सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात करती है, लेकिन रासायनिक खाद पर सब्सिडी बढ़ती जा रही है।

बजट में किए गए वादों की ज़मीनी हकीकत

वित्त मंत्री ने बजट भाषण में भी पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कुछ घोषणाएं कीं। इनमें से कुछ ऐसी योजनाओं के बारे में थीं जिनमें पिछले साल और उसके पहले के बजट भाषणों में किए गए वादे और निर्धारित लक्ष्य अभी तक पूरे नहीं हो पाए हैं।

प्राकृतिक खेती

वित्त मंत्री ने घोषणा की कि अगले तीन वर्षों में सरकार एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए सहायता देगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए, राष्ट्रीय स्तर पर वितरित सूक्ष्म-उर्वरक और कीटनाशक विनिर्माण नेटवर्क बनाते हुए 10,000 बायो-इनपुट रिसोर्स केंद्र स्थापित किए जाएंगें। रासायनिक उर्वरकों के संतुलित प्रयोग तथा इनके स्थान पर वैकल्पिक उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने पीएम-प्रणाम, यानी “पृथ्वी माता के पुनरुद्धार, इसके प्रति जागरूकता, पोषण और सुधार हेतु प्रधानमंत्री कार्यक्रम” की घोषणा भी की।

हाल के बजट भाषणों में प्राकृतिक खेती का ज़िक्र होता रहा है। पिछले साल घोषणा की गई थी कि गंगा के दोनों किनारों पर 5 किमी कॉरिडोर बनाकर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे पहले के बजट भाषण में जीरो बजट प्राकृतिक खेती की बात की गई थी।

लेकिन एक तरफ सरकार जहां प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ रासायनिक खाद पर सब्सिडी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

उदाहरण के लिए साल 2022-23 के बजट में यूरिया पर सब्सिडी के लिए 63,222 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, लेकिन संशोधित अनुमान में यह राशि बढ़कर 1,54,098 करोड़ रुपए हो गई। वहीं इस साल के बजट में यूरिया पर सब्सिडी के लिए 1,31,100 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, यानी पिछले बजट की तुलना में दोगुने से भी अधिक।

केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा ने पिछले साल 5 अगस्त को लोकसभा में दिए गए एक लिखित उत्तर में कहा था कि देश में चार उर्वरकों  — यूरिया, डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट), एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश), एनपीकेएस (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) —  की कुल आवश्यकता में 2017-18 के मुकाबले 2021-22 में 21 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ। इसकी खपत 528.86 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 640.27 लाख मीट्रिक टन हो गई।

जहां डीएपी की आवश्यकता में 25 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई वहीं यूरिया की आवश्यकता लगभग 20 प्रतिशत बढ़ी।

दूसरी ओर जीरो बजट प्राकृतिक खेती की बात करें तो इसका ट्रैक रिकॉर्ड ख़राब रहा है। जीरो बजट प्राकृतिक खेती किसी भी रासायनिक खाद, कीटनाशक या किसी अन्य बाहरी सामग्री का उपयोग किए बिना फसल उगाने की एक प्रणाली है। 

सरकार ने भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (बीपीकेपी) योजना के माध्यम से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही थी, जिसके तहत किसानों को तीन साल के लिए 12,200 रुपए प्रति हेक्टेयर प्रदान किया जाता है। लेकिन इस संबंध में संसद में पूछे गए सवालों के जवाबों से पता चलता है कि सरकार ने मार्च 2021 से अगस्त 2022 के दौरान इस योजना पर एक भी रुपया खर्च नहीं किया

इस साल के आर्थिक सर्वे में सरकार ने कहा कि बीपीकेपी के अंतर्गत आठ राज्यों में 4.09 लाख हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक कृषि के तहत लाया गया है। गौरतलब है कि 23 मार्च 2021 को तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में बताया था कि प्राकृतिक खेती के तहत 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है।

इससे यह समझा जा सकता है कि तब से लेकर अब तक इस योजना के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का विस्तार नहीं हुआ है।

वहीं 5 दिसंबर 2022 को सरकार ने एक विज्ञप्ति में कहा था कि ‘प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने हेतु केंद्र सरकार ने 1,584 करोड़ रुपए के खर्च से प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन को पृथक योजना के रूप में मंजूरी दी है’। मौजूदा बजट में इस योजना के लिए 459 करोड़ रुपए का प्रावधान है।

गोबरधन योजना

इस बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि गोबरधन (गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज धन) योजना के तहत 500 नए ‘अवशिष्ट से आमदनी’ संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। इनमें 200 कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) संयंत्र होंगे, जिनमें शहरी क्षेत्रों में 75 तथा 300 समुदाय या क्लस्टर आधारित संयंत्र होंगें।

गोबर-धन योजना का उद्देश्य है कि मवेशियों के गोबर और कृषि से निकले कचरे आदि से बायोगैस का उत्पादन करके गावों को स्वच्छ बनाया जाए और साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिले। इस योजना के तहत 2018-19 में ही 700 संयंत्र लगाने का लक्ष्य था लेकिन 2022 तक 534 संयंत्र ही लगे हैं।

वहीं किफायती परिवहन के लिए सतत विकल्प (सतत) योजना के तहत 2023 तक 5,000 सीबीजी संयंत्र स्थापित किए जाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन संसद में 19 दिसम्बर 2022 को प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक मात्र 40 प्लांट लगाए गए हैं

ऐसे में इन नई घोषणाओं पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। 

वन-रोपण

सरकार ने घोषणा की कि मैंग्रूव पौधारोपण के लिए ‘तटीय पर्यावास और ठोस आमदनी के लिए मैंगू पहल’ मिश्टी की शुरुआत की जाएगी। तटीय रेखा के साथ-साथ लवण भूमि पर यह पौधरोपण मनरेगा, सीएएमपीए कोष और अन्य स्रोतों के बीच तालमेल के माध्यम से किया जाएगा।

इसी प्रकार कुछ सालों पहले बांस पौधरोपण केलिए राष्ट्रीय बांस मिशन की शुरुआत भी ज़ोर-शोर से की गई थी। 2018 में सरकार ने इसके लिए 1,200 करोड़ रुपए से अधिक आवंटित किए थे। लेकिन मार्च 2022 में लोकसभा में सरकार ने बताया कि चार सालों में इस मिशन पर 315 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए थे।  

मिशन के लिए आवंटन साल-दर-साल घटता रहा।

साल 2018-19 के बजट में मिशन पर होने वाला व्यय 300 करोड़ रुपए रखा गया था। लेकिन संशोधित बजट में यह घटकर आधा रह गया। वहीं 2019-20 के बजट में 150 करोड़ रुपए का आवंटन संशोधित बजट में घटकर 84 करोड़ हो गया। और 2020-21 के बजट में यह 110 करोड़ रुपए से घटकर संशोधित बजट में 42 करोड़ रुपए रह गया। 

ऐसे में यह ध्यान रखना होगा कि मिश्टी कार्यक्रम भी बांस मिशन की राह पर न चल पड़े।

+ posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.