पिछले 50 साल में एक्सट्रीम वेदर की घटनायें बढ़ी 5 गुना

Newsletter - September 9, 2021

विलुप्ति का संकट: जंतुओं पर संकट की बात तो होती है लेकिन पेड़ों की अक्सर अनदेखी की जाती है। अब सवाल ये है कि पादप प्रजातियों पर छाये विलुप्ति के संकट से कैसे निपटा जाये। फोटो- Seaq68 on Pixabay

भारत में 18% पादप प्रजातियों के गायब होने का ख़तरा

पेड़ों के एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है भारत में करीब 18% पादप प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना है। लंदन के बोटिनिकल गार्डन कंजरवेशन इंटरनेशनल में छपे शोध में 2603 प्रजातियों की पहचान की गई। अध्ययन में कहा गया है कि इनमें से 650 प्रजातियां एंडेमिक (यानी किसी एक विशेष जगह में उगने वाली) हैं और 469 के लुप्त होने का खतरा है। दुनिया भर में पाई जाने वाली पेड़ों की 58,497 प्रजातियों में 30% गायब होने की कगार पर हैं और 142 तो विलुप्त हो चुकी हैं। 

स्टडी के मुताबिक इस प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन का असर नापा जा सकता है। इसके अलावा विकास परियोजनाओं के लिये जंगल कटने और दूसरे तरीकों से हैबिटैट या उनके प्राकर्तिक आवास  नष्ट होने (लकड़ी और दवाइयों के लिये पेड़ कटने) और घातक कीड़ों और बीमारियों को भी इसकी वजह बताया गया। 

हिमाचल में बढ़ता जलवायु परिवर्तन प्रभाव 

जानकारों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में लगातार हो रही भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी घटनाओं का रिश्ता ग्लोबल वॉर्मिंग से है। मोंगाबे हिन्दी में प्रकाशित रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि राज्य में तापमान वृद्धि 1.6 डिग्री तक है जो कि जलवायु संकट का संकेत है। साल 2021 में राज्य में अब तक कम से कम 246 लोगों की जान प्राकृतिक आपदाओं में हुई है। इस साल बड़े भूस्खलन की 35 घटना सामने आई है जबकि 2020 में यह संख्या 16 थी। इस साल 11 अगस्त को किन्नौर में हुए भूस्खलन में 28 लोगों की जान चली गयी। इस मानसून में बादल फटने के मामले में भी बीते साल के मुकाबले 121 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। फ्लैश फ्लड या पहाड़ों में अचानक आई बाढ़ के 17 मामले इस वर्ष दर्ज किए गए हैं। पिछले साल इसकी संख्या नौ ही थी। 

एक्सट्रीम वेदर की घटनायें 50 साल में पांच गुना: यूएन अध्ययन 

संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में एक्ट्रीम वेदर यानी अचानक बाढ़, अति सूखा और भारी ओलावृष्टि या चक्रवाती तूफान जैसी घटनाओं की संख्या पिछले 50 सालों में 5 गुना बढ़ गई है। एटलस ऑफ मॉरेलिटी एंड इकोनोमिक लॉसेस फ्रॉम वेदर, क्लाइमेट एंड वॉटर एक्सट्रीम (1970-2019) नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में 1970 से 2079 के बीच 771 आपदायें हुईं जबकि 2010 से 2019 के बीच 3,165 आपदाओं का पता चला। 1970 से 2019 के बीच आपदाओं में से 50% क्लाइमेट से जुड़ी थीं। कुल 45% में लोगों की मरने की घटनायें और 74% में आर्थिक क्षति की सूचना दी गई। 

अच्छी बात ये है कि पूर्व चेतावनी जैसी टेक्नोलॉजी लगाने और बेहतर आपदा प्रबंधन की उपलब्धता से मौत की घटनाओं में करीब 3 गुना कमी हुई है।  इस दौरान आर्थिक क्षति करीब 7 गुना – करीब 5 करोड़ डॉलर से 38 करोड़ डॉलर प्रति दिन बढ़ गई। 

चक्रवात आइडा ने अमेरिका में मचाई तबाही 

अमेरिका के लूसिआना राज्य में पिछली 29 अगस्त को आये चक्रवाती  तूफान आइडा ने बड़ी तबाही मचाई और इससे कम से कम 50 लोग मारे गये। उत्तर की ओर बढ़ते हुए यह चक्रवात कमज़ोर पड़ा लेकिन पूर्वी तट पर इसने बड़ी तबाही मचाई, बाढ़ से कई हिस्से डूब गये और सैकड़ों घर तबाह हुए और लाखों लोगों को के लिये कई घंटों तक बिजली गुल रही। न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क इलाके में प्रति घंटे 3.1 इंच बारिश हुई और सोशल मीडिया में पानी में डूबे घरों और कारों की तस्वीरें दिखाई दीं। न्यूयार्क और न्यू जर्सी में इसका सबसे अधिक असर दिखा। 

