Vol 1, April 2024 | जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा बना मौलिक अधिकार

भारत में इस साल सामान्य से बेहतर रहेगा मानसून: आईएमडी

भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि भारत में 2024 के मानसून सीजन में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि अगस्त-सितंबर तक ला नीना की स्थिति बनने की उम्मीद है, और जून से सितंबर के बीच वर्षा के लांग पीरियड एवरेज (एलपीए, 87 सेमी) का 106 प्रतिशत संचयी वर्षा होने की संभावना है।

निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट ने भी कहा है कि इस साल भारत में मानसून सामान्य रहने की संभावना है और मानसून के दूसरे भाग में बारिश ज्यादा होगी। आईएमडी के वैज्ञानिकों को ऐसे शुरुआती संकेत मिले हैं जो बताते हैं कि इस साल मानसून अच्छा होगा, क्योंकि अल नीनो की स्थिति कम हो रही है और यूरेशिया में बर्फ का आवरण घट रहा है।

महापात्रा ने कहा कि बड़े पैमाने पर जलवायु संबंधी घटनाएं दक्षिण पश्चिम मानसून के लिए अनुकूल हैं। “जून के आरंभ तक अल नीनो लगभग निष्प्रभावी हो जाएगा। जुलाई-सितंबर के बीच ला नीना स्थितियां बनेंगी जिससे मानसून अच्छा होगा,” उन्होंने कहा।

हालांकि अच्छे मानसून का मतलब यह नहीं कि पूरे मौसम के दौरान और देश में सभी जगह एक जैसी बारिश होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के दिनों की संख्या घट रही है जबकि भारी बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे बार-बार सूखा और बाढ़ स्थितियां उत्पन्न हो रही हैं। 

स्काईमेट को दक्षिण, पश्चिम और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में पर्याप्त बारिश की उम्मीद है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के मुख्य मानसून वर्षा आधारित क्षेत्रों में भी पर्याप्त वर्षा होगी। हालांकि, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के पूर्वी राज्यों में जुलाई और अगस्त के महीनों के दौरान कम वर्षा हो सकती है। पूर्वोत्तर भारत में मानसून के पहले भाग के दौरान सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है।

मार्च 2024 रहा सबसे गर्म, 12 महीने के औसत तापमान ने बनाया नया रिकॉर्ड

अल नीनो स्थिति और मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभाव के कारण मार्च 2024 अब तक का सबसे गर्म मार्च का महीना रहा। यूरोपीय संघ की जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विसेज (सी3एस) ने बताया कि पिछले साल जून के बाद से तापमान का रिकॉर्ड बनाने वाला यह लगातार 10वां महीना था।

मार्च 2024 में औसत तापमान 14.14 डिग्री सेल्सियस था, जो 1850-1900 के औसत से 1.68 डिग्री सेल्सियस अधिक था। 1991-2020 की अवधि के दौरान मार्च के औसत तापमान से यह 0.73 डिग्री सेल्सियस अधिक था और 2016 के पिछले सबसे गर्म मार्च से 0.10 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

सी3एस ने कहा कि “पिछले 12 महीनों (अप्रैल 2023-मार्च 2024) में वैश्विक औसत तापमान सबसे अधिक रहा है, जो 1991-2020 के औसत से 0.70 डिग्री सेल्सियस और 1850-1900 के औसत से 1.58 डिग्री सेल्सियस अधिक है।” एजेंसी ने यह भी कहा कि वैश्विक औसत तापमान जनवरी में पहली बार पूरे वर्ष के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया।

वैश्विक स्तर पर 2023 अबतक का सबसे गर्म साल था। ग्लोबल वार्मिंग 2024 में एक नया रिकॉर्ड बना सकती है क्योंकि वैज्ञानिकों का कहना है कि अल नीनो आमतौर पर अपने दूसरे वर्ष में वैश्विक जलवायु पर सबसे अधिक प्रभाव डालता है।

हीटवेव की मार महिलाओं पर अधिक : शोध 

अत्यधिक गर्मी झेलने के बात हो तो महिलाओं पर हीटवेव की मार पुरुषों के मुकाबले अधिक होती है। सिग्निफिकेंस पत्रिका में प्रकाशित एक विश्लेषण में यह बात सामने आई है। द रॉयल स्टेटेस्टिकल सोसायटी के जर्नल में प्रकाशित हुए इस विश्लेषण में  शोधकर्ताओं ने करीब 30 साल के आंकड़ों का अध्ययन किया और पाया कि 2005 से हीटवेव के कारण हुई मौतों में जहां पुरुषों की संख्या में कुछ गिरावट है वहीं महिलाओं का ग्राफ बढ़ रहा है। 

