस्वैल रिपोर्ट में कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कड़े कदमों की सिफारिश की गई है जिससे जलवायु संकट से होने वाला विस्थापन 80% तक कम हो सकता है।
मॉनसून की विदाई में लगेगा वक़्त, सितम्बर में 27% अधिक बारिश
भारत में मॉनसून खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। सामान्यतया मॉनसून की विदाई 17 सितम्बर से शुरू हो जाती है लेकिन मौसम विभाग का कहना है कि इस साल अभी इसमें वक़्त लगेगा। सितम्बर में औसत से 27% अधिक बारिश हुई है। अगस्त में पूरे सीज़न के मॉनसून में 9% की कमी थी जो अब घटकर 3% रह गई है। वैसे मॉनसून की विदाई में देरी बहुत असामान्य बात भी नहीं है। पिछले साल मॉनसून 9 अक्टूबर से पीछे हटना शुरू हुआ था। जानकारों का कहना है कि मॉनसून के पैटर्न में इस बदलाव के पीछे जलवायु परिवर्तन भी एक कारण है।
फिनलैंड में छोड़ी गई तितली से निकले परजीवी कीड़े
फिनलैंड के सोटुंगा द्वीप में एक जिस ख़ूबसूरत तितली को जैव विविधता को बढ़ाने के मकसद से छोड़ा गया उसने शोधकर्ताओं को चकित कर दिया। बाल्टिक सागर के द्वीप में इस तितली से तीन अन्य प्रजातियों ने जन्म लिया। द गार्डियन में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक ग्लेनविले फ्लिटिलेरी नाम की तितली के कैटरपिलर्स के भीतर से हाइपोसोटर हॉर्टिकोला नाम के परजीवी का जन्म हुआ। कैटरपिलर प्यूपा बन कर पूर्ण तितली बनता इससे पहले कुछ कैटरपिलर्स के भीतर से इस परजीवी कीड़े का जन्म हुआ। दिलचस्प है कि इन कैटरपिलर्स के भीतर से निकलने वाले परजीवी कीड़ों के भीतर एक और बहुत छोटा परजीवी (हाइपरपैरासिटॉइड) निकला। जहां परजीवी कीड़ा कैटरपिलर को मार देता है वहीं यह हाइपरपैरासिटोइड परजीवी कीड़े को मार देता है और कैटरपिलर के मृत शरीर से 10 दिन बाद निकलता है।
इतना ही नहीं मादा परजीवी कीड़ा एक बैक्टीरिया का वाहक है जो मां से बच्चों में जाता है। महत्वपूर्ण है कि यह द्वीप जहां इस तितली को छोड़ा गया वह प्रजातियों के विलुप्त होने के लिये बदनाम है लेकिन सभी चार प्रजातियां पहली तितली को छोड़े जाने के 30 साल बाद भी इस 27 वर्ग किलोमीटर के इलाके में बची हुई हैं।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि देश के बाहर चीन कोई नया कोयला बिजलीघर नहीं लगायेगा। संयुक्त राष्ट्र महासभा में जिनपिंग ने कहा कि चीन दूसरे विकासशील देशों को साफ ऊर्जा के प्रोजेक्ट लगाने में मदद करेंगे हालांकि इस बारे में कुछ साफ नहीं है कि चीन यह काम किस तरह करेगा। फिर भी यह घोषणा महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के तहत वियेतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों में कोल प्रोजेक्ट लगा रहा है। हालांकि बीआरआई के तहत कई कोयला और ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट्स की फंडिंग की गई है लेकिन साल 2021 की पहली छमाही में कोई प्रोजेक्ट में फंडिंग नहीं की गई
यूरोपियन यूनियन और अमेरिका ने 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 30% कटौती का संकल्प किया, सात अन्य देश में हुए शामिल
अमेरिका और यूरोपियन यूनियन(ईयू) के साथ सात देशों ने पिछले हफ्ते अपने मीथेन उत्सर्जन में 30% तक कटौती का संकल्प किया है। जिन क्षेत्रों से ये देश अपना मीथेन इमिशन कम करेंगे उनमें कृषि, बन्द हो चुकी कोयला खदानें, तेल और गैस क्षेत्र शामिल हैं। मीथेन वातावरण में कम देर तक रहती है लेकिन दो दशकों के समय अंतराल में CO2 के मुकाबले यह 84 प्रतिशत अधिक वॉर्मिंग करती है। जो सात देश अमेरिका और ईयू के साथ शामिल हुए हैं उनमें यूके, इंडोनेशिया, इटली, अर्जेंटीना, मैक्सिको, घाना और ईराक शामिल हैं।
भारत-अमेरिका ने लॉन्च किया संयुक्त क्लाइमेट एक्शन प्लेटफॉर्म
जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिये साफ ऊर्जा (सौर और पवन) टेक्नोलॉजी चाहिये जिस पर भारी निवेश करना होगा। यह क्लाइमेट एक्शन के तहत मुख्य चुनौती है खास तौर से भारत और अन्य विकासशील देशों के लिये। अमेरिका और भारत ने सोमवार को एक संयुक्त क्लाइमेट एक्शन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया जो इस राह को आसान बनाने के लिये है। पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत जॉन कैरी के साथ यह प्लेटफॉर्म लॉन्च करते हुए उम्मीद जताई कि पेरिस समझौते में किये गये वादों के अनुसार क्लाइमेट फाइनेंस जुटाने में इससे मदद मिलेगी।
टाइगर सफारी के लिये 10,000 पेड़ कटे?
