Newsletter - May 1, 2024
झुलसाती गर्मी: क्या हीटवेव का असर लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर नहीं पड़ रहा?
भारत में रिकॉर्ड तापमान के पूर्वानुमानों के बीच लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। केंद्रीय चुनाव आयोग ने ‘टास्क फोर्स’ का गठन किया है और जानकार कहने लगे हैं कि क्लाइमेट प्रभावों को देखते हुए चुनाव की टाइमिंग में बदलाव किया जा सकता है।
भारत में झुलसा देने वाली हीटवेव का असर आम चुनाव पर पड़ रहा है। देश में अबतक पांच चरणों के चुनाव हो चुके हैं। सोमवार को पांचवें चरण के मतदान के दौरान कई शहरों में पारा 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा। इस चरण में लगभग 60 प्रतिशत वोटिंग हुई जो पिछले चार चरणों के मुकाबले कम है। मुंबई जैसे शहरों में हुए कम मतदान का कारण भी भीषण गर्मी को बताया जा रहा है।
छठा चरण 25 मई को है जब राजधानी दिल्ली समेत आठ राज्यों में मतदान होगा। इसी दौरान मौसम विभाग ने दिल्ली में गंभीर हीटवेव की भविष्यवाणी के साथ रेड अलर्ट जारी किया है। आईएमडी का कहना है कि मतदान के दिन दिल्ली में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक जा सकता है। इसको देखते हुए चुनाव आयोग ने कहा है कि वोटरों की सहूलियत के लिए मतदान केंद्रों पर गर्मी से निपटने के उपाय किए जाएंगे।
पिछले महीने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी महाराष्ट्र में एक चुनावी रैली के दौरान बेहोश हो गए थे। गर्मी की मार के बीच हो रहे मतदान ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बटोरीं हैं। देश में चल रही भीषण हीटवेव 2023 से भी ज्यादा खतरनाक है। 2023 इसिहास में अबतक का सबसे गर्म साल रहा है।
भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार केंद्रीय चुनाव आयोग ने इस स्थिति से निपटने के लिए एक ‘टास्क फोर्स’ का गठन किया है। वहीं हीटवेव की बढ़ती तीव्रता के कारण इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि क्या आम चुनावों का समय बदलकर इसे बेहतर जलवायु परिस्थितियों के दौरान कराया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चुनाव प्रक्रिया के सुचारु आयोजन के लिए कार्यक्रम का समय बदलना कोई असाधारण बात नहीं है और राजनीतिक सहमति से या संसद में कानून लाकर ऐसा किया जा सकता है।
इस साल अप्रैल के महीने में गंगा के मैदानी इलाकों और मध्य भारत के राज्यों में अधिकतम तापमान 42 से 45 डिग्री के बीच रहा। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भविष्यवाणी की है कि अप्रैल से जून तक हीटवेव के दिनों की संख्या सामान्य की तुलना में दोगुने से अधिक हो सकती है। दरअसल, अप्रैल की शुरुआत में ही हीटवेव का पहला दौर शुरू हो चुका है। गौरतलब है कि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को छोड़कर, भारत में किसी भी अन्य प्राकृतिक घटना की तुलना में हीटवेव ने अधिक लोगों की जान ली है। ताजा अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में 1992 के बाद से हीटवेव के कारण 24,000 से अधिक मौतें हुई हैं और वैश्विक तापमान वृद्धि की भविष्यवाणी के साथ आने वाले साल भारत के लिए और अधिक विनाशकारी हो सकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के एक नए शोध के अनुसार, पिछले 30 सालों में दुनिया भर में हर साल हीटवेव के कारण1.53 लाख से अधिक मौतें हुईं। इनमें से 20 प्रतिशत मौतें भारत में हुईं, जो दुनिया में सबसे अधिक हैं।
लू का प्रकोप और लोकतंत्र का उत्सव
भारत चरम मौसम की यह घटना ऐसे महत्वपूर्ण समय में झेल रहा है जब 95 करोड़ से अधिक मतदाता सात-चरणीय चुनावों में नई सरकार का चुनाव करने के लिए अपने मताधिकार का उपयोग कर रहे हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे लंबी चुनावी प्रक्रिया है। मतदान 19 अप्रैल को शुरू हुआ और 1 जून को समाप्त होगा, इसी दौरान गर्मी अपने चरम पर होगी। पहले चरण में मतदान का प्रतिशत कम रहने के बाद, चुनाव आयोग ने हीटवेव के “जोखिम को कम करने” के लिए एक बैठक की, जिसमें आईएमडी के अधिकारी भी शामिल हुए।
पिछले साल 16 अप्रैल को नवी मुंबई में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान हीटवेव से 13 लोगों की मौत हो गई थी और 600 से अधिक लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। देश में अलग-अलग हिस्सों में 10 से 20 दिनों तक लू चलने की संभावना है, जबकि सामान्य तौर पर यह 4 से 8 दिन होती है। गर्मी बढ़ने की सबसे अधिक आशंका गुजरात, मध्य महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक में है, इसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तरी छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश हीटवेव की चपेट में सबसे अधिक होंगे।
2004 के बाद से भारत में आम चुनाव गर्मी के मौसम में होते रहे हैं। लेकिन यह चुनाव कर्मचारियों, सुरक्षा कर्मियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और मतदाताओं सबके लिए सबसे कठिन साबित हो सकता है। चुनाव के आगामी पांच चरण 7, 13, 20, 25 मई और 1 जून को पड़ेंगें। आईएमडी का पूर्वानुमान बताता है कि जिन क्षेत्रों में चुनाव होने हैं, वे इस दौरान भीषण गर्मी की चपेट में रहेंगे।
हालांकि मतदान प्रतिशत में हो रही गिरावट को पूरी तरह से हीटवेव का ही असर नहीं कहा जा सकता लेकिन यह एक कारक ज़रूर है। पहली बार चुनाव आयोग (ईसीआई) ने गर्मी की स्थिति पर नजर रखने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है। इस टास्क फोर्स में ईसीआई, आईएमडी, एनडीएमए (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी हैं। टास्क फोर्स प्रत्येक मतदान दिवस से पहले हीटवेव और नमी के प्रभाव की समीक्षा करेगी और एक “विशेष पूर्वानुमान” जारी करेगी।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ, गांधीनगर के निदेशक प्रोफेसर दिलीप मावलंकर ने कहा कि हीटवेव के इस मौसम में रोजमर्रा की मृत्यु दर पर कड़ी नजर रखना बहुत जरूरी है।
“उन्हें (ईसीआई को) इस टास्क फोर्स में हर उस जगह (जहां विभिन्न चरणों में चुनाव होने वाले हैं) के जन्म और मृत्यु के रजिस्ट्रार को भी शामिल करना चाहिए। क्योंकि जब तक आप यह नहीं जानते कि किसी जिले में कितने लोगों की मौत हुई है, और किसी विशिष्ट क्षेत्र में असामान्य मृत्यु दर की जानकारी नहीं मिलती, तब तक आप जमीनी स्थिति का आकलन नहीं कर सकते। इसलिए भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) को भी (टास्क फोर्स में) शामिल किया जाना चाहिए,” प्रो मावलंकर ने कार्बनकॉपी को बताया।
हीटवेव से होने वाली मौतों का वर्गीकरण आसान नहीं है और भारत में हीटवेव से होने वाली मौतों का कोई विश्लेषण या रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। हीटवेव के प्रभाव का पता लगाने का एकमात्र तरीका है कि इस मौसम के दौरान हर रोज़ के मृत्यु दर के आंकड़ों को देखा जाए।
प्रो मावलंकर ने कहा, “जैसे मौसम विभाग आपको रोजमर्रा का तापमान बताता है, आरजीआई को हर रोज होने वाली मौतों का डेटा देना चाहिए और इससे (हीटवेव की) स्थिति को समझने में मदद मिलेगी। अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या के बारे में दैनिक बुलेटिन जारी किया जाए तो मरीजों के लक्षणों के आधार पर यह जानने में भी मदद मिल सकती है कि कितने मरीज हीटवेव से प्रभावित हैं।”
क्या चुनावों का समय बदला जा सकता है?