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर और अकादमिक निदेशक रामित देबनाथ ने डाउन टु अर्थ मैग्जीन को बताया, “हमने वर्णनात्मक सांख्यिकीय विश्लेषण के माध्यम से पाया कि भारत में उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अत्यधिक तापमान की स्थिति (विशेष रूप से गर्मी) के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।” 

इन शोधकर्ताओं यह जानने के लिए विश्लेषण शुरू किया कि क्या भारत में महिलाओं को अत्यधिक तापमान से मृत्यु दर का अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। लेकिन भारत में तापमान संबंधी हेल्थ और हेल्थ केयर को लेकर बारीक और और उच्च गुणवत्ता वाले राष्ट्रीय डाटा का अभाव है। इसलिये इस रिसर्च को प्राथमिक रुझान ही समझा जाना चाहिये। 

इससे पहले मार्च में वन अर्थ नाम की विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य शोध में कहा गया कि बाहर काम करने वाले श्रमिकों पर हीटवेव के बड़े दुष्प्रभाव होते हैं और इस कारण जागरूकता बढ़ाने और इस मौसम में काम के घंटे कम करने की ज़रूरत है।  अमेरिका स्थित पॉल जी एलन फैमली फाउंडेशन के सहयोग  से किये गये शोध में बताया गया कि बढ़ती उमस भरी गर्मी से अफ्रीका और एशिया में बाहर काम करने वाले श्रमिकों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि आने वाले दशकों में यहां के देशों में कामकाजी आबादी की उम्र अधिक होगी और यहां कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन पर उच्च निर्भरता भी है।

बेहतर पूर्वानुमान के लिए एआई का प्रयोग कर रहा मौसम विभाग 

भारत के मौसम विज्ञानी बेहतर पूर्वानुमान के लिए एआई (आर्टिफिशयल इंटैलिजेंस) का प्रयोग कर रहे हैं। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ वार्ता में यह भी कहा कि आने वाले दिनों में नई टेक्नोलॉजी ऐसे संख्यात्मक मौसम पूर्वानुमान मॉडल तैयार करने में भी मदद करेंगी जिनका वर्तमान में मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

मौसम निभाग ने 39 डॉप्लर वेदर रडार लगाए हैं जो देश के 85 प्रतिशत क्षेत्रफल में मौसमी गतिविधि कवर करते हैं। इससे सभी बड़े शहरों का हर घंटे का पूर्वानुमान उपलब्ध हो जाता है। महापात्र ने कहा, “हमने सीमित रूप में एआई का प्रयोग शुरू किया है लेकिन आने वाले 5 सालों में एआई व्यापक रूप से मॉडल और तकनीकी में सहायक होगा।”

उनके मुताबिक आईएमडी ने 1901 से अब तक के मौसम के रिकॉर्ड डिजिटल रूप में संरक्षित किए हैं और एआई के प्रयोग द्वारा सूचना के इस भंडार का वेदर पैटर्न के बारे में पता लगाने में इस्तेमाल हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा को सुप्रीम कोर्ट ने माना मौलिक अधिकार

एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारों का दायरा बढ़ाते हुए, जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से सुरक्षा के अधिकार को भी उनमें शामिल कर लिया है।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की एक बेंच ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) के संरक्षण पर एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात में पाए जाते हैं। हाल के दिनों में ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनों से टकराने के कारण उनकी संख्या में लगातार कमी हो रही है। इसमें उनके हैबिटैट के आस-पास स्थित सौर संयंत्रों की लाइनें भी शामिल हैं। गौरतलब है कि अप्रैल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जीआईबी के हैबिटैट के पास सभी ट्रांसमिशन लाइनें भूमिगत की जाएं। हालांकि सरकार ने ऐसा करने में तकनीकी रूप से असमर्थता जताई थी। सरकार का तर्क स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2021 का आदेश वापस ले लिया, और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच संतुलन बनाए रखने के उपायों पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया है। समिति को अपनी रिपोर्ट 31 जुलाई तक कोर्ट को सौंपनी है।      

इसी फैसले में मुख्य न्यायाधीश ने जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाले हानिकारक प्रभावों से संरक्षण पर भी चर्चा की। कोर्ट ने अनुच्छेद 14 और 21 का दायरा बढ़ाते हुए इसके अंतर्गत ‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से संरक्षण के अधिकार’ को भी शामिल कर लिया।

