Vol 2, January 2024 | बारिश नदारद और हिमपात की कमी, जल्दी आएगा गर्मियों का मौसम

भारी सूखे मौसम के बाद जनवरी में कई राज्यों में बारिश की 100% कमी

दिसंबर में बहुत सूखे मौसम के बाद अब कम से कम 6 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में जनवरी माह में बारिश की 100% कमी दर्ज की गई है। घने कोहरे और शीतलहर वाले दिनों में दिसंबर-जनवरी में बारिश की भारी कमी के बाद ये साफ है कि जाड़ों का मौसम सूखाग्रस्त ही घोषित होगा। 

विशेषज्ञ बारिश की कमी के पीछे मज़बूत पश्चिमी विक्षोभ की अनुपस्थिति को मुख्य वजह बता रहे हैं। उत्तर भारत में इस सर्दियों में करीब पांच से सात पश्चिमी विक्षोभ असर दिखाते हैं लेकिन इस साल ऐसा एक भी विक्षोभ सक्रिय नहीं है। मौसम विभाग ने पश्चिमी गड़बड़ी के सक्रिय न होने के पीछे एल निनो को भी एक कारण बताया था।   विशेषज्ञों ने इस बार हिमालयी चोटियों पर कम बर्फ के पीछे भी इसे एक वजह बताया है और कहा है कि बर्फ कम होने के कारण पहाड़ अधिक गर्मी अवशोषित करेंगे और इस साल गर्मी का मौसम जल्दी आएगा। उत्तराखंड के जंगलों में सर्दियों में भी आग लग रही है और जनवरी के पहले पखवाड़े में ही कोई 600 फायर अलर्ट जारी किए गए। 

मौसम विभाग के सीनियर साइंटिस्ट नरेश कुमार ने कहा, “सर्दियों में हिमपात का पश्चिमी विक्षोभ से सीधा रिश्ता होता है। दिसंबर से अभी तक कोई सक्रिय पश्चिमी गड़बड़ी नहीं है। कुछ अलग-अलग स्टेशनों को छोड़ दैं तो शीतलहर नहीं दिखी है। आने वाले दिनों में भी कोई पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होता नहीं दिख रहा। हवा की दिशा बदल रही है, उसमें नमी कम है और रफ्तार धीमी है। इस कारण उत्तर-पश्चिम के कई हिस्सों में घना कोहरा दिख रहा है। दिन के तापमान में कमी के कारण गंगा के मैदानी इलाकों में घने कोहरे की चादर है।”

जलवायु आपदा के पीछे ‘इंसानी व्यवहार जनित’ संकट 

रिकॉर्डतोड़ हीटिंग के पीछे रिकॉर्ड उत्सर्जन हैं और उसका मुख्य कारण है जीवाश्म ईंधन का अंधाधुंध उपभोग। धरती इस वक्त अपने क्लाइमेट लक्ष्य को हासिल करने के सबसे असंभव पड़ाव पर दिख रही है। जो एक कारण इस हालात के लिये ज़िम्मेदार है, उसे वैज्ञानिकों ने नाम दिया है ‘इंसानी व्यवहार जनित संकट‘।  सेज जर्नल में प्रकाशित एक शोध कहता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की चर्चा कार्बन उत्सर्जन पर केंद्रित रहती है जबकि उपभोग और खपत, कचरे का भारी ढेर और मानव जनसंख्या में वृद्धि जैसे मूल कारणों को अनदेखा कर दिया जाता है। 

मर्ज संस्थान के वैज्ञानिक जोसफ मर्ज इस शोध के लेखकों में से एक हैं और वह बताते हैं कि असल में समस्या की जड़ में अंधाधुंध उपभोग है और जब तक उसे नियंत्रित नहीं किया जाता तब तक जो भी समाधान बताये जा रहे हैं वह अस्थाई और निष्फल होंगे। आज जनसंख्या और संसाधनों पर दबाव को देखते हुये इंसानी सभ्यता को अभी 1.7 धरती की ज़रूरत है।  धरती की आबादी 1050 में कोवल 250 करोड़ थी और आज यह 800 करोड़ से अधिक है और नागरिकों की जीवनशैली कई गुना अधिक विलासितापूर्ण हो चुकी है। 

