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उत्तर भारत में भारी बारिश से 7 की मौत, दिल्ली में 200 उड़ानें विलंबित
नई दिल्ली में शुक्रवार सुबह भारी बारिश और तेज हवाओं के कारण नजफगढ़ में एक घर गिर गया, जिसमें तीन बच्चों और एक महिला की मौत हो गई। बारिश के कारण शहर में कई स्थानों पर जलजमाव हो गया, जबकि तेज हवा से कई पेड़ उखड़ गए और ट्रैफिक बाधित हो गया। वहीं इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 200 से अधिक उड़ानें लेट हुईं, और तीन को डायवर्ट किया गया।
मौसम विभाग ने रेड अलर्ट जारी कर भारी बारिश और गरज के साथ 80 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलने की चेतावनी दी है। लोगों से आग्रह किया गया है कि वे घर के अंदर रहें और सावधानी बरतें। कई इलाकों में पेड़ों से उखाड़ने से बिजली आपूर्ति भी बाधित हुई।
उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में भी बिजली गिरने से कम से कम तीन लोग मारे गए और अलग-अलग घटनाओं में कई घायल हो गए।
तापमान 42-45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा, भारत के कई हिस्सों में लू की चेतावनी
इससे पहले भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने देश के कई हिस्सों में लू की वजह से ऑरेंज और येलो अलर्ट जारी किया है। बीते दिनों कई इलाकों में तापमान 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया है। शनिवार को कानपुर में अधिकतम तापमान 44.4 डिग्री सेल्सियस, प्रयागराज में 44.8 डिग्री सेल्सियस, सुल्तानपुर में 44.8 डिग्री सेल्सियस, वाराणसी में 44.2 डिग्री सेल्सियस, गया में 44.6 डिग्री सेल्सियस, झारसुगुड़ा में 44.7 डिग्री सेल्सियस और दिल्ली रिज में 43.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
मौसम विभाग के मुताबिक, “जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, पूर्वोत्तर और पश्चिम राजस्थान, उत्तरी मध्य प्रदेश, विदर्भ, निकटवर्ती मराठवाड़ा, पूर्वोत्तर झारखंड, पश्चिम गंगीय पश्चिम बंगाल, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम में कई स्थानों पर अधिकतम तापमान सामान्य से 3-5 डिग्री सेल्सियस अधिक है।”
आम तौर पर अप्रैल से जून के बीच चार से सात दिन लू चलती है, लेकिन इस साल छह से 10 दिन लू चल सकती है, आईएमडी ने 1 अप्रैल को पूर्वानुमान लगाया था। अप्रैल की शुरुआत से ही भारत भर के कई स्टेशनों ने लू की स्थिति दर्ज की है।
जम्मू-कश्मीर के रामबन में भीषण बाढ़ से NH-44 5 जगहों पर बह गया; तीन लोगों की मौत
20 अप्रैल, 2025 को जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में भारी बाढ़ और भूस्खलन ने तबाही मचाई, जिसमें सेरी बागना गांव के दो बच्चों और एक बुजुर्ग की मौत हो गई। रामबन शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर धरमकुंड गांव में भी बादल फटा। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 35 घर नष्ट हो गए, जिनमें से 10 बह गए।
बाढ़ ने NH-44 के जम्मू-रामबन खंड के 4-5 किलोमीटर हिस्से को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया। राजमार्ग पांच स्थानों पर क्षतिग्रस्त हो गया, जिससे दर्जनों यात्री वाहन, ट्रक और तेल टैंकर फंस गए। कई वाहन भूस्खलन में दब गए।
