अब बच्चे जलवायु संकट की चपेट में

Newsletter - August 27, 2021

आंखमिचौली: इस साल मॉनसून सीज़न में दो “रुकावटों” के कारण पूरे देश में मॉनसून में कमी दर्ज की गई पर अचानक बहुत पानी बरसने से कुछ इलाके बाढ़ में डूबे फोटो - Unsplash

मॉनसून में दूसरी “रुकावट” के बाद अगस्त में बारिश 33% कम

इस महीने मॉनसून में आई “रुकावट” के बाद पूरे देश में बरसात में 33% की कमी रिकॉर्ड की गई है। मौसम विभाग के मुताबिक अगस्त के पहले पखवाड़े में मॉनसून “दबा हुआ” रहा है। इस कारण मध्य भारत में वर्षा में सबसे अधिक कमी (51%) है। इसके बाद प्रायद्वीप के हिस्सों में  (37.7%)  और फिर उत्तर पश्चिम भारत (22%) में बरसात में कमी रिकॉर्ड की गई। पूर्वी और उत्तर-पूर्व में यह कमी 5% है।  यह मॉनसून में दूसरा “ब्रेक” है। इससे पहले 29 जून से 11 जुलाई के बीच ऐसी रुकावट दर्ज हुई थी। जानकार कहते हैं कि इस दौरान हिमालय के भावर वाले इलाकों तक ही मॉनसून सीमित रहा है। वैसे 19 अगस्त को मॉनसून फिर से बहाल हुआ लेकिन मौसम विभाग कहता है कि 24 अगस्त के बाद यह फिर कमज़ोर हो जायेगा। 

नदियों से समुद्र में पहुंच रही हैं ज़हरीली भारी धातुयें: शोध  

दुनिया की बड़ी नदियां समुद्र में ज़हरीली भारी धातुयें पहुंचा रही हैं जिसका मानव स्वास्थ्य और समुद्री जीवों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। अमेरिका के येल स्कूल ऑफ इन्वायरेंमेंट के प्रोफेसर की अगुवाई में हुये शोध में पता चला है कि तटीय इलाकों में इसका प्रभाव सबसे अधिक है। पहले माना जाता था कि खुले समुद्र में मरकरी जैसी भारी धातुयें सीधे वायु मंडल से जाती हैं लेकिन अब यह शोध बताता है कि नदियां इन धातुओं को अधिकाधिक समुद्र में पहुंचा रही हैं। नदियों के पारे के लिये दुनिया में 10 नदियां सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं।  अमेरिका में अमेज़न, चीन में यांग्त्ज़ी और भारत-बांग्लादेश सीमा पर गंगा नदी पारे की भारी मात्रा समुद्र में ले जा रही हैं।

पारा एक भारी धातु है जो तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को प्रभावित करता है और दुनिया में इससे करीब 2.5 लाख लोगों में हर साल दिमागी बीमारियां होती हैं। प्रोफेसर पीटर रेमंड और उनकी टीम ने जो शोध किया उसमें पाया गया है हर साल अगस्त से सितंबर तक नदियों में पारे के स्तर सबसे अधिक है। 

भारत में बच्चों को क्लाइमेट प्रभावों का ख़तरा सबसे अधिक: यूनिसेफ 

यूनिसेफ की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक भारत उन चार दक्षिण एशियाई देशों में है जहां के बच्चों को जलवायु परिवर्तन संकट का सबसे अधिक ख़तरा झेलना पड़े रहा है। यह ख़तरा उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा से जुड़े तमाम आयामों को लेकर है। जलवायु संकट पर बच्चों के नज़रिये से संयुक्त राष्ट्र के किसी संगठन की यह पहली विस्तृत रिपोर्ट है। जिन चार दक्षिण एशियाई देशों में बच्चों को यह संकट सबसे अधिक है उनमें भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान शामिल हैं। यूनिसेफ ने क्लाइमेट रिस्क रिडक्शन इंडेक्स (सीसीआरआई) पर इन खतरों को नापा गया है। 