जलवायु परिवर्तन से 6 महीने कम हो सकती है आयु 

एक शोध में यह पाया गया है कि क्लाइमेट चेंज के कारण मानव जीवन के 6 महीने कम हो सकते हैं। विशेष रूप से महिलाओं और विकासशील देशों में रह रहे लोगों पर इसका बहुत ज़्यादा असर पड़ता है। PLOS क्लाइमेट नाम के विज्ञान पत्र में प्रकाशित ने 191 देशों में 1940 से 2020 के बीच की अवधि के औसत तापमान, बारिश और जीवन प्रत्याशा के आंकड़ों का अध्ययन किया। 

तापमान और बारिश के अलग-अलग प्रभावों को मापने के साथ-साथ शोधकर्ताओं ने अपने प्रकार का पहला समग्र जलवायु सूचकांक (कम्पोज़िट क्लाइमेट इंडेक्स) विकसित किया जो क्लाइमेट चेंज की व्यापक गंभीरता को मापने के लिये दो चर राशियों को जोड़ता है। परिणाम बताते हैं कि अलग-अलग, एक डिग्री की ग्लोबल तापमान वृद्धि औसत मानव जीवन प्रत्याशा में करीब 0.44 वर्ष यानी लगभग 6 महीने और एक सप्ताह की कमी बताती है।

अटलांटिक के जंगलों में हज़ारों वृक्ष प्रजातियों पर विलुप्ति का संकट 

विज्ञान पत्र साइंस में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक अटलांटिक के जंगलों में जो 4950 वृक्ष प्रजातियां पाई जाती हैं उनमें से दो-तिहाई आबादी पर विलुप्ति का संकट है। ब्राज़ील के दक्षिणी तट पर अटलांटिक महासागर के साथ फैले यह जंगल पिछले कुछ दशकों में कृषि और भवन निर्माण के लिये तेज़ी से कटे हैं और ब्राज़ील के 70 प्रतिशत आबादी इस जंगल के भीतर या बाहरी क्षेत्र में निवास करती है। इन जंगलों में पाई जाने वाली 80% वृक्ष प्रजातियों पर संकट है। शोधकर्ताओं का विश्वास है कि इनमें से कुछ को तो संयुक्त राष्ट्र की आईयूसीएम लिस्ट में ज़रूर जगह मिलेगी ताकि उनके संरक्षण के लिये प्रयास किए जा सकें।

वन संरक्षण कानून में बदलाव पर अनुसूचित जनजाति आयोग के प्रमुख ने जताया था ऐतराज़

पिछले दो सालों के दौरान पर्यावरण मंत्रालय ने वन संरक्षण अधिनियम में महत्वपूर्ण बदलाव किए, एक जून 2022 में और दूसरा दिसंबर 2023 में। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इन बदलावों का भारी विरोध किया था। अब सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष ने भी इन संशोधनों पर ऐतराज़ जताया था लेकिन उनकी शंकाओं को दरकिनार कर दिया गया। यहां तक कि उन्होंने समय से पहले अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।

हर्ष चौहान तब राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष थे, जो कि एक संवैधानिक संस्था है। आरटीआई द्वारा मिली जानकारी के अनुसार, सितंबर 2022 में उन्होंने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव को पत्र लिखकर नए वन संरक्षण नियमों के बारे में गंभीर चिंता जताई थी। उन्होंने इस बात पर भी ऐतराज़ जताया था कि इन संशोधनों को लेकर आयोग से कोई चर्चा नहीं की गई और उनपर रोक लगाने की मांग की।