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण यानी एनटीसीए में दायर एक याचिका में शिकायत की गई है कि उत्तराखंड के कार्बेट नेशनल पार्क के संरक्षित इलाके में टाइगर सफारी के लिये 10,000 पेड़ काटे गये जबकि केवल 163 पेड़ ही काटने की अनुमति मांगी गई थी। साल 2019 में डिस्कवरी चैनल के ‘मैन वर्सेज वाइल्ड’ कार्यक्रम – जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू किया गया था – के दौरान इस सफारी का विचार हुआ था। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता गौरव बंसल की याचिका में शिकायत की गई है कि सफारी के लिये 10,000 पेड़ काटे गये।
शुक्रवार को आईजी फॉरेस्ट (सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी) सोनाली घोष ने उत्तराखंड वन विभाग से इस पर स्थिति साफ करने को कहा है। राज्य के प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट राजीव भर्तहरी ने कहा है कि उन्होंने इस पर रिपोर्ट मांगी है। कालागढ़ (जिस क्षेत्र में यह टाइगर सफारी पड़ती है) के डीएफओ किशनचंद ने कहा है कि दस हज़ार पेड़ काटे जाने के आरोप गलत हैं हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि अफसरों को पता था कि इस सफारी के लिये 10,000 से 12,000 पेड़ कटेंगे।
वायु प्रदूषण पर WHO के नये मानकों से चेतावनी, क्या भारत सुधारेगा अपना क्लीन एयर प्रोग्राम
वायु प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने नई गाइडलाइन और मानक जारी किये हैं। डब्लूएचओ के यह नये मानक 16 साल बाद आये हैं और इससे पहले 2005 में जारी किये गये मानकों से कुछ अधिक कड़े हैं। महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषण पूरी दुनिया खासतौर से दक्षिण एशिया के लिये एक बड़ा स्वास्थ्य संकट बन चुका है। डब्लूएचओ का कहना है कि उसने वायु प्रदूषण और उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर उपलब्ध नवीनतम रिसर्च के आधार पर मानरों को अपडेट किया है।
डब्लूएचओ पूरी दुनिया के लिये अपने स्टैंडर्ड मानक और गाइडलाइन जारी करता है हालांकि अलग-अलग देश अपने यहां खुद मानक तय करते हैं। यह मानक स्वैच्छिक हैं लेकिन बिगड़ती हवा के स्वास्थ्य पर बढ़ते कुप्रभावों को देखते हुये भारत जैसे देशों के लिये यह अलार्म बेल की तरह होने चाहिये। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने PM 2.5, PM 10, NO2 जैसे प्रदूषकों के मानकों को कड़ा किया है। कार्बन मोनो ऑक्साइड के मानक शामिल किये हैं लेकिन सल्फर के मानकों में ढील दी है।
वायु और जल प्रदूषण क़ानूनों का उल्लंघन 3 गुना हुआ
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में 2019 के मुकाबले वायु और जल प्रदूषण नियंत्रण क़ानून उल्लंघन संबंधी अपराध 286% बढ़ गये। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में इन दो क़ानूनों के तहत 160 केस दर्ज हुये थे जबकि पिछले साल यानी 2020 में कुल 589 मुकदमे दर्ज हुये। साल 2019 में 2018 के मुक़ाबले इन क़ानूनों के तहत दर्ज मामलों में 840% वृद्धि हुई थी लेकिन तब भी यह संख्या उस साल हुये सभी पर्यावरण क़ानून उल्लंघन मामलों की 1% भी कम थी। जिन राज्यों में यह प्रदूषण कानून उल्लंघन के यह मामले दर्ज किये गये वे हैं असम, हरियाणा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, मेघालय, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली। साल 2020 में 90% ऐसे अपराध यूपी में हुये।
दिल्ली में 64% प्रदूषण आता है दूसरे राज्यों से
