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दक्षिण-पश्चिन मॉनसून इस साल जल्दी पहुंच रहा है, खरीफ की बंपर फ़सल की उम्मीद बढ़ी
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अपने निर्धारित समय (21 मई) से एक सप्ताह पहले अंडमान सागर, दक्षिणी बंगाल की खाड़ी और अंडमान और निकोबार द्वीप के कुछ हिस्सों में प्रवेश कर गया। निकोबार द्वीप समूह के कुछ स्थानों पर मध्यम से भारी वर्षा दर्ज की गई, साथ ही पिछले दो दिनों में बंगाल की खाड़ी के दक्षिणी भाग, निकोबार द्वीप समूह और अंडमान सागर में पश्चिमी हवाओं की तीव्रता बढ़ गई।
मौसम विभाग ने कहा कि मानसून 27 मई को केरल के तट पर पहुंचेगा। मॉनसून का यह आगमन सामान्य से 5 दिन जल्दी है और यह पिछले 5 वर्षों में मॉनसून का सबसे शीघ्र आगमन है। इससे चावल, मक्का और सोयाबीन जैसी फसलों की बंपर पैदावार की उम्मीद बढ़ गई है।
मॉनसून भारत की 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है मॉनसून, खेतों को पानी देने और जलभृतों और जलाशयों को रिचार्ज करने के लिए आवश्यक लगभग 70% बारिश प्रदान करता है। भारत की लगभग आधी कृषि भूमि, बिना किसी सिंचाई कवर के, कई फसलों को उगाने के लिए वार्षिक जून-सितंबर की बारिश पर निर्भर करती है।
मानसून के आगमन का पूर्वानुमान छह प्रमुख पूर्वानुमानों पर निर्भर करता है: उत्तर-पश्चिम भारत में उच्च न्यूनतम तापमान, दक्षिणी प्रायद्वीप में मानसून-पूर्व वर्षा का चरम, सबट्रॉपिकल उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर में समुद्र तल का औसत दबाव, दक्षिण चीन सागर में बाहर जाने वाली दीर्घ-तरंग विकिरण ( यह विकिरण वायुमंडल द्वारा अंतरिक्ष में जाने वाला कुल विकिरण या बादलों की सीमा है), तथा उत्तर-पूर्वी हिंद महासागर और इंडोनेशिया क्षेत्र में हवा का पैटर्न।
इस सीज़न में दक्षिण-पश्चिम मानसून सामान्य से अधिक रहने की उम्मीद है, मात्रात्मक रूप से दीर्घ अवधि औसत (880 मिमी) का 105 प्रतिशत। मौसम विभाग ने अप्रैल में कहा था कि कुल मिलाकर, मानसून की बारिश पूर्वोत्तर और तमिलनाडु को छोड़कर देश के बड़े हिस्सों में सामान्य या सामान्य से अधिक रहने की उम्मीद है।
गुजरात में भारी बारिश के कारण कम से कम 14 लोगों की मौत
मई के पहले हफ्ते 4 और 5 तारीख को पश्चिमी राज्य गुजरात में भारी प्री-मानसून बारिश के कारण कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई और 16 अन्य घायल हो गए। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने राज्य के अधिकारियों के हवाले से यह जानकारी दी। मौसम विभाग के अनुसार, राज्य के अधिकांश हिस्सों में बेमौसम बारिश पड़ोसी पाकिस्तान और भारत के राजस्थान में चक्रवाती परिसंचरण के कारण हुई।
बीते 12 महीनों में वैश्विक तापमान 1.58 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा
नए आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 22 महीनों में से 21 महीनों में मासिक औसत वैश्विक तापमान “1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि स्तर” से ऊपर रहा। लंदन के अखबार FT के मुताबिक यूरोपीय ग्रहीय डेटा सेवा कोपरनिकस ने पाया है कि अप्रैल 2025 में औसत तापमान 14.96 डिग्री सेल्सियस रहा जो 1850-1900 के औसत तापमान से 1.51 डिग्री सेल्सियस अधिक था जो दूसरा सबसे गर्म महीना था। इस प्रकार, यह अप्रैल वर्ष 2024 में बने रिकॉर्ड से केवल 0.7 डिग्री सेल्सियस ठंडा था क्योंकि पिछले वर्ष का तापमान वैश्विक औसत तापमान (पूर्व-औद्योगिक स्तर से) 1.58 डिग्री सेल्सियस अधिक था। तापमान वृद्धि रोकने के लिए सरकारों पर बनाये जा रहे दबावों के बावजूद यह बढ़ोतरी इन कोशिशों के लिए एक झटका है।
कांगो में बाढ़ से 100 से अधिक लोगों की जान गई