ऐसा क्या किया जा सकता है कि चुनावी प्रक्रिया पर बढ़ती गर्मी का प्रभाव न्यूनतम हो? शोध बताते हैं कि भविष्य में “बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के कारण सभी जिलों में हीटवेव का खतरा काफी बढ़ जाएगा”। इसलिए, भविष्य में गर्मियों में हमें और भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। भले ही राजनैतिक दल और मतदाता प्रचार और मतदान के दौरान सुरक्षा बरतें, लेकिन इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गर्मी के प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता है।
भारत एक संघीय लोकतंत्र है। हर पांच साल में होने वाले आम चुनावों के अलावा भी अलग-अलग राज्यों में चुनाव होते रहते हैं। भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का सुझाव है कि सभी राजनैतिक दलों की एक बैठक बुलाकर राज्य और केंद्र के चुनावों के समय पर आम सहमति बनाई जानी चाहिए।
”संसदीय चुनाव कराने के लिए छह महीने का समय होता है,” उन्होंने कहा, और याद दिलाया कि कुछ राज्यों के चुनाव हमेशा आम चुनावों से कुछ महीने पहले होते हैं।
“भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए, चुनाव आयोग को एक सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए जहां इस बात पर सहमति बन सके कि राज्यों के चुनाव दो महीने की देरी से कराए जाएं और संसदीय चुनाव 6 महीने की विंडो के दौरान कराए जाएं। अब 2029 में जो अगले आम चुनाव होंगे, उनके लिए समय 1 जनवरी से 30 जून के बीच है। चुनाव कराने के लिए वसंत सबसे अच्छा समय है। या फिर, कानून में एक संशोधन होना चाहिए जो चुनाव आयोग को राज्य विधानसभा चुनावों को थोड़ा पहले करने का अधिकार दे।”
भारत में हीटवेव के प्रभाव पर चर्चा ऐसे समय में हो रही है जब पूरी दुनिया में क्लाइमेट पॉलिटिक्स चर्चा के केंद्र में है। हालांकि अभी एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन ग्रीन पार्टियों और उनके उम्मीदवारों ने यूरोप में जीत दर्ज की है और जलवायु संबंधी मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया है। ऐसे में चुनावी प्रक्रिया पर गर्मी का असर भारत में भी इस बहस की एक दिलचस्प संभावना उत्पन्न करता है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर भी समय में बदलाव और छोटे चुनाव कार्यक्रम की वकालत करते हैं।
“संविधान में इसके लिए प्रावधान है और मौजूदा संसद का कार्यकाल समाप्त होने से छह महीने पहले चुनाव कराए जा सकते हैं। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भारत के चुनाव आयोग को न केवल विभिन्न राजनैतिक दलों और सरकारों, बल्कि बड़े पैमाने पर लोगों की सुविधा, आराम और पसंद पर भी ध्यान देना होगा। इस प्रतिकूल जलवायु स्थिति के मद्देनजर, चुनाव आयोग तीन महीने पहले चुनाव करा सकता था,” छोकर ने कहा।
हीटवेव क्या है
यदि किसी स्टेशन का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों के लिए कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तक पहुंच जाता है और सामान्य से 4 डिग्री अधिक होता है तो हीटवेव घोषित की जाती है। तटीय स्टेशनों के लिए यह सीमा 37 डिग्री सेल्सियस या अधिक है और पहाड़ी क्षेत्र के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस या अधिक है। यदि दिन के अधिकतम तापमान सामान्य औसत से 5 डिग्री अधिक हैं, तो वह गंभीर हीटवेव की श्रेणी में आ सकते हैं। हमेशा जब अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो जाता है तो गंभीर हीटवेव की घोषणा की जाती है।
गुणात्मक रूप से देखा जाए तो हीटवेव गर्म हवा की एक स्थिति है जिसके संपर्क में आना मानव शरीर के लिए घातक हो सकती है। मात्रात्मक रूप से इसकी परिभाषा किसी क्षेत्र विशेष के वास्तविक तापमान या सामान्य तापमान से विचलन के आधार पर दी जाती है। कुछ देशों में इसे तापमान और आर्द्रता के आधार पर या तापमान के चरम प्रतिशत के आधार पर ताप सूचकांक के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है।
हालांकि, हीटवेव को दो प्रकारों में बांटा जा सकता है: शुष्क हीटवेव और आर्द्र हीटवेव। अधिक नमी वाली आर्द्र हीटवेव शुष्क हीटवेव की तुलना में कहीं अधिक हानिकारक होती हैं, जो मानव जीवन को काफी खतरे में डाल सकती हैं।
आमतौर पर, पसीने के द्वारा मानव शरीर खुद को ठंडा कर लेता है। पसीने में मौजूद पानी वाष्पित हो जाता है और गर्मी को शरीर से दूर ले जाता है। हालांकि, जब नमी अपेक्षाकृत अधिक होती है, तो पसीने की वाष्पीकरण दर कम हो जाती है। यानि शरीर से गर्मी धीरे-धीरे निकलती है, और शुष्क हवा की तुलना में अधिक देर तक शरीर में बरकरार रहती है।
आर्द्रता की भूमिका को हीट इंडेक्स (एचआई) द्वारा मापा जाता है। यह वो तापमान है जो महसूस होता है। इसमें हवा के तापमान और सापेक्ष आर्द्रता को मिलाकर निर्धारित किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि वास्तव में कितना गर्म महसूस हो रहा है। वायुमंडलीय नमी में कोई भी वृद्धि एचआई में कुल वृद्धि के एक बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार होती है। इसे वेट बल्ब तापमान भी कहा जाता है और 35° सेल्सियस को मानव के जीवित रहने की ऊपरी सीमा माना जा सकता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को छोड़कर, अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में भारत में हीटवेव ने अधिक जानें ली हैं। गर्मी के कारण मौत और बीमारी का खतरा ग्रामीण और शहरी दोनों तरह की आबादी पर है। हालांकि, कम शिक्षित और गरीब तबके के लोग, वृद्ध और कम हरे-भरे स्थान वाले समुदायों में रहने वाले लोग इन खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इसके अलावा, बढ़ी हुई नमी और तापमान के कारण होने वाला तनाव (हीट स्ट्रेस) मानव जीवन को बड़े खतरे में डाल सकता है।
असामान्य गर्मी अब हो गई है आम
दुनिया भर के वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग में अभूतपूर्व वृद्धि के प्रति चेतावनी दे रहे हैं। पिछले 50 वर्षों में धरती का तापमान पिछले 2,000 वर्षों की तुलना में कहीं अधिक तेजी से बढ़ा है। 1850 के बाद से पृथ्वी का तापमान प्रति दशक औसतन 0.11 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.06 डिग्री सेल्सियस) या कुल मिलाकर लगभग 2 डिग्री फ़ारेनहाइट बढ़ गया है। 1982 के बाद से वार्मिंग की दर तीन गुना से अधिक तेज हुई है: यानि प्रति दशक 0.36 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.20 डिग्री सेल्सियस)।
असामान्य गर्मी अब आम बात हो गई है। इतिहास के 10 सबसे गर्म साल पिछले दशक (2014-2023) में हुए हैं। 2016 को पीछे छोड़ते हुए 2023 सबसे गर्म साल रहा है।