हालांकि पर्यावरण मंत्री ने उनकी शंकाओं को निराधार बताते हुए उनके विरोध को दरकिनार कर दिया। इसके बाद जून 2023 में अपना कार्यकाल ख़त्म होने के आठ महीने पहले ही चौहान ने इस्तीफा दे दिया था।

आईपीसीसी रिपोर्ट की समयसीमा पर एकमत नहीं सरकारें, भारत ने भी जताया विरोध

संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा जलवायु परिवर्तन की स्थिति का आकलन करने वाली वैज्ञानिक रिपोर्ट जारी करने की एक समयसीमा पर विभिन्न देशों की सरकारें एकमत नहीं हो पाई हैं

तुर्की के इस्तांबुल में आईपीसीसी वार्ता में मौजूद सूत्रों के अनुसार, भारत, चीन और सऊदी अरब ने इस बात का विरोध किया कि 2028 में अगले ग्लोबल स्टॉकटेक से पहले आईपीसीसी अपने मूल्यांकन जारी करे।

पिछले सप्ताह की बैठक में यूएनएफसीसीसी ने आधिकारिक तौर पर अनुरोध किया कि आईपीसीसी अपनी गतिविधियों को अगले ग्लोबल स्टॉकटेक की समयसीमा के अनुरूप संचालित करे। लेकिन इसका अर्थ होगा कि या तो आईपीसीसी का काम फास्ट-ट्रैक किया जाए या फिर उसके चक्र की अवधि सात साल से घटाकर पांच साल करनी होगी।

लेकिन भारत, चीन और सऊदी अरब के नेतृत्व में कुछ देशों ने तर्क दिया कि इससे वैज्ञानिक प्रक्रिया को ‘जल्दी में’ पूरा करना होगा और विकासशील देशों के पास उत्पादन की समीक्षा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं बचेगा। 

समयसीमा पर अंतिम निर्णय अब गर्मियों में होने वाली अगली बैठक तक स्थगित कर दिया गया है।

स्थाई होती जा रही हैं मानसून के कारण बढ़ने वाली खाद्य कीमतें

खाद्य मुद्रास्फीति, यानि फ़ूड इन्फ्लेशन को आम तौर पर मौद्रिक नीति के दायरे से बाहर माना जाता है, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर मानसून की विफलता के कारण खाद्य कीमतों पर लगातार असर पड़ता रहा, तो ब्याज दरों में बदलाव की जरूरत पड़ सकती है।

इकॉनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई के जनवरी बुलेटिन में केंद्रीय बैंक के अर्थशास्त्रियों ने लिखा है कि “यदि मौद्रिक नीति खाद्य कीमतों में होनेवाले बदलाव को नजरअंदाज करती है, तो मुद्रास्फीति अनियंत्रित हो सकती है”। हालांकि यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं।

जिस प्रकार जलवायु परिवर्तन का खाद्यान्न की कीमतों पर असर पड़ा है, उससे पता चलता है कि भारत में मानसून के कारण होने वाली खाद्य मुद्रास्फीति स्थाई होती जा रही है। कुल मुद्रास्फीति में फ़ूड इन्फ्लेशन का योगदान अप्रैल 2022 में 48% था जो नवंबर 2023 में बढ़कर 67% हो गया।

एक हालिया अध्ययन के अनुसार पिछले एक दशक में भारत में मानसून का पैटर्न तेजी से बदला है और अनियमित रहा है।

रिटायर हो रहे हैं अमेरिका, चीन के जलवायु दूत, क्लाइमेट वार्ता पर क्या होगा असर

जलवायु परिवर्तन वार्ता के सबसे बड़े मंच पर कई बरसों के साथी रहे दो शख्स एक साथ रिटायर हो रहे हैं। अमेरिका के जॉन कैरी और चीन के झी झेनहुआ। चीन और अमेरिका धुर विरोधी महाशक्तियां हैं लेकिन यही दुनिया के दो सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक भी हैं और दुनिया की दो सबसे बड़ी इकोनॉमी भी।