जानकारों ने इसे एक्सट्रीम वेदर की घटना कहा है और इसके लिये मानव जनित जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार माना है।  इस तूफान के कारण मैक्सिको की खाड़ी में तेल उत्पादन रोक देना पड़ा। तटरक्षकों का कहना है कि तूफान के बाद  करीब 350 जगह तेल बिखरने की ख़बर है जिनकी वह जांच कर रहे हैं। 

विश्व नेताओं से अपील: ग्लोसगो सम्मेलन से पहले दुनिया के 200 शोधपत्रों ने अपने संपादकीय में दुनिया के सभी बडे नेताओं से क्लाइमेट एक्शन की अपील की है। फोटो – Pixabay

जलवायु परिवर्तन: दुनिया के 200 जर्नलों की विश्व नेताओं से अपील

स्वास्थ्य पर रिसर्च और शोध करने वाली दुनिया की 200 से अधिक पत्रिकाओं (जर्नल) ने एक संपादकीय में विश्व नेताओं से अपील की है कि वह क्लाइमेंट चेंज के खिलाफ कड़े कदम उठायें। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के मुताबिक पहली बार इतने सारे प्रकाशनों ने एक ही संदेश एक साथ जारी किया है जो दिखाता है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर हालात कितना गंभीर हैं।  जानकारों का कहना है कि विज्ञान बिल्कुल स्पष्ट है और वह एक ही बात कह रहा है कि जलवायु परिवर्तन पर आंखें बंद नहीं रखी जा सकती। इस साल नवंबर में ग्लासगो में हो रहे जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन से ठीक पहले जिस संपादकीय में यह बात कही गई है वह ब्रिटिश मेडिकल जर्नल, द लांसेट, इंडियन मेडिकल जर्नल और चायनीज़ साइंस बुलेटिन जैसे कई प्रकाशनों में आयेगा। 

ओडिशा में होगा एनटीपीसी का मेडिकल कॉलेज  

ओडिशा के सुंदरगढ़ ज़िले में सरकारी ताप बिजली कंपनी एनटीपीसी एक मेडिकल कॉलेज खोल रही है जिसमें 500 बिस्तरों वाला अस्पताल होगा। यहां मेडिकल साइंस की 22 शाखाओं में हर साल 100 एमबीबीएस छात्रों को एडमिशन मिलेगा। राज्य सरकार ने कहा है कि इसके लिये कंपनी को 21 एकड़ ज़मीन दी गई है और कंपनी इसमें 350 करोड़ का निवेश करेगी। संभावना है कि यह मेडिकल कॉलेज साल 2022-23 से शुरू हो जायेगा। 

इसके अलावा एनटीपीसी मध्यप्रदेश के खरगौन ज़िले में एक इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (आईटीआई) भी लगायेगी। कंपनी ने कहा है कि वह सामुदायिक सुविधाओं के लिये 13 करोड़ का निवेश करेगी। 

मीट और दूध उद्योग के इमीशन जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन से अधिक 

दुनिया की 20 बड़ी मीट कंपनियों का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन जर्मनी, ब्रिटेन या फ्रांस जैसे किसी भी देश से होने वाले  इमीशन से अधिक है। इन कंपनियों को करोड़ों डॉलर वित्तीय मदद के तौर पर भी मिल रहे हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अपने एक विश्लेषण में यह बात कही है। मीट के लिये जानवरों को पालने, चारा खिलाने और मांस की प्रोसेसिंग करने से लेकर उसकी पैकिंग आदि में जो इमीशन होता है वह दुनिया के कुल इमीशन का करीब 14.5% है और अमीर देशों को मीट इंडस्ट्री में काफी सुधार करने और खाने पीने की आदतें बदलने की ज़रूरत है क्योंकि वहां औद्योगिक मीट का बाज़ार काफी बड़ा है। इस बारे में विस्तार से यहां भी पढ़ा जा सकता है। 

घटती सांसें: उत्तर भारत की हवा में दुनिया में कहीं भी पाये जाने वाले हानिकारक वायु प्रदूषकों से 10 गुना अधिक घातक प्रदूषक हैं। फोटो – Canva

