ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि पर्यावरण नियमों के तहत एक कोयला खान को मंज़ूरी रोक दी गई। सरकार ने वर्ल्ड हेरिटेज ग्रेट बैरियर रीफ (मूंगे की दीवार) को होने वाली क्षति को ध्यान में रखकर यह फैसला किया है। यह कोल माइन कोरल रीफ की सीमा से महज़ 10 किलोमीटर की दूरी पर है। पर्यावरण मंत्री तान्या प्लीबर्सेक ने कहा है इस खनन से विश्व धरोहर कोरल रीफ को भारी ख़तरा होगा जो कि पहले से ही संकटग्रस्त है। इस कोयला खान के मालिक विवादित ऑस्ट्रेलियाई खरबपति क्लाइव पालमर हैं जिसकी खदान शुरू होने के बाद 20 साल तक खनन करती।
ग्रेट बैरियर रीफ क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट के समानांतर है और मूंगे की इस विशाल दीवार की लंबाई करीब 1200 मील और मोटाई 10 से 90 मील तक है।दुनिया की सबसे विशाल मूंगे की दीवार (जिसे ग्रेट बैरियर रीफ कहा जाता है) के लिये संयुक्त राष्ट्र के समर्थन से चलाये गये अभियान ने निष्कर्ष निकाला है कि दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ प्रणाली को “विश्व की संकटग्रस्त धरोहरों” की सूची में रखा जाना चाहिये।ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के पास स्थित इस मूंगे की दीवार पर 10 दिन का अध्ययन किया गया था और उस मिशन की रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि जलवायु परिवर्तन उन विलक्षण खूबियों के लिये ख़तरा पैदा कर रहा है जिनकी वजह से 1981 में इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया था।
थर्मल पावर प्लांटों को बंद करने के खिलाफ सीईए की सलाह से विशेषज्ञ चिंतित
पुराने कोयला बिजलीघरों को रिटायर न करने के सरकार के फैसले से विशेषज्ञ चिंतित हैं। बिजली मंत्रालय को सलाह देने वाली केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) ने सीईए ने 20 जनवरी को अपने नोटिस में कहा, “कोविड महामारी के बाद देश में ऊर्जा की भारी मांग देखी जा रही है, जो 2023 और उसके बाद की गर्मियों में अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। ऊर्जा मंत्री के साथ बैठक का हवाला देते हुये कहा गया कि बिजली की आपूर्ति सुचारू रूप से होती रहे इसलिये अब पुराने कोयला बिजली घरों को रिटायर न करने का फैसला किया गया है।
लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत सरकार का यह फैसला साफ ऊर्जा को बढ़ावा देने और प्रदूषण को नियंत्रित करने के मिशन से मेल नहीं खाता। सरकार ने 2015 में नये इमीशन स्टैंडर्ड सेट किये थे जिसके तहत कोयला बिजलीघरों को अपग्रेड किया जाना था ताकि वो कम प्रदूषण करें। बिजली उत्पादन की बढ़ती लागत, पुराने होते कोयला बिजलीघर और बढ़ते प्रदूषण स्तर के मद्देनज़र सरकार ने यह फैसला लिया कि साल 2017 से 2027 के बीच 45 गीगावॉट यानी 45000 मेगावॉट से अधिक क्षमता के पुराने पावर प्लांट्स को रिटायर किया जाये। लेकिन अब सरकार ने ऐसा न करने का फैसला किया है क्योंकि उसे लगता है कि देश में बिजली की मांग तभी पूरी हो सकती है जब ये पावर प्लांट चलते रहें।
जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये तय लक्ष्यों को तहत भारत या यह भी इरादा है कि साल 2030 तक वह 450 गीगावॉट साफ ऊर्जा के संयंत्र लगायेगा और उसकी कुछ प्रयोग होने वाली ऊर्जा में 50 प्रतिशत क्लीन एनर्जी का होगा। लेकिन सरकार और उसे सलाह देने वाले सेंट्र्ल इलैक्ट्रिसिटी अथॉरिटी का ये फैसला इस रणनीति और लक्ष्य से मेल नहीं खाता। इससे न केवल भारत 2030 तक के साफ ऊर्जा लक्ष्यों से चूक सकता है बल्कि लोगों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इसके अलावा पुराने संयंत्रों की रेट्रोफिटिंग और रखरखाव में खर्च और उनकी कम बिजली उत्पादन क्षमता के कारण यह कदम अधिक खर्चीली बिजली का कारण भी बनेगा।
स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते हुए विश्व में तेल भी ज़रूरी: कॉप 28 अध्यक्ष
इस साल होने वाले जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (कॉप- 28) के अध्यक्ष अहमद अल जबेर का कहना है कि पवन और सौर ऊर्जा में अच्छी वृद्धि के बावजूद, नवीकरणीय ऊर्जा पर्याप्त नहीं होगी, विशेष रूप से उन उद्योगों के लिए जो पूरी तरह से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर हैं।
इस वर्ष के COP-28 सम्मेलन की मेजबानी संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) करेगा जिसके पास तेल और गैस का दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है। अल जबेर अबू धाबी नेशनल ऑयल कंपनी के मुख्य कार्यकारी (सीईओ) भी हैं। उनके कॉप-28 के अध्यक्ष बनने पर पहले ही काफी सवाल उठे हैं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं और संगठनों ने कहा है कि जबेर को या तो सम्मेलन की अध्यक्षता न करें या फिर तेल कंपनी के सीईओ के पद से इस्तीफा दें। जबेर कहते हैं कि दुनिया में ऊर्जा प्रयोग का बदलाव यानी एनर्जी ट्रांजिशन समावेशी होना चाहिए और ग्लोबल साउथ के लिए एक न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस शब्दावली को विकासशील देशों के लिए प्रयोग किया जाता है जिसमें भारत और यूएई दोनों शामिल हैं।
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