कोर्ट ने कहा कि नागरिकों को खतरों से बचाना और उनकी सुरक्षा और सेहत का ध्यान रखना राज्य का कर्तव्य है, और स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार निस्संदेह इस कर्तव्य का एक हिस्सा है। “सरकारों का कर्तव्य है कि वह जलवायु परिवर्तन का शमन (मिटिगेशन) करने के प्रभावी उपाय करे और यह सुनिश्चित करे कि सभी व्यक्तियों के पास जलवायु संकट से अनुकूलन (अडॉप्टेशन) के लिए आवश्यक क्षमता हो,” कोर्ट ने कहा।

कोर्ट ने यह भी कहा कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करने की आवश्यकता है, इसलिए सौर ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग जरूरी है।

कोर्ट ने कहा कि वायु प्रदूषण, बढ़ते तापमान, सूखे, फसल की विफलता, तूफान और बाढ़ आदि से लोगों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ता है और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है। साथ ही कमज़ोर वर्गों के जलवायु परिवर्तन से अनुकूलन (अडॉप्टेशन) न कर पाने के कारण अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार और अनुच्छेद 14 में निहित समता के अधिकार का हनन होता है।

हालांकि जलवायु नीति विशेषज्ञों ने कोर्ट के इस आदेश का स्वागत किया है, लेकिन उनका यह भी कहना है कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर ट्रांजिशन के दौरान पर्यावरणीय अन्याय नहीं होना चाहिए। कुछ एक्टिविस्ट्स ने आशंका जताई कि कहीं इस फैसले का प्रयोग बड़े पैमाने पर सौर उत्पादन और ट्रांसमिशन को उचित ठहराने के लिए न किया जाए।

जलवायु परिवर्तन न रोक पाना मानवाधिकारों का उल्लंघन: यूरोपीय कोर्ट

यूरोप के सबसे बड़े मानवाधिकार न्यायालय — यूरोपियन कोर्ट ऑफ़ ह्यूमन राइट्स — ने एक फैसले में कहा है कि स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त कदम न उठाकर अपने नागरिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है। सीनियर वीमेन फॉर क्लाइमेट प्रोटेक्शन नामक समूह की 2,000 से महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया।

हालांकि यूरोपीय कोर्ट ने दो ऐसी ही याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया। इनमें से एक पुर्तगाल के छह युवाओं ने 32 यूरोपीय देशों की सरकारों के खिलाफ दायर की थी, जिसके बारे में कार्बन कॉपी ने पहले भी बताया था। और दूसरी याचिका फ्रांस के एक मेयर की थी। इन सभी याचिकाओं में कहा गया था कि विभिन्न देशों की सरकारें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कड़े कदम नहीं उठा रही हैं।

हालांकि इस कोर्ट का यूरोपियन यूनियन से कोई संबंध नहीं है, फिर भी उम्मीद की जा रही है कि स्विस महिलाओं के मामले दिए गए इस निर्णय का पूरे यूरोप के साथ-साथ दूसरे देशों में भी असर होगा, और अन्य समुदाय भी अपनी सरकारों के खिलाफ ऐसे मामले उठाने के लिए प्रोत्साहित होंगे।

स्विट्ज़रलैंड की इन महिलाओं ने अपनी याचिका में कहा था कि उनकी सरकार की निष्क्रियता के कारण उनपर हीटवेव का खतरा बढ़ गया है, जो उनकी उम्र और लिंग को देखते हुए विशेष रूप से जानलेवा हो गया है।

अदालत ने कहा कि स्विट्जरलैंड जलवायु परिवर्तन से निपटने और उत्सर्जन कम करने के लक्ष्यों को पूरा करने में ‘अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहा’, जिससे इन महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन हुआ।

मौद्रिक नीति के लिए चुनौतियां खड़ी करता है जलवायु परिवर्तन: आरबीआई

रिज़र्व बैंक ने एक रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बार-बार होने वाले मौसम के झटके मौद्रिक नीति के लिए चुनौतियों के साथ-साथ आर्थिक विकास के लिए जोखिम पैदा करते हैं।