भारत को जलवायु से जुड़े बहुत अधिक खतरे वाली श्रेणी – जिसे एक्सट्रीमली हाइ रिस्क कंट्रीज़ कहा जाता है – के दुनिया के उन 33 देशों में रखा गया है जहां महिलाओं और बच्चों के सामाजिक-आर्थिक हालात पर बाढ़ और वायु प्रदूषण जैसे खतरे बार बार चोट पहुंचा रहे हैं। दुनिया के 100 करोड़ बच्चे इन 33 देशों में रहते हैं। जहां वायु प्रदूषण के हिसाब से दुनिया के 30 में से 20 से ज़्यादा सर्वाधिक प्रदूषित शहर भारत के हैं वहीं विशेषज्ञ रिपोर्टों ने यह चेतावनी दी है कि भारत में आने वाले वर्षों में 60 करोड़ लोगों को घोर जल संकट का सामना करना पड़ेगा। ज़ाहिर है ये हालात बच्चों को लिये अच्छे नहीं हैं। 

अमेरिका में चक्रवाती तूफान की मार से बत्ती गुल 

अमेरिका के रोह्ड द्वीप के पास वेस्टर्ली में चक्रवाती तूफान हेनरी करीब 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से टकराया  और उसने इस इलाके में बिजली सप्लाई को ठप कर दिया। अमेरिका के नेशनल हरिकेन सेंटर ने जानकारी दी कि देश पूर्वी हिस्सों और शहरों में चेतावनी जारी कर दी गई है। न्यूयॉर्क के पब्लिक सेफ्टी डिपार्टमेंट ने कहा है कि न्यू जर्सी में पानी में डूबे वाहनों में फंसे 86 लोगों को निकाल कर सुरक्षित जगहों में पहुंचाया गया। यह बाढ़ चक्रवात के कारण ही आई। 

चमोली ज़िले में बना देश का सबसे ऊंचा हर्बल पार्क

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में देश का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित हर्बल पार्क  बनाया गया है। यह पार्क भारत-चीन सीमा पर स्थित माणा गांव में है जिसका उद्घाटन शनिवार को किया गया। माणा वन पंचायत की करीब चार एकड़ ज़मीन पर फैला यह पार्क समुद्र सतह से लगभग 11,000 फुट की ऊंचाई पर है। इस विशाल बगीचे को चार हिस्सों में बांटा गया है और इसमें उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली 40 बहुत दुर्लभ प्रजातियां लगाई गई हैं। उत्तराखंड वन विभाग की रिसर्च विंग ने पिछले 3 साल में इस हर्बल गार्डन को तैयार किया है जिसके लिये केंद्र के कैम्पा नीति के तहत दिये जाने वाले फंड का इस्तेमाल किया गया है।

ताड़ की खेती: पाम ऑइल आर्थिक मुनाफे के हिसाब से तो अच्छा है लेकिन जैव विविधता और पर्यावरण के लिये इसकी खेती एक चुनौती है। - Pixabay

केंद्र सरकार ने पाम ऑइल क्षेत्र में 11,000 करोड़ के निवेश को मंज़ूरी दी

केंद्र सरकार ने पाम ऑइल का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिये 11,040 करोड़ रुपये की कार्ययोजना को मंज़ूरी दी है। भारत अभी ज़्यादातर पाम ऑइल इंडोनेशिया और मलेशिया से मंगाता है। कैबिनेट ने पिछले हफ्ते इस कार्ययोजना के प्रस्ताव को पास किया। अब नेशनल मिशन ऑन एडिबल आइल्स-आइल-पाम्स (NMEOOP) अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों समेत उत्तर-पूर्व के राज्यों में इसके उत्पादन पर ज़ोर देगा।  जहां एक ओर पाम ऑइल एक मुनाफा वाली फसल है वहीं  इसकी खेती पर्यावरण के लिये एक चुनौती है।  इसके लिये बहुत बड़े इलाके के जंगल काटे जाते हैं और अगर सस्टेनेबल तरीके से इसे न उगाया गया तो यह पारिस्थितिकी यानी इकोलॉजी के लिये बड़ा ख़तरा है। 