वायु प्रदूषण से भारतीयों की ज़िंदगी हो रही 10 साल कम: शोध

शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इस्टिट्यूट की नई रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण भारतीयों की उम्र 9 साल कम कर सकता है।  इसकी वजह है कि उत्तर भारत की हवा में दुनिया में कहीं भी पाये जाने वाले हानिकारक वायु प्रदूषकों से 10 गुना अधिक घातक प्रदूषक हैं। 

स्टडी कहती है कि उत्तर भारत में 48 करोड़ लोग “सबसे खराब” स्तर के वायु प्रदूषण में रह रहे हैं और ज़हरीली हवा का दायरा पूरे देश में बढ़ रहा है और स्वच्छ हवा के लिये नीतिगत काम कम से कम 5 साल का जीवन बढ़ा सकता है। प्रदूषित हवा के फैलने से अब महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में 2000 के दशक के शुरुआती सालों के मुकाबले आयु प्रत्याशा दो से ढाई साल कम हो रही है। 

हवा साफ करने में नहीं बल्कि धुंआं फैलाने पर किया अधिक खर्च

कम और मध्य आय वाले जिन देशों को हवा साफ करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय फंड मिलते हैं उनमें पिछले 30 सालों में यानी 1990 और 2019 के बीच वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 153% की वृद्धि हुई है। इसके बावजूद यहां वायु प्रदूषण से निपटने वाली परियोजनाओं में डेवलपमेंट फंडिंग द्वारा कुल 1% से भी कम खर्च किया गया  है। ‘द स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर क्वालिटी फंडिंग 2021’ नाम से प्रकाशित यह रिपोर्ट एक क्लीन एयर फंड नाम की एक वैश्विक दानदाता संगठन की ओर से तैयार की गई है। 

इस शोध से यह भी पता चलता है कि सरकारों ने जीवाश्म ईंधन उपयोग करने वाली परियोजनाओं को वायु  प्रदूषण कम करने वाली परियोजनाओं  की तुलना में अधिक प्राथमिकता दी। रिपोर्ट में कहा गया है  कि सरकारों ने उन परियोजनाओं पर विकास सहायता में 21% अधिक खर्च किया है जो जीवाश्म ईंधन का उपयोग करती  है  वही दूसरी और वायु प्रदूषण को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य वाली परियोजनाओं पर सरकार ने कम खर्च किया है। इस बारे में विस्तार से यहां पढ़ा जा सकता है। 

एक-तिहाई देशों में एयर क्वॉलिटी को लेकर कानूनी प्रावधान नहीं: UNEP 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने वायु गुणवत्ता से जुड़े कानूनों और मानकों का आकलन किया है जिसमें पता चलता है कि हर तीन में एक देश में ऐसे एयर पॉल्यूशन स्टैंडर्ड यानी साफ हवा के मानक नहीं हैं जिनका पालन करने की कानूनी बाध्यता हो। जहां पर ऐसे नियम कानून हैं भी तो वह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के दिशानिर्देशों से मेल नहीं खाते।  रिपोर्ट कहती है कि जिन देशों के पास ऐसे कानून बनाने की संवैधानिक शक्ति है उनमें से 31% उसका प्रयोग नहीं कर रहे। दुनिया के 49% देश वायु प्रदूषण को केवल एक आउटडोर समस्या मानते हैं।

भूमि का संकट: विशेषज्ञों का कहना है कि साफ ऊर्जा संयत्रों को लगाने के लिये भविष्य में ज़मीन का संकट आड़े आ सकता है। फोटो-Pixabay

साफ ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने के लिये भूमि इस्तेमाल में समझदारी दिखानी होगी: IEEFA

ऊर्जा क्षेत्र में आर्थिक पहलुओं पर नज़र रखने वाली ईफा (IEEFA) ने कहा है कि 2050 तक नेट ज़ीरो हासिल करने के लिये अगर भारत को अपने साफ ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने हैं तो सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों को लगाने के लिये भूमि इस्तेमाल समझदारी से करना होगा। ईफा का अनुमान है कि 2050 तक भारत में सौर ऊर्जा के लिये  50,000-75,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन की ज़रूरत होगी जबकि पवन ऊर्जा में 15,000-20,000 वर्ग किलोमीटर ज़मीन लगेगी। इतनी ज़मीन का मतलब भारत के कुल क्षेत्रफल का 1.7-2.5%  या वन क्षेत्र का 2.2-3.3% है। 