आरबीआई की मौद्रिक नीति रिपोर्ट — अप्रैल 2024 में कहा गया है कि वैश्विक औसत तापमान बढ़ रहा है, साथ ही चरम मौसम की घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है, और ग्लोबल वार्मिंग का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव तेजी से स्पष्ट हो रहा है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे विभिन्न तरीकों से जलवायु परिवर्तन मौद्रिक नीति को प्रभावित कर सकता है। चरम मौसम की घटनाओं से कृषि उत्पादन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित होती हैं, जिससे सीधे मुद्रास्फीति पर असर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन ब्याज की सामान्य दर को भी प्रभावित कर सकता है, और इसके कारण लोगों तक मौद्रिक नीति का फायदा पहुंचने में भी देरी होती है।

पिछले हफ्ते रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांता दास ने कहा था कि आरबीआई सब्जियों की कीमतों पर कड़ी नजर रखेगा जो हीटवेव की स्थिति से प्रभावित हो सकती हैं। आईएमडी ने भविष्यवाणी की है कि अप्रैल से जून के दौरान देश के कई हिस्से हीटवेव से प्रभावित होंगे।

ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए दो साल का समय: यूएन क्लाइमेट चीफ

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु प्रमुख ने कहा है कि सरकारों, बिज़नेस लीडर्स और विकास बैंकों के पास जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को रोकने की कार्रवाई करने के लिए दो साल का समय है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के कार्यकारी सचिव साइमन स्टिल ने चेतावनी दी कि ग्लोबल वार्मिंग राजनेताओं के एजेंडे में नीचे जा रही है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को आधा करना बहुत जरूरी है। फिर भी, पिछले साल दुनिया का ऊर्जा-संबंधित कार्बन उत्सर्जन रिकॉर्ड रूप से बढ़ गया। जलवायु परिवर्तन से लड़ने की मौजूदा प्रतिबद्धताओं से 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में बमुश्किल ही कटौती होगी।

स्टिल ने लंदन में एक भाषण में कहा कि अगले दो साल “हमारे ग्रह को बचाने के लिए आवश्यक” हैं।

दुनिया के 60% कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेदार 12 देशों में शामिल भारत : रिपोर्ट

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 60 प्रतिशत कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे के लिए 12 देश जिम्मेदार हैं, जिनमें भारत भी एक है। हालांकि, भारत का प्रति व्यक्ति प्लास्टिक कचरा उत्पादन बहुत कम है। स्विस गैर-लाभकारी संस्था ईए अर्थ एक्शन की प्लास्टिक ओवरशूट डे रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2021 के बाद से वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन में 7.11 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।  

अनुमान है कि दुनिया में इस साल 220 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा पैदा हुआ है, जिसमें से 70 मिलियन टन पर्यावरण को प्रदूषित करेगा। भारत के अलावा इन 12 देशों में शामिल हैं चीन, रूस, ब्राज़ील, मैक्सिको, वियतनाम, ईरान, इंडोनेशिया, मिस्र, पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका और तुर्की।  

हालांकि रिपोर्ट में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन (प्रति वर्ष 8 किलोग्राम प्रति व्यक्ति) कम होने के कारण भारत को “कम अपशिष्ट उत्पादक” प्रदूषक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, लेकिन इसमें कहा गया है कि 2024 में देश का अपेक्षित कुप्रबंधित कचरा 7.4 मिलियन टन होगा, जो कि “बहुत अधिक” है।

देश में बेहतर’ वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या 35% घटी 

भारत में बेहतर वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या में 35 फीसदी की गिरावट आई है। गौरतलब है कि जहां 14 अप्रैल को बेहतर वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या 26 दर्ज की गई थी। वहीं 15 अप्रैल यह आंकड़ा घटकर 17 पर पहुंच गया। 15 अप्रैल को देश के चार शहरों पालकालाइपेरुर, पुदुचेरी, रामनाथपुरम, वाराणसी में वायु गुणवत्ता 36 दर्ज की गई।

वहीं दूसरी तरफ बर्नीहाट में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 308 दर्ज किया गया। वाराणसी से तुलना करें तो बर्नीहाट में प्रदूषण का स्तर नौ गुना ज्यादा है। 

देश के 112 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर संतोषजनक दर्ज किया गया है। इन शहरों में कटक, दावनगेरे, देवास, डूंगरपुर, एलूर, फतेहाबाद, फिरोजाबाद और गडग आदि शहर शामिल हैं। 14 अप्रैल के मुकाबले 15 अप्रैल को संतोषजनक वायु गुणवत्ता वाले शहरों की संख्या में इजाफा हुआ। 14 अप्रैल को इन शहरों की संख्या 105 थी।