रेफ्रिजेरेशन में काम आने वाले एचएफसी को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू करेगा भारत 

रेफ्रिजेरेशन में काम आने वाले एचएफसी (हाइड्रोफ्लोरोकार्बन) ग्लोबल वॉर्मिंग का बड़ा कारण हैं। एचएफसी असल में रसायनों का समूह है जो कि एयर कंडिशनिंग और रेफ्रिजेरेशन जैसे उद्योगों में इस्तेमाल होता है और यह ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ाने में कार्बन डाइ ऑक्साइड से कहीं अधिक ख़तरनाक हैं। साल 2016 में ओज़ोन गैस बढ़ाने वाले तत्वों को रोकने से जुड़े मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉट में एक संशोधन किया गया था जिसमें हाइड्रोफ्लोरोकार्बन का प्रयोग धीरे-धीरे खत्म करने का फैसला किया गया। इसे संशोधन को किगाली संशोधन कहा जाता है। कैबिनेट ने इसे पिछले बुधवार को प्रभावी कर दिया।  इसके तहत दुनिया में एचएफसी का प्रयोग 85% करने का लक्ष्य है। विकसित देशों को यह लक्ष्य 2036 तक हासिल करना है जबकि कई अन्य देशों के लिये 2045 की डेडलाइन है। भारत का एक्शन प्लान 2023 तक तैयार हो जायेगा और उसने यह लक्ष्य हासिल करने के लिये 2047 तक की डेडलाइन रखी है। 

कोयला, रेल समेत कई संपत्तियों के मौद्रिकरण से सरकार को 6 लाख करोड़ जुटाने की उम्मीद 

केंद्र सरकार ने अगले चार साल में करीब ₹ 6 लाख करोड़ ($ 8100 करोड़) जुटाने के इरादे से संपत्तियों के मौद्रिकरण (मोनिटाइज़ेशन) की योजना बनाई है। इसके तहत रेल, कोयला और हवाई अड्डों का मौद्रिकरण किया जायेगा। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि मौद्रिकरण के लिये संपत्तियों की पहचान कर ली गई है। इसमें 15 रेलवे स्टेडियमों और 160 कोयला खदानों को शामिल किया गया है। सरकार ने इस काम को अंजाम देने के लिये राष्ट्रीय मौद्रिकरण पाइपलाइन का उद्घाटन किया। कांत ने कहा कि 26,700 किलोमीटर हाइवे के मौद्रिकरण से 1.65 लाख करोड़ रूपया आयेगा।  इसी तरह ट्रांसमिशन लाइनों से सरकार 42,500 करोड़ जुटायेगी। केंद्रीय वित्तमंत्री ने कहा कि सरकार अपनी संपत्तियों को बेच नहीं रही है बल्कि उनका अधिकतम लाभ उठा रही है। इनका मालिकाना हक सरकार के पास ही रहेगा। 

ताड़ की खेती: पाम ऑइल आर्थिक मुनाफे के हिसाब से तो अच्छा है लेकिन जैव विविधता और पर्यावरण के लिये इसकी खेती एक चुनौती है। फोटो - Pixabay

इसरो के फार्म फायर एस्टीमेशन प्रोटोकॉल अपनायें दिल्ली के पड़ोसी राज्य: वायु गुणवत्ता पैनल

हवा में प्रदूषण के प्रबंधन के लिये बने कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्यों को कहा है कि पराली जलाने की घटनाओं के आकलन के लिए वह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी (इसरो)  द्वारा विकसित एक प्रोटोकॉल अपनायें। यह प्रोटोकॉल उपग्रह डेटा का उपयोग करके इन घटनाओं का अनुमान लगाता है।