अचानक आई बाढ़ के कारण कांगो में 100 से अधिक लोगों की जान चली गई। बीबीसी के मुताबिक “दक्षिण किवु में रात भर मूसलाधार बारिश के कारण बाढ़ आ गई, जिससे घर नष्ट हो गए और परिवार विस्थापित हो गए। यह क्षेत्र अपने वर्षा ऋतु के अंत की ओर बढ़ रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में और भारी बारिश का पूर्वानुमान है, जिससे और अधिक बाढ़ की आशंका बढ़ गई है।”
एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ ने दक्षिण किवु प्रांत में “कई गांवों को बहा दिया है”, जिसमें “बच्चे और बुजुर्ग लोग” बड़ी संख्या में मारे गए हैं। इसने एक क्षेत्रीय अधिकारी बर्नार्ड अकिली के हवाले से कहा कि मूसलाधार बारिश के कारण कसाबा नदी रातों-रात अपने किनारों को तोड़कर बह गई, और पानी ने “अपने रास्ते में आने वाली हर चीज, बड़े पत्थर, बड़े पेड़ और कीचड़ को बहाकर ले गया, और फिर झील के किनारे के घरों को तहस-नहस कर दिया।”
इससे पहले वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के वैज्ञानिकों द्वारा अप्रैल में आई बाढ़ के आकलन में पाया गया था कि पूर्वी डीआरसी में चरम संघर्ष के कारण उत्पन्न अत्यधिक संवेदनशीलता, इस आपदा के इतने घातक होने का एक प्रमुख कारण थी।
आर्कटिक समुद्री बर्फ में तेजी से कमी आने के कारण दक्षिण एशिया में बारिश की घटनाएं बढ़ेंगी: अध्ययन
आईओपी साइंस में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कहा गया है कि आर्कटिक समुद्री बर्फ तेजी से कम होने की महत्वपूर्ण घटना देखी गई है। इस कमी आने से दक्षिण एशिया में इंटेन्स प्रिसिपिटेशन इवेन्ट्स यानी तीव्र वर्षा की घटनाओं (आईपीई) में वृद्धि होगी, जिससे लोगों को अत्यधिक बारिश से जुड़ी आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है।
हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर में 6 मई को प्रकाशित शोध पत्र का हवाला देते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन के साथ आर्कटिक समुद्री बर्फ में गिरावट तेज हो रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि केरल में 2018 की बाढ़ या उत्तराखंड में 2013 की बाढ़ के दौरान दर्ज की गई तीव्र बारिश की घटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि होगी। ये दोनों घटनाएँ तीव्र वर्षा की घटनाएँ थीं। 150 मिमी दिन-1 (ग्रिड पॉइंट में) की सीमा से अधिक वर्षा की घटनाओं को अत्यधिक वर्षा की घटनाओं के रूप में गिना जाता है।
पश्चिमी घाट में पेड़ों की पत्तियाँ गर्मी की महत्वपूर्ण सीमा को पार कर रही हैं: अध्ययन
वैज्ञानिकों ने पाया है कि पश्चिमी घाट में कई उष्णकटिबंधीय वन और कृषि वानिकी प्रजातियों की पत्तियाँ के लिए तापमान इतना अधिक हो गया है कि इससे उन्हें अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है। कर्नाटक में सिरसी के पास होसागड्डे गांव में एक अध्ययन किया गया जिसमें कुल 13 एग्रोफॉरेस्ट्री प्रजातियों और 4 नेटिव जंगली प्रजातियों की वर्ष 2023 में कुल 4.5 महीने तक मॉनिटरिंग की गई जहां पर इन प्रजातियों को बहुधा 40 डिग्री से अधिक के तापमान का सामना करना पड़ा।
इसमें पाया गया कि कई पौधों की पत्तियों का तापमान उनके सहन करने की सीमाओं से अधिक था, जिससे यह चिंता उत्पन्न हो गई कि उष्णकटिबंधीय प्रजातियां पर वैश्विक तापमान का क्या असर होगा।
भारत का ग्रीन कवर बढ़कर 25% हुआ, लेकिन चिंताएं बरकरार: रिपोर्ट
