ये पेड़ हैं जंगल नहीं: यह सवाल पहले भी उठा है और अब शोध बता रहे हैं कि पेड़ लगा देना काटे गये जंगलों की भरपाई नहीं है। फोटो – Unsplash

पेड़ लगाने से नहीं बढ़ता फॉरेस्ट कवर: अध्ययन

एक नये अध्ययन से इस आलोचना को बल मिला है कि जंगल को बढ़ाने के लिये पेड़ लगाने का तरीका काम नहीं आता। यह शोध बताता है कि बड़े स्तर पर पेड़ लगा देने से फॉरेस्ट कवर नहीं बढ़ता और न ही स्थानीय लोगों को इससे फायदा पहुंचता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा इलाके में 1965 में शुरू हुए वृक्षारोपण पर फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो और देहरादून स्थित सेंटर फॉर इकोलॉजी, डेवलपमेंट एंड रिसर्च के एक अध्ययन में यह बात कही गई है।   

इस स्टडी में फॉरेस्ट कैनोपी और फॉरेस्ट कम्पोजिशन का अध्ययन करने के लिये सैटेलाइट की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया। जिन इलाकों में 40% ट्री कैनोपी कही गई थी, अध्ययन में पाया गया कि वहां नये पौंधों में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। अध्ययन में पाया गया कि नये प्लांटेशन के परिपक्व हो जाने के कोई 20 साल बाद भी यहां जंगल का घनत्व नहीं बढ़ा। लोगों के घरों पर सर्वे करने से पता चला कि जो प्रजातियां लगाई गईं उनसे स्थानीय लोगों को कोई आर्थिक लाभ भी नहीं मिला। 

जलवायु संकट से 2050 तक विस्थापित होंगे 21 करोड़ लोग: विश्व बैंक  

विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट कहती है कि जलवायु संकट से दुनिया में अगले 30 साल में 21.6 करोड़ लोग विस्थापित हो सकते हैं। दुनिया के 6 बड़े क्षेत्रों में स्थित देशों के भीतर यह विस्थापन होगा। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2030 तक पलायन संकट की प्रबल संभावना वाले क्षेत्रों का पता चलेगा और अगले दो दशकों में वहां हालात बिगड़ेंगे। इस ग्राउंडस्वैल रिपोर्ट में कार्बन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कड़े कदमों की सिफारिश की गई है जिससे जलवायु संकट से होने वाला विस्थापन 80% तक कम हो सकता है। 

मॉनसून की विदाई में लगेगा वक़्त, सितम्बर में 27% अधिक बारिश 

भारत में मॉनसून खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। सामान्यतया मॉनसून की विदाई 17 सितम्बर से शुरू हो जाती है लेकिन मौसम विभाग का कहना है कि इस साल अभी इसमें वक़्त लगेगा।  सितम्बर में औसत से 27% अधिक बारिश हुई है। अगस्त में पूरे सीज़न के मॉनसून में 9% की कमी थी जो अब घटकर 3% रह गई है। वैसे मॉनसून की विदाई में देरी बहुत असामान्य बात भी नहीं है। पिछले साल मॉनसून 9 अक्टूबर से पीछे हटना शुरू हुआ था। जानकारों का कहना है कि मॉनसून के पैटर्न में इस बदलाव के पीछे जलवायु परिवर्तन भी एक कारण है। 

फिनलैंड में छोड़ी गई तितली से निकले परजीवी कीड़े 

फिनलैंड के सोटुंगा द्वीप में एक जिस ख़ूबसूरत तितली को जैव विविधता को बढ़ाने के मकसद से छोड़ा गया उसने शोधकर्ताओं को चकित कर दिया। बाल्टिक सागर के द्वीप में इस तितली से तीन अन्य प्रजातियों ने जन्म लिया। द गार्डियन में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक ग्लेनविले फ्लिटिलेरी नाम की तितली के कैटरपिलर्स के भीतर से हाइपोसोटर हॉर्टिकोला नाम के परजीवी का जन्म हुआ। कैटरपिलर प्यूपा बन कर पूर्ण तितली बनता इससे पहले कुछ  कैटरपिलर्स के भीतर से इस परजीवी कीड़े का जन्म हुआ। दिलचस्प है कि इन कैटरपिलर्स के भीतर से निकलने वाले परजीवी कीड़ों के भीतर एक और बहुत छोटा परजीवी (हाइपरपैरासिटॉइड) निकला। जहां परजीवी कीड़ा कैटरपिलर को मार देता है वहीं यह हाइपरपैरासिटोइड परजीवी कीड़े को मार देता है और कैटरपिलर के मृत शरीर से 10 दिन बाद निकलता है।  

इतना ही नहीं मादा परजीवी कीड़ा एक बैक्टीरिया का वाहक है जो मां से बच्चों में जाता है।  महत्वपूर्ण है कि यह द्वीप जहां इस तितली को छोड़ा गया वह प्रजातियों के विलुप्त होने के लिये बदनाम है लेकिन सभी चार प्रजातियां पहली तितली को छोड़े जाने के 30 साल बाद भी इस 27 वर्ग किलोमीटर के इलाके में बची हुई हैं। 

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