एनओएए (नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन) और नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) के संयुक्त आंकड़ों के अनुसार, 2023 में ग्लोबल सर्फेस तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस (2.52 डिग्री फारेनहाइट) दर्ज किया गया, जो 144 साल में सबसे अधिक था और प्रारंभिक औद्योगिक (1881-1910) बेसलाइन औसत से ऊपर था।
लोगों, चुनावों और अर्थव्यवस्था पर गर्मी का प्रभाव
लोगों के स्वास्थ्य के अलावा, हीटवेव का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव भी पड़ता है, क्योंकि इससे ऊर्जा की खपत बढ़ती है, फसल की पैदावार कम होती है, जल की हानि और सूखा या जंगल की आग बढ़ जाती है। पारा चढ़ने से महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क में बाधा आ सकती है और श्रम उत्पादकता कम हो सकती है।
एक अध्ययन के अनुसार, भारत में उमस भरी गर्मी के प्रभाव के कारण वर्तमान में सालाना लगभग 259 बिलियन मैन ऑवर का नुकसान होता है। पिछला अनुमान 110 बिलियन मैन ऑवर था। इस सदी के पहले 20 सालों में भारत ने इसके पिछले 20 सालों की तुलना में सालाना 25 बिलियन अधिक मैन ऑवर खो दिए। इसके अलावा, यदि वार्मिंग 3 डिग्री सेल्सियस तक बनी रहती है तो भारत में खेत मजदूरी की क्षमता 17% तक कम हो जाएगी और यदि देश भर में उत्सर्जन में कटौती तेज हो जाती है तो यह 11% तक कम हो जाएगी।
हीट एक्शन प्लान पर काम अभी भी जारी है
आने वाले वर्षों में हीटवेव की संभावना बढ़ने के साथ, हीटवेव एक्शन प्लान (एचएपी) की जरूरत भी बढ़ गई है। हीटवेव की पूर्व चेतावनी प्रणाली और उससे निपटने की तैयारी के लिए बनाई गई योजनाओं को हीटवेव एक्शन प्लान कहा जाता है। इन योजनाओं को आर्थिक रूप से हानिकारक और जानलेवा हीटवेव के प्रति देश की प्राथमिक प्रतिक्रिया के रूप में भी देखा जा सकता है।
पहला हीट एक्शन प्लान 2013 में अहमदाबाद नगर निगम ने लॉन्च किया था, जो न केवल पूरे भारत के लिए एक आदर्श बन गया, बल्कि इसे अंतर्राष्ट्रीय मान्यता भी मिली। भारत सरकार देश भर में एचएपी विकसित करने और लागू करने के लिए 23 राज्यों और 130 से अधिक शहरों और जिलों के साथ काम कर रही है।
हालांकि, एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, लगभग सभी हीट एक्शन प्लान संवेदनशील समुदायों की पहचान करने और उनतक सहायता पहुंचाने के लिए अपर्याप्त हैं। इन योजनाओं में फंड की कमी है, पारदर्शिता का अभाव है और इनका कानूनी आधार भी कमजोर है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अधिकांश एचएपी स्थानीय जरूरतों के अनुरूप नहीं हैं और हीटवेव के खतरे के बारे में उनका दृष्टिकोण अत्यधिक सरल है।
एनआरडीसी इंडिया के क्लाइमेट रेजिलिएंस और स्वास्थ्य के प्रमुख अभियंत तिवारी कहते हैं, “हमने देखा है कि इन योजनाओं की फंडिंग और संस्थागत कार्यान्वन में कमियां हैं, लेकिन अच्छी बात यह है कि उन कमियों की पहचान की जा रही है और उनका समाधान किया जा रहा है। साथ ही, इस तरह की तैयारियों और प्रतिक्रियाओं से आगे देश बड़ी दीर्घकालिक योजनाओं की ओर बढ़ रहा है।”
हीटवेव से निपटने की प्रक्रिया भूकंप और बाढ़ जैसी अन्य आपदाओं के प्रबंधन से अलग हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजनाएं अधिक सूक्ष्मस्तरीय होनी चाहिए, जिससे संवेदनशील समुदायों की समस्याओं को पर्याप्त रूप से संबोधित किया जाए। इसके लिए हीटवेव के हॉटस्पॉट्स की पहचान की जानी चाहिए।
“एचएपी स्थानीय जरूरतों के अनुरूप और विकेंद्रीकृत होना चाहिए। अगर मैं प्रारंभिक चेतावनी की बात करूं तो आप देखेंगे कि जिस तापमान पर श्रीनगर में रहने वाले लोग प्रभावित होते हैं, वह उस तापमान से बिल्कुल अलग है जिसपर चंदरपुर और जलगांव के लोग प्रभावित होंगे। महाराष्ट्र के विदर्भ में 40 डिग्री शायद सामान्य हो, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसा नहीं है,” तिवारी ने कार्बनकॉपी से कहा।
2013 में भारत के पहली एचएपी का नेतृत्व करने वाले मावलंकर का कहना है कि केंद्रित दृष्टिकोण, पर्याप्त फंडिंग और सार्वजनिक जागरूकता के बिना एक्शन प्लान सिर्फ कागज पर ही रह जाएंगे।
“वास्तविक कार्रवाई की तुलना में कागजों पर अधिक प्रगति हुई है। इसका एक कारण यह है कि इसके लिए कोई बजट आवंटित नहीं किया गया है। कार्रवाई का आधा हिस्सा जन जागरूकता है और लोगों को जागरूक करने के लिए आपको बड़े पैमाने पर विज्ञापनों की जरूरत है। लेकिन क्या आपने हीटवेव से बचाव के बारे में कोई विज्ञापन देखा है? ऐसा इसलिए क्योंकि उसके लिए कोई बजट नहीं है। विशेष रूप से जब इस पैमाने पर चुनाव चल रहे हों, तो आपको अधिक जागरूकता अभियानों की आवश्यकता होती है ताकि लोग जान सकें कि गर्मी से खुद को कैसे बचाया जाए,” मावलंकर ने कहा।
उत्तराखंड के जंगलों में फिर लगी आग, 39 लोगों की गिरफ्तारी
उत्तराखंड के जंगल पिछले एक हफ्ते से धू-धू कर जल रहे हैं। अब तक यहां आग की करीब 700 घटनायें हो चुकी हैं और 870 हेक्टेयर से अधिक इलाका प्रभावित हुआ है। इसमें 600 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल खत्म हो गये हैं। वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 3800 से अधिक पौध नष्ट हो गई हैं और राज्य को 20 लाख रुपये से अधिक की क्षति हुई है। उत्तराखंड के नैनीताल, अल्मोड़ा और रुद्रप्रयाग ज़िलों एनडीआरएफ की टीमें जंगलों में लगी आग को काबू करने के लिये वन विभाग की मदद हेतु भेजी गई हैं। इस बीच सेना के हेलीकॉप्टरों की मदद से आग बुझाने के लिये लिये पानी बरसाया गया है। जंगलों में आग अक्सर जानबूझकर या लापरवाही से इंसानों द्वारा ही लगाई जाती है। सरकार ने आग की इन घटनाओं के बाद 227 मामले दर्ज किये हैं और 39 लोगों को गिरफ्तार किया है।
हिमालय में 600 से अधिक ग्लेशियल झीलों का आकार बढ़ा: इसरो
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा है कि हिमालय में पहचानी गई हिमनद झीलों (ग्लेशियल लेक) में से 27 प्रतिशत से अधिक में 1984 के बाद से उल्लेखनीय विस्तार हुआ है। इनमें से 130 भारत में हैं। इसरो ने कहा कि 1984 से 2023 तक भारतीय हिमालयी नदी घाटियों के जलग्रहण क्षेत्रों की दीर्घकालिक उपग्रह छवियां हिमनद झीलों में महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा करती हैं।
इसरो ने कहा, “2016-17 के दौरान पहचानी गई 10 हेक्टेयर से बड़ी 2,431 झीलों में से 676 हिमनद झीलों में 1984 के बाद से उल्लेखनीय विस्तार हुआ है।” इसरो के मुताबिक 676 झीलों में से 601 का विस्तार दोगुने से अधिक हो गया है, जबकि 10 झीलों का विस्तार 1.5 से दो गुना और 65 झीलों का 1.5 गुना हो गया है।
अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि इन 676 झीलों में से 130 भारत में स्थित हैं, जिनमें से 65, सात और 58 क्रमशः सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी घाटियों में स्थित हैं। हिमनद झीलों को उनकी निर्माण प्रक्रिया के आधार पर चार व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है — मोरेन-बांधित (मोरेन द्वारा बांधित जल), बर्फ-बांधित (बर्फ द्वारा बांधित जल), कटाव (कटाव द्वारा निर्मित अवसादों में बंधा पानी), और अन्य हिमनद झीलें। जिन 676 झीलों का विस्तार हुआ है उनमें से अधिकांश मोरेन-बांधित (307) हैं, इसके बाद कटाव (265), अन्य (96), और बर्फ-बांधित (आठ) हिमनदी झीलें हैं।
इसरो ने हिमाचल प्रदेश में 4,068 मीटर की ऊंचाई पर (सिंधु बेसिन में) स्थित घेपांग घाट हिमनद झील में हुए दीर्घकालिक परिवर्तनों पर प्रकाश डाला। 1989 से 2022 के बीच इसका आकार 36.49 हेक्टेयर से 101.30 हेक्टेयर तक बढ़ गया, जो 178 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। प्रति वर्ष वृद्धि लगभग 1.96 हेक्टेयर रही।
ग्लेशियरों के पिघलने से बनी ये हिमनद झीलें हिमालय क्षेत्र में नदियों के लिए मीठे पानी के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालांकि, ये ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) जैसे जोखिम भी पैदा करती हैं, जिससे निचले स्तर पर बसने वाले समुदायों के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
अक्टूबर में सिक्किम में लगातार बारिश के कारण राज्य के उत्तर-पश्चिम में 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक हिमनद झील — दक्षिण लोनाक झील — के फटने से कम से कम 40 लोग मारे गए और 76 लोग लापता हो गए थे।
जलवायु आपदाओं का खतरा एशिया पर सबसे अधिक: डब्ल्यूएमओ रिपोर्ट
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में एशिया मौसम संबंधी आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित रहा। द स्टेट ऑफ़ द क्लाइमेट इन एशिया, यानी एशिया में जलवायु की स्थिति 2023 रिपोर्ट के अनुसार, महाद्वीप को बाढ़ और तूफ़ान के कारण जान-माल का सबसे अधिक नुकसान हुआ। हीटवेव का प्रभाव भी लगातार गंभीर होता जा रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, एशिया में 2023 में हाइड्रो-मेटिओरोलॉजिकल, यानि जल-मौसम विज्ञान संबंधी घटनाओं से जुड़ी 79 आपदाएं दर्ज की गईं। उनमें से 80% से अधिक का संबंध तूफान और बाढ़ से संबंधित घटनाओं से था, जिसके परिणामस्वरूप 2,000 से अधिक मौतें हुईं और 90 लाख लोग प्रभावित हुए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अत्यधिक गर्मी स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है, फिर भी गर्मी से संबंधित मौतों को अक्सर दर्ज नहीं किया जाता है। एशिया वैश्विक औसत से भी अधिक तेजी से गर्म हो रहा है। 1961-1990 की अवधि के बाद से तापमान वृद्धि का ट्रेंड लगभग दोगुना हो गया है।
बढ़ता तापमान और अनियमित वर्षा
एशिया में पिछले साल सतह के निकट वार्षिक औसत तापमान इतिहास में दर्ज दूसरा सबसे अधिक तापमान था, जो 1991-2020 के औसत से 0.91 डिग्री सेल्सियस और 1961-1990 के औसत से 1.87 डिग्री सेल्सियस ऊपर था। पश्चिमी साइबेरिया से लेकर मध्य एशिया और पूर्वी चीन से जापान तक विशेष रूप से उच्च औसत तापमान दर्ज किया गया। जापान और कजाकिस्तान दोनों में गर्म वर्षों ने रिकॉर्ड स्थापित किया।
2023 में तुरान तराई क्षेत्र (तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान) के बड़े हिस्से; हिंदू कुश (अफगानिस्तान, पाकिस्तान); हिमालय; गंगा के आसपास और ब्रह्मपुत्र नदियों के निचले हिस्से (भारत और बांग्लादेश); अराकान पर्वत (म्यांमार); और मेकांग नदी का निचले मार्ग पर सामान्य से कम वर्षा हुई।
दक्षिण-पश्चिम चीन सूखे से पीड़ित रहा, जहां 2023 में लगभग हर महीने वर्षा का स्तर सामान्य से नीचे रहा और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून में भी बारिश औसत से कम रही।
पिघलते ग्लेशियर
हाई-माउंटेन एशिया क्षेत्र तिब्बती पठार पर केंद्रित एक उच्च-ऊंचाई वाला भौगोलिक क्षेत्र है और ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर यहां सबसे बड़ी मात्रा में बर्फ होती है, जिसके लगभग 100,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर ग्लेशियर, यानि हिमनद हैं। पिछले कई दशकों से इनमें से अधिकांश ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाई माउंटेन एशिया क्षेत्र में जिन 22 ग्लेशियरों को देखा गया, उनमें से 20 ग्लेशियरों में लगातार बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। पूर्वी हिमालय और टीएन शान के अधिकांश हिस्से में रिकॉर्डतोड़ उच्च तापमान और शुष्क परिस्थितियों ने अधिकांश ग्लेशियरों के लिए बड़े पैमाने पर नुकसान को बढ़ा दिया। 2023 में एशिया में स्नो-कवर (बर्फ की चादर) का दायरा 1998-2020 के औसत से थोड़ा कम था।
समुद्री-सतह का तापमान और गर्म होते महासागर
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में, उत्तर-पश्चिम प्रशांत महासागर की सतह का औसत तापमान सबसे अधिक पाया गया, जो दर्ज रिकॉर्ड के मुकाबले सबसे गर्म था। बैरेंट्स सागर को जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील है। समुद्र की सतह गर्म होने से समुद्री बर्फ का आवरण कम होता है। वहीं सफेद बर्फ का आवरण हट जाने से समुद्र की सतह अधिक सौर ऊर्जा सोख लेती है, जिससे उसका तापमान बढ़ जाता है। इससे एक फीडबैक लूप बन जाता है जिसमें दोनों ही प्रक्रियाएं एक-दूसरे को बढ़ावा देती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, ऊपरी महासागर (0 मीटर-700 मीटर) की गर्मी विशेष रूप से उत्तर-पश्चिमी अरब सागर, फिलीपीन सागर और जापान के पूर्वी समुद्रों में अधिक है, जो वैश्विक औसत से तीन गुना ज्यादा तेज है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्कटिक महासागर के एक बड़े हिस्से, पूर्वी अरब सागर और उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में समुद्री हीटवेव — समुद्र को प्रभावित करने वाली लंबी अवधि की अत्यधिक गर्मी — देखी गई जो तीन से पांच महीने तक चली।
चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि
भारत, यमन और पाकिस्तान में बाढ़ के कारण सबसे अधिक संख्या में मौतें हुईं। भारत में अप्रैल और जून 2023 में भीषण हीटवेव के कारण हीटस्ट्रोक से लगभग 110 मौतें हुईं। हीटवेव की एक बड़ी और लंबी अवधि की घटना अप्रैल और मई में हुई, जिसने दक्षिण-पूर्व एशिया के अधिकांश हिस्से को प्रभावित किया। इसका विस्तार पश्चिम में बांग्लादेश और पूर्वी भारत तक और उत्तर से दक्षिणी चीन तक था, जहां तापमान रिकॉर्ड स्तरों पर पहुंच गया था।
“दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप तीनों तरफ से सबसे तेजी से गर्म हो रहे उष्णकटिबंधीय महासागर और उत्तर में पिघलते हिमालय के ग्लेशियरों से घिरा हुआ है। इस कारण से यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का पोस्टर चाइल्ड बन गया है। उष्णकटिबंधीय मौसम प्रणालियां तेजी से विकसित होती हैं, तेज गति से चलने वाली और छोटी होती हैं, जिसके कारण यह अप्रत्याशित होती हैं। जलवायु परिवर्तन ने मौसम को और अधिक अनिश्चित और विनाशकारी बना दिया है। जैसे-जैसे हिंद महासागर का पानी गर्म हो रहा है, इससे उठने वाली अधिक गर्मी और नमी से मौसम प्रणालियां तीव्र हो रही हैं। पिछले चार दशकों के दौरान अरब सागर में चक्रवातों की संख्या में 50% की वृद्धि हुई है, और भविष्य में ताउते और अम्फन जैसे अत्यधिक गंभीर चक्रवात आने का अनुमान है। हिंद महासागर से अपनी ऊर्जा और नमी प्राप्त करने वाला मानसून अधिक अनियमित हो गया है, जिसमें कम समय के लिए भारी बारिश होती है और लंबे समय तक शुष्क अवधि होती है, जिससे एक ही सीजन में बाढ़ और शुष्क मौसम होता है,” भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा।
2023 में पश्चिमी उत्तरी प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर के ऊपर कुल 17 नामित उष्णकटिबंधीय चक्रवात बने। यह संख्या औसत से कम थी, लेकिन फिर भी इनका प्रभाव बहुत था और चीन, जापान, फिलीपींस और कोरिया जैसे देशों में रिकॉर्ड-तोड़ बारिश हुई। उत्तरी हिंद महासागर बेसिन में अत्यधिक गंभीर चक्रवाती तूफान मोका ने 14 मई को म्यांमार के राखीन तट पर दस्तक दी, जिससे बहुत नुकसान हुआ और 156 लोगों की मौत की खबर मिली।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में अत्यधिक वर्षा की कई घटनाएं हुईं। नवंबर में भारी बारिश के कारण सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में बाढ़ आ गई। यमन को भी भारी वर्षा और व्यापक बाढ़ का सामना करना पड़ा।
2023 में एशिया के कई हिस्सों ने अत्यधिक गर्मी का अनुभव किया। जापान में इतिहास का सबसे गर्म मौसम दर्ज किया गया। चीन ने उच्च तापमान की 14 घटनाओं का अनुभव किया, जिसमें लगभग 70% राष्ट्रीय मौसम विज्ञान स्टेशनों का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा और 16 स्टेशनों ने अपने तापमान रिकॉर्ड तोड़ दिए।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला को ‘गोल्डमैन पर्यावरण सम्मान’
मध्य भारत के छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य के जंगलों को बचाने के लिये चल रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला को ‘ग्रीन नोबेल’ कहा जाने वाला गोल्डमैन पर्यावरण सम्मान दिया गया है। उन्हें मंगलवार को सेन फ्रांसिस्को में यह अवॉर्ड दिया जायेगा।
एशिया में इस बार केवल एक व्यक्ति को ही यह सम्मान दिया गया है। आलोक शुक्ला और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने राज्य के सरगुजा और कोरबा ज़िले के 17,000 हेक्टेयर में फैले हसदेव अरण्य को बचाने के लिये लंबा संघर्ष किया है जिसमें 23 कोल ब्लॉक हैं।
सोमवार को गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार समिति की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “आलोक शुक्ला ने एक सफल सामुदायिक अभियान का नेतृत्व किया जिसने मध्य भारत के छत्तीसगढ़ में 445,000 एकड़ जैव विविधता से समृद्ध जंगलों को बचाया जहां 21 कोयला खदानें शुरू होनी थी। जुलाई 2022 में, सरकार ने हसदेव अरण्य में 21 प्रस्तावित कोयला खदानों को रद्द कर दिया, जिनके प्राचीन वन – जिन्हें लोकप्रिय रूप से छत्तीसगढ़ के फेफड़े के रूप में जाना जाता है – भारत में सबसे बड़े अक्षुण्ण वन क्षेत्रों में से एक हैं।”
शुक्ला और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के प्रयासों से अक्टूबर 2022 में, छत्तीसगढ़ सरकार ने 450 वर्ग किमी के क्षेत्र में लेमरू हाथी रिजर्व को अधिसूचित किया। दस गांवों के 2,000 से अधिक ग्रामीणों के एक विशाल पैदल मार्च के बाद राज्य सरकार को लेमरू को सूचित करने के लिए दबाव डाला गया, जिसमें मांग की गई कि सरकार हसदेव अरण्य में खनन न करे।
साल 2013 में ‘आपदा का प्रभाव बढ़ाने वाले’ हाइड्रोपावर बांध को फिर से बनाने की अनुमति
केंद्र सरकार ने उत्तराखंड में हिमालय की ऊपरी पहुंच में एक जलविद्युत परियोजना के पुनर्निर्माण के लिए पर्यावरणीय मंजूरी देना शुरू कर दिया है, जो 2013 की बाढ़ के दौरान लगभग पूरी तरह से बह गई थी। इस आपदा में 6,000 से अधिक लोग मारे गए थे। हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक खोजी रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय ने 20 मार्च को फाटा ब्यूंग हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (76 मेगावाट) के लिए संदर्भ की शर्तों (टीओआर) को मंजूरी दे दी, जो पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया में एक शुरुआत है।
इससे पहले मंत्रालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ पैनल ने पाया था कि फाटा ब्यूंग परियोजना ने 2013 में बादल फटने और अचानक आई बाढ़ से मंदाकिनी नदी – जो गंगा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है – के प्रवाह को अवरुद्ध करके नुकसान को बढ़ा दिया था। हालांकि सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी और सेंट्रल वॉटर कमीशन ने इस बारे में अपने-अपने असहमति नोट दिये थे। सरकार ने बहुमत की राय को अदालत में रखा था।
मंत्रालय की रिपोर्ट के निष्कर्ष के बावजूद कि उच्च ऊंचाई वाली जलविद्युत परियोजनाएं पर्यावरणीय आपदाओं की क्षति को बढ़ाती हैं, विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने 20 मार्च को आगे बढ़कर सार्वजनिक परामर्श के साथ और सार्वजनिक सुनवाई के बिना पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन आयोजित करने के लिए मानक टीओआर के अनुदान के लिए फाटा ब्यूंग परियोजना की सिफारिश की।
जी-7 देशों में कोई भी हासिल करता नहीं दिख रहा 2030 के शमन (मिटिगेशन) लक्ष्य
इमीशन को कम करना शमन (मिटिगेशन) कहलाता है। क्लाइमेट एनालिस्ट नाम के एक वैश्विक जलवायु विज्ञान और नीति संस्थान का विश्लेषण बताता है कि दुनिया के सबसे ताकवर देशों के समूह (जी-7) में कोई भी अपने वर्तमान उत्सर्जनों को 2030 के लिये तय लक्ष्य तक घटाता नहीं दिखता। यह बात इटली में इटली में पर्यावरण मंत्रियों की बैठक से पहले किये गये विश्लेषण में बताई गई। जी-7 देशों ने 2030 तक सामूहिक रूप से अपने उत्सर्जनों में 40-42 प्रतिशत घटाने का लक्ष्य रखा था लेकिन वर्तमान नीतियों से यह ज़्यादा से ज़्यादा 19-33 प्रतिशत तक ही हासिल होता दिखता है।
जी-7 समूह में अमेरिका और यूके के अलावा कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, इटली और जापान हैं जिनका विश्व अर्थव्यवस्था में 38 प्रतिशत और कुल वैश्विक इमीशन में 21 प्रतिशत हिस्सा है। रिपोर्ट कहती है कि धरती की तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित रखने के लिये इन देशों को 2019 के स्तर पर हो रहे इमीशन में 2030 तक 58 प्रतिशत कटौती करनी होगी।