भारत का कुल वन और ट्री कवर देश के भूमि क्षेत्र का 25.17 प्रतिशत हो गया है। यह वृद्धि विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और ग्रीन एरिया का विस्तार करने के प्रयासों के कारण हुई है। हालांकि, पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए हिंदुस्तान टाइम्स ने एक रिपोर्ट में बताया कि अभी भी चिंताएं गंभीर हैं। एचटी ने पहले रिपोर्ट किया था कि भले ही कुल ग्रीन कवर बढ़ रहा हो, 2023 की इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) गंभीर मुद्दों की ओर इशारा करती है।
इन मुद्दों में प्राकृतिक जंगलों के बड़े हिस्से का नुकसान, मानव निर्मित बागानों में वृद्धि, और “अवर्गीकृत जंगलों” पर स्पष्टता की कमी शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ये बदलाव कई तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे जैव विविधता को कम कर सकते हैं, उन समुदायों को प्रभावित कर सकते हैं जो आहार और आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर हैं, और पुराने प्राकृतिक जंगलों से होने वाले लाभों जैसे स्वच्छ हवा, जल विनियमन और जलवायु सुरक्षा को कमजोर करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को लगाई फटकार, पेड़ों की कटाई को बताया “पूर्व-नियोजित”
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को कड़ी फटकार लगते हुए कहा है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के आसपास पेड़ों की कटाई “पूर्व-नियोजित” प्रतीत होती है, और यदि जंगलों को बहाल नहीं किया गया तो अधिकारियों को जेल हो सकती है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने सवाल किया कि लॉन्ग वीकेंड, जब अदालतों की छुट्टी थी, तो इस बात का फायदा उठाते हुए पेड़ क्यों काटे गए।
कार्रवाई को “पूर्व-नियोजित” बताते हुए अदालत ने चेतावनी दी कि यदि जंगल बहाल नहीं किया जाता है तो मुख्य सचिव सहित राज्य के शीर्ष अधिकारियों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। अदालत ने कहा कि पेड़ों की कटाई दर्जनों बुलडोजर का उपयोग करके उचित अनुमतियों के बिना की गई थी। हालांकि राज्य सरकार ने दावा किया कि उसने अदालत के आदेशों के अनुपालन करते हुए ही यह कदम उठाया था। सरकार ने वन बहाली की कोई स्पष्ट योजना की भी पेशकश नहीं की। शीर्ष अदालत में 23 जुलाई को फिर से मामले की सुनवाई होगी।
क्लाइमेट चेंज के कारण जरूरी है सिंधु जल समझौते की समीक्षा: विशेषज्ञ
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद भारत ने 1960 में हुआ सिंधु जल समझौता स्थगित कर दिया है। लेकिन हालिया अध्ययनों और जानकारों की राय है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण संधि की समीक्षा करने की जरूरत है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लेशियोलॉजिस्ट अनिल वी कुलकर्णी का कहना है कि भारत की पूर्वी नदियां — रावी, ब्यास और सतलुज — जिन ग्लेशियरों से निकलती हैं वह अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। इसकी तुलना में पाकिस्तान में बहने वाली पश्चिमी नदियों का पानी जिन ग्लेशियरों से आता है वह काराकोरम रेंज में अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं और इसलिए उनके पिघलने की रफ़्तार कम है। इस कारण से पूर्वी नदियों में अस्थाई रूप से पानी की मात्रा बढ़ सकती है, जिसके बाद तेजी से पानी की उपलब्धता में गिरावट होगी।
कुलकर्णी ने कहा कि तापमान, रनऑफ पैटर्न (बारिश, बर्फ या ग्लेशियर के पिघलने से पानी का बहना और नदियों, झीलों या समुद्र में पहुंचना) और ग्लेशियर स्टोरेज में बदलाव से पानी की उपलब्धता प्रभावित होगी। इससे संधि में दोनों देशों को मूल रूप से आवंटित पानी की हिस्सेदारी में भी परिवर्तन होगा, जो नदियों के स्थिर प्रवाह और पुराने आकलनों पर आधारित था।
