Vol 1, Feb 2023 | सेहत पर भारी और खर्चीले कोयला बिजलीघरों से सरकार को क्यों है इतना प्यार?

Newsletter - February 15, 2023

भारत और चीन समेत पूरे एशिया में इस साल फिर रिकॉर्डतोड़ गर्मी होगी।

अल-निनो प्रभाव के कारण गर्मियों में अधिक तापमान की संभावना

लगातार तीन साल ला-निना प्रभाव (जिसमें भूमध्य रेखा के पास वातावरण ठंडा रहता है और सामान्य स्थितियां होती हैं) इस साल अल-निनो स्थितियों की संभावना है जिस कारण गर्मियों में अधिक तापमान हो सकता है। अमेरिका के नेशनल ओशिनिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जून, जुलाई और अगस्त के महीने में अल-निनो प्रभाव की  50% संभावना है जबकि जुलाई, अगस्त, सितंबर में यह संभावना 58% रहेगी।  

अल-निनो प्रभाव ला-निना के विपरीत है और इसमें प्रशान्त महासागर में भूमध्य रेखा के आसपास समुद्र असामान्य रूप गर्म हो जाता है जिसका भारत के तापमान और मॉनसून पर प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों ने अभी संभावित अल-निनो प्रभाव के कारण भारत में गर्मियों का तापमान बढ़ने की बात तो की है लेकिन कहा है कि सालाना मॉनसून पर क्या असर पड़ेगा यह कहना जल्दबाज़ी होगी। 

चीन में अधिक बाढ़ और हीटवेव की  चेतावनी 

चीन के मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि इस साल देश में एक बार फिर चरम मौसमी घटनाओं का प्रभाव देखने को मिलेगा। इसमें कहा गया है कि अत्यधिक तापमान (हीटवेव) और लम्बे सूखे के अलावा बाढ़ का सामना करना पड़ सकता है और देश के अलग अलग हिस्सों में चीनी प्रशासनिक विभागों को इससे निपटने के लिये तैयार रहना होगा।  चीन को पिछले साल भी करीब 70 दिन तक हीटवेव का सामना करना पड़ा था जिससे फसल बर्बाद हो गई, झीलें और जलाशय सूख गये और जंगलों में आग लगी। चीन मौसम विभाग ने देश के दक्षिणी प्रान्त को विशेष रूप से तैयार रहने को कहा है। विभाग के अधिकारी के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग का ग्राफ तेज़ी से बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कारण  क्लाइमेट सिस्टम असंतुलित हो रहा है। 

चक्रवात गेब्रिअल का कारण न्यूज़ीलैंड में आपातकाल घोषित 

देश के उत्तरी हिस्से में चक्रवात गेब्रेअल से व्यापक बाढ़, भूस्खलन और समुद्री जल भराव  के बाद न्यूज़ीलैंड में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी गई है। तटीय हिस्सों में रह रहे समुदायों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है – हॉकी खाड़ी, कोरोमंडल और उत्तरी द्वीप को सबसे अधिक क्षति हुई है।  न्यूज़ीलैड के राष्ट्रीय जल और वातावरण अनुसंधान के मुताबिक उत्तरी द्वीप के तटों पर शक्तिशाली तूफान के कारण 12 मीटर ऊंची लहरें उठी और यह एक रिकॉर्ड था। इस दौरान हवाओं की रफ्तार 150 से 160 किलोमीटर प्रति घंटा रही। न्यूज़ीलैंड के इसी हिस्से में दो हफ्ते पहले भारी बारिश और बाढ़ से चार लोगों की मौत हो गई थी और करीब सवा दो लाख लोगों को पावर कट का सामना करना पड़ा। 

टर्की और सीरिया में भूकंप, मरने वालों की संख्या 41,000 हुई 

टर्की और सीरिया में 7.8 तीव्रता के भूकंप से करीब 41,000 लोगों की मौत हो गई है। अकेले टर्की में ही 35 हज़ार से अधिक लोग मर गये हैं। यह देश के इतिहास का सबसे विनाशकारी भूकंप रहा। यह पूरी दुनिया में पिछले 20 साल का सबसे विनाशकारी भूकंप रहा। 

उधर वॉर ज़ोन सीरिया में करीब 5,800 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें से सरकार के कब्ज़े वाले क्षेत्र में 1,400 लोग मरे हैं। बाकी मौतें विद्रोहियों के अधिकार क्षेत्र में हुई हैं। संयुक्त राष्ट्र के 52 ट्रक सीरिया में राहत सामग्री और दवा लेकर पहुंचे हैं। 

सरकार ने संसद में जोशीमठ के धंसने के बात मानी पर भारी निर्माण पर चुप्पी 

बजट सत्र के दौरान पूछे गये एक सवाल के जवाब में सरकार जोशीमठ में हो रही भारी निर्माण पर मौन रही। हालांकि सरकार ने 1976 में दी गई एम सी मिश्रा कमेटी के रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि उस (जोशीमठ के) क्षेत्र में लगातार धंसाव हो रहा है। पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा, “उत्तराखंड सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक जोशीमठ बहुत पुराने भूस्खलन के मलबे की मोटी परत पर बसा हुआ है… और इस क्षेत्र में लंबे समय से धंसाव की धीमी प्रक्रिया चल रही है। यह बात 1976 में महेश चन्द्र मिश्रा की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट में कही गई है।”

मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि मिश्रा कमेटी का सुझाव था कि इस क्षेत्र में ज़मीनी स्थिति और निर्माण क्षेत्र की बोझ सहने की क्षमता का आकलन करके ही कोई भारी निर्माण किया जाना चाहिये। हालांकि उन्होंने आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने के लिये क्या कदम उठाये गये और उनकी वर्ष-वार जानकारी क्या है।  इस बीच मुख्यमंत्री और राज्य प्रशासन ने कहा है कि जोशीमठ के हालात का चारधाम यात्रा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 

अब रक्त नलिकाओं में भी पाया गया माइक्रोप्लास्टिक 

प्लास्टिक इंसानी शरीर में घुसपैठ करता जा रहा है और एक विकट स्वास्थ्य संकट का रूप ले रहा है। पहले प्लास्टिक के अंश इंसान के फ़ेफ़ड़ों में पाये गये लेकिन अब वैज्ञानिकों को पेंट और फूड पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाले माइक्रोप्लास्टिक के अंश मानव रक्त नलिकाओं में मिले हैं। इससे पहले अजन्मे बच्चों को मां से जोड़ने वाली गर्भनाल (प्लेसेंटा) में भी प्लास्टिक के अंश पाये गये हैं। वैज्ञानिक शोध में यह भी पाया गया है कि लोग हर साल 2,500 से अधिक एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक (बहुत सूक्ष्म और हल्के कण) के संपर्क में आ रहे हैं।  निम्न और मध्यम आय के लोगों के घरों में प्लास्टिक   की उच्च मात्रा पाई गई है। 

केंद्र ने पर्वतीय क्षेत्रों में राजमार्ग परियोजनाओं के लिये पहले किसी प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान द्वारा व्यापक अध्ययन की हिदायत दी है।

जोशीमठ संकट के बाद देर से जगी सरकार, जारी किए दिशानिर्देश

जोशीमठ के एक बड़े हिस्से में भूधंसाव और सैकड़ों घरों में दरारें आने की सूचना के एक महीने बाद, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सीमावर्ती क्षेत्रों के आस-पास सभी राजमार्ग परियोजनाओं के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। इस एसओपी में पर्यावरण की सुरक्षा के उपायों पर जोर दिया गया है, जैसे भूस्खलन और आपदाओं का प्रबंधन; सुरंग खोदने या ड्रिलिंग के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां; और नदी के जलग्रहण क्षेत्र और जल-विज्ञान का संरक्षण।

मंत्रालय के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि यदि प्रस्तावित मार्ग किसी पहाड़ी क्षेत्र से होकर गुजर रहा है, तो एक प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान द्वारा यह व्यापक अध्ययन किया जाना चाहिए कि परियोजना क्षेत्र में भूस्खलन और भूकंपीय गतिविधि का खतरा कितना है, ढलान की स्थिरता क्या है, वहां का इकोसिस्टम कितना नाज़ुक है इत्यादि। और इन सबको ध्यान में रखते हुए सुरक्षित और इको-फ्रेंडली निर्माण पद्धति अपनानी चाहिए।

हालांकि पर्यावरण कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं का कहना है कि उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है और इस प्रकार की नीतियां राज्य में विवादास्पद चारधाम सड़क परियोजना शुरू होने से पहले लाई जानी चाहिए थीं।

जी-20 बैठक में भारत ने जैव-विविधता के संरक्षण और इकोसिस्टम की बहाली पर दिया जोर 

जी-20 एनवायरनमेंट एंड क्लाइमेट सस्टेनेबिलिटी वर्किंग ग्रुप (ईसीएसडब्ल्यूजी) ने पिछले हफ्ते बेंगलुरू में अपनी पहली बैठक में भू-क्षरण को रोकने, जैव-विविधता को समृद्ध करने और ईकोसिस्टम की बहाली में तेजी लाने की दिशा में काम करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।

जी-20 की अध्यक्षता कर रहे भारत ने तीन प्राथमिकताओं पर जोर दिया: भू-क्षरण को रोकना, पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) की बहाली में तेजी लाना और जैव-विविधता को समृद्ध करना; एक सतत और जलवायु-अनुकूल ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा देना और संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करना।

पर्यावरण मंत्रालय ने बताया कि बैठक के पहले दिन जंगल की आग और खनन-प्रभावित क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के प्रयासों पर चर्चा हुई।

बैठक के दूसरे दिन मानवजनित कारणों से प्रभावित भूमि-आधारित इकोसिस्टम को बहाल करने के तरीकों और ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क को समृद्ध करने पर चर्चा हुई। स्टील और बायोवेस्ट जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सर्कुलर इकॉनमी के निर्माण पर भी चर्चा हुई।

ब्लू इकॉनमी से संबंधित चर्चाएं समुद्री प्लास्टिक कचरे की समस्या और इसके प्रतिकूल प्रभावों और तटीय ईकोसिस्टम के संरक्षण जैसे मुद्दों पर केंद्रित थीं।

जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने और महासागरों की कार्बन संग्रहण क्षमता को बनाए रखने के लिए यह प्रयास महत्वपूर्ण हैं। ब्लू इकोनॉमी की सफलता स्थानीय तटीय समुदायों को भी समृद्ध करेगी। 