देश के 89 शहरों में वायु गुणवत्ता मध्यम श्रेणी की है। वहीं 14 अप्रैल को इन शहरों का आंकड़ा 94 दर्ज किया गया था। इसी तरह देश के 21 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर ‘खराब’ दर्ज किया गया है।

वायु प्रदूषण से मानसिक स्वास्थ्य खराब होता है: दिल्ली सरकार ने एनजीटी से कहा

दिल्ली सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंपी एक रिपोर्ट में कहा है कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से भारत में लोगों का मानसिक स्वास्थ्य खराब हो रहा है, जिससे उदासी की भावना बढ़ रही है और  सोचने-समझने की शक्ति के साथ जीवन की चुनौतियों से निपटने की क्षमता कम हो गई है।

एनजीटी की बेंच ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वायु प्रदूषक “चिंता, मनोदशा में बदलाव और मनोवैज्ञानिक विकारों सहित मानसिक स्वास्थ्य की कई समस्याओं से जुड़े हुए हैं” 

एनजीटी ने कहा कि दिल्ली सरकार की रिपोर्ट में सामान्य उपाय सुझाए गए हैं, जैसे सक्रिय रहना और चिकित्सक से बात करना। साथ ही विशिष्ट उपाय जैसे  मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान जैसे सरकारी अस्पतालों द्वारा मनोरोग सेवाएं लेना आदि भी सुझाए गए हैं।

वाराणसी में प्रदूषित गंगा: एनजीटी ने मुख्य पर्यावरण अधिकारी पर लगाया जुर्माना

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश के मुख्य पर्यावरण अधिकारी पर 10,000 रुपए का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना वाराणसी में गंगा नदी को प्रदूषित करने वाले लोगों और संस्थाओं पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाने के एनजीटी के आदेश का ‘पालन नहीं करने के लिए’ लगाया गया है।

एनजीटी ने 16 फरवरी को वाराणसी नगर निगम की रिपोर्ट पर गौर किया था, जिसके मुताबिक, 100 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवेज का पानी गंगा में छोड़ा जा रहा था। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने पाया था कि वाराणसी में गंगा नदी का बहाव “स्नान के लिए उपयुक्त नहीं” है, और कहा था कि प्रदूषण करने वाले निकायों या लोगों पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क लगाया जाएगा।

भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में रिकॉर्ड वृद्धि

भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष में सौर ऊर्जा के कारण ग्रिड की वार्षिक क्षमता में अब तक की सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की। इस वृद्धि में सौर ऊर्जा का योगदान 81 प्रतिशत रहा। वित्त वर्ष 2024 के दौरान जोड़ी गई कुल नई क्षमता 18,485 मेगावाट थी, जबकि उसके पिछले वित्त वर्ष में 15,274 मेगावाट क्षमता जोड़ी गई थी। औसतन, पिछले तीन वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ने प्रति वर्ष लगभग 15,950 मेगावाट की क्षमता जोड़ी।

केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में जोड़ी गई क्षमता में 15,033 मेगावाट सोलर क्षेत्र (सभी श्रेणियों सहित जैसे ग्राउंड-माउंटेड, रूफटॉप, हाइब्रिड सोलर और ऑफ-ग्रिड आदि) से आया, जबकि वित्त वर्ष 2023 में यह योगदान 12,784 मेगावाट और वित्त वर्ष 2022 में 12,761 मेगावाट था।

वित्त वर्ष 2024 में यूटिलिटी-स्केल सोलर सेगमेंट में लगभग 11.5 गीगावाट जोड़ा गया, जो वित्त वर्ष 2023 के इंस्टॉलेशन की तुलना में 18% अधिक है। रूफटॉप सोलर सेगमेंट में वित्त वर्ष 2024 के दौरान लगभग 2,992 मेगावाट जोड़ा गया, जो वित्त वर्ष 23 की तुलना में 34% अधिक है।

लंबे समय के बाद, पवन ऊर्जा क्षेत्र ने 3,000 मेगावाट से अधिक की वार्षिक क्षमता जोड़ी, और यह वित्त वर्ष 24 में 3,253 मेगावाट (वित्त वर्ष 2023 में 2,276 मेगावाट और वित्त वर्ष 22 में 1,111 मेगावाट) रही।

एएलएमएम सूची फिर लागू, डेवलपर्स को मॉड्यूल की कीमतें बढ़ने की चिंता

सरकार ने सौर मॉड्यूल निर्माताओं के लिए मॉडल और निर्माताओं की स्वीकृत सूची (एएलएमएम) को पहली अप्रैल से फिर से लागू कर दिया है। लेकिन ओपन एक्सेस और गैर-सब्सिडी प्राप्त परियोजनाओं को मिलने वाली छूट वापस ले ली गई है। इस कारण से ओपन एक्सेस डेवलपर्स शंकित हैं कि मॉड्यूल की कीमतें बढ़ेंगी और परियोजना की लागत में वृद्धि होगी। 