इस कारण से सिंधु समझौते के अंतर्गत मुख्य रूप से भारत को आवंटित पूरी नदियां 2030 तक अपने बहाव के उच्चतम स्तर तक पहुंच जाएंगी, जिसके बाद यह घटने लगेंगी। वहीं मुख्य रूप से पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियां 2070 तक अपने बहाव के उच्चतम पर पहुंचेंगी। इस स्थिति में पानी के न्यायसंगत बंटवारे के लिए संधि की समीक्षा जरूरी है।
क्लाइमेट चेंज के लिए कंपनियों पर कार्रवाई रोकने के लिए ट्रंप प्रशासन ने राज्यों पर किया मुकदमा
अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट ने जीवाश्म ईंधन कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को अवरुद्ध करने के लिए अपने ही देश के दो राज्यों पर मुकदमे दायर किए हैं। द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, हवाई और मिशिगन ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान के लिए बड़ी तेल और गैस कंपनियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की योजना बनाई थी। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि क्लीन एयर एक्ट के मुताबिक केवल संघीय संस्था एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) के पास यह अधिकार है कि वह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को विनियमित करे, और राज्य अपनी ओर से मुकदमे दायर नहीं कर सकते। कानूनी जानकार इन मुकदमों को अभूतपूर्व बताते हुए कहते हैं कि यह पर्यावरणीय जवाबदेही तय करने के प्रयासों के खिलाफ ट्रंप प्रशासन के आक्रामक रुख का एक और संकेत है।
उद्योगों के लिए इमीशन टार्गेट: सरकार ने जारी किया ड्राफ्ट नोटिफिकेशन
मोंगाबे में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने उच्च-उत्सर्जकों के लिए उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य निर्धारित करने के लिए एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया है, जो देश के पहले अनुपालन-आधारित कार्बन बाजार को अंतिम रूप देने की दिशा में एक कदम है, जिसे 2026 में लॉन्च किए जाने की उम्मीद है।
अधिसूचना में सूचीबद्ध औद्योगिक इकाइयों के लिए कम उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करना अनिवार्य कर दिया गया है। जो इकाइयाँ दिए गए लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन घटाती हैं, वे क्रेडिट पाने की हकदार होंगी जिन्हें वो कार्बन बाज़ार में बेच सकती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जो इकाइयाँ अपने लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पातीं, वे अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ये क्रेडिट खरीद सकती हैं।
यदि उद्योग नियमों का पालन करने में विफल रहते हैं, तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा जुर्माना लगाया जाएगा। रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “वर्तमान स्थिति के अनुसार, 282 औद्योगिक इकाइयों को इन नए लक्ष्यों को पूरा करना अनिवार्य है, जो एल्युमीनियम, सीमेंट, क्लोर-अल्कली और पल्प और पेपर क्षेत्रों में हैं। सीमेंट क्षेत्र – जो भारत के कार्बन उत्सर्जन का 5.8% हिस्सा है – में लक्ष्य को पूरा करने वाले सबसे अधिक उद्योग (186) हैं।”
सरकार बाद में उर्वरक, लोहा, इस्पात, पेट्रोकेमिकल्स और पेट्रोलियम रिफाइनरी क्षेत्रों को भी इसमें शामिल करने की योजना बना रही है। बाध्य उद्योगों की सूची से बिजली क्षेत्र स्पष्ट रूप से गायब है, जो भारत का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, जो 39.2% कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है।
दिल्ली के 37 में 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मानकों को पूरा करने में फेल
दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के बारह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) निर्धारित मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में दिल्ली जल बोर्ड के कुल 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं। डाउन टु अर्थ मैग्ज़ीन में प्रकाशित ख़बर में कहा गया है कि डीजेबी द्वारा राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को सौंपे गए आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 25 सभी निर्धारित मानकों को पूरा कर रहे हैं और पूरी क्षमता से चल रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली जल बोर्ड द्वारा अपनी वेबसाइट पर अपडेट किए गए डेटा की दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा लगातार निगरानी की जाती है। एनजीटी के 22 नवंबर, 2024 के आदेश के अनुपालन में दायर हलफनामे में डीजेबी ने 8 मई, 2025 को यह बात कही। ट्रिब्यूनल यमुना नदी के किनारे डीजेबी द्वारा स्थापित एसटीपी के ठीक से काम न करने की शिकायतों की जांच कर रहा है।
जंगलों की आग का धुंआं शहरी वायु प्रदूषण से अधिक ख़तरनाक, एक अरब घरों में इसका प्रभाव
एक नए शोध के अनुसार, 2005 से अब तक हर साल जंगल की आग से होने वाला जहरीला प्रदूषण एक अरब से ज़्यादा लोगों के घरों में प्रवेश कर चुका है। वैज्ञानिकों ने कहा कि जलवायु संकट गर्मी और सूखे को बढ़ाकर जंगल की आग के जोखिम को बढ़ा रहा है, जिससे जंगल की आग के धुएं का मुद्दा एक “जटिल वैश्विक मुद्दा” बन गया है।
अंग्रेज़ी अख़बार गार्डियन के मुताबिक ने कहा कि जंगल की आग से पैदा होने वाले छोटे कण हज़ारों मील की दूरी तय कर सकते हैं और शहरी वायु प्रदूषण की तुलना में ज़्यादा ज़हरीले माने जाते हैं, क्योंकि उनमें सूजन पैदा करने वाले रसायनों की सांद्रता ज़्यादा होती है। आउटलेट के अनुसार, जंगल की आग के प्रदूषण से समय से पहले मृत्यु, दिल और सांस की बीमारियों का बिगड़ना और समय से पहले जन्म होने की संभावना बढ़ गई है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले अध्ययनों में जंगल की आग के धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों के बारे में बताया गया था, लेकिन लोग अपना ज़्यादातर समय घर के अंदर ही बिताते हैं, खास तौर पर जंगल की आग से बचने के लिए। नया विश्लेषण जंगल की आग के प्रदूषण में घर के अंदर होने वाले बदलावों का पहला वैश्विक अध्ययन है जिसमें हाइ रेजल्यूशन तकनीक प्रयोग में लाई गई।
निर्माण और डिमॉलिशन के लिए रिसाइकिलिंग अनिवार्य, निर्माता होगा ज़िम्मेदार
पर्यावरण मंत्रालय ने निर्माण और डिमॉविशन सेक्टर में अनिवार्य रिसाइकिलिंग लक्ष्य के लिए एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (ईपीआर) के नियम बनाये हैं।
नए अधिसूचित पर्यावरण (कंस्ट्रक्शन और डिमॉविशन) अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2025 के तहत, अधिकारियों को अब सभी निर्माण परियोजनाओं के लिए अनुमोदन में वेस्ट रिसाइकिलिंग के प्रावधानों को शामिल करना आवश्यक है। नियमों में अनिवार्य किया गया है कि निर्माण, पुनर्निर्माण और विध्वंस परियोजनाओं में ईपीआर लक्ष्यों को अपशिष्ट प्रबंधन योजना के माध्यम से विनियमित किया जाना चाहिए।
ईपीआर लक्ष्यों की गणना करते समय, सीमेंट कंक्रीट, ईंटें, प्लास्टर, पत्थर, मलबे और चीनी मिट्टी जैसे मलबे पर विचार किया जाएगा। हालाँकि, पुनः उपयोग योग्य या पुनः बिक्री योग्य सामग्री, जैसे लोहा, लकड़ी, प्लास्टिक, धातु और कांच, को ईपीआर लक्ष्यों में नहीं गिना जाएगा।
नए नियमों के अनुसार 20,000 वर्ग मीटर या उससे अधिक निर्मित क्षेत्र वाली परियोजनाओं और सड़क निर्माण परियोजनाओं के लिए प्रोसेस्ड अपशिष्ट (वेस्ट) का उपयोग करना अनिवार्य है। इन नियमों का ठीक से पालन हो इसके लिए स्थानीय प्राधिकरण जिम्मेदार होंगे।