ईफा का सुझाव है कि भारत के लैंज-यूज़ को कम करने के लिये समुद्र में (ऑफशोर), छतों पर और वॉटर बॉडीज़ पर पैनल फिट करने चाहिये। रिपोर्ट कहती है कि जो प्रोजेक्ट इस तरह की सोच से भूमि की मांग को कम कर सकें उन्हें बढ़ाना देना चाहिये। 

पैनल की कीमतों में “जादुई कमी” ही साफ ऊर्जा प्रोजेक्ट्स को बचा सकती है: अध्ययन 

एक ओर सौर ऊर्जा की दरें कम हो रही हैं और दूसरी ओर निवेश के लिये कर्ज़ पर ब्याज़ दरें ऊंची हैं। अब प्रोजेक्ट के कामयाब होने के लिये ज़रूरी है कि पैनल की कीमतों में “जादुई कमी” हो। यह बात ब्रिज टु इंडिया के अध्ययन में कही गई है। सोलर सेलों और मॉड्यूल्स पर बेसिक कस्टम ड्यूटी लगने और उपकरणों की कीमतें बढ़ने के बाद भी सौर ऊर्जा की दरें गिरी हैं। पिछले 7 हफ्तों में हुई नीलामियों में कुल 3,950 मेगावॉट के अनुबंध हुए हैं और निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी से दरें और गिर रही हैं। 

सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) ने पाया है कि हाल में विंड-सोलर के हाइब्रिड प्रोजेक्ट्स की नीलामी  ₹ 2.34 से ₹ 2.35 की दरों पर हुई है जो दिसंबर 2020 में हुई नीलामी दरों से 3% है। 

सौर ऊर्जा: इस साल दूसरी तिमाही में 2,488 मेगावॉट पावर की बढ़त 

भारत ने साल 2021 के कैलेंडर साल के दूसरे तिमाही (अप्रैल-जून) में 2,488 मेगावॉट क्षमता जोड़ी। यह इस कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में लगाई गई सोलर पावर (2,090 मेगावॉट) की तुलना में 19% की बढ़त है। पिछले  मंगलवार को जारी मरकॉम इंडिया की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है जिसमें कहा गया है कि किसी भी साल पहली छमाही में सोलर में इतनी बढ़त नहीं हुई।  

मरकॉम के मुताबिक साल दर साल की तुलना करें तो पिछले कैलेंडर वर्ष की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) की तुलना में इस साल अप्रैल से जून में 1,114 % की बढ़त हुई क्योंकि पिछले साल कोरोना महामारी के कारण केवल 205 मेगावॉट के ही पैनल लग पाये थे। 

बायोमास पावर: भारत ने 2022 का लक्ष्य पूरा किया पर भविष्य अनिश्चित 

भारत ने साल 2022 तक कुल 175 गीगावॉट साफ ऊर्जा का लक्ष्य रखा है। इसमें 100 गीगावॉट सोलर पावर और 60 गीगावॉट पवन ऊर्जा है जिसे भारत हासिल कर पायेगा या नहीं इस पर सबकी नज़र है। लेकिन साफ ऊर्जा की मुहिम में भारत ने बायोमास पावर के 10 गीगावॉट के लक्ष्य को हासिल कर लिया है लेकिन क्या भारत बायोमास पावर का उत्पादन बढ़ायेगा यह स्पष्ट नहीं है। मोंगाबे इंडिया में प्रकाशित यह ख़बर बताती है कि सरकार ने सोलर और विन्ड पावर को बढ़ाने का लक्ष्य तो रखा है लेकिन बायोमास पावर का उत्पादन 2030 तक और अधिक करने की कोई योजना नहीं है जबकि साफ ऊर्जा मंत्रालय द्वारा कराये गये एक अध्ययन में कहा गया है कि भविष्य में इसे 28 गीगावॉट तक बढ़ाया जा सकता है। 

ये काफी नहीं : महाराष्ट्र और राजधानी मुंबई में दो साल के भीतर बैटरी वाहनों की संख्या तो दोगुनी हो गई है लेकिन यह अभी भी नये बिक रहे वाहनों के 1% के बराबर ही हैं। फोटो-: Ravi Sharma on Unsplash