क्लाइमेट फाइनेंस : विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की बैठकों में पर कछुआ रफ्तार से तरक्की
विश्व बैंक और आईएमएफ की वार्षिक बैठकें जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए आवश्यक खरबों डॉलर जुटाने की किसी ठोस योजना के बिना ही समाप्त हो गईं जबकि इस साल अज़रबैजान में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP29) में न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) या नए जलवायु वित्त लक्ष्य पर समझौता प्रमुख मुद्दा होगा।
एनसीक्यूजी वह नई राशि है जिसे विकसित देशों को विकासशील देशों में जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए 2025 से हर साल जुटाना होगा। अमीर देशों से उम्मीद की जाती है कि वे हर साल 100 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक ग्रीन क्लाइमेट फंड में देंगे। वादे के मुताबिक साल 2020 से हर साल यह राशि उन्हें देनी थी लेकिन वह इसे पूरा करने में बार-बार असफल रहे।
शनिवार को समाप्त हुई बैठकों में जी-7 और जी – 20 के वित्त मंत्रियों के बीच जलवायु और विकास उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विकासशील देशों को वित्त प्रदान करने पर चर्चा हुई। हाल में किये गये एक विश्लेषण से पता चला है कि 2023 में विकासशील देशों में वित्तीय प्रवाह नकारात्मक हो गया है क्योंकि जिन अमीर देशों को पैसा देना था वह कर्ज़ या सेवाओं के रूप में भुगतान कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के प्रति संकटग्रस्त बीस देशों के समूह (V20) ने जलवायु-संवेदनशील देशों के लिए रियायती वित्त में वृद्धि का आह्वान किया, और G7 और उच्च उत्सर्जन वाले G21 देशों से अपील की कि वे धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लिये कदम उठायें।
मछुआरों के विरोध के बावजूद महाराष्ट्र में बंदरगाह प्रोजेक्ट को हरी झंडी
महाराष्ट्र में वधावन बंदरगाह प्रोजेक्ट को केंद्रीय कैबिनेट की हरी झंडी का इंतज़ार है लेकिन मछुआरों और समुद्री जीवन का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने इसका विरोध किया है। इनका कहना है कि इससे क्षेत्र की दुर्लभ जैव विविधता और विलुप्त हो रही समुद्री प्रजातियों पर भारी असर पड़ेगा। इस साल फऱवरी में पर्यावरण मंत्रालय ने इसे पर्यावरणीय अनुमति दी थी और अधिकारियों को विश्वास है कि अक्टूबर से वह काम शुरू कर सकेंगे।
कुल 76,220 करोड़ रुपये का प्रस्तावित बंदरगाह वधावन पोर्ट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा बनाया जाना है, जो जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) और महाराष्ट्र मैरीटाइम बोर्ड (एमएमबी) के बीच एक संयुक्त उद्यम है। यह क्षेत्र घोल मछली और समुद्री सुनहरी (सी- गोल्ड) फिश जैसी दुर्लभ प्रजातियों के लिये जाना जाता है। ये प्रजातियां दवा बनाने के काम आती हैं और आईयूसीएन की विलुप्त होती प्रजातियों की सूची में हैं।
प्लास्टिक उत्पादन 40% घटाने के समझौते पर विचार कर रहे विभिन्न देश
प्लास्टिक पर अंतरसरकारी वार्ता समिति के चौथे सत्र (आईएनसी-4) में पहली बार 15 सालों में प्लास्टिक के वैश्विक उत्पादन को 40% तक कम करने का प्रस्ताव रखा गया। ओटावा में आयोजित इस संयुक्त राष्ट्र वार्ता में प्लास्टिक कचरे में कटौती के लिए एक संधि पर चर्चा की गई।
द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, दो देशों — रवांडा और पेरू — ने प्लास्टिक के उत्पादन से होने वाले भारी कार्बन उत्सर्जन सहित इसके हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए उत्पादन को सीमित करने का पहला ठोस प्रस्ताव रखा।
इस प्रस्ताव को महत्वाकांक्षी रूप से “नॉर्थ स्टार” कहा जा रहा है, जिसके तहत दुनिया भर में प्राइमरी प्लास्टिक पॉलिमर के उत्पादन में 2025 के मुकाबले 2040 तक 40% की कटौती की जाएगी।
इस बीच, भारत ने साफ कर दिया है कि प्लास्टिक प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी एक वैश्विक समझौते का समर्थन वह तभी करेगा जब यह आम सहमति के माध्यम से लाया जाता है, न कि दो-तिहाई बहुमत के समर्थन से।
ओटावा की बैठक नवंबर में बुसान में होने वाले पांचवें सत्र (आईएनसी-5) से पहले, अंतर-सत्रीय कार्य पर समझौते के उन्नत मसौदे के साथ संपन्न हुई।
पानी में मिले ऐसे तत्व जो बन सकते हैं दिल की बीमारी का कारण
एक नए अध्ययन में पीने के पानी में ऐसे जहरीले तत्व का पता चला है जो छानने और उबालने के बावजूद समाप्त नहीं होते हैं। डाइहैलोजेनेटेड नाइट्रोफेनोल्स (2,6-डीएचएनपी) नाम के इस पदार्थ की वजह से दिल पर असर पड़ सकता है। जेब्राफिश नाम की एक मछली पर किए गए एक अध्ययन में यह बात पता चली है। जेब्राफिश में इंसानों जैसी कई समानताएं होती हैं, जिस वजह से इन पर मेडिकल रिसर्च किया जाता है।
अध्ययन में पाया गया कि पानी एक लीटर में डाइहैलोजेनेटेड नाइट्रोफेनोल्स की 19 माइक्रोग्राम की मात्रा मिलने से जेब्राफिश के भ्रूण पर गंभीर कार्डियोटॉक्सिक असर पड़ सकता है। दरअसल 2,6-डीएचएनपी, कीटाणुशोधन उत्पाद (डीबीपी) का एक समूह है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी बजा रहा है। जो कई अन्य प्रदूषकों की तुलना में अधिक कठोर और जहरीले होते हैं, जिनसे छुटकारा पाना आसान नहीं होता।
तापमान के साथ बढ़ रहा है एनसीआर में ग्राउंड लेवल ओजोन का स्तर: सीपीसीबी
दिल्ली-एनसीआर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस पहुंचने के साथ, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एनसीआर के कई हिस्सों में बढ़ते ग्राउंड लेवल ओजोन के लिए अलर्ट जारी किया है। सीपीसीबी डेटा के अनुसार, एनसीआर ने आठ घंटों के लिए 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक को पार किया। ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे के बीच इसके स्तर में अधिकतम वृद्धि दर्ज की गई।
प्राधिकरण ने छह प्रमुख वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशनों की पहचान की है। इसके अतिरिक्त, इसने हरियाणा और यूपी के अधिकारियों को गुरुग्राम, फरीदाबाद, नोएडा और गाजियाबाद में अपने मॉनिटरिंग स्टेशनों को टैप करने और संवेदनशील स्टेशनों की पहचान करने के लिए कहा है, क्योंकि बढ़ते तापमान के साथ ओजोन का स्तर और बढ़ने की भविष्यवाणी की गई है।
ग्राउंड लेवल के पास ओजोन की बढ़े स्तर से सांस की नली में जलन हो सकती है, फेफड़ों की बीमारी भी बढ़ सकती है, और श्वसन प्रणाली में संक्रमण से लड़ने की प्रतिरक्षा क्षमता कम होती है।