वैश्विक पवन ऊर्जा क्षमता में वृद्धि लक्ष्यों से बहुत पीछे: रिपोर्ट
ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (जीडब्ल्यूईसी) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वर्तमान प्रगति के अनुसार, पवन ऊर्जा उद्योग 2030 तक आवश्यक स्थापित क्षमता का केवल 77% ही प्राप्त कर सकेगा। इस कमी से विभिन्न देशों के नेट-ज़ीरो उत्सर्जन टारगेट प्रभावित हो सकते हैं और विश्व पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य से पिछड़ सकता है।
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में दुनिया भर में 117 गीगावाट नई पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई, जो 2023 में जोड़ी गई 116.6 गीगावाट क्षमता से थोड़ा ही अधिक है। इस वृद्धि के बाद कुल वैश्विक पवन ऊर्जा क्षमता 1,136 गीगावाट हो गई है।
बढ़ती बिजली की मांगों के अनुरूप वैश्विक पवन ऊर्जा वृद्धि कम हो रही है। साल 2024 में स्थापित क्षमता में 70% योगदान चीन का था। अस्थिर नीतियां, परियोजनाओं को मंजूरी मिलने में देरी और कमजोर ग्रिड निवेश जैसी चुनौतियां प्रगति में बाधा डाल रही हैं। अफ्रीका और मध्य पूर्व में पवन क्षमता दोगुनी हो गई। जबकि अपतटीय पवन क्षमता में 26% कम वृद्धि हुई, जो 2021 के बाद से सबसे कम है।
चीन, वियतनाम के सोलर ग्लास पर भारत ने लगाया एंटी-डंपिंग शुल्क
भारत ने पांच साल के लिए चीन और वियतनाम से सोलर ग्लास आयात पर प्रति टन 664 अमरीकी डॉलर तक एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया है। इस ग्लास का उपयोग सोलर पैनलों में किया जाता है। इस कदम का उद्देश्य भारतीय निर्माताओं को सस्ते आयात से बचाना है। यह निर्णय व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) द्वारा एक जांच के बाद लिया गया है, जिसमें पाया गया कि डंपिंग में तेजी से वृद्धि हुई है। यह शुल्क $570 से $664 प्रति टन के बीच है। निष्पक्ष व्यापार सुनिश्चित करने और स्थानीय उद्योगों का समर्थन करने के लिए डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत इस तरह के शुल्क लगाए जा सकते हैं।
पैतृक जंगल में नवीकरणीय परियोजना का विरोध कर रहे हैं राजस्थान के आदिवासी
राजस्थान के बारां जिले में आदिवासी और दलित समुदाय के लोग एक बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना का विरोध कर रहे हैं, जो उनके पैतृक शाहबाद वन के लिए खतरा है। ग्रीनको एनर्जीस इस जंगल में 1,800-मेगावाट की पंप स्टोरेज फेसिलिटी बनाने की तयारी में है, जिसके लिए 408 हेक्टेयर जंगल को हटाने और 1.19 लाख से अधिक पेड़ काटने की जरूरत होगी। स्थानीय ग्रामीणों को परियोजना के कारण अपनी आजीविका, खाद्य स्रोतों और सांस्कृतिक पहचान को खोने का डर है, जिसके लिए उनमें से अधिकांश इस वन पर निर्भर हैं। हालांकि कंपनी का दावा है कि परियोजना से मोंडियार गांव प्रभावित नहीं होगा, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ब्रोकर्स जमीन खरीद रहे हैं। यह परियोजना स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने के भारत के प्रयासों का हिस्सा है, लेकिन फिलहाल इससे विस्थापन, कुपोषण और पर्यावरणीय क्षति पर खतरा पैदा हो गया है, जो विकास और अस्तित्व के बीच बढ़ते संघर्ष को उजागर करता है।
सौर निविदाओं में 53% और नीलामी में 39% की गिरावट