जाड़ों के आने से पहले यह विषय अक्सर चर्चा में आ जाता है कि दिल्ली में होने वाले वायु प्रदूषण के लिये राजधानी खुद कितना ज़िम्मेदार है। यह बहस अक्सर इसलिये छिड़ती है क्योंकि हर साल जाड़ों में स्माग में घिरी दिल्ली गैस चैंबर बन जाती है। अब दिल्ली स्थित द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट (टैरी) और ऑटोमेटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई) के नये अध्ययन में कहा गया है कि जाड़ों में दिल्ली में होने वाले केवल 36 % प्रदूषण के लिये राजधानी की गतिविधियां ज़िम्मेदार हैं और दिल्ली में बाकी प्रदूषण बाहर से आता है। लेकिन यह स्टडी ये भी कहती है कि नोएडा में होने वाले 40% प्रदूषण के लिये दिल्ली ज़िम्मेदार है। दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के पहले पराली जलाना एक बड़ी समस्या है और वह मसला अभी तक सुलझा नहीं है। जानकार कहते हैं कि गंगा के पूरे मैदानी इलाके में वायु प्रदूषण फैलता है और उसे सीमाओं में बांध कर नहीं रखा जा सकता। इसलिये हर राज्य और हर ज़िले को प्रदूषण कम करने की कोशिश करनी चाहिये।
दीवाली से पहले दिल्ली में आतिशबाज़ी पर पाबंदी
दीवाली से पहले दिल्ली सरकार ने सभी तरह के पटाखों पर पूरी तरह पाबंदी का ऐलान कर दिया है। मुख्यमंत्री केजरीवाल के मुताबिक पिछले तीन साल में दीपावली के दौरान वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए ये फैसला लिया गया है। सरकार ने पिछले साल 7 से 30 नवंबर के बीच खराब होती एयर क्वॉलिटी को देखते हुए पटाखों पूरी तरह रोक लगा दी थी जिसमें “ग्रीन क्रेकर्स” यानी हरित पटाखे भी शामिल हैं। इसके बावजूद दीवाली के दिन कई जगह लोगों ने आतिशबाज़ी की। जानकारों का कहना है कि तथाकथित ग्रीन क्रेकर्स भी हवा को उतना ही नुकसान पहुंचाते हैं इसलिये हर तरह की आतिशबाज़ी को रोका जाना चाहिये। सरकार ने व्यापारियों से अपील की है कि वह पटाखों का स्टॉक न जमा करें।
वितरण कंपनियों के दबाव में सोलर कंपनियों ने दरें घटाईं
वितरण कंपनियों द्वारा (नीलामी के दौरान तय हुई दरों पर) खरीद से इनकार कर दिये जाने के बाद मैन्युफैक्चरिंग-लिंक्ड सोलर प्रोजक्ट्स ने दरें ₹ 2.92 प्रति किलोवॉट घंटा से घटाकर ₹ 2.54 प्रति किलोवॉट घंटा कर दी हैं। सोलर इलैक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने नीलामी में कामयाब अडानी और अज़ूर ग्रुप को इसके लिये तैयार कर लिया। वितरण कंपनियो के साथ अनुबंध हो जाने के बाद कॉर्पोरेशन इन दो कंपनियों के साथ बिजली खरीद अनुबंध करेगा। इस बीच उड़ीसा में ग्रिड पावर कॉर्पोरेशन के अलावा छत्तीसगढ़ और तमिलनाडु में वितरण कंपनियों के साथ सोलर इलैक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने अनुबंध किया है।
सोलर सब्सिडी रद्द करने पर व्यापारी ने गुजरात सरकार को हाईकोर्ट में घसीटा
गुजरात में एक व्यापारी ने राज्य सरकार के खिलाफ हाइकोर्ट में मुकदमा कर दिया है। व्यापारी ने यह मुकदमा सरकार द्वारा छोटे वितरण सोलर प्रोजेक्ट को दी जाने वाली सब्सिडी पॉलिसी (2019) को वापस लेने पर किया है और सरकार से मुआवजा मांगा है। गुजरात हाईकोर्ट ने महीसागर ज़िले के एक व्यापारी रमनलाल पटेल द्वारा केस किये जाने पर अधिकारियों को नोटिस जारी किया। पटेल ने अपनी अपील में कहा है कि उसने सरकार द्वारा घोषित नीति के कारण ही ज़मीन, उपकरण और सर्विसेज में निवेश किया और उसकी यूनिट माइक्रो इंटरप्राइस श्रेणी में थी लेकिन फिर सरकार ने एमएसएमई के लिये यह पॉलिसी हटा ली जो कि गैरक़ानूनी है।
रूफटॉप सोलर: 2018 के बाद 2021 होगा दूसरा सबसे बड़ा साल ?