भारत और पाकिस्तान में बढ़ती हीटवेव के पीछे है मानव जनित जलवायु परिवर्तन प्रभाव
एक नये अध्ययन से पता चला है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हीटवेव के पीछे प्राथमिक रूप से मानव जनित जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार है। क्लाइमामीटर का नया विश्लेषण बताता है कि यह मानव जनित क्लाइमेट चेंज मौसमी स्थितियों को तीव्र बना रहा है जिस कारण अत्यधिक हीटवेव की घटनायें हो रही हैं। अध्ययन में पाया गया कि मौसमी घटनाओं के कारण अप्रैल में हीटवेव पिछली सदी के दूसरे हाफ के मुकाबले 4 डिग्री अधिक तापमान वाली रही। इस स्टडी में 1950 से अब तक के आंकड़ों का अध्ययन किया गया। क्लाइमा मीटर का विश्लेषण कॉपरनिक्स के ERA5 डाटा पर आधारित है और इस क्षेत्र के सर्फेस प्रेशर, हवा की रफ्तार, तापमान के पैटर्न में बड़ी विसंगति दिखाती है क्योंकि पिछले दशकों के मुकाबले अब स्थितियां अधिक नमी वाली कम हवादार और ठंडी हैं। अध्ययन कहता है कि बारिश और हवा की रफ्तार में बदलाव मानव जनित जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है।
गंगा बेसिन में 23 वर्षों में सबसे कम बर्फबारी दर्ज की गई: रिपोर्ट
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के अनुसार, पिछले दो दशकों में 2024 में गंगा बेसिन में बर्फ सबसे तेज़ गति से पिघली। बेसिन में बर्फ का जमाव सामान्य से 24.1% कम था, जो 23 वर्षों में सबसे कम है। इससे गर्मियों के प्रारंभिक दिनों में नदी के प्रवाह में कमी आने और गर्मी के तनाव और पानी की कमी बढ़ने की आशंका है।
उधर डाउन टु अर्थ के मुताबिक सिंधु बेसिन में भी बर्फ के जमाव में तेज गिरावट देखी गई, जो 2020 में +19.5% से 2025 में -27.9% हो गई। मेकांग (-51.9%), सालवीन (-48.3%), तिब्बती पठार (-29.1%), ब्रह्मपुत्र (-27.9%), और यांग्त्ज़ी (-26.3%) सहित अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई।
घातक बाढ़, तूफ़ान और गर्म हवाएँ: यूरोप को 2024 में जलवायु परिवर्तन के ‘गंभीर प्रभावों’ का सामना करना पड़ेगा
यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (C3S) के अनुसार, पिछले साल यूरोप में बाढ़ और तूफानों ने 413,000 लोगों को प्रभावित किया। यूरोन्यूज और द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, महाद्वीप ने अपना सबसे गर्म साल भी दर्ज किया, जिसमें 45% दिन औसत से बहुत ज़्यादा गर्म रहे और 12% दिन गर्मी के नए रिकॉर्ड बना रहे थे।
दक्षिण-पूर्वी यूरोप ने जुलाई 2024 में अपनी सबसे लंबी रिकॉर्ड की गई गर्मी झेली, जो 13 दिनों तक चली और जिसके कारण जंगल में आग लग गई, जिससे 42,000 लोग प्रभावित हुए। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी यूरोप ने 1950 के बाद से अपने सबसे ज़्यादा बारिश वाले वर्षों में से एक देखा, जिसमें बाढ़ ने इसके 30% नदी नेटवर्क को प्रभावित किया और €18 बिलियन से ज़्यादा का नुकसान हुआ।
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कनाडा की कंपनी ने यूएन की उपेक्षा कर अमेरिका से मांगी महासागरों में खनन की अनुमति