गंगा प्रदूषण: अधूरी रिपोर्ट सौंपने पर एनजीटी ने झारखंड के 4 जिलाधिकारियों पर लगाया जुर्माना
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंगा के प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण के संबंध में ‘अधूरी रिपोर्ट’ प्रस्तुत करने के लिए झारखंड के चार जिलाधिकारियों पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया है।
एनजीटी ने गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण को कम करने के मामला में झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से विशेष जानकारी मांगी थी।
“इन चार जिलाधिकारियों ने ट्रिब्यूनल के पहले के आदेश का स्पष्ट रूप से पालन नहीं किया है, और अधूरी रिपोर्ट जमा की है। इसलिए, हम इन चार जिला मजिस्ट्रेटों में से हर एक को 10,000 रुपए जमा करने के लिए चार सप्ताह का समय देते हैं,” ट्रिब्यूनल ने कहा।
एनजीटी मामले को अगली सुनवाई 19 जुलाई को करेगी।
भारत की एनर्जी ट्रांज़िशन दौड़ में कर्नाटक, गुजरात सबसे आगे: रिपोर्ट
एक नई रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक और गुजरात स्वच्छ ऊर्जा ट्रांज़िशन की दौड़ में सबसे आगे बने हुए हैं। हालांकि, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को और प्रयास करने की जरूरत है।
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) और स्वच्छ ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर की इस संयुक्त रिपोर्ट में उप-राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छ बिजली ट्रांज़िशन की तैयारियों का मूल्यांकन किया गया है।
रिपोर्ट के लेखकों ने कहा कि कर्नाटक और गुजरात ने सभी आयामों में अपना मजबूत प्रदर्शन जारी रखा है, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपने पावर सेक्टर में प्रभावी ढंग से एकीकृत किया है, डीकार्बनाइजेशन में मजबूत प्रगति की है। लेकिन झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सुधार की जरूरत है।
2023-24 में रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ी भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता
मार्च 31, 2024 को समाप्त हुए पिछले वित्तीय वर्ष में भारत में स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 18.5 गीगावाट के वार्षिक स्तर तक पहुंच गई। भारत ने अकेले मार्च में रिकॉर्ड 7.1 गीगावाट स्थापित किए। रिस्टैड एनर्जी के एक अध्ययन में बताया गया है कि इस वृद्धि का श्रेय मुख्य रूप से सोलर इंस्टालेशंस को जाता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए रिस्टैड एनर्जी में रिन्यूएबल्स एंड पावर रिसर्च के उपाध्यक्ष रोहित प्रदीप पटेल ने महत्वपूर्ण चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जिसमें अधिक नवीकरणीय क्षमता के साथ आनेवाली उच्च इंटीग्रेशन लागत के साथ-साथ ग्रिड की स्थिरता सुनिश्चित करना भी शामिल है। “इसका एक समाधान स्वच्छ ऊर्जा के साथ लक्षित निर्यात को संतुलित करने में है…”
नई स्थापित क्षमता में 6.2 गीगावॉट से अधिक का योगदान अकेले सौर ऊर्जा का है। इंस्टालेशन में वृद्धि के कारण घरेलू सौर उपकरण की मांग में भी वृद्धि हुई है। मार्च 2024 तक भारत की सौर पैनल उत्पादन क्षमता 68 गीगावॉट थी।
अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के लिए चाहिए 12 ट्रिलियन डॉलर: अल जबेर
कॉप28 के अध्यक्ष सुल्तान अल जबेर ने कहा है कि 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के लिए अगले छह वर्षों में नया इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए कम से कम 12 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत है। पीटर्सबर्ग जलवायु वार्ता को संबोधित करते हुए, अल जबेर ने कहा कि महत्वपूर्ण निवेश और क्लाइमेट फाइनेंस में वृद्धि के बिना एनर्जी ट्रांज़िशन संभव नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि क्लाइमेट फाइनेंस को बढ़ाने के लिए चार प्रमुख प्राथमिकताएं हैं इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी, पीपल और ग्लोबल साउथ।
“इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो हमें 2030 के 11 टेरावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को पूरा करने के लिए अगले छह वर्षों में कम से कम 6 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करने की जरूरत है। और हमें पुरानी ग्रिडों को अपग्रेड करने के लिए भी इतनी ही राशि खर्च करनी होगी,” उन्होंने कहा।
पिछले साल दुबई में हुए कॉप28 में 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया गया था। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना और ऊर्जा दक्षता को दोगुना किया जाए।
वाराणसी में तैनात होंगे हरित हाइड्रोजन ईंधन सेल अंतर्देशीय जहाज
राष्ट्रीय जलमार्ग-I पर हरित हाइड्रोजन ईंधन सेल अंतर्देशीय जहाजों की तैनाती के लिए पायलट स्थान के रूप में वाराणसी को चुना गया है। पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने एक बयान में कहा गया है कि यह कदम सरकार के हरित नौका दिशानिर्देशों के अनुरूप है।
मंत्रालय ने कहा है कि बंकरिंग जैसी सुविधाओं के लिए संभावित भागीदारों के साथ चर्चा जारी है। चूंकि मेथनॉल से उत्सर्जन कम होता है, इसलिए इसे वैश्विक स्तर पर कार्गो जहाजों के लिए प्रमुख हरित ईंधनों में से एक माना जाता है, जैसा कि मेर्सक द्वारा मेथनॉल-संचालित जहाजों की तैनाती में देखा गया है, मंत्रालय ने कहा।
बयान में इस सुझाव का ज़िक़्र किया गया है कि अंतर्देशीय जहाजों के ग्रीन ट्रांज़िशन की दिशा में ऐसी प्रणाली पर विचार किया जाए जिससे मेथनॉल इंजन स्वदेश में विकसित किए जा सकें।
ऑटोमोबाइल उद्योग: पुर्जे बनानी वाली कंपनियां अगले 3-4 साल में करेंगी ₹25,000 करोड़ का निवेश
रेटिंग एजेंसी इक्रा (ICRA) ने कहा है कि ऑटोमोबाइल के पुर्जों से जुड़े उद्योगों द्वारा विद्युत वाहनों के पार्ट्स निर्माण का विस्तार करने के लिए अगले 3-4 वर्षों में ₹25,000 करोड़ से अधिक का निवेश करने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2024 में देश में ईवी की पहुंच 4.7% तक पहुंच गई है, जिसमें से अधिकांश इलेक्ट्रिक दोपहिया सेगमेंट हावी है, हालांकि ई-थ्री-व्हीलर और इलेक्ट्रिक बसों ने भी इसमें योगदान दिया है।
इक्रा ने कहा, पिछले कुछ वर्षों में ट्रैक्शन मोटर्स, नियंत्रण इकाइयों और बैटरी प्रबंधन प्रणालियों में पर्याप्त स्थानीयकरण हुआ है। हालाँकि, एडवांस कैमिकल बैटरी, जो वाहन का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे महंगा घटक है और जो वाहन की कीमत का लगभग 35% -40% हिस्सा है, अब भीआयात किया जाता है। इस रेटिंग एजेंसी का अनुमान है कि 2030 तक घरेलू दोपहिया वाहनों की बिक्री में ईवी की हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत और यात्री वाहन की बिक्री में 15 प्रतिशत होगी।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान, बैटरी वाहनों की बिक्री में होगा बड़ा उछाल