आयोग ने दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को एक समयबद्ध और व्यापक कार्य योजना विकसित करने के लिए भी कहा। आयोग ने कहा है कि खेतों में धान और गेहूं जैसी फसलों की खुंटी जलाने की घटनाओं की जिम्मेदारी, निगरानी और रिपोर्टिंग के लिए योजना हितधारक एजेंसियों के साथ परामर्श से चलाई जाये। 

यह प्रोटोकॉल राज्य रिमोट सेंसिंग सेंटर और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के परामर्श से तैयार किया गया है। आयोग के मुताबिक यह प्रोटोकॉल सिर्फ पंजाब और हरियाणा तक सीमित नहीं रहना चाहिये। उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली राज्यों में भी प्रोटोकॉल को समान रूप से अपनाया जाना चाहिए। पैनल ने इन राज्यों को 30 अगस्त तक प्रोटोकॉल अपनाने पर अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा है।

पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में  15 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच धान की कटाई होती है । कटाई के बाद बचे फसल अवशेषों को जल्दी से हटाने के लिए किसान अपने खेतों में आग लगा देते हैं। यह दिल्ली में प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि के मुख्य कारणों में से एक है।

वायु प्रदूषण: अगले साल तक आ सकते हैं नये मानक 

करीब 12 साल बाद अब देश में नये नेशनल एयर एंबिएंट क्वॉलिटी स्टैंडर्ड (NAAQS) आ सकते हैं। वायु प्रदूषण नापने के नये मानकों में पीएम 2.5 से छोटे प्रदूषकों (अल्ट्रा फाइन पार्टिकल) को शामिल किया केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने आईआईटी दिल्ली, आईआईटी कानपुर और नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री, नीरी और एम्स के विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों को मानकों को अपडेट करने का काम दिया है। जायेगा। संभावना है कि अगले साल 2022 में यह लागू हो जायेंगे।

मानकों से पता चलता है कि किसी जगह वायु प्रदूषण का स्तर क्या है और वह कितना हानिकारक है। इन्हें 1982 में अपनाया गया था और उसके बाद 1994 और फिर 2009 में अपडेट किया गया। अभी प्रदूषकों में पीएम 2.5 और पीएम 10 के अलावा सल्फर डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड, अमोनिया, कार्बन मोनो ऑक्साइड,  बैंजीन और  ओज़ोन को गिना जाता है। 

दिल्ली: वायु प्रदूषण पर काबू के लिये पहला देश का स्मॉग टावर 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को राजधानी के कनॉट प्लेस इलाके में 20 मीटर ऊंचे स्मॉग टावर का उद्घाटन किया। यह स्मॉग टावर दिल्ली सरकार ने 20 करोड़  रुपये की लागत से बनवाया है। केजरीवाल का कहना है कि विशेषज्ञ इस टावर से वायु प्रदूषण पर नियंत्रण का अध्ययन करेंगे और उसके नतीजों के आधार पर आगे और ऐसे प्रोजेक्ट लगाये जायेंगे। 

इससे अलावा दिल्ली से सटे यूपी के आनन्द विहार इलाके में केंद्र सरकार ने एक स्मॉग टावर लगाया गया है। माना जा रहा है यह इस महीने के अंत तक काम शुरू कर देगा। इनमें से हर टावर में कुल 1200 फिल्टर लगे हैं जिन्हें अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ मिनिसोटा के विशेषज्ञों ने विकसित किया है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि ये स्मॉग टावर अपने आसपास एक किलोमीटर के दायरे में पीएम 2.5 के स्तर को करीब 70% कम कर देंगे।   

वैसे वायु प्रदूषण पर काम कर रहे जानकार ऐसी कोशिशों को ‘शो-पीस’ खड़ा करने से अधिक कुछ नहीं मानते। उनका मानना है कि यह कोशिश अव्यवहारिक और बेअसर होगी। हवा को साफ करने के लिये प्रदूषण को उसके सोर्स पर रोकना होगा।

फ्लोटिंग एनर्जी: ताप बिजली क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी एनटीपीसी अब देश का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट लगा रही है। फोटो - Saur Energy