एक कनाडाई कंपनी की अमेरिकी सब्सिडरी ने डीप सीबेड माइनिंग की अनुमति के लिए अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए) को आवेदन भेजा है। यह पहली बार है कि अंतर्राष्ट्रीय समुद्र तल में खनन और दोहन का प्रबंधन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (आईएसए) की उपेक्षा कर कोई ऐसा व्यावसायिक आवेदन किया गया है। आईएसए ने साफ कर दिया है कि उसकी अनुमति के बिना माइनिंग करना अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन होगा। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि यह आवेदन एक जटिल कानूनी विवाद को जन्म देगा।
गहरे समुद्र में खनन को नियंत्रित करने के लिए अभी कोई नियम नहीं बने हैं, और वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इससे समुद्री जीवों और जलवायु संतुलन को नुकसान पहुंचेगा। अमेरिका आईएसए का हिस्सा नहीं है, और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में मंजूरी प्रक्रिया को तेज करने का आदेश दिया था। क्लाइमेट एक्टिविस्ट और दूसरे कई देश इस कदम को खतरनाक और अवैध बताकर इसका विरोध कर रहे हैं।
जलवायु प्रतिज्ञाओं पर अमल करने में विफल एशियाई देश: रिपोर्ट
क्लाइमेट एनालिटिक्स की एक नई रिपोर्ट से पता चलता है कि आठ एशियाई देश अपनी स्वैच्छिक अंतर्राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं पर मजबूत कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं।
यह अध्ययन जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और वियतनाम पर केंद्रित है — यह सभी देश चार प्रमुख कॉप जलवायु प्रतिज्ञाओं में सम्मलित हैं। इन प्रतिज्ञाओं में कोयले को फेजआउट करना, नवीकरण और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना और मीथेन उत्सर्जन में कटौती आदि शामिल हैं। इन प्रतिज्ञाओं के बावजूद, कोयले का उपयोग अधिक हो रहा है और कई देशों को कोल पावर का विस्तार कर रहे हैं। अक्षय ऊर्जा की प्रगति धीमी है, जिसका मुख्य कारण है पुरानी बिजली ग्रिड और नियामक बाधाएं।
केवल जापान ने ऊर्जा दक्षता में उल्लेखनीय सुधार दिखाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि यह प्रतिज्ञाएं स्वैच्छिक हैं और इन्हें बाध्यकारी नहीं बनाया जा सकता है, इसलिए उनका प्रभाव कमजोर होता है।
सेबी ने ईएसजी रेटिंग वापस लेने के नए मानदंड जारी किए
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कंपनियों की ईएसजी (एनवायरमेंटल, सोशल एंड गवर्नेंस) रेटिंग वापस लेने के नए नियम जारी किए हैं। ईएसजी रेटिंग एक ऐसा सूचकांक है जिसके माध्यम से पता लगाया जा सकता है कि कोई कंपनी पर्यावरण, सामाजिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में कितना अच्छा प्रदर्शन कर रही है और जोखिमों का प्रबंधन कितनी अच्छी तरह से करती हैं।
यदि कोई कंपनी सस्टेनेबिलिटी रिपोर्ट नहीं देती है या फिर कोई रेटिंग की सदस्यता नहीं लेता है, तो रेटिंग को हटाया जा सकता है। यदि सेबी ने किसी फर्म को तीन साल या बॉन्ड की वैधता की अवधि के लिए रेट किया है, तो भी रेटिंग वापस ली जा सकती है। सेबी ईएसजी रिपोर्टिंग नियमों की समीक्षा कर रही है क्योंकि कंपनियों ने शिकायत की थी कि वर्तमान नियम बहुत सख्त हैं।
भारत ने स्थगित किया सिंधु जल समझौता, हो सकते हैं दूरगामी परिणाम
पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ 1960 में हुआ सिंधु जल समझौता स्थगित कर दिया है। विशेषज्ञों द्वारा यह आकलन किया जा रहा है कि इस निर्णय के क्या परिणाम हो सकते हैं। समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु बेसिन की छह नदियों का बंटवारा हुआ था।