आज वर्ल्ड इकोनॉमी में एक तिहाई हिस्सा इन दो देशों का है और दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का 40% से अधिक यही दो देश करते हैं। ऐसे में दोनों देशों के वार्ताकारों का एक साथ रिटायर होना क्लाइमेट वार्ता को खासा प्रभावित करेगा।

झी ने जहां भारत और अन्य लोकतांत्रिक देशों के वार्ताकारों के साथ बड़ा ही सहज रिश्ता बनाये रखा वहीं अमेरिका के साथ कूटनीतिक रिश्तों में नोंकझोंक के बाद भी कैरी के साथ पुल बांधे रखा।  हाल में दुबई जलवायु परिवर्तन वार्ता में झी अपने नाती-पोतों को भी साथ लाए और उन्होंने कैरी के लिए ‘हैप्पी बर्थ डे’ गाया।

जहां चीन ने झी की जगह नये वार्ताकार की घोषणा कर दी है वहीं कैरी से कमान कौन संभालेगा यह अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों पर निर्भर करता है।

बिहार के सहरसा में एक्यूआई 421 पर पहुंच गया।

दिल्ली-एनसीआर में बिगड़ी हवा, लेकिन सहरसा समेत 26 शहरों में स्थिति जानलेवा

दिल्ली और एनसीआर में वायु गुणवत्ता की स्थिति ‘बेहद ख़राब’ बनी हुई है। मंगलवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 364 रहा। हालांकि एक्यूआई के ‘गंभीर’ स्थिति में पहुंचने की आशंका जताई जा रही थी। यदि यह सूचकांक 400 के ऊपर जाकर ‘गंभीर’ स्थिति में पहुंच जाता है तो दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) के चरण III के तहत सख्त प्रतिबंध लागू करने की आवश्यकता होगी।

सोमवार को केंद्र ने प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए ग्रैप-III के तहत सख्त उपाय लागू करने से परहेज किया

उधर दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों को पीछे छोड़ सहरसा में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 53 अंक बढ़कर 421 पर पहुंच गया है। सहरसा में प्रदूषण की स्थिति यह है कि वहां हालत गैस चैम्बर जैसे बन गए हैं। इसी तरह देश के 26 अन्य शहरों में भी स्थिति जानलेवा बनी हुई है।

आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम बांध में जल प्रदूषण के कारण मछलियां, सूअर मरे 

पिछले कुछ दिनों में आंध्र प्रदेश के करनूल जिले के श्रीशैलम जलाशय के करीब कृष्णा नदी में सैकड़ों मछलियां मरी हैं। प्रभावित मछुआरों द्वारा अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज कराने के बाद यह मामला प्रकाश में आया। श्रीशैलम बांध के सामने पुल के पास एक गेजिंग तालाब में बड़ी संख्या में मरी हुई मछलियां पाई गईं। इसके अलावा कुछ सूअर भी मृत पाए गए।

श्रीशैलम जलाशय के सामने के हिस्से में पानी के रंग में भी परिवर्तन दिखाई दिया। स्थानीय मछुआरे इन घटनाओं के लिए जल प्रदूषण को जिम्मेदार मानते हैं और उनका कहना है कि सूअरों की मौत मरी हुई मछलियां खाने या दूषित पानी पीने से हुई होगी। आस-पास के क्षेत्रों के निवासियों के स्वास्थ्य पर भी यह प्रदूषित पानी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

हालांकि श्रीशैलम के मत्स्य विकास अधिकारी ने कहा कि ऐसा ऑक्सीजन की कमी और पानी की सतह पर शैवाल के संचय के कारण हो सकता है, क्योंकि बांध में पानी नहीं बह रहा है। उन्होंने बताया कि ऐसी घटनाएं सर्दियों में अक्सर होती हैं।