तीन राज्यों में अवैध रेत खनन की होगी जांच

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्य सचिवों को एक माह के भीतर अवैध रेत खनन की स्थिति का जायजा लेने का निर्देश दिया है। 

न्यायाधिकरण का कहना है कि इस मामले में जिला स्तर पर निगरानी के अलावा राज्य स्तर पर भी निगरानी की आवश्यकता है। 

इसलिए मध्य प्रदेश में भिंड, मुरैना और ग्वालियर, उत्तर प्रदेश में आगरा, इटावा एवं झांसी और राजस्थान में धौलपुर और भरतपुर के पुलिस अधीक्षकों और जिलाधिकारियों को इस विषय पर निगरानी करने के लिए कहा गया है।एनजीटी ने अपने आदेश में तीनों राज्यों को 31 मार्च, 2023 तक रिपोर्ट देने को कहा है। 

न्यायाधिकरण ने कहा है कि तीनों राज्य स्थिति को संभालने के लिए गंभीरता से लेने में नाकाम रहे हैं। 6 फरवरी, 2023 को एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि इन राज्यों में बड़े पैमाने पर कानून का उल्लंघन हो रहा है।

चंबल में पहुंच रहा ग्रासिम का औद्योगिक कचरा, एनजीटी ने बिठाई जांच

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मध्य प्रदेश के नागदा शहर में ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड की साइट के खिलाफ औद्योगिक प्रदूषण के आरोपों की जांच के आदेश दिए हैं। एनजीटी ने चार-सदस्यीय समिति को साइट का दौरा करने और छह सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

ग्रासिम इंडस्ट्रीज पर आरोप है कि वह केमिकल-युक्त पानी को खुली भूमि पर डाल रही है, जिससे मिट्टी और जल को नुकसान पहुंच रहा है। कोर्ट को बताया गया है कि परिसर से केमिकल-युक्त पानी को ‘अधिकारियों द्वारा जानबूझकर एक औद्योगिक नाले में छोड़ा जाता है, जो लगभग 300 मीटर की दूरी पर स्थित चंबल नदी में मिलता है’।

शिकायतकर्ता के अनुसार, इस प्रकार यह जहरीला पानी चंबल नदी के नीचे की ओर गांधी सागर बांध की तरफ बह जाता है। इसी पानी की आपूर्ति और खपत नागदा और कछरोड़ शहरों में की जाती है।

भारत-बांग्लादेश के बीच जलमार्गों का नहीं हो पा रहा इस्तेमाल 

भारत और बांग्लादेश के बीच के नदी मार्ग दोनों देशों के लिए आर्थिक और भौगोलिक स्तर पर काफी मायने रखते हैं। हालांकि पर्यावरण प्रबंधन से जुड़े मसलों के कारण इनमें से अधिकांश मार्ग बेकार पड़े हैं।

भारत और बांग्लादेश के बीच 1972 में हुई एक संधि में मालवाहन  के लिए 11 जलमार्गों के इस्तेमाल की बात कही गई थी। लेकिन फिलहाल इनमें से सिर्फ तीन मार्गों पर ही नियमित तौर पर माल ढुलाई की जा रही है। बाकी मार्ग बड़े जहाजों के आने-जाने के लिए पर्याप्त रूप से गहरे नहीं है। इनमें से कुछ मार्ग कभी-कभार प्रयोग में लाए जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जहां साल में एक बार भी कोई गतिविधि नहीं हुई है।

अगर इन सभी जलमार्गों का नियमित रूप से इस्तेमाल किया जाए तो बांग्लादेश को इससे काफी आर्थिक लाभ मिल सकता है। विश्व बैंक ने 2016 के एक अध्ययन में बताया था कि जलमार्ग के जरिए एक टन सामान ले जाने पर एक किलोमीटर की लागत 0.99 बांग्लादेशी टका (0.79 रुपए) पड़ती है, जबकि रेलवे से माल ढुलाई का खर्च 2.74 टका (2.19 रुपए) होता है। और सड़क मार्ग से यह लागत 4.50 बांग्लादेश टका (3.60 रुपए) पड़ती है।

भारत के लिए भी जलमार्गों का जियो-पॉलिटिकल महत्व बहुत है। दरअसल भारत की दिलचस्पी जलमार्गों का उपयोग करके अलग-थलग पड़े पूर्वोत्तर राज्यों को भौगोलिक मुख्यभूमि, या मेनलैंड से जोड़ने में है।

इन सर्दियों में मुंबई की हवा पिछले सीजन की तुलना में काफी खराब रही।

प्रमुख शहरों की वायु गुणवत्ता में दो हफ़्तों बाद कुछ सुधार

पिछले दो हफ़्तों से देश के कई शहरों, विशेषकर मुंबई, में ख़राब वायु गुणवत्ता में कुछ सुधार हुआ है।  केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 13 फरवरी को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 186 शहरों में से केवल बर्नीहाट (333) में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘बेहद खराब’ रहा। दस शहरों में हवा ‘बेहतर’ रही, जबकि 77 शहरों की श्रेणी ‘संतोषजनक’, 84 में ‘मध्यम’ रही। वहीं 14 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘खराब’ दर्ज किया गया। पिछले हफ्ते दिल्ली-मुंबई समेत नौ शहरों में हवा का स्तर ‘बेहद ख़राब’ दर्ज किया गया था।    