आज भारत पूर्वी हिस्से की अपने अधिकार वाली नदियों का 90 प्रतिशत पानी इस्तेमाल कर रहा है और उन पर कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट भारत बनाए जा चुके हैं वहीं पश्चिमी नदियों पर उसकी उसकी कुछ जलविद्युत परियोजनायें चल या बन रही हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि भारत पश्चिमी नदियों (चिनाब, झेलम और सिन्धु) पर अपनी जल संग्रह के अधिकार का पूरा दोहन नहीं कर पाया है और उसकी जलविद्युत परियोजनाओं पर भी पाकिस्तान ने कई बार सवाल खड़े किए हैं। कम पानी वाले सीजन में वूलर झील को नेविगेशनल बनाने के लिए भारत ने जो तुलबुल प्रोजेक्ट शुरू किया, वह पाकिस्तान की आपत्ति के कारण लंबे समय से अटका पड़ा है।
जानकार बताते हैं कि सिंधु के पानी को लेकर कश्मीरी अवाम के दिल में नाइंसाफी की भावना रही है क्योंकि उन्हें लगता है पश्चिमी नदियों का अधिक हिस्सा पाकिस्तान को गया और भारत के अपने राज्य कश्मीर की जरूरतों को अनदेखा किया गया। इस लिहाज से भारत पश्चिमी नदियों के दोहन के विकल्प पर गंभीरता से विचार कर सकता है।
संधि को स्थगित कर भारत जल संग्रह क्षमता को असीमित करने के साथ उन प्रोजेक्ट्स को शुरू कर सकता है जो पाकिस्तान की आपत्ति से रुके हैं जैसे तुलबुल प्रोजेक्ट। वर्तमान में झेलम की सहायक नदी पर किशनगंगा और चिनाब पर बन रहे रातले प्रोजेक्ट के निरीक्षण के पाकिस्तान के अधिकार खत्म कर सकता है और उनके अधिकारियों को वहां मुआयने के लिए जाने से रोक सकता है।
इसके अलावा भारत पाकिस्तान के साथ इन नदियों के लेकर किसी भी तरह के डाटा को साझा करना बंद कर सकता है। इससे पाकिस्तान के लिए कृषि सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण की प्लानिंग कठिन हो जाएगी।
जलवायु परिवर्तन से बढ़ सकती है क्रेडिट डिफ़ॉल्ट की संभावना: आरबीआई डीजी
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कर्ज लेने की लागत और संपत्ति का नुकसान बढ़ेगा, जिससे कर्ज नहीं चुका पाने के मामले भी बढ़ सकते हैं। क्रेडिट समिट 2025 में बोलते हुए उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन वित्तीय संस्थानों को मुख्य रूप से इसी तरह प्रभावित करता है, क्योंकि कर्ज लेने वाले उसे चुका पाने में विफल रहते हैं।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से संपत्ति की क्षति, फसल हानि, बेरोजगारी और आजीविका की समस्याएं खड़ी होती हैं। ग्रीन टेक्नोलॉजी की ओर ट्रांज़िशन में भी क्रेडिट जोखिम रहता है क्योंकि कई तकनीकें अभी भी विकसित हो रही हैं। उन्होंने कहा कि ग्रीन फाइनेंस को बढ़ावा देते समय नियामकों को इन जोखिमों के प्रबंधन पर भी ध्यान देना चाहिए।
भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करते हुए विकास दर बनाए रखना बड़ी चुनौती है। राव ने कहा कि क्लाइमेट फाइनेंस को तकनीकी विशेषज्ञता और क्वालिटी डेटा की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जलवायु विज्ञान और वित्तीय मॉडलिंग के लिए अलग-अलग कौशल की आवश्यकता है,और जलवायु वैज्ञानिकों और वित्तीय विशेषज्ञों के बीच सहयोग जरूरी है।
गर्मी के चलते कर्नाटक सरकार ने मनरेगा मजदूरों को काम में दी छूट