बढ़ते मीथेन उत्सर्जन के बीच दुनिया का सबसे बड़ा क्रूज हुआ चालू

दुनिया का सबसे बड़ा क्रूज जहाज अपनी पहली यात्रा के लिए निकल चुका है। लेकिन पर्यावरण कार्यकर्ताओं को चिंता है कि लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) से चलने वाला यह जहाज और अन्य विशाल क्रूज लाइनर वायुमंडल में हानिकारक मीथेन उत्सर्जित करेंगे।

रॉयल कैरेबियन इंटरनेशनल का जहाज ‘आइकॉन ऑफ़ द सीज़’ मियामी से रवाना हुआ है। बीस डेकों वाला इस जहाज पर 8,000 यात्री सफर कर सकते हैं। यह जहाज एलएनजी पर चलता है, जो पारंपरिक मरीन ईंधन की तुलना में बेहतर है, लेकिन इस ईंधन से मीथेन का उत्सर्जन अधिक होता है।

क्लाइमेट समूहों का कहना है कि मीथेन उत्सर्जन के अल्पकालिक हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं और जलवायु के लिए यह जोखिम स्वीकार नहीं किया जा सकता। ग्लोबल वार्मिंग की बात करें तो दो दशकों कि अवधि में मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक हानिकारक है, जो दर्शाता है कि मीथेन उत्सर्जन में कटौती करना कितना महत्वपूर्ण है।

बायोमास ईंधन पर खाना पकाने से भारत में हर साल 6 लाख मौतें

भारत में 41 प्रतिशत लोग अभी भी खाना पकाने के लिए लकड़ी, गाय के गोबर या अन्य बायोमास ईंधन का उपयोग करते हैं। इसके परिणामस्वरूप हर साल पर्यावरण में लगभग 340 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो भारत के ग्रीनहाउस उत्सर्जन का लगभग 13 प्रतिशत है, एक नई रिपोर्ट में कहा गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी — वैश्विक स्तर पर 2.4 अरब लोग (भारत में 500 मिलियन लोग) — के पास अभी भी खाना पकाने के लिए साफ ईंधन उपलब्ध नहीं है। इससे अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण को बेहिसाब नुकसान होता है।

घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हर साल वैश्विक स्तर पर लगभग तीस लाख लोग (भारत में छह लाख) समय से पहले मर जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये मौतें ज्यादातर लकड़ी पर खाना पकाने के कारण होती हैं।

रूफटॉप सोलर से खपत से अधिक उत्पादन करने पर उपभोक्ता को भुगतान भी किया जाएगा।

लगाएं रूफटॉप सोलर, बिजली का बिल होगा जीरो: दिल्ली सरकार की नई नीति

दिल्ली सरकार की नई सौर नीति के अनुसार, रूफटॉप सोलर इंस्टॉल करने पर घरेलू उपभोक्ताओं को कोई बिल नहीं देना होगा, वहीं औद्योगिक और व्यावसायिक उपभोक्ताओं के बिल आधे हो जाएंगे। सोमवार को दिल्ली सौर नीति 2024 जारी करते हुए मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने यह दावा किया।

नई नीति के अनुसार, रूफटॉप सौर पैनल लगा कर एक आवासीय उपभोक्ता प्रति माह 700-900 रुपए कमा सकता है क्योंकि सरकार ने जेनेरशन-बेस्ड इंसेंटिव (जीबीआई) देने का भी प्रावधान रखा है।

नई सौर नीति के बारे में बताते हुए केजरीवाल ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति 400 यूनिट की खपत करता है और 225 यूनिट सौर ऊर्जा से पैदा करता है, तो उसे शून्य राशि का बिल मिलेगा क्योंकि उसकी खपत 200 यूनिट से कम होगी जो पूरी तरह मुफ्त है। दिल्ली में अभी 200 यूनिट बिजली मुफ्त है, और उसके ऊपर 400 यूनिट तक आधा बिल देना होता है।