वहीं दो सप्ताह तक लगातार ‘खराब’ और ‘बहुत खराब’ रहने के बाद, मुंबई की वायु गुणवत्ता में सोमवार को कुछ सुधार हुआ। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के अनुसार शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक 176 रहा, जिसे ‘मध्यम’ माना जाता है।

राजधानी दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक सोमवार को 135 रहा, जो पिछले साल 13 अक्टूबर के बाद से सबसे कम है। पर्वतीय क्षेत्रों से 48 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही उत्तर-पश्चिमी ठंडी हवाओं ने दिल्ली के प्रदूषक तत्वों का प्रभाव कम किया है।

पिछले सालों की तुलना में गिरा मुंबई की हवा का स्तर, नगरपालिका ने किए राहत के उपाय

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि इन सर्दियों में मुंबई की वायु पिछले सीजन की तुलना में काफी खराब रही है

पिछले 92 दिनों में 66 दिन ‘खराब’ और ‘बहुत खराब’ वायु गुणवत्ता वाले रहे, जबकि पिछले तीन वर्षों में यह औसत संख्या केवल 28 थी। पिछले साल 22 अक्टूबर के बाद से शहर में एक भी दिन हवा का स्तर ‘संतोषजनक’ नहीं रहा है। पिछली सर्दियों में इसी दौरान 12 दिन ऐसे थे जब हवा का स्तर ‘संतोषजनक’ था।

जानकारों के मुताबिक मुंबई के प्रदूषण में अचानक वृद्धि बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से ‘ट्रिपल डिप ला नीना‘ के कारण हुई है। इस प्रक्रिया की वजह से मुंबई में हवा के पैटर्न में बदलाव आया है।

शहर में बिगड़ती हवा पर बढ़ती चिंताओं के बीच बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने वायु प्रदूषण को कम करने के लिए ‘क्लीन एयर मुंबई’ पहल के तहत सात-चरणीय योजना बनाई है

नगरपालिका के उपायों में प्रमुख हैं सस्टेनेबल कंस्ट्रंक्शन के लिए बिल्डरों को दिशानिर्देश जारी करना, सड़क की धूल को कम करने के उपाय, सस्टेनेबल परिवहन के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग, और अपशिष्ट प्रबंधन आदि। इन उपायों को लागू करने के लिए बीएमसी ने 25 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया है।

लंदन के वैज्ञानिकों को लकड़ी के धुएं में मिला आर्सेनिक

लंदन में वैज्ञानिकों को लकड़ी के धुएं से निकलने वाले रसायनों में आर्सेनिक मिला है। एक सर्वेक्षण से पता चला कि घर में लकड़ी जलाने वाले लगभग 9 प्रतिशत लोग निर्माण स्थलों से बेकार लकड़ी ला रहे थे। शोधकर्ताओं ने 30 पुरुषों को दो हफ्ते तक दाढ़ी बढ़ाने के लिए कहा, फिर उनकी दाढ़ी के बालों को उनके शरीर में मौजूद आर्सेनिक की मात्रा का विश्लेषण करने के लिए इकट्ठा किया।

अध्ययन में पाया गया कि धूम्रपान के अलावा लकड़ी जलने से पुरुषों की दाढ़ी में  आर्सेनिक का प्रभाव बढ़ा। शोधकर्ताओं ने कहा  कि उनके आसपास लकड़ी जलाना आर्सेनिक बढ़ने का एक प्रमुख कारण था। लकड़ी काटने वाले पुरुषों की दाढ़ी में भी अधिक आर्सेनिक पाया गया।

आर्सेनिक अपने अकार्बनिक रूप में अत्यधिक  हानिकारक होता है, और इसके लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर और त्वचा के घाव होने का खतरा बढ़ जाता है

आईआईटी खड़गपुर ने 2021 में एक अध्ययन में पाया था कि भारत के कुल भूमि क्षेत्र के लगभग 20 प्रतिशत भाग में मौजूद भूजल में आर्सेनिक का विषाक्त स्तर है। जिसके कारण देश में 250 मिलियन से अधिक लोग इस जहरीले तत्व के संपर्क में आते हैं।

ऐसे में हवा में आर्सेनिक का मिलना लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं और बढ़ा देता है।

भारत और चीन में वायु प्रदूषण को बदतर बनाने में ‘नाइट्रेट रेडिकल्स’ का हाथ

नेचर जियोसाइंसेस में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार भारत और चीन में बढ़ रहे प्रदूषण की एक बड़ी वजह रात के समय पैदा होनेवाले ‘नाइट्रेट रेडिकल्स’ हैं, जो वातावरण में हानिकारक ओजोन और पीएम 2.5 सूक्ष्म कणों की मात्रा को बढ़ाते हैं।

जहां यूरोप और अमेरिका के शहरों में रात के समय ‘नाइट्रेट रेडिकल’ में गिरावट आई है, वहीं भारत और चीन के कुछ हिस्सों में इनमें तेजी से वृद्धि हुई है।