कर्नाटक सरकार ने अप्रैल और मई के लिए कलबुर्गी और बेलगावी डिवीजनों में महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) मजदूरों के लिए काम में 30 प्रतिशत की रियायत देने की घोषणा की है। इसका मतलब है कि मजदूर 30% कम काम करके भी पूरी मजदूरी प्राप्त करते हैं। इन क्षेत्रों में अत्यधिक गर्मी की स्थिति के कारण यह निर्णय लिया गया, जिससे मजदूरों के लिए पूरे समय काम करना मुश्किल हो गया है। इस अस्थायी राहत से हजारों ग्रामीण मजदूरों को भीषण गर्मी से निपटने में मदद मिलेगी। सरकार स्थिति पर नज़र रखेगी और जरूरत पड़ने पर आगे का निर्णय करेगी।
इस साल दिल्ली ने तीन वर्षों में सबसे गर्म और सबसे प्रदूषित अप्रैल का अनुभव किया। अप्रैल 2025 में औसत अधिकतम तापमान 39 डिग्री सेल्सियस रहा, जो सामान्य से 2.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर था। साथ ही 7 से 9 अप्रैल तक लगातार तीन दिन हीटवेव चली। वहीं बारिश भी कम हुई, सामान्य 16.3 मिमी के मुकाबले केवल 0.7 मिमी वर्षा दर्ज की गई।
बारिश की कमी और शुष्क हवाओं के चलते दिल्ली में वायु गुणवत्ता खराब हो गई; औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यू आई) 211 था, जो 2022 के बाद से सबसे अधिक था। इस साल अप्रैल में 20 ‘खराब’ वायु गुणवत्ता वाले दिन थे, जबकि अप्रैल 2024 में सात ऐसे दिन दर्ज किए गए थे। हालांकि मई के शुरुआती दिनों में बारिश और तेज हवाओं के कारण थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन फिलहाल दिल्ली में येलो अलर्ट जारी है।
सभी प्रमुख महानगरों में पीएम10 तय सीमा से अधिक: शोध
दिल्ली-स्थित क्लाइमेट-टेक स्टार्टअप ‘रेस्पाइर लिविंग साइंसेज’ ने एक अध्ययन में खुलासा किया है कि भारतीय शहरों में हवा किस कदर जहरीली हो चुकी है। वायु गुणवत्ता को लेकर किए इस चार-वर्षीय अध्ययन से पता चला है कि मॉनिटर किए गए सभी 11 महानगरों में पीएम10 का स्तर 2021 से 2024 के बीच लगातार राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक था। हालांकि इस दौरान कई नीतिगत प्रयास किए गए, इसके बावजूद प्रदूषण का स्तर लगातार अधिक बना रहा।
प्रदूषण में मौजूद महीन कणों को पीएम10 कहा जाता है। यह ऐसे कण होते हैं जिनका आकार 10 माइक्रोमीटर से बड़ा नहीं होता। ये कण हवा में आसानी से घुल जाते हैं और सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इस दौरान उत्तर भारत की स्थिति सबसे गंभीर पाई गई, जहां दिल्ली, पटना, लखनऊ और चंडीगढ़ जैसे शहरों में पीएम10 का स्तर विशेष रूप से बेहद खतरनाक रहा। हैरानी की बात है कि पारम्परिक रूप से बेहतर माने जाने वाले शहर भी मानकों को पूरा करने में विफल रहे।
कृत्रिम प्रकाश से होनेवाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत में कोई नियम नहीं: सीपीसीबी
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) में एक सुनवाई के दौरान बताया कि भारत में कृत्रिम रोशनी से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। यह मामला पंचतत्त्व फाउंडेशन ने दायर किया गया था, जिसने एनजीटी के समक्ष ऐसे अध्ययन प्रस्तुत किए जिनमें कहा गया था कि रात में कृत्रिम रौशनी से पौधों, जानवरों और मनुष्यों की स्लीप साइकिल को नुकसान पहुंचता है।