दिल्ली सरकार के अनुसार, 70% लोग 200 यूनिट से कम की खपत करते हैं। और रूफटॉप सोलर लगवा कर इस सब्सिडी के तहत न आनेवालों के बिल भी माफ़ हो सकते हैं। यही नहीं, खपत से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन करने पर डिस्कॉम द्वारा साल के अंत में उन्हें अतिरिक्त यूनिटों के लिए भुगतान भी किया जाएगा।

2025 तक कोयले से अधिक होगा अक्षय ऊर्जा का प्रयोग: आईईए

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में बिजली की मांग के कारण अगले तीन वर्षों में उत्पादन की दर तेजी से बढ़ेगी — लेकिन अतिरिक्त बिजली का उत्पादन कम उत्सर्जन करने वाले स्रोतों से किया जाएगा।

आईईए की ‘इलेक्ट्रिसिटी 2024’ रिपोर्ट का अनुमान है कि 2025 की शुरुआत तक नवीकरणीय ऊर्जा वैश्विक कोयला उपयोग से आगे निकल जाएगी। दुनिया के कुल बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा का हिस्सा एक तिहाई से अधिक होगा। साथ ही, 2025 तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने का अनुमान है।

रिपोर्ट का अनुमान है कि 2026 तक दुनिया के बिजली उत्पादन में नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा का हिस्सा लगभग आधा होगा। 2023 में इनका कुल हिस्सा 40 प्रतिशत से कम था।

भारत के ऊर्जा मिश्रण में साफ़ ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ी

भारत में नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति बढ़ रही है और ऊर्जा मिश्रण में इसकी हिस्सेदारी भी तेजी से बढ़ रही है। द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) के प्रमुख प्रकाशन, टेरी एनर्जी एंड एनवायरनमेंट डेटा डायरी एंड ईयरबुक (टेडी) के 38वें संस्करण में कहा गया है कि देश के ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा (पवन, सौर और अन्य) की हिस्सेदारी 2022 में 27.5% से बढ़कर 2023 में 30.1% हो गई।

जबकि कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की हिस्सेदारी 51.1% से घटकर 49.3% हो गई। टेरी की इस डेटा बुक में विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी स्रोतों से जानकारी ली जाती है।

2022 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) में प्रस्तुत अपने संशोधित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्यों में भारत ने गैर-जीवाश्म स्रोतों से 50% ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, भारत की गैर-जीवाश्म (पनबिजली और परमाणु सहित) स्थापित क्षमता पहले से ही कुल स्थापित क्षमता का लगभग 43% है।

चीन की जीडीपी वृद्धि में साफ ऊर्जा का योगदान सबसे अधिक

चीन के साफ ऊर्जा सेक्टर ने 2023 में इसकी आर्थिक वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान दिया। पिछले साल चीन के आर्थिक विस्तार में नवीकरणीय सेक्टर का योगदान 40 प्रतिशत था।  

फिनलैंड के सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सेरा) द्वारा किए गए इस विश्लेषण से पता चलता है कि नवीकरणीय ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर में चीन का निवेश कितना अधिक है। पिछले साल यह निवेश कुल 890 बिलियन डॉलर था, जो 2023 में जीवाश्म ईंधन आपूर्ति में वैश्विक निवेश के लगभग बराबर है।

स्वच्छ ऊर्जा, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, परमाणु ऊर्जा, बिजली ग्रिड, ऊर्जा भंडारण, इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) और रेलवे शामिल हैं, 2023 में चीन के सकल घरेलू उत्पाद का 9.0% था। पिछले वर्ष इसकी हिस्सेदारी 7.2% थी।

फेम-III में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने पर भी ध्यान दिया जाएगा।

बजट में ईवी के लिए मिल सकता है 12,000 करोड़ का समर्थन

अंतरिम बजट 2024 में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लिए 12,000 करोड़ रुपए तक के पैकेज का ऐलान कर सकती हैं