घरों पर छतों में सोलर लगाने के ग्राफ में उछाल दर्ज किया गया है। इससे कुल रूफटॉप सोलर की क्षमता 53% बढ़ी है। यह जनवरी-मार्च 2021 में 341 मेगावॉट थी जो अप्रैल-जून 2021 में 521 मेगावॉट हो गई। मरकॉम के मुताबिक कोरोना महामारी के बावजूद किसी एक तिमाही में अब तक यह सबसे बड़ा उछाल है। साल-दर-साल (y-o-y) के आधार पर पिछले साल की दूसरी तिमाही में लगे 85 मेगावॉट के मुकाबले इस साल की दूसरी तिमाही में 517% का उछाल है।
अप्रैल से जून के बीच सबसे अधिक 55% सोलर पैनल गुजरात में लगे। इसके बाद महाराष्ट्र और हरियाणा का नंबर है। इस साल जनवरी से जून तक भारत की रूफटॉप क्षमता में 862 मेगावॉट का इज़ाफा हुआ है जो पिछले साल की तुलना में 210% अधिक है। मरकॉम के मुताबिक पिछले पूरे साल 2020 में 719 मेगावॉट ही रूफ टॉप लगा था जिसे इस साल के पहले 6 महीनों में पार कर लिया गया है।
दुनिया का सबसे बड़ा ई-स्कूटर प्लांट जहां होंगी सिर्फ महिला कर्मचारी
ओला इलैक्ट्रिक – जो कि टैक्सी सुविधा मुहैया करने वाली ओला की कंपनी है – ने अपने लॉन्च के पहले दो दिन में चार ई-स्कूटर प्रति सेकेंड बेचकर रिकॉर्ड बना दिया और 11,00 करोड़ की सेल की। ओला पिछले महीने ही एस-1 नाम से अपना ई-स्कूटर लाई है और वह इसका एडवांस वर्जन भी ला रही है। कंपनी शुरू में हर साल 10 लाख यूनिट बनायेगी लेकिन उसका लक्ष्य सालाना उत्पादन को बढ़ाकर एक करोड़ यूनिट करने का है।
तमिलनाडु में ओला इलैक्ट्रिक का ई-स्कूटर प्लांट पूरी तरह से महिलायें संभालेंगी। कंपनी का दावा है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल प्लांट होगा जिसे केवल महिलायें संभालेंगी। इस प्लांट में कुल 10 हज़ार महिला कर्मचारी नियुक्त किये जायेंगे जिसकी शुरुआत हो चुकी है। इस प्लांट में 5000 रोबोट भी उत्पादन में मदद करेंगे।
इंग्लैंड में हर घर और ऑफिस में होगा ईवी चार्जर
यूके सरकार इस साल एक कानून लायेगा जिसके बाद हर घर और ऑफिस ब्लॉक में बैटरी वाहन चार्जर लगाना ज़रूरी होगा। ऐसा करने वाला यूके पहला देश बनेगा। यह कदम ग्राहकों में ईवी के लिये भरोसा जगाने के लिये है क्योंकि ज़्यादातर लोग इसीलिये बैटरी कार या वाहन नहीं खरीदते क्योंकि उन्हें डर होता है कि वह कैसे चार्जिंग करेंगे। यूके सरकार की योजना है कि 2030 तक हर तरह का आईसी इंजन (पेट्रोल, डीज़ल और गैसोलीन से चलने वाले) वाहनों पर पूरी पाबंदी हो जाये। इस मुहिम के तहत यूके “स्मार्ट चार्जर” लगायेगा जो कि ऑफ-पीक आवर में ऑटोमैटिक चार्जिंग करेगा।
फोर्ड बनायेगी पुलिस के लिये इलैक्ट्रिक कार
ख़बर है कि अमेरिकी ऑटोमोबाइल कंपनी फोर्ड एक पूरी तरह इलैक्ट्रिक पुलिस कार बना रही है। यह इलैक्ट्रिक कार फोर्ड की नई कार मैक-ई मॉडल पर आधारित होगी। इस कार में ऑल-व्हील ड्राइव के साथ सामान्य से बड़ी बैटरी का प्रयोग होगा ताकि ड्राइविंग रेन्ज अधिक हो। इसका एक प्रोटोटाइप यूके को भेजा गया है और 2022 में एक मिशिगन स्टेट पुलिस को भी दिया जायेगा।
पेरिस समझौते के बाद दुनिया में अधिकांश कोयला बिजलीघर प्लान रद्द हुये, चीन अब भी सबसे बड़ी समस्या
जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे समूहों की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 में हुए इस समझौते के बाद से दुनिया में जितने भी कोयला बिजलीघरों की योजनायें बनाई गई थीं उनमें से तीन-चौथाई से अधिक रद्द कर दी गयी हैं। कोयला बिजलीघरों की ग्लोबल पाइप लाइन ठंडे बस्ते में है। यूके से निकलने वाले अंग्रेज़ी अख़बार द गार्डियन के मुताबिक इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले क्लाइमेट ग्रुप – ई3जी, ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर और एम्बर – कहते हैं कि 44 देशों में अब कोई नये कोयला पावर प्लांट की योजना नहीं है। इन देशों के पास “नो न्यू कोल” (नया कोयला नहीं) नारे वाले 40 देशों के साथ मिलकर नई शुरुआत करने का सुनहरा मौका है।
दुनिया में अभी जितने कोल प्लांट्स बनाये जाने की योजना है उनमें से आधे से अधिक चीन में हैं। अगर चीन के साथ भारत, इंडोनेशिया, विएतनाम, बांग्लादेश और टर्की जैसे देश अपने कोयला बिजलीघर रद्द कर दें तो प्रस्तावित कोयला बिजलीघरों की संख्या 90% तक घट जायेगी। दक्षिण एशिया में करीब 37.4 गीगावॉट के नये कोयला प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं और इनमें से 21 गीगावॉट के बिजलीघर भारत में लगने हैं। रिपोर्ट कहती है कि भारत में अब कोयला बिजलीघर लगाना मुनाफे का सौदा नहीं है क्योंकि साफ ऊर्जा के किफायती विकल्प बिना सामाजिक प्रभाव डाले बिजली की मांग पूरी कर सकते हैं।
पांच तेल-गैस कंपनियों ने यूरोपीय देशों पर किया 1300 करोड़ पाउण्ड का मुकदमा
तेल और गैस के कारोबार से जुड़ी पांच कंपनियां यूरोपियन सरकारों पर 1300 करोड़ पाउण्ड का मुकदमा कर रही हैं। यह केस इन सरकारों द्वारा समुद्र में तेल और गैस ड्रिलिंग पर पाबन्दी और नये प्रोजेक्ट से पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन की शर्त लगाने की वजह से किया जा रहा है। यह केस कॉर्पोरेट अदालतों में किये जा रहे हैं जहां निवेशक और सरकारों के बीच विवाद सुलझाये जाते हैं और अगर सरकार की किसी नीति के कारण कंपनी को बहुत बड़ा घाटा होता है तो वह इन अदालतों में जा सकता है। हालांकि ये कार्पोरेट अदालतें देशों के नियमित न्यायिक प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं और अगर सरकार क्लाइमेट एक्शन के तहत कोई कदम लोकतांत्रिक और क़ानूनी तरीके से भी उठाती है तो कई बार यह उसे अनदेखा कर देती हैं।
इंडियन ऑइल की रिफायनरी में धमाका, कई घायल
बिहार के बरौनी में इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) की रिफायनरी में धमाका होने से कम से कम 19 लोग घायल हो गये। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि घायलों को रिफायनरी के अस्पताल और एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया और वह ख़तरे बाहर हैं। कंपनी का यह प्लांट पिछले एक महीने से बंद था और दो दिनों से इसे शुरू करने की कोशिश रही थी। तभी इसकी एक यूनिट में धमाका हो गया।