सीपीसीबी ने स्वीकार किया कि वर्तमान कानून वायु, जल और अपशिष्ट प्रदूषण से संबंधित हैं, लेकिन कृत्रिम रोशनी से होने वाले प्रदूषण को लेकर कोई कानून नहीं है। जुलाई 2023 में एनजीटी ने कहा था कि कृत्रिम रोशनी से होनेवाले प्रदूषण के सभी आयामों को समझने के लिए विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है। मामले में अब संबंधित सरकारी मंत्रालयों की प्रतिक्रियाओं का इंतजार है।
निर्माण स्थलों पर प्रदूषण संकेतक लगाने के लिए हाई कोर्ट ने बीएमसी को दिए 6 सप्ताह
बॉम्बे हाई कोर्ट ने बृहन्मुम्बई महानगरपालिका (बीएमसी) को सक्रिय निर्माण स्थलों पर प्रदूषण संकेतक स्थापित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया है। ऐसा नहीं करने पर अदालत ने सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।
इससे पहले, कोर्ट ने फरवरी तक ऐसा करने का आदेश दिया था, लेकिन अधिकांश निर्माण स्थलों पर अभी भी यह उपकरण नहीं लगे हैं। बीएमसी ने कहा कि वह इस दिशा में कदम उठा रही है और सेंट्रल मॉनिटरिंग के लिए आईआईटी विशेषज्ञों से परामर्श कर रही है। अदालत ने जोर दिया कि आदेशों के अनुपालन में कोई देरी नहीं होनी चाहिए।
भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है। हालांकि, हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि यह आवश्यकता से लगभग 12% कम हो सकता है। आर्थिक विकास, बढ़ती गर्मी और इलेक्ट्रिक वाहनों के कारण बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है।
भारत में वार्षिक बिजली की मांग 2030 तक दोगुनी हो सकती है, विशेष रूप से एयर कंडीशनर के बढ़ते उपयोग, इलेक्ट्रिक वाहन एडॉप्शन और औद्योगिक विकास के कारण। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत को 2030 अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए 569-640 गीगावाट अक्षय ऊर्जा की आवश्यकता होगी, जो कि वर्तमान लक्ष्य से 12% -28% अधिक क्षमता है।
सौर और पवन ऊर्जा की परिवर्तनशीलता, ग्रिड स्थिरता की चुनौतियों और सौर ऊर्जा पर हद से अधिक निर्भरता की समस्याओं से भी विशेषज्ञ आगाह करते हैं।
भविष्य में ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत को अपने ऊर्जा मिश्रण में विविधता लानी होगी, ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना होगा और एनर्जी स्टोरेज सिस्टम में सुधार करना होगा। इन उपायों के बिना, भारत को ऊर्जा की मांग और आपूर्ति में अंतर को पाटने के लिए जीवाश्म ईंधन पर निर्भर रहना होगा।
आईएसटीएस छूट की समाप्ति से खटाई में पड़ सकता है भारत का अक्षय ऊर्जा लक्ष्य
भारत की अक्षय ऊर्जा कंपनियों ने केंद्र सरकार से इंटरस्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम (आईएसटीएस) शुल्क में छूट की अवधि बढ़ाने की मांग की है। वर्तमान में यह छूट 30 जून 2025 को समाप्त हो रही है। आईएसटीएस शुल्क एक राज्य से दूसरे राज्य में पावर ग्रिड के माध्यम बिजली भेजने पर लागू होते हैं।
शुल्क में छूट से वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोगकर्ताओं को कम लागत पर नवीकरणीय बिजली खरीदने में आसानी होती है। इससे बड़े उद्योगों के लिए नवीकरणीय ऊर्जा अधिक आकर्षक और सस्ती होती है। इसलिए यह 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट करने के भारत के लक्ष्य का भी समर्थन करती है। छूट की समाप्ति पर नवीकरणीय बिजली उल्लेखनीय रूप से महंगी हो जाएगी और परियोजनाओं को इसका लाभ नहीं मिलेगा। मेरकॉम का कहना है इससे भारत के 500 गीगावाट लक्ष्य की प्राप्ति में देरी हो सकती है।