इस अध्ययन के अनुसार भारत के कुछ हिस्सों, विशेषकर उत्तर में, रात के समय ‘नाइट्रेट रेडिकल्स’ में वृद्धि देखी गई है। यदि भारत में भी लॉस एंजिल्स और चीन की तरह यह जारी रहा, तो भविष्य में वायु गुणवत्ता में सुधार करना कठिन होगा।

लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि मुख्य रूप से परिवहन और उद्योगों से होने वाले वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड का उत्सर्जन कम करने से रात के समय ‘नाइट्रेट रेडिकल’ के बनने पर लगाम लगाई जा सकती है।

बजट में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के लक्ष्य को दोहराया गया है और इसके लिए 19,744 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।

बजट में ‘हरित विकास’ को लेकर हुईं कई घोषणाएं

विशेषज्ञों का मानना है कि 2023 के केंद्रीय बजट में सरकार ने ‘हरित विकास’ को लेकर जो घोषणाएं को हैं उससे देश को अपने अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता मिलेगी। इस संबंध में 70,000 करोड़ रुपए तक के आवंटन की घोषणा की गई है।

भारत 2030 तक ऊर्जा उत्पादन के दौरान होने वाले उत्सर्जन में (2005 के स्तर के मुकाबले) 45% कटौती करने को प्रतिबद्ध है।

हालांकि उम्मीदों के बीच यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले कुछ बजटों में किए गए वादे और निर्धारित लक्ष्य अभी तक पूरे नहीं हो पाए हैं। इसलिए इन घोषणाओं पर प्रश्न उठने भी स्वाभाविक हैं।     

बजट में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के 2030 तक 5 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के लक्ष्य को दोहराया गया है और इसके लिए 19,744 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। साथ ही ऊर्जा सुरक्षा और एनर्जी ट्रांजिशन में पूंजी निवेश हेतु पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय को 35,000 करोड़ रुपए दिए गए हैं।

बजट में 4 गीगावाट-ऑवर क्षमता वाले बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीएएसएस) के लिए वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) का भी प्रावधान है। वीजीएफ का अर्थ है ऐसी इंफ्रास्ट्रक्चर योजनाओं का वित्तपोषण करना जो आर्थिक रूप से संभव हैं लेकिन फंडिंग की कमी से जूझ रही हैं।   

इलेक्ट्रिक परिवहन को लेकर की गई घोषणाओं में लिथियम-आयन बैटरी के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले पूंजीगत माल और मशीनरी को सीमा शुल्क से मुक्त करने के कदम का स्वागत किया जा रहा है।

जानकारों का कहना है कि इन घोषणाओं से देश में ‘हरित’ रोज़गार पैदा करने में मदद मिल सकती है।

अडानी ग्रीन एनर्जी में गिरावट जारी

शॉर्टसेलर हिंडनबर्ग रिसर्च के खुलासे के बाद अडानी समूह के शेयरों में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है। इस साल 24 जनवरी को हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से अडानी ग्रीन एनर्जी (तब इस कंपनी का शेयर 1948 रुपये में खुला था) में अब तक 68 प्रतिशत तक गिरावट आ चुकी है और बुधवार को यह 621 में 5 प्रतिशत गिरकर यह 621 में बन्द करना पड़ा। साफ़ ऊर्जा या क्लीन एनर्जी एक ऐसा क्षेत्र है जहां अडानी बड़े खिलाड़ी बनने की राह पर हैं।

अडानी ग्रीन एनर्जी शेयर बाज़ार में 2018 में लिस्ट हुई थी। तब इस कंपनी के शेयर का दाम 30 रुपए के आसपास था। लेकिन 2020 के बाद से अडानी ग्रीन एनर्जी के शेयर तेज़ी से बढ़े और अप्रैल 2022 इस कंपनी का शेयर 2,800 रुपए से ऊपर चला गया था। लेकिन फ़िलहाल यह 621 रुपए पर आ गया है।

रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अडानी ग्रीन का आउटलुक बदलकर ‘निगेटिव’ कर दिया है। यानी कंपनी के शेयरों में गिरावट जारी रहने की उम्मीद है।  

अडानी ग्रीन एनर्जी भारत के साफ ऊर्जा मिशन में काफी अहम है। कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक सौर और पवन ऊर्जा को मिलाकर उसका कुल 20,434 मेगावॉट का नवीकरणीय ऊर्जा पोर्टफोलियो है। यानी चालू और निर्माणाधीन प्रोजेक्ट इतनी क्षमता के हैं।

भारत की कुल सौर ऊर्जा क्षमता अभी 63,000 मेगावॉट है और जिसमें अडानी के 4,803 मेगावॉट के चालू सोलर प्लांट हैं यानी कुल क्षमता का करीब साढ़े सात प्रतिशत से अधिक …इसके अलावा अडानी ग्रीन 10,080 मेगावॉट के सोलर प्लांट निर्माणाधीन हैं। इसी तरह भारत की कुल पवन ऊर्जा क्षमता 42,000 मेगावॉट है। अडानी के ऑपरेशनल विन्ड प्रोजेक्ट  के 647 मेगावॉट हैं। लेकिन करीब 2,054 मेगावॉट पर काम चल भी रहा है।