एनटीपीसी आंध्र प्रदेश में लगायेगा 15 मेगावॉट का फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट

भारत की सबसे बड़ी सरकारी ताप बिजली कंपनी नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी) ने घोषणा की है वह आंध्र प्रदेश के सिम्हाद्रि में 15 मेगावॉट क्षमता का फ्लोटिंग सोलर पावर प्रोजेक्ट लगायेगा। इसके बाद सिम्हाद्रि की कुल फ्लोटिंग सोलर पावर क्षमता 25 मेगावॉट हो जायेगी और वह देश का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट होगा। सरकार का कहना है कि एनटीपीसी अपने सिम्हाद्रि पावर स्टेशन में प्रयोग के तौर पर (पायलट बेसिस) एक हाइड्रोजन आधारित माइक्रो ग्रिड सिस्टम भी लगायेगी। 

इस फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट के लगने के बाद एनटीपीसी ग्रुप की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता (इन्स्टॉल्ड कैपेसिटी) 66,900 मेगा वॉट हो जायेगी। अभी कंपनी के कुल 71 पावर प्रोजेक्ट हैं जिनमें से 29 साफ ऊर्जा वाले हैं। कंपनी ने साल 2032 तक कुल 60,000 मेगावॉट क्षमता के साफ ऊर्जा संयंत्र लगाने का लक्ष्य रखा है।  

भारत की एनर्जी स्टोरेज क्षमता अगले 30 साल में 800 गीगावॉट होने की संभावना: NREL 

नेशनल रिन्यूएबल एनर्जी लेबोरेट्री (NREL)  ने दक्षिण एशिया में एनर्जी स्टोरेज पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें इस पहलू पर चर्चा की गई है कि कैसे ग्रिड से जुड़ी एनर्जी स्टोरेज साउथ एशिया के पावर सेक्टर में बदलाव ला सकती है।  एनर्जी स्टोरेज तकनीकों की कीमत पिछले कुल सालों में कम हुई हैं और अगले 10 साल में यह और किफायती हो जायेगा। इस अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की गई है कि 2050 में भारत में इस लिहाज से किया हालात होंगे। 

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के ब्यूरो ऑफ एनर्जी रिसोर्सेज ने इस शोध के लिये वित्तीय मदद की है। यह रिसर्च कहती है कि भारत के बिजली क्षेत्र में एनर्जी स्टोरेज का रोल बढ़ता रहेगा। किसी भी स्थिति में 2050 तक भारत का एनर्जी स्टोरेज क्षमता 180 से 800 गीगावॉट तक पहुंच जायेगी। 

नये नियमों के तहत ग्रीन हाइड्रोजन की खरीद साफ ऊर्जा मानी जायेगी

भारत ने साफ ऊर्जा क्षेत्र के नियमों में कुछ बदलाव किये हैं जिनमें ग्रीन हाइड्रोजन की खरीद को रिन्यूएबल क्रय में शामिल किया है। केंद्र सरकार ने कूड़े से बिजली उत्पादन (वेस्ट-टु-एनर्जी) को भी अक्षय ऊर्जा में शामिल किया है हालांकि कई जानकार इसे साफ ऊर्जा की श्रेणी में नहीं रखते। 

नये नियम अब 100 किलोवॉट लोड वाले उपभोक्ताओं (जिनमें सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योग तथा व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स शामिल हैं) को ओपन एक्सेस के ज़रिये खरीद की इजाज़त देते हैं। अब तक 1 मेगावॉट से अधिक लोड वाले उद्योगों ही ऐसी खरीद कर सकते थे।  जानकारों ने प्रस्तावित नियमों का स्वागत किया है और कहा है कि अगर यह नियम सही तरीके से लागू हुये तो अक्षय ऊर्जा सेक्टर में अच्छी वृद्धि होगी। 