एशियाई देशों से निर्यातित सौर पैनलों पर 3,521% तक टैरिफ लगा सकता है अमेरिका
अमेरिका कंबोडिया, थाईलैंड, मलेशिया और वियतनाम जैसे देशों से सौर पैनलों के आयात पर 3,521% तक टैरिफ लगा सकता है। हाल ही में अमेरिकी प्रशासन को शिकायतें मिली थीं कि चीन इन देशों के ज़रिए अमेरिका में सस्ते सौर पैनलों का निर्यात कर रहा है और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ से बच रहा है।
इन शिकायतों पर अमेरिका ने एक जांच भी की थी जिसके बाद यह कदम उठाने की योजना बनाई गई है। इस मामले में अंतिम निर्णय जून में लिए जाने की उम्मीद है। अलग-अलग देशों और कंपनियों पर टैरिफ अलग-अलग हो सकते हैं। कंबोडिया के कुछ सौर उपकरण निर्यातकों को 3,521 प्रतिशत के उच्चतम शुल्क का सामना करना पड़ सकता है, वहीं चीनी कंपनी जिंको सोलर द्वारा मलेशिया में बने उत्पादों पर सबसे कम 41% टैरिफ लगाया जा सकता है।
44 शहरों में ईवी ट्रांज़िशन से बचेंगे लगभग 10 लाख करोड़ रुपए: टेरी
द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट (टेरी) के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि 44 भारतीय शहरों में सभी पुराने वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवीएस) में बदलने से 2035 तक रोजाना 11.5 टन पीएम2.5 उत्सर्जन कम किया जा सकता है। इससे ग्रीनहाउस गैसों में 61 मिलियन टन की कटौती होगी और 51 बिलियन लीटर से अधिक ईंधन बचेगा। इससे 2035 तक भारत के तेल आयात का बिल 9.17 लाख करोड़ रुपए कम हो सकता है।
पुराने वाहन, विशेष रूप से डीजल बसें, प्रमुख प्रदूषक हैं। उन्हें फेज आउट करने से पीएम2.5 और नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में तेजी से कटौती हो सकती है। अध्ययन में ईवी-चार्जिंग और स्क्रैपिंग स्टेशनों के निर्माण का सुझाव दिया गया है। पूरी तरह ईवी में ट्रांज़िशन से 3.7 लाख नौकरियां भी पैदा होंगी।
ट्रेड वॉर के कारण अमेरिका में सोडियम-आयन बैटरी निर्माण बढ़ा
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर के कारण अमेरिका में सोडियम-आयन बैटरी का प्रचलन बढ़ रहा है। गौरतलब है कि ट्रंप के टैरिफ वॉर का सबसे बड़ा निशाना चीन है, और दुनिया भर के देश लिथियम-आयन बैटरियों के निर्माण के लिए चीन से आयातित मैटेरियल पर निर्भर हैं।
बढ़ते व्यावसायिक तनाव के बीच चीन से लिथियम-आयन बैटरी की आपूर्ति बाधित होने की आशंका से सोडियम-आयन बैटरी अधिक किफायती और सुरक्षित विकल्प लग रहा है। लिथियम-आयन के मुकाबले सोडियम-आयन बैटरियां सस्ती हैं और इनमें आग लगने का खतरा भी कम है।
इस साल 3,000 वाहनों को ईवी में बदलेगी हिमाचल सरकार
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि उनकी सरकार इस साल 3,000 पेट्रोल और डीजल वाहनों को इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवीएस) में बदला जाएगा। डीजल बसों को चरणबद्ध तरीके से ई-बसों में बदला जा रहा है। राज्य सरकार ने 297 इलेक्ट्रिक बसों के लिए निविदाएं जारी की हैं और चार्जिंग स्टेशनों का निर्माण कर रही है।