मुंबई: विद्युत वाहनों की संख्या दो साल में दोगुनी हुई

पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र और उसकी राजधानी मुंबई की सड़कों पर पिछले दो सालों इलैक्ट्रिक वाहनों की संख्या दोगुनी हो गई है। परिवहन विभाग के आंकड़ों से जानकारी सामने आई है जिसमें कहा गया है कि 2021 में मुंबई में कुल 4000 (3996) और महाराष्ट्र में 40,000 से अधिक वाहन पंजीकृत हो चुके हैं। दो साल पहले 2019 में मुंबई में करीब 2000 और राज्य में लगभग 20,000 वाहन ही सड़कों पर थे। विद्युत वाहन सड़कों पर ध्वनि और वायु प्रदूषण दोनों को कम करने के लिये बहुत ज़रूरी हैं लेकिन नया आंकड़ा भी बहुत उत्साहवर्धक नहीं है क्योंकि राज्य में इस साल बिके कुल वाहनों में इलैक्ट्रिक वाहनों की संख्या का करीब 1% ही है। 

ग्राहकों को फाइनेंस के लिये ओला ने बैंकों से अनुबंध किया 

इलैक्ट्रिक मोबिलिटी में उतरी ओला ने अपने ग्राहकों को कर्ज़ मुहैया कराने के लिये वित्तीय संस्थानों और बैंकों से करार किया है। इनमें आईसीआईसीआई, एचडीएफसी और कोटक ग्रुप जैसे संस्थान शामिल हैं। ये सभी बैंक 8 सितम्बर से बाज़ार में उतरे ओला इलैक्ट्रिक के नये स्कूटर के लिये फाइनेंस करेंगे।   ओला स्कूटर के दो वर्ज़न ₹ 99,999 और ₹ 1,29,999 के हैं। ओला ने इस साल जुलाई में प्री-लॉन्च बुकिंग शुरू की और पहले 24 घंटों में 1 लाख ऑर्डर बुक करने का दावा किया लेकिन अब तक कितने ऑर्डर बुक हुए हैं यह नहीं बताया है। ओला का कारखाना तमिलनाडु में करीब 500 एकड़ में फैला है और  10 रंगों में लॉन्च हो रहे उसके स्कूटर 8.5 किलोवॉट की मोटर और 3.97 किलोवॉट-घंटा के बैटरी पैक के साथ हैं। 

चीनी धुंआं: जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट प्रभावों के बावजूद चीन नये कोयलाघरों की स्थापना में कोई कमी करता नहीं दिखता। फोटो-Curioso Photography

चीन लगा रहा 100 गीगावॉट के नये कोयला प्रोजेक्ट

ग्रीनपीस का कहना है कि 2021 में कोयले के प्रति दिखी उदासीनता के बावजूद चीन अपने कई प्रान्तों में 100 गीगावॉट के नये कोयला बिजलीघर लगाने की तैयारियां कर रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक स्थानीय एजेंसियों ने इस साल के पहले 6 महीने में कुल 5.2 गीगावॉट क्षमता के दो दर्ज कोयला प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी दी है। पिछले साल के मुकाबले यह आंकड़ा ज़रूर 80% की गिरावट दिखाता है लेकिन इसके साथ ही जिन कोयला बिजलीघरों की चीनी सरकार ने योजना बनाई है उनकी कुल क्षमता 104 गीगावॉट से अधिक हो गई है। महत्वपूर्ण है कि चीन ने भले ही कहा है कि 2030 तक उसके इमीशन अपने उच्चतम स्तर पर होंगे और 2060 तक वह कार्बन न्यूट्रल देश होगा यानी उसके नेट इमीशन ज़ीरो होंगे लेकिन वह कोयले का प्रयोग घटाना 2026 से पहले शुरू नहीं करेगा। 

BMW: हर कार का कुल इमीशन 40% तक घटाने का ऐलान 

ऑटोमोबाइल कंपनी बीएमडब्लू की योजना है कि वह अपने वाहनों के पूरे जीवन चक्र में कुल इमीशन – 2019 के स्तर से  – 40%  कम करे। इसमें वाहन के बनाने में होने वाला इमीशन भी शामिल है। पहले के योजना के मुकाबले कंपनी इस इमीशन को एक तिहाई कम करना चाहती थी।  

म्यूनिक में होने वाले मोबिलिटी सम्मेलन से पहले बीएमडब्लू ने कहा कि वह यह लक्ष्य हासिल करने के लिये अपने वाहनों के निर्माण में रीसाइकिल्ड या रीयूज़्ड माल का प्रयोग 30% से 50% तक बढ़ायेगी। हालांकि कंपनी कहती है कि वह 1.5 डिग्री तक तापमान संतुलित रखने के क्लाइमेट लक्ष्य के हिसाब से काम कर रही है लेकिन अभी तक वह यह नहीं बता पाई है कि वह पेट्रोल, डीज़ल और गैसोलीन से चलने वाले वाहनों को बनाना कब बंद करेगी।