साफ ऊर्जा: नये वित्त वर्ष की पहली तिमाही में $ 660 करोड़ का निवेश 

इंस्टिट्यूट ऑफ एनर्जी इकोनोमिक्स एंड फाइनेंसियल एनालिसिस (ईफा) के मुताबिक चालू वित्त वर्ष (2021-22) में साफ ऊर्जा क्षेत्र में फंडिंग पटरी पर आ गई है और पहली तिमाही में कुल 660 करोड़ डालर का निवेश हुआ। इस अध्ययन में कहा गया है कि इस वित्त वर्ष में कुल निवेश  पिछले साल  (2020-21) के 840 करोड़ डालर के निवेश को “आसानी से” पार कर जायेगा। 

बैटरी शॉक: इलैक्ट्रिक कारों में आग की घटनाओं के बाद अब जीएम को 70 हज़ार से अधिक कारों की बैटरी बदलनी पड़ रही है। – Reuters/Rebecca Cook

आग की घटनाओं के बाद अब 73,000 बैटरी कारों को रिपेयर करेगी जीएम, $ 100 करोड़ का नुकसान

अमेरिकी कार कंपनी जनरल मोटर्स ने शुक्रवार को घोषणा की कि वह अपनी इलैक्ट्रिक कार शेव्रले  बोल्ट की रिकॉल प्रोसेस (मैन्युफैक्चरिंग में खोट को दूर करने की प्रक्रिया) को और बढ़ायेगी। कुल मिलाकर कंपनी 73,000 गाड़ियों को वर्कशॉप में वापस बुला रही है जिनमें 2019 और उसके बाद के मॉडल शामिल हैं। इससे जीएम को $100 करोड़ (यानी करीब 7,400 करोड़ रुपये के बराबर) की चोट लगेगी। पिछले दिनों शेव्रले वोल्ट कि कुछ इलैक्ट्रिक कारों में आग की घटनाओं के बाद इसके हाइ वोल्टेज बैटरी पैक में फायर रिस्क पाया गया है। 

कंपनी को इलैक्ट्रिक कारों के ये बैटरी पैक बदलने होंगे और उसने कहा है कि वह बैटरी सप्लाई करने वाली कंपनी एल जी से भरपाई करने को कहेगी। एल जी ने अपने बयान में कहा है कि यह बदलाव करने के लिये वह सक्रियता से काम कर रही है। जीएम की इलैक्ट्रिक कारों में यह समस्या तक आई है जब वह अपने ईवी उत्पादन को बढ़ाने की योजनायें बना रही है। 

ब्लैकरॉक ऑस्ट्रेलिया में 5000 चार्जिंग पॉइंट के लिये करेगा $10 करोड़ का निवेश 

दुनिया की सबसे बड़ी निवेश और एसैट प्रबंधन फर्मों में एक ब्लैकरॉक ऑस्ट्रेलिया के जोल्ट नाम के एक स्टार्टअप में $ 10 करोड़ निवेश कर रही है। जोल्ट इस निवेश से पूरे देश में 5,000 ईवी चार्जिंग पॉइंट लगायेगा। अगर जोल्ट यह लक्ष्य हासिल कर लेता है तो वह एक दूसरी कंपनी चार्जफॉक्स की बराबरी कर लेगा जिसने 2025 तक इतने ही चार्जिंग स्टेशन लगाने का लक्ष्य रखा है। माना जा रहा है कि इससे ऑस्ट्रेलिया में बैटरी वाहनों के बाज़ार में तेज़ी आयेगी क्योंकि जो ग्राहक ईवी खरीदना चाहते हैं उनके दिमाग में चार्जिंग पाइंट को लेकर संशय बना रहता है। इसका असर ही है कि जहां साल 2021 में अलग अलग देशों में ईवी का वैश्विक औसत  4.2% है वहीं ऑस्ट्रेलिया में यह 4.2% है। 