सरकार का उद्देश्य है सार्वजनिक परिवहन का पूरी तरह से विद्युतीकरण करके, अधिक चार्जिंग पॉइंट्स के साथ छह ग्रीन कॉरिडोर बनाना। नए बस मार्गों पर ई-वाहनों के लिए 40% तक की सब्सिडी की पेशकश की जा रही है। सरकारी कार्यालयों में भी इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग किया जाएगा। राज्य का लक्ष्य मार्च 2026 तक एक हरित ऊर्जा राज्य बनने का है।
भारत ने पिछले साल किया 1.7 लाख करोड़ रुपए का थर्मल कोयला आयत: रिपोर्ट
भारत ने 2023-24 में 21 बिलियन डॉलर (1.7 लाख करोड़ रुपए) का कोयला आयात किया। क्लाइमेट रिस्क होराइज़न्स ने एक रिपोर्ट में कहा कि ग्रीष्मकालीन महीनों में बिजली की मांग को पूरा करने के लिए 26.5 लाख टन तक प्रति माह आयात किया गया। राष्ट्रीय स्तर पर नवीकरणीय क्षमता की स्थापना में तेजी लाने के बावजूद, भारत में थर्मल पॉवर के लिए कोयले की जरूरत का 20% आयात किया जाता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 33 गीगावाट अक्षय ऊर्जा स्थापित करने से सालाना 826 मिलियन डॉलर (70,000 करोड़ रुपए) की बचत हो सकती है। लंबे समय में प्रत्येक वर्ष 50 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने से 2029 तक कोयला आयात को समाप्त किया जा सकता है, जिससे 66 बिलियन डॉलर (5.6 लाख करोड़ रुपए) की बचत हो सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अक्षय ऊर्जा न केवल सस्ती है, बल्कि विदेशी मुद्रा को बाहर जाने से रोकने और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
मैक्सिको की खाड़ी में ऑयल स्पिल पर तेल कंपनियों का झूठ आया सामने
मोंगाबे और डेटा क्रिटिका की एक हालिया जांच से पता चलता है कि मैक्सिको की खाड़ी में काम करने वाली तेल कंपनियों ने लगातार ऑयल स्पिल के पैमाने को कम कर के रिपोर्ट किया है। मछली पकड़ने वाले समुदायों के आंकड़ों और उपग्रह तस्वीरों से संकेत मिलता है कि स्पिल के कई मामलों को रिपोर्ट ही नहीं किया जाता, और जब उन्हें रिपोर्ट भी किया जाता है तो उनकी गंभीरता को अक्सर कम करके बताया जाता है।
उदाहरण के लिए, 2023 के एक बालम स्पिल को लगभग 200 गुना कम करके बताया गया था। मेक्सिको की सरकार ने 2018 से 2024 के बीच ऑयल स्पिल के 86 मामले दर्ज किए, लेकिन केवल 48 मामलों में आनुशासिक कार्रवाई शुरू की। इन मामलों में भी केवल 21 में जुर्माना लगाया गया, और केवल आठ मामलों में भुगतान किया गया।
स्थानीय मछुआरे पर्यावरण और उनकी आजीविका की रक्षा के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।
2027 तक कोयला संयंत्रों का निर्माण जारी रखेगा चीन
चीन में जारी नए दिशानिर्देशों के अनुसार, सरकार 2027 तक ऐसे इलाकों में कोयला बिजली संयंत्रों का निर्माण जारी रखेगी, जहां बिजली की मांग ज्यादा है या फिर स्थानीय पावर ग्रिड को सहायता की जरूरत है। चीन के इस कदम से 2026 के बाद कोयले का प्रयोग कम करने के उसके वादे पर संदेह पैदा हो रहा है, लेकिन नए संयंत्रों को अक्षय ऊर्जा के सहायक के तौर पर स्थापित किया जा रहा है, जो अभी पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है।
चीन का कहना है कि नए और उन्नत कोयला संयंत्र वर्तमान की तुलना में 10-20% तक कम कार्बन उत्सर्जन करेंगे और मांग के आधार पर उनका उत्पादन तय किया जा सकता है। मुख्य रूप से बिजली और रासायनिक उद्योगों से बढ़ती मांग के कारण 2028 तक कोयले का उपयोग थोड़ा बढ़ने की संभावना है।