ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल (जीडब्ल्यूईसी) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वर्तमान प्रगति के अनुसार, पवन ऊर्जा उद्योग 2030 तक आवश्यक स्थापित क्षमता का केवल 77% ही प्राप्त कर सकेगा। इस कमी से विभिन्न देशों के नेट-ज़ीरो उत्सर्जन टारगेट प्रभावित हो सकते हैं और विश्व पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य से पिछड़ सकता है।
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में दुनिया भर में 117 गीगावाट नई पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई, जो 2023 में जोड़ी गई 116.6 गीगावाट क्षमता से थोड़ा ही अधिक है। इस वृद्धि के बाद कुल वैश्विक पवन ऊर्जा क्षमता 1,136 गीगावाट हो गई है।
बढ़ती बिजली की मांगों के अनुरूप वैश्विक पवन ऊर्जा वृद्धि कम हो रही है। साल 2024 में स्थापित क्षमता में 70% योगदान चीन का था। अस्थिर नीतियां, परियोजनाओं को मंजूरी मिलने में देरी और कमजोर ग्रिड निवेश जैसी चुनौतियां प्रगति में बाधा डाल रही हैं। अफ्रीका और मध्य पूर्व में पवन क्षमता दोगुनी हो गई। जबकि अपतटीय पवन क्षमता में 26% कम वृद्धि हुई, जो 2021 के बाद से सबसे कम है।
चीन, वियतनाम के सोलर ग्लास पर भारत ने लगाया एंटी-डंपिंग शुल्क
भारत ने पांच साल के लिए चीन और वियतनाम से सोलर ग्लास आयात पर प्रति टन 664 अमरीकी डॉलर तक एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया है। इस ग्लास का उपयोग सोलर पैनलों में किया जाता है। इस कदम का उद्देश्य भारतीय निर्माताओं को सस्ते आयात से बचाना है। यह निर्णय व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) द्वारा एक जांच के बाद लिया गया है, जिसमें पाया गया कि डंपिंग में तेजी से वृद्धि हुई है। यह शुल्क $570 से $664 प्रति टन के बीच है। निष्पक्ष व्यापार सुनिश्चित करने और स्थानीय उद्योगों का समर्थन करने के लिए डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत इस तरह के शुल्क लगाए जा सकते हैं।
पैतृक जंगल में नवीकरणीय परियोजना का विरोध कर रहे हैं राजस्थान के आदिवासी
राजस्थान के बारां जिले में आदिवासी और दलित समुदाय के लोग एक बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना का विरोध कर रहे हैं, जो उनके पैतृक शाहबाद वन के लिए खतरा है। ग्रीनको एनर्जीस इस जंगल में 1,800-मेगावाट की पंप स्टोरेज फेसिलिटी बनाने की तयारी में है, जिसके लिए 408 हेक्टेयर जंगल को हटाने और 1.19 लाख से अधिक पेड़ काटने की जरूरत होगी। स्थानीय ग्रामीणों को परियोजना के कारण अपनी आजीविका, खाद्य स्रोतों और सांस्कृतिक पहचान को खोने का डर है, जिसके लिए उनमें से अधिकांश इस वन पर निर्भर हैं। हालांकि कंपनी का दावा है कि परियोजना से मोंडियार गांव प्रभावित नहीं होगा, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ब्रोकर्स जमीन खरीद रहे हैं। यह परियोजना स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने के भारत के प्रयासों का हिस्सा है, लेकिन फिलहाल इससे विस्थापन, कुपोषण और पर्यावरणीय क्षति पर खतरा पैदा हो गया है, जो विकास और अस्तित्व के बीच बढ़ते संघर्ष को उजागर करता है।
सौर निविदाओं में 53% और नीलामी में 39% की गिरावट
भारत सरकार ने 2025 की पहली तिमाही में लगभग 14.4 गीगावाट की सौर निविदाएं जारी कीं। मेरकॉम के अनुसार, यह पिछले साल की इसी अवधि में जारी 30.7 गीगावाट निविदाओं से 53.1% कम है। केंद्र सरकार ने हर साल 50 गीगावाट क्षमता की नवीकरणीय परियोजनाओं के लिए निविदाएं जारी करने का लक्ष्य रखा है, जिसमें पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी कम से कम 10 गीगावाट होगी। इस प्रक्रिया का कार्यान्वयन चार एजेंसियों द्वारा किया जाता है — नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी), नेशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी), सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) और सतलुज जल विद्युत् निगम (एसजेवीएन)।
रिपोर्ट के अनुसार चारों एजेंसियों ने इस साल के 50 गीगावाट के लक्ष्य के 77% के बराबर क्षमता की निविदाएं जारी की हैं। पहली तिमाही में जारी निविदाओं का 41% इन एजेंसियों ने जारी किया था।
पवन और सौर ऊर्जा नीलामी की नई घोषणाओं में भी 39 प्रतिशत की गिरावट आई। 2024 के अंत में 10.5 गीगावाट की नीलामी की घोषणाएं की गईं थीं, जबकि 2025 की शुरुआत में यह आंकड़ा 6.4 गीगावाट रहा। पिछले साल इसी अवधि में 25 गीगावाट की नीलामी हुई थी, जिसकी तुलना में 74 प्रतिशत की गिरावट आई।
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