अडानी समूह देश के हरित ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर में 70 बिलियन डॉलर के निवेश के लिए वचनबद्ध है। लेकिन हिंडनबर्ग के आरोपों ने समूह से जुड़ी कंपनियों के भविष्य पर संदेह पैदा कर दिया है। समूह द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए हरित ऊर्जा निवेश भी संदेह के घेरे में हैं।

अक्षय ऊर्जा निवेश के लिए भारत सबसे उपयुक्त: मोदी

वैश्विक ऊर्जा निवेशकों को आमंत्रित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के लिए भारत सबसे उपयुक्त स्थान है

इंडिया एनर्जी वीक 2023 के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने निवेशकों से आग्रह किया कि भारत के ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी संभावनाओं को जानकर इसका हिस्सा बनें।

मोदी ने हालिया बजट में नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, सतत परिवहन और हरित प्रौद्योगिकी पर सरकार की घोषणाओं का विस्तृत विवरण दिया। उन्होंने कहा कि एनर्जी ट्रांजिशन और नेट-जीरो उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए 35,000 करोड़ रुपए के पूंजी निवेश का प्रावधान रखा गया है।

उन्होंने यह भी कहा कि दस लाख करोड़ रुपए का कुल पूंजीगत व्यय हरित हाइड्रोजन, सौर, सड़क आदि से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देगा।

उन्होंने कहा कि पिछले नौ वर्षों में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 70 गीगावाट से बढ़कर लगभग 170 गीगावाट हो गई है, तथा सौर ऊर्जा में 20 गुना वृद्धि हुई है। मोदी ने कहा कि पवन ऊर्जा क्षमता में भारत चौथे स्थान पर है।

यूरोप में पवन और सौर बिजली उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि

एक नए विश्लेषण से पता चला है कि 2022 में पहली बार यूरोपीय संघ की बिजली आपूर्ति में पवन और सौर ऊर्जा स्रोतों का योगदान किसी भी अन्य स्रोत की तुलना में अधिक था। 

क्लाइमेट थिंकटैंक एम्बर की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संघ की बिजली का पांचवा हिस्सा पवन और सौर स्रोतों से आया, जो कि एक रिकॉर्ड है। 

विश्लेषण में कहा गया है कि 2022 में पवन और सौर ऊर्जा में वृद्धि से यूरोप को रूसी गैस आपूर्ति पर प्रतिबंध, सूखे के कारण पनबिजली में गिरावट और अप्रत्याशित परमाणु आउटेज के ‘तिहरे संकट’ से बचने में मदद मिली।

पनबिजली और परमाणु ऊर्जा में लगभग 83% गिरावट को पवन तथा सौर ऊर्जा और बिजली की गिरती मांग ने बराबर किया। बाकी हिस्सा कोयले से मिला। हालांकि रूस से जीवाश्म ईंधन आपूर्ति में गिरावट के बीच कोयले के उपयोग में जितनी वृद्धि अपेक्षित थी उतनी नहीं हुई।

2022 में पूरे यूरोपीय संघ में सौर उत्पादन में रिकॉर्ड 24% की वृद्धि हुई। लगभग 20 देशों ने बिजली का रिकॉर्ड हिस्सा सौर ऊर्जा से प्राप्त किया।

पवन और सौर ऊर्जा में इस साल भी विकास जारी रहने की उम्मीद है, साथ ही पनबिजली और परमाणु ऊर्जा उत्पादन में सुधार होने की संभावना है। मौजूदा विश्लेषण में कहा गया है कि इन दोनों के फलस्वरूप 2023 में जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन में 20% की अभूतपूर्व गिरावट आ सकती है।

जम्मू-कश्मीर के रियासी ज़िले के सलाल गांव में “संभावित लीथियम” का भंडार मिला है।

जम्मू-कश्मीर में मिला ‘संभावित’ लीथियम का भंडार

पिछले हफ्ते खान मंत्रालय के कहा कि जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी जीएसआई को जम्मू-कश्मीर राज्य में 59 लाख टन ‘संभावित’ लीथियम का भंडार मिला है। सरकार ने दावा किया लीथियम का भंडार ‘पहली बार’ पाया गया है हालांकि द टेलीग्राफ में प्रकाशित ख़बर में जीएसआई के दो भूविज्ञानियों की 1999 की रिपोर्ट का हवाला दिया गया जिससे पता चलता है कि यह नब्बे के दशक में इस खनिज के बारे में जानकारी थी। टेलीग्राफ को दिए बयान में खनन मंत्रालय के सचिव विवेक भारद्वाज ने कहा, “यह खोज जीएसआई के पहले किये गये शोध के आधार पर हुई है।”

लीथियम का यह भंडार रियासी ज़िले के सलाल गांव में मिला है। लीथियम एक दुर्लभ खनिज है जो बैटरी बनाने में इस्तेमाल होता है और इस भंडार के कारण विद्युत वाहनों की दुनिया में भारत बहुत आगे निकल सकता है। अभी भारत अपनी ज़रूरत का शत-प्रतिशत लीथियम आयात करता है। लीथियम इलैक्ट्रिक वाहनों की बैटरी के लिये ही ज़रूरी खनिज नहीं बल्कि कैमरा और मोबाइल फोन बैटरियों के निर्माण के लिये भी आवश्यक है। 