भारत सरकार ने 2025 की पहली तिमाही में लगभग 14.4 गीगावाट की सौर निविदाएं जारी कीं। मेरकॉम के अनुसार, यह पिछले साल की इसी अवधि में जारी 30.7 गीगावाट निविदाओं से 53.1% कम है। केंद्र सरकार ने हर साल 50 गीगावाट क्षमता की नवीकरणीय परियोजनाओं के लिए निविदाएं जारी करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी कम से कम 10 गीगावाट होगी। इस प्रक्रिया का कार्यान्वयन चार एजेंसियों द्वारा किया जाता है — नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी), नेशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी), सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) और सतलुज जल विद्युत् निगम (एसजेवीएन)।
रिपोर्ट के अनुसार चारों एजेंसियों ने इस साल के 50 गीगावाट के लक्ष्य के 77% के बराबर क्षमता की निविदाएं जारी की हैं। पहली तिमाही में जारी निविदाओं का 41% इन एजेंसियों ने जारी किया था।
पवन और सौर ऊर्जा नीलामी की नई घोषणाओं में भी 39 प्रतिशत की गिरावट आई। 2024 के अंत में 10.5 गीगावाट की नीलामी की घोषणाएं की गईं थीं, जबकि 2025 की शुरुआत में यह आंकड़ा 6.4 गीगावाट रहा। पिछले साल इसी अवधि में 25 गीगावाट की नीलामी हुई थी, जिसकी तुलना में 74 प्रतिशत की गिरावट आई।
वैश्विक व्यापर संकट के बावजूद तेजी से बढ़ रही ईवी की बिक्री: आईईए
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक व्यापार में अनिश्चितताओं के बावजूद इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री तेजी से बढ़ रही है। आईईए ने ग्लोबल ईवी आउटलुक में कहा है कि 2025 में दुनियाभर में बेची जाने वाली हर चार कारों में से एक इलेक्ट्रिक होगी। आईईए ने कहा कि पिछले साल 1.7 करोड़ यूनिट ईवी की बिक्री हुई, जो 2023 से 35 लाख अधिक थी। इस साल की पहली तिमाही में भी विश्व स्तर पर ईवी की बिक्री 35 प्रतिशत बढ़ गई, और बिक्री दो करोड़ से अधिक तक पहुंचने की उम्मीद है।
रिपोर्ट के अनुसार, परिचालन की गिरती लागत और बढ़ती खरीद क्षमता के कारण बिक्री में वृद्धि हो रही है। इस बाजार का नेतृत्व चीन कर रहा है, जहां बिकने वाली नई कारों में से लगभग आधी इलेक्ट्रिक हैं, और उनकी कीमतें अक्सर पारंपरिक कारों की तुलना में कम होती हैं। इसके विपरीत, यूरोप और अमेरिका में इलेक्ट्रिक कारें लगभग 20-30% महंगी हैं। चीनी निर्यात और नीतिगत सुधारों के चलते उभरते बाजारों में ईवी की बिक्री 60 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है। अब दुनिया भर में बिकने वाली कारों का लगभग 20 प्रतिशत ईवी हैं।
ईवी चार्जिंग स्टेशनों की फंडिंग रोकने पर अमेरिकी राज्यों ने ट्रंप प्रशासन पर किया मुकदमा
अमेरिका के कई राज्यों ने ट्रंप प्रशासन के ईवी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना के लिए आवंटित फंडिंग रोकने के फैसले को अदालत में चुनौती दी है। वाशिंगटन, कोलोराडो और कैलिफोर्निया के नेतृत्व में अमेरिकी राज्यों के एक गठबंधन ने सिएटल की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में मुकदमा दायर किया है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार उनकी मुख्य शिकायत यह है कि “संघीय एजेंसियों ने आवंटित फंड्स और नए स्टेशनों की मंजूरी को गैरकानूनी रूप से रोक दिया है, जिससे राज्य महत्वपूर्ण संसाधनों से वंचित हो गए हैं और बढ़ते इलेक्ट्रिक-वाहन उद्योग को नुकसान पहुंच रहा है”।
नए प्रकार के ऊर्जा भंडारण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है चीन
चीन अपनी ऊर्जा सुरक्षा में सुधार करने के लिए एक नए प्रकार के ऊर्जा भंडारण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। चाइना डेली के अनुसार, इसमें इलेक्ट्रोकेमिकल और हाइड्रोजन ऊर्जा भंडारण शामिल हैं। चीन को उम्मीद है कि 2025 में उसकी ऊर्जा भंडारण क्षमता 30 गीगावाट से अधिक हो जाएगी। इलेक्ट्रोकेमिकल एनर्जी स्टोरेज की सुरक्षा में सुधार के लिए एक नई नीति पेश की गई है। साथ ही, छोटे पायलट कार्यक्रमों से लेकर बड़े व्यापारों तक ऊर्जा भंडारण परियोजनाओं का विस्तार करने का एक बड़ा प्रयास किया जा रहा है। पिछले साल, चीन ने लगभग 43.7 गीगावाट नई ऊर्जा भंडारण परियोजनाएं शुरू कीं, जिनकी वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी 59 प्रतिशत है।