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, इस साल इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री “तेज़ी से बढ़ेगी” और दुनिया भर में बिकने वाली पांच कारों में से एक में बैटरी और हाइब्रिड मॉडल की हिस्सेदारी देखी जा सकती है। आईईए का सालाना आकलन रिपोर्ट बताती है कि “कुछ बाजारों में चुनौतियों” के बावजूद आने वाले वर्षों में, “सड़कों पर विद्युत वाहनों की हिस्सेदारी तेज़ी से बढ़ेगी।”
विश्लेषण बताता है कि पिछले साल 2023 में 14 मिलियन कारों की बिक्री के मुकाबले इस साल 17 मिलियन इलैक्ट्रिक कारों बिकेंगी जो 21% की बढ़ोतरी है। मौजूदा नीतियों के हिसाब से साल 2030 तक चीनी सड़कों पर हर तीन में से एक वाहन बैटरी चालित होगा। इसी तरह अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के देशों में हर पांच में से एक विद्युत वाहन होने की संभावना जताई गई है। ऑटोमोबाइल और एनर्जी सेक्टर में में इस क्रांति का प्रभाव पड़ेगा। यह अध्ययन ऑटो निर्माता कंपनियों के द्वारा दिये गये बयानों के बिल्कुल विपरीत है जिसमें यह कहा जाता है कि अधिक कीमत और चार्जिंग स्टेशनों की कमी के कारण उपभोक्ता बैटरी चालित वाहनों में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा।
भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने किया लीथियम आयन बैटरी क्षेत्र में नई कामयाबी का दावा
भारतीय और अमेरिकी वैज्ञानिकों के संयुक्त रिसर्च उपक्रम ने लीथियम आयन बैटरी तकनीक क्षेत्र में नई कामयाबी का दावा किया है। टैक्सास यूनिवर्सिटी और हरीश चंद्र रिसर्च संस्थान (प्रयागराज) के वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है कि बैटरी जल्दी चार्ज होगी और अधिक देर तक काम करेगी। यह रिसर्च जाने माने जर्नल नेचर मटीरियल में प्रकाशित हुई है। इन वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत के कुछ हिस्सों में लीथियम भंडार की संभावना को देखते हुए यह खोज काफी प्रभावी हो सकती है।
उधर जापानी ऑटो मेकर निसान का कहना है कि वह 2029 तक ऐसे नये विद्युत वाहन उतारेगी जिनमें सबसे आधुनिक तकनीक वाली बैटरियां होंगी। निसान को अमेरिकी कंपनी टेस्ला से कड़ा मुकाबला मिल रहा है और उसने एक मीडिया ट्रिप के दौरान अपने पायलट प्रोजेक्ट की जानकारी देते हुये आधुनिक बैटरियों वाली कार की सूचना दी।
इस साल के अंत में जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (COP-29) अज़रबेज़ान में होना है और मेज़बान देश ने जीवाश्म ईंधन में निवेश के अपने इरादे ज़ाहिर कर दिये हैं। राष्ट्रपति इल्हम अलीयेव ने कहा है कि तेल और गैस के प्रचुर संसाधन “ईश्वर का दिया उपहार” हैं और वो यूरोप की मांग को पूरा करने के लिये गैस उत्पादन में निवेश जारी रखेंगे। अलीयेव ने बात बर्लिन में हुए पीटर्सबर्ग क्लाइमेट सम्मेलन में कही। अलीयेव ने प्राकृतिक गैस का उत्पादन बढ़ाने के लिये यूरोप के साथ हुए करार को रेखांकित किया। यह करार रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रूस से यूरोप को तेल-गैस की सप्लाई में कमी की भरपाई के लिये किया गया है।
इससे पहले पिछले साल हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की मेज़बानी संयुक्त अरब अमीरात ने की थी और वहां की सबसे बड़ी तेल और गैस कंपनी के सीईओ अल जबेर सम्मेलन के अध्यक्ष थे। तब भी तेल कंपनियों के जमावड़े के कारण बड़ा विवाद हुआ था। पिछले कुछ समय से जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में तेल कंपनियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। हालांकि जीवाश्न ईंधन का व्यापार करने वाले यह देश ग्रीन एनर्ज़ी में अपने निवेश को बढ़ाचढ़ा कर दिखाते हैं। जैसे अज़रबेज़ान के राष्ट्रपति ने भी कहा है उनका देश 2027 तक 2 गीगावॉट ग्रीन एनर्जी के संयंत्र लगायेगा।
जीवाश्म ईंधन सेक्टर पर बाइडेन ने लगाये कड़े नियम
अमेरिका ने गुरुवार को बड़े स्तर पर नए नियमों की घोषणा की, जिसके तहत कोयले से चलने वाले संयंत्रों को अपने लगभग सभी कार्बन उत्सर्जन को खत्म करना होगा या पूरी तरह से बंद करने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा, जो कि जलवायु संकट का सामना करने के लिए राष्ट्रपति जो बाइडेन के एजेंडे का मुख्य आधार है। हालांकि कुछ पर्यावरण संगठनों और कार्यकर्ताओं ने इस कदम को “गेमचेंजर” बताते हुए इसका स्वागत किया है। लेकिन ये नियम 2032 से प्रभावी होंगे और इसके प्रावधानों को लेकर सवाल बने हुये हैं।
इनमें यह अनिवार्य होगा कि नए, उच्च क्षमता वाले गैस से चलने वाले संयंत्र अपने कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादन को उसी मात्रा में – 90 प्रतिशत – कम कर देंगे। यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए कार्बन कैप्चर तकनीक की आवश्यकता होगी। यह तकनीक अभी विवादों में है और इसकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह है। जानकार मानते हैं कि अगले राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प से कड़ी चुनौती का सामना कर रहे जो बाइडेन ने युवा और प्रगतिशील मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिये यह दांव खेला है।
प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ संधि को कमज़ोर करने के लिये जुटे दुनिया भर के जीवाश्म ईंधन लॉबीकर्ता
सेंटर फॉर इंटरनेशनल इन्वारेंमेंटल लॉ (CIEL) का विश्लेषण बताता है कि जीवाश्म ईंधन और रसायन उद्योग से जुड़े 196 लॉबीकर्ताओं ने ओटावा (कनाडा) में प्लास्टिक प्रदूषण निरोधक वैश्विक संधि से जुड़े विमर्श के लिये पंजीकरण कराया है। पिछले साल नवंबर में जब संधि के लिये वार्ता हुई थी तो जीवाश्म ईंधन कंपनियों के 143 लॉबीकर्ता मौजूद थे। इस बार का यह आंकड़ा इनकी संख्या में 37% की वृद्धि दिखाता है। यह संख्या यूरोपीय यूनियन के प्रतिनिधिमंडल में शामिल नुमाइंदों की संख्या से अधिक है।
पहाड़ों से लेकर समुद्र तक फैला प्लास्टिक आज मानवता के लिये सबसे बड़े ख़तरों में से एक है। साल 2022 में सभी देश राजी हुये थे कि 2024 के अंत तक इसे लेकर एक संधि हो जायेगी। लेकिन प्लास्टिक निर्माण के लिये जीवाश्म ईंधन का प्रयोग होता है और प्लास्टिक का उत्पादन कम करने वाली कोई भी संधि इन कंपनियों के हितों के खिलाफ है। ओटावा में वार्ता के बाद वार्ता का आखिरी दौर इस साल दक्षिण कोरिया में होना है। जीवाश्म ईंधन कंपनियां इस तर्क को आगे बढ़ा रहे हैं प्लास्टिक की समस्या प्लास्टिक उत्पादन से नहीं बल्कि कचरे का सही प्रबंधन न होने के कारण है।