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक 2017 और 2020 के बीच ही देश में कोई 165 करोड़ बैटरियों का आयात हुआ जिसमें 330 करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा खर्च हुई। लेकिन अभी जम्मू-कश्मीर में मिले भंडार में खनिज को ‘संभावित’ लीथियम कहा गया है जो कि खनिज की एक उपश्रेणी है। संभावित का अर्थ है कि अभी खनिज की मात्रा और गुणवत्ता के बारे में भूविज्ञानियों को आत्मविश्वास कम है। आने वाले दिनों में खनन क्षेत्र से अधिक जानकारी इकट्ठा कर इस बारे में बताया जायेगा। 

लिथियम-आयन बैटरी के उत्पादन के लिए आवश्यक मशीनरी पर सीमा शुल्क माफ

सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग की जाने वाली लिथियम-आयन बैटरी के निर्माण हेतु आवश्यक पूंजीगत माल और मशीनरी के आयात पर सीमा शुल्क हटा दिया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के बजट भाषण में कहा कि हरित परिवहन को बढ़ावा देने के लिए यह छूट देने का निर्णय लिया जा रहा है।

वित्तमंत्री ने कहा अर्थव्यवस्था को सतत विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए सरकार 4 गीगावाट-ऑवर क्षमता वाले बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (बीएएसएस) को वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) से सहायता प्रदान करेगी। पम्प्ड स्टोरेज परियोजनाओं के लिए एक विस्तृत रूपरेखा भी तैयार की जाएगी।

विशेषज्ञों ने लिथियम आयन बैटरी के उत्पादन को कस्टम ड्यूटी से मुक्त करने के कदम का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे घरेलू क्षमता की वृद्धि में मदद मिलेगी, जो पहले कम आपूर्ति के कारण आयात पर निर्भर थी। साथ ही इससे इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में भी विस्तार होगा।

चंडीगढ़ में गैर इलैक्ट्रिक वाहनों के पंजीयन पर रोक 

चंडीगढ़ में केंद्र शासित प्रशासन ने 10 फरवरी से उन्हीं दोपहिया वाहनों के पंजीयन की अनुमति दी है जो इलैक्ट्रिक होंगे। यानी पेट्रोल से चलने वाले टू-व्हीलर्स के पंजीकरण पर रोक लगा दी गई है। सरकार ने यह फैसला अपनी ईवी नीति को लागू करने के लिये किया है जिसे पिछले साल सितंबर में नोटिफाइ किया गया था। इसके तहत पेट्रोल से चलने वाले वाहनों को धीरे-धीरे कम करना है और रोड टैक्स में छूट देकर इलैक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को प्रोत्साहित करना है। हालांकि 1 अप्रैल (नये वित्तीय वर्ष से) कुछ शर्तों के तहत पेट्रोल से चलने वाले तिपहिया फिर से रजिस्टर हो सकेंगे।

सब्सिडी में घपले के आरोप के बीच  ई-बसों पर  सरकार ने की ये घोषणा

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी बढ़ाने के दूसरे चरण (फेम-2) के तहत सरकार ई-बसों को आवंटित सब्सिडी फंड में बढ़ोतरी कर सकती है। इकोनोमिक टाइम्स ने सूत्रों को हवाले से यह ख़बर प्रकाशित की है। महत्वपूर्ण है कि इस कदम पर विचार ऐसे वक्त हो रहा है जब दर्जन भर इलैक्ट्रिक दुपहिया निर्माता कंपनियों पर घपले का आरोप है। इस बात की जांच हो रही है कि क्या इन कंपनियों ने गलत जानकारी देकर इंसेंटिव (प्रोत्साहन राशि) ली। 

फेम-2 के तहत सरकार ने 7000 बसों, 55,000 यात्री कारों के साथ 5 लाख तिपहिया और 10 लाख दुपहिया वाहनों की खरीद को प्रोत्साहन देने के लिये 10,000 करोड़ का बजट रखा था। अधिकारी कहते हैं कि टू-व्हीलर सेगमेंट में 80 प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया गया है और अब फोकस ई-बसों पर लगाया जा रहा है। इसके अलावा ख़बर यह  भी है कि जहां सरकार ने फेम-2 के लिये वित्तीय वर्ष 2023-24 में बजट को दोगुना किया है वहीं ऑटो इंडस्ट्री सब्सिडी को और एक्सटेंशन देने की मांग कर रही है। 

अब तक सच्चाई से मुंह छुपा रही ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने आखिरकार संकटग्रस्त ग्रेट बैरियर रीफ को बचाने के लिये एक कोयला खान को अनुमति नहीं दी है।

ऑस्ट्रेलिया: एतिहासिक धरोहर के संरक्षण के लिये कोयला खनन को मंज़ूरी नहीं

ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि पर्यावरण नियमों के तहत एक कोयला खान को मंज़ूरी रोक दी गई। सरकार ने वर्ल्ड हेरिटेज ग्रेट बैरियर रीफ (मूंगे की दीवार) को होने वाली क्षति को ध्यान में रखकर यह फैसला किया है। यह कोल माइन कोरल रीफ की सीमा से महज़ 10 किलोमीटर की दूरी पर है। पर्यावरण मंत्री तान्या प्लीबर्सेक ने कहा है इस खनन से  विश्व धरोहर कोरल रीफ को भारी ख़तरा होगा जो कि पहले से ही संकटग्रस्त है। इस कोयला खान के मालिक विवादित ऑस्ट्रेलियाई खरबपति क्लाइव पालमर हैं जिसकी खदान शुरू होने के बाद 20 साल तक खनन करती।  

