विलुप्ति का संकट: जंतुओं पर संकट की बात तो होती है लेकिन पेड़ों की अक्सर अनदेखी की जाती है। अब सवाल ये है कि पादप प्रजातियों पर छाये विलुप्ति के संकट से कैसे निपटा जाये। फोटो- Seaq68 on Pixabay

भारत में 18% पादप प्रजातियों के गायब होने का ख़तरा

पेड़ों के एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है भारत में करीब 18% पादप प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना है। लंदन के बोटिनिकल गार्डन कंजरवेशन इंटरनेशनल में छपे शोध में 2603 प्रजातियों की पहचान की गई। अध्ययन में कहा गया है कि इनमें से 650 प्रजातियां एंडेमिक (यानी किसी एक विशेष जगह में उगने वाली) हैं और 469 के लुप्त होने का खतरा है। दुनिया भर में पाई जाने वाली पेड़ों की 58,497 प्रजातियों में 30% गायब होने की कगार पर हैं और 142 तो विलुप्त हो चुकी हैं। 

स्टडी के मुताबिक इस प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन का असर नापा जा सकता है। इसके अलावा विकास परियोजनाओं के लिये जंगल कटने और दूसरे तरीकों से हैबिटैट या उनके प्राकर्तिक आवास  नष्ट होने (लकड़ी और दवाइयों के लिये पेड़ कटने) और घातक कीड़ों और बीमारियों को भी इसकी वजह बताया गया। 

हिमाचल में बढ़ता जलवायु परिवर्तन प्रभाव 

जानकारों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में लगातार हो रही भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ जैसी घटनाओं का रिश्ता ग्लोबल वॉर्मिंग से है। मोंगाबे हिन्दी में प्रकाशित रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि राज्य में तापमान वृद्धि 1.6 डिग्री तक है जो कि जलवायु संकट का संकेत है। साल 2021 में राज्य में अब तक कम से कम 246 लोगों की जान प्राकृतिक आपदाओं में हुई है। इस साल बड़े भूस्खलन की 35 घटना सामने आई है जबकि 2020 में यह संख्या 16 थी। इस साल 11 अगस्त को किन्नौर में हुए भूस्खलन में 28 लोगों की जान चली गयी। इस मानसून में बादल फटने के मामले में भी बीते साल के मुकाबले 121 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। फ्लैश फ्लड या पहाड़ों में अचानक आई बाढ़ के 17 मामले इस वर्ष दर्ज किए गए हैं। पिछले साल इसकी संख्या नौ ही थी। 

एक्सट्रीम वेदर की घटनायें 50 साल में पांच गुना: यूएन अध्ययन 

संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में एक्ट्रीम वेदर यानी अचानक बाढ़, अति सूखा और भारी ओलावृष्टि या चक्रवाती तूफान जैसी घटनाओं की संख्या पिछले 50 सालों में 5 गुना बढ़ गई है। एटलस ऑफ मॉरेलिटी एंड इकोनोमिक लॉसेस फ्रॉम वेदर, क्लाइमेट एंड वॉटर एक्सट्रीम (1970-2019) नाम से प्रकाशित इस रिपोर्ट में 1970 से 2079 के बीच 771 आपदायें हुईं जबकि 2010 से 2019 के बीच 3,165 आपदाओं का पता चला। 1970 से 2019 के बीच आपदाओं में से 50% क्लाइमेट से जुड़ी थीं। कुल 45% में लोगों की मरने की घटनायें और 74% में आर्थिक क्षति की सूचना दी गई। 

अच्छी बात ये है कि पूर्व चेतावनी जैसी टेक्नोलॉजी लगाने और बेहतर आपदा प्रबंधन की उपलब्धता से मौत की घटनाओं में करीब 3 गुना कमी हुई है।  इस दौरान आर्थिक क्षति करीब 7 गुना – करीब 5 करोड़ डॉलर से 38 करोड़ डॉलर प्रति दिन बढ़ गई। 

चक्रवात आइडा ने अमेरिका में मचाई तबाही 

अमेरिका के लूसिआना राज्य में पिछली 29 अगस्त को आये चक्रवाती  तूफान आइडा ने बड़ी तबाही मचाई और इससे कम से कम 50 लोग मारे गये। उत्तर की ओर बढ़ते हुए यह चक्रवात कमज़ोर पड़ा लेकिन पूर्वी तट पर इसने बड़ी तबाही मचाई, बाढ़ से कई हिस्से डूब गये और सैकड़ों घर तबाह हुए और लाखों लोगों को के लिये कई घंटों तक बिजली गुल रही। न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क इलाके में प्रति घंटे 3.1 इंच बारिश हुई और सोशल मीडिया में पानी में डूबे घरों और कारों की तस्वीरें दिखाई दीं। न्यूयार्क और न्यू जर्सी में इसका सबसे अधिक असर दिखा। 

जानकारों ने इसे एक्सट्रीम वेदर की घटना कहा है और इसके लिये मानव जनित जलवायु परिवर्तन को ज़िम्मेदार माना है।  इस तूफान के कारण मैक्सिको की खाड़ी में तेल उत्पादन रोक देना पड़ा। तटरक्षकों का कहना है कि तूफान के बाद  करीब 350 जगह तेल बिखरने की ख़बर है जिनकी वह जांच कर रहे हैं। 

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