भारत ने नेपाल को उपहार में दिए 15 इलेक्ट्रिक वाहन में
भारत ने काठमांडू में ‘सागरमाथा संबाद’ शिखर सम्मेलन का समर्थन करने के लिए नेपाल को 15 इलेक्ट्रिक वाहन उपहार में दिए हैं। इस सम्मलेन में जलवायु परिवर्तन और पहाड़ों पर इसके प्रभाव पर चर्चा होगी। भारत द्वारा दिए गए वाहनों में मेहमानों और अधिकारियों के परिवहन में मदद करेंगे। नेपाल ने भारत को इस समर्थन के लिए धन्यवाद दिया है। शिखर सम्मेलन में विभिन्न देशों के लगभग 300 प्रतिभागी शामिल होंगे।
रूस के कोयला भंडार 5 सदियों के लिए पर्याप्त, भारत करेगा आयात
रूस के कोयला भंडार 500 सालों से अधिक की मांग पूरी करने के लिए पर्याप्त हैं और उसका मानना है कि कोयले को लेकर भारत के साथ उसका सहयोग और मजबूत होगा। नई खदानों से इस साल क्षमता 250 मिलियन टन तक बढ़ जाएगी। पिछले साल रूस ने 443.5 मिलियन टन कोयला का उत्पादन किया, जिसमें से उसने 196.2 मिलियन टन निर्यात किया। एक रिपोर्ट के अनुसार रूस का उद्देश्य इस साल आधुनिक, “इको-फ्रेंडली” कोयला उत्पादन का है।
रूस ने 2050 तक 662 मिलियन टन उत्पादन का उद्देश्य तय किया है। वह कोकिंग कोल और थर्मल कोयले की आपूर्ति के लिए भारत के साथ एक समझौता भी करना चाहता है। भारत के बढ़ते इस्पात उद्योग से कोयले की मांग बढ़ी है, और दोनों देशों ने सहयोग को बढ़ावा देने की योजना बनाई है, जिसके तहत भारत 2035 तक 40 मिलियन टन रूसी कोकिंग कोल का आयात कर सकता है।
सस्ते कोयले के प्रयोग से पहले बिजली संयंत्रों को लेनी होगी मंजूरी
नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने बिजली संयंत्रों द्वारा बिना मंजूरी के मनमाने ढंग से सस्ते कोयले का प्रयोग शुरू करने पर रोक लगा दी है। यह नीति पिछले पांच वर्षों से चली आ रही थी, जिसके तहत थर्मल पावर संयंत्र ऐश कंटेंट, कैलोरिफिक वैल्यू या संभावित पर्यावरणीय खतरों पर विचार किए बिना “कोयले का स्रोत” बदल सकते थे।
न्यूज़क्लिक की रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय ने 2020 में यह नीति वैज्ञानिक आकलन और हितधारकों से चर्चा किए बिना जारी की थी। नीति को रद्द करते हुए ट्राइब्यूनल ने कहा कि अधिक बेहतर तरीके से जवाबदेही सुनिश्चित करने की बजाय, मंत्रालय सुधारों के नाम पर नियमों को कमजोर कर रहा है।
भारत ने बिजली कंपनियों के लिए कोयला आपूर्ति के नियम बदले, पीपीए की बाध्यता खत्म
भारत ने नियमों में बदलाव कर निजी बिजली उत्पादकों को दीर्घकालिक कोयला आपूर्ति अनुबंधों की अनुमति दे दी है। रॉयटर्स ने बताया कि भारत ने अपनी कोयला-संचालित बिजली क्षमता बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया है। सरकार ने कंपनियों के लिए कोयला-आधारित बिजली बेचने से पहले पॉवर पर्चेज़ एग्रीमेंट (पीपीए) करने की अनिवार्यता भी समाप्त कर दी। कंपनियों को यह समझौते राज्य के बिजली बोर्ड जैसे खरीदारों के साथ करने होते थे, जिनके तहत बिजली की निश्चित दर तय की जाती थी। इस नियम के हटने से कोयला बिजली उत्पादक अब एक निश्चित समझौते के बिना खुले बाजार (जैसे पावर एक्सचेंज) पर बिजली बेच सकते हैं।
अब उत्पादक पीपीए के साथ या उसके बिना नीलामी के माध्यम से कोयला प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें तय कीमत पर एक प्रीमियम का भुगतान करना होगा। बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत अपनी कोयला-आधारित बिजली क्षमता को 2031-2032 तक 80 गीगावाट तक बढ़ाना चाहता है।