टाटा पावर लगायेगा लद्दाख में 50 मेगावॉट घंटा का बैटरी स्टोरेज प्लांट 

सोलर एनर्जी पर काम करने वाली टाटा पावर की सहयोगी कंपनी टाटा सोलर पावर लेह के फयांग गांव में 50 मेगावॉट-घंटा (MWh) का बैटरी स्टोरेज प्लांट लगायेगी। इसके साथ कंपनी यहां 50 मेगावॉट पीक (MWp) का सोलर प्लांट भी लगायेगी। करीब 139 करोड़ की लागत वाला भारत का यह अपनी तरह का पहला बड़ा बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम प्रोजेक्ट होगा और 2023 तक काम करने लगेगा।  यह गांव समुद्र सतह से करीब 3,600 मीटर की ऊंचाई पर है। इसके पूरा होने के बाद टाटा पावर की कुल सोलर उत्पादन क्षमता 4GWp हो जायेगी। 

घाटे का सौदा: जानकार सवाल उठा रहे हैं कि केंद्र सरकार ने पहले हुई कोयला ब्लॉक नीलामी को रद्द कर दोबारा घाटे का सौदा क्यों किया? फोटो – Unsplash

कोयला नीलामी: छत्तीसगढ़ सरकार को सालाना ₹ 900 करोड़ का घाटा

खोज़ी पत्रकारों के समूह रिपोर्टर्स कलेक्टिव के ताज़ा विश्लेषण में पता चला है कि केंद्र सरकार द्वारा कोल ब्लॉकों की नीलामी में जिस तरह के नियम के तहत दोबारा नीलामी की उससे छत्तीसगढ़ को सालाना 900 करोड़ का घाटा होगा। रिपोर्टर्स कलेक्टिव का यह विश्लेषण कई समाचार पोर्टल्स पर प्रकाशित हुआ है और इसमें कहा गया है कि सरकार ने फायदे के लिये गुटबंदी होने का हवाला देकर 2015 में की गई दो कोयला ब्लॉक्स की नीलामी को रद्द किया लेकिन बाद में पिछले साल यानी 2020 में 19 कोयला खदानों को पहले से कम कीमतों पर नीलाम कर दिया। ख़बर के मुताबिक एक जटिल सूत्र के तहत फ्लोर प्राइस को बहुत निचले स्तर पर रखा गया और नीलामी के लिए एक ऐसे वक्त को चुना गया जब कोयले का सालाना 85% उपभोग करने वाला ऊर्जा क्षेत्र मंद पड़ा था और उसमें कोयले की मांग भी घटती जा रही थी। महत्वपूर्ण है कि समाचार वेबसाइट स्क्रॉल ने पिछले साल इसे लेकर ख़बर प्रकाशित की थी। 

ब्लू हाइड्रोजन “आंखों में धूल झोंकने जैसा”, प्राकृतिक गैस के मुकाबले 20% अधिक ग्रीन हाउस उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार 

अमेरिका की कॉर्नेल और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि ब्लू हाइड्रोजन साफ ऊर्जा वहीं बल्कि “आंखों में धूल झोंकने जैसा” है। ब्लू हाइड्रोजन जीवाश्म ईंधन से बनाई जाती है और निकलने वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड को स्थाई रूप से धरती में दबा दिया जाता है जिसे सीसीएस तकनीक कहते हैं। जानकारों का कहना है ब्लू हाइड्रोजन बनाने में मीथेन इमीशन भी होता है और सीसीएस तकनीक लागू करने में जीवाश्म ईंधन जलाया जाता है। 

शोध बताता है कि ब्लू हाइड्रोजन, ग्रे हाइड्रोजन  (यह भी जीवाश्म ईंधन से बनती है लेकिन इस प्रक्रिया में निकलने वाली CO2 को हवा में छोड़ दिया जाता है) के मुकाबले सिर्फ 12% कम कार्बन इमीशन करती है इसलिये कार्बन मुक्त धरती बनाने में इसका कोई रोल नहीं हो सकता। इसके उलट ग्रीन हाइड्रोजन पानी के इलेक्ट्रोलिसिस से बनाई जाती है और उस प्रक्रिया में हवा केवल ऑक्सीजन छोड़ी जाती है।