इसके पहले फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) II योजना के अंतर्गत 10,000 करोड़ रुपए का समर्थन दिया गया था। यह योजना इस साल 31 मार्च को समाप्त हो रही है। इस अंतरिम बजट में फेम-III के तहत दी जाने वाली इस नई सब्सिडी का कार्यकाल दो साल का होगा।

हालांकि, सूत्रों के अनुसार नई योजना के तहत प्रति वाहन सब्सिडी फेम-II की तुलना में कम हो सकती है।

इस योजना में इलेक्ट्रिक बसों को समर्थन दिया जाएगा। फेम-III के तहत ई-बसों के लिए आवंटन बढ़ाकर 4,500 करोड़ रुपए किए जाने की संभावना है, फेम-II में यह 3,209 करोड़ रुपए था।

इसके अलावा ईवी इकोसिस्टम को बेहतर बनाने, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने और बैटरी की कीमतें घटाने पर भी ध्यान दिया जाएगा

पुराने वाहनों को ईवी में बदलने की पहल का समर्थन कर सकती है सरकार

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार पुराने वाहनों को स्क्रैप करने के बजाय उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने के लिए इंसेंटिव या समर्थन पर विचार कर सकती है। मैनेजमेंट कंसल्टेंसी फर्म प्राइमस पार्टनर्स और ईटीबी (यूरोपीय व्यापार और प्रौद्योगिकी केंद्र) की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, अंतर्दहन इंजन (आईसीई) वाहनों को रेट्रोफिटिंग के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करना एक बड़ी चुनौती है।

हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी समर्थन और उद्योगों में आपसी सहयोग और सार्वजनिक भागीदारी से इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है। भारत की वाहन स्क्रैपेज नीति का उद्देश्य पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाना और उनके स्थान पर नए और अधिक पर्यावरण-अनुकूल वाहनों को लाना है।

यह नीति केवल वाहनों की आयु पर ही नहीं बल्कि उनकी फिटनेस और उत्सर्जन स्तर सहित विभिन्न कारकों पर केंद्रित है।

नई तकनीकों से टेस्ला का मुकाबला कर रहे हैं चीनी ईवी निर्माता

चीन के इलेक्ट्रिक कार मार्केट में कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण स्थानीय वाहन निर्माता फैंसी तकनीक वाले वाहन लेकर आ रहे हैं। ऐसी तकनीकें जो टेस्ला ने अभी तक चीन में बिकने वाली अपनी कारों में इस्तेमाल नहीं की हैं। और कई मामलों में चीनी निर्माता यह उन्नत तकनीकें टेस्ला से कम कीमतों पर भी उपलब्ध करा रहे हैं।

अब कंपनियां केवल ड्राइविंग रेंज पर ही प्रतिस्पर्धा नहीं कर रही हैं। बल्कि वह नए मॉडलों में कई तरह की सुविधाएं दे रही हैं: जैसे इन-कार प्रोजेक्टर, रेफ्रिजरेटर और ड्राइवर-असिस्ट।

चीन में टेस्ला की कारें इन एक्सेसरीज़ के साथ उपलब्ध नहीं हैं, और अभी यह केवल ड्राइवर-असिस्ट तकनीक के सीमित संस्करण के साथ आती हैं।

कोयले से गैस की योजना और कोयला बिजलीघरों के निर्माण के लिये कोल इंडिया को हरी झंडी।

कोयले से गैस उत्पादन; 8,500 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट को मंज़ूरी

बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट ने कोल-गैसीकरण के लिए 8,500 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन योजना को मंज़ूरी दे दी। इस टेक्नोलॉजी को सफल प्रयोग से प्राकृतिक गैस, अमोनिया और मेथनॉल के आयात पर भारत की निर्भरता घटेगी। सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक 100 मिलियन टन कोयले का गैसीकरण किया जाए।