ग्रेट बैरियर रीफ क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट के समानांतर है और मूंगे की इस विशाल दीवार की लंबाई करीब 1200 मील और मोटाई 10 से 90 मील तक है।दुनिया की सबसे विशाल मूंगे की दीवार (जिसे ग्रेट बैरियर रीफ कहा जाता है) के लिये संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से चलाये गये अभियान ने निष्कर्ष निकाला है कि दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ प्रणाली को “विश्व की संकटग्रस्त धरोहरों” की सूची में रखा जाना चाहिये।ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के पास स्थित इस मूंगे की दीवार पर 10 दिन का अध्ययन किया गया था और उस मिशन की रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि जलवायु परिवर्तन उन विलक्षण खूबियों के लिये ख़तरा पैदा कर रहा है जिनकी वजह से 1981 में इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया था। 

थर्मल पावर प्लांटों को बंद करने के खिलाफ सीईए की सलाह से विशेषज्ञ चिंतित 

पुराने कोयला बिजलीघरों को रिटायर न करने के सरकार के फैसले से विशेषज्ञ चिंतित हैं। बिजली मंत्रालय को सलाह देने वाली केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने सीईए ने 20 जनवरी को अपने नोटिस में कहा, “कोविड महामारी के बाद देश में ऊर्जा की भारी मांग देखी जा रही है, जो 2023 और उसके बाद की गर्मियों में अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। ऊर्जा मंत्री के साथ बैठक का हवाला देते हुये कहा गया कि बिजली की आपूर्ति सुचारू रूप से होती रहे इसलिये अब पुराने कोयला बिजली घरों को रिटायर न करने का फैसला किया गया है। 

लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत सरकार का यह फैसला साफ ऊर्जा को बढ़ावा देने और प्रदूषण को नियंत्रित करने के मिशन से मेल नहीं खाता। सरकार ने 2015 में नये इमीशन स्टैंडर्ड सेट किये थे जिसके तहत कोयला बिजलीघरों को अपग्रेड किया जाना था ताकि वो कम प्रदूषण करें। बिजली उत्पादन की बढ़ती लागत, पुराने होते कोयला बिजलीघर और बढ़ते प्रदूषण स्तर के मद्देनज़र सरकार ने यह फैसला लिया कि साल 2017 से 2027 के बीच 45 गीगावॉट यानी 45000 मेगावॉट से अधिक क्षमता के पुराने पावर प्लांट्स को  रिटायर किया जाये। लेकिन अब सरकार ने ऐसा न करने का फैसला किया है क्योंकि उसे लगता है कि देश में बिजली की मांग तभी पूरी हो सकती है जब ये पावर प्लांट चलते रहें।  

जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये तय लक्ष्यों को तहत भारत या यह भी इरादा है कि साल 2030 तक वह 450 गीगावॉट साफ ऊर्जा के संयंत्र लगायेगा और उसकी कुछ प्रयोग होने वाली ऊर्जा में 50 प्रतिशत क्लीन एनर्जी का होगा। लेकिन सरकार और उसे सलाह देने वाले सेंट्र्ल इलैक्ट्रिसिटी अथॉरिटी का ये फैसला इस रणनीति और लक्ष्य से मेल नहीं खाता। इससे न केवल भारत 2030 तक के साफ ऊर्जा लक्ष्यों से चूक सकता है बल्कि  लोगों के  स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इसके अलावा पुराने संयंत्रों की रेट्रोफिटिंग और रखरखाव में खर्च और उनकी कम बिजली उत्पादन क्षमता के कारण यह कदम अधिक खर्चीली बिजली का कारण भी बनेगा। 

स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते हुए विश्व में तेल भी ज़रूरी: कॉप 28 अध्यक्ष

इस साल होने वाले जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (कॉप- 28) के अध्यक्ष अहमद अल जबेर का कहना है कि पवन और सौर ऊर्जा में अच्छी वृद्धि के बावजूद, नवीकरणीय ऊर्जा पर्याप्त नहीं होगी, विशेष रूप से उन उद्योगों के लिए जो पूरी तरह से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं।

इस वर्ष के COP-28 सम्मेलन की मेजबानी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) करेगा जिसके पास तेल और गैस का दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है। अल जबेर अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के मुख्य कार्यकारी (सीईओ) भी हैं। उनके कॉप-28 के अध्यक्ष बनने पर पहले ही काफी सवाल उठे हैं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं और संगठनों ने कहा है कि जबेर को या तो सम्मेलन की अध्यक्षता न करें या फिर तेल कंपनी के सीईओ के पद से इस्तीफा दें। जबेर कहते हैं कि दुनिया में ऊर्जा प्रयोग का बदलाव यानी एनर्जी ट्रांजिशन  समावेशी होना चाहिए और ग्लोबल साउथ के लिए एक न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस शब्दावली को विकासशील देशों के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें  भारत और यूएई दोनों शामिल हैं।