कोयला-गैसीकरण की प्रक्रिया में कोयले पर नियंत्रित मात्रा में भाप, कार्बन डाइ ऑक्साइड, हवा और ऑक्सीजन की प्रतिक्रिया द्वारा लिक्विड फ्यूल बनाया जाता है जिसे सिन्गैस या सिंथिसिस गैस कहा जाता है।  इसका प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता है और इससे मेथनॉल का उत्पादन भी होता है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और गैस अथॉरिटी (गेल) के साझा उपक्रम द्वारा यह प्रोजेक्ट शुरू होगा। कोयले से अमोनियम नाइट्रेट के उत्पादन के लिये कोल इंडिया बीएचईएल के साथ मिलकर प्लांट लगाएगा। 

कोल इंडिया के दो नए बिजलीघर मध्यप्रदेश और ओडिशा में 

बिजली उत्पादन में कोल इंडिया के प्रस्ताव को कैबिनेट ने हरी झंडी दे दी। कोल इंडिया 22,000 करोड़ रूपये के निवेश द्वारा अपनी सहयोगी कंपनियों के साथ यह पावर प्लांट लगाएगी जो खदानों से सटे (कोलमाइन पिटहेड पर) होंगे।  इनमें 660 मेगावॉट का एक प्लांट मध्यप्रदेश के अमरकंटक में होगा जो साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड (एसईसीएल) और मध्य प्रदेश पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड के बीच संयुक्त उपक्रम (जेवी) होगा। कैबिनेट ने इसके लिये 823 करोड़ रुपये के बाज़ार निवेश की मंज़ूरी दी है। इसके अलावा महानदी कोलफील्ड लिमिटेड (एमसीएल) भी  1600 मेगावॉट का प्लांट ओडिशा के सिन्धुदुर्ग में लगाया जायेगा। जिसके लिये कैबिनेट ने 4,784 करोड़ के बाज़ार निवेश को मंज़ूरी दी है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक बिजली की बढ़ती खपत को देखते हुए सरकार ने कोल इंडिया के इन बिजलीघरों को अनुमति दी है। आईसीआरए में उपाध्यक्ष विक्रम वी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, “सरकार का मानना है कि भारत को 2030 तक करीब 80 गीगावॉट अतिरिक्त तापबिजली की ज़रूरत होगी और अभी निर्माणाधीन थर्मल प्लांट 30 गीगावॉट की ज़रूरतों को पूरा करेंगे और बाकी 7 गीगावॉट प्राइवेट सेक्टर के प्लांट से आने की संभावना है। इसलिए इस अतिरिक्त क्षमता के लिए परियोजनाओं को अभी बनाने और शुरुआत करने की ज़रूरत है।”

यूरोपियन यूनियन का जीवाश्म ईंधन CO2 उत्सर्जन 60 साल के सबसे कम स्तर पर 

यूरोपियन यूनियन के जीवाश्म ईंधन से CO2 उत्सर्जन में पिछले साल (2023 में) 2022 के मुकाबले 8% की गिरावट हुई। पिछले 60 साल में यूरोपीयन यूनियन के यह उत्सर्जन सबसे कम स्तर पर आ गए। कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन में  साल 2020 में हुई रिकॉड गिरावट (जब कोरोना महामारी के बाद कारखाने और उड़ाने बन्द कर दी गई थीं) के बाद हुई यह सबसे तेज़ गिरावट है। 

सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषण से यह बात पता चली है। विश्लेषकों का कहना है कि इमीशन 60 के दशक में पहुंच गये हैं लेकिन अभी भी इनके कम होने की रफ्तार बहुत धीमी है। चूंकि इमीशन में गिरावट के बावजूद अर्थव्यवस्था 3 गुना हो गई है तो इससे यह उम्मीद है कि आर्थिक तरक्की से समझौता किए बिना क्लाइमेट चेंज से लड़ा जा सकता है।