इससे पहले सरकार ने सूची में शामिल निर्माताओं से सौर मॉड्यूल की खरीद को अनिवार्य करने के आदेश को वित्त वर्ष 2024 तक स्थगित कर दिया था, क्योंकि इससे मॉड्यूल आपूर्ति बाधित होने की संभावना थी जिसका प्रभाव सौर क्षमता वृद्धि पर होता।

एएलएमएम रेगुलेशन को अब अक्टूबर 2022 से अपने मूल रूप में फिर से लागू किया जा रहा है, जिसके दायरे में ओपन एक्सेस और रूफटॉप सोलर सहित सभी श्रेणियों की परियोजनाएं आएंगी।

सौर उपकरण निर्माताओं के लिए देश के भीतर व्यवसाय करने के लिए इस सूची में शामिल होना आवश्यक है। सूची में अभी भी किसी अंतर्राष्ट्रीय निर्माता या मॉड्यूल को शामिल नहीं किया गया है। डेवलपर्स को डर है कि प्रतिस्पर्धा के अभाव में बाजार में कीमतें बढ़ सकती हैं।

नीतिगत चिंताओं के कारण नवीकरणीय सेक्टर में घट रहा निवेश

इस साल वैश्विक निवेशक तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर के फंड्स से दूर हो रहे हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 की पहली तिमाही में निवेशकों ने रिकॉर्ड रूप से नवीकरणीय ऊर्जा इक्विटी फंड्स से पैसे निकाले हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक निवेशक सेक्टर के विकास और नीतियों को लेकर अनिश्चित हैं, क्योंकि इस साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं।

गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में नवीकरणीय ऊर्जा सेक्टर के फंड्स में लगातार निवेश देखा गया है, क्योंकि उपभोक्ता पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ उत्पादों और सेवाओं को अधिक दामों पर भी उपयोग करने को तैयार थे, और अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में नीतियां इनके अनुरूप थीं।

हालांकि, अब निवेश पर बढ़ती ब्याज दरों और भविष्य की ऊर्जा नीतियों पर अनिश्चितता के कारण निवेशक चिंतित हैं। दुनिया के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में पहले से ही उतना विकास नहीं हो रहा जितना कॉप28 में निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक है। ऐसे में यदि निवेशकों की रुचि घटती रही तो क्लाइमेट लक्ष्यों को प्राप्त करने में समस्या आ सकती है।

ग्रीन हाइड्रोजन रिसर्च और डेवलपमेंट प्रस्ताव पेश करने की समय सीमा बढ़ी

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत अनुसंधान और विकास प्रस्ताव पेश करने की अवधि बढ़ा दी है

निर्धारित समय सीमा को अब 27 अप्रैल, 2024 तक बढ़ा दिया गया है, जिससे भारत के हरित हाइड्रोजन विकास में योगदान देने की इच्छा रखने वाले शोधकर्ताओं और संस्थानों को अतिरिक्त तैयारी का समय मिल गया है।

विभिन्न हितधारकों ने समयसीमा बढ़ाने का अनुरोध किया था ताकि उन्हें अपने प्रस्तावों को विकसित करने के लिए अधिक समय मिल सके, और उच्च गुणवत्ता वाली, नवीन परियोजनाएं पूरी तरह से तैयार करके प्रस्तुत की जा सकें।

यह पहल हरित हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ावा देने की सरकार की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।

भारत आएंगे इलॉन मस्क, मैनुफैक्चरिंग प्लांट के लिए राज्यों में होड़

टेस्ला के सीईओ इलॉन मस्क ने अपनी आगामी भारत यात्रा की घोषणा कर दी हैहिंदू बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, टेस्ला इस यात्रा का उपयोग भारत में एक स्थानीय भागीदार की तलाश में कर सकती है, जो उसका परिचालन शुरू करने में मदद करे।

भारत में उत्पादन ईकाई बनाने के लिए टेस्ला और रिलायंस इंडस्ट्रीज के बीच कथित तौर पर एक संभावित संयुक्त उद्यम के बारे में बात चल रही है। टेस्ला फैक्ट्री के लिए महाराष्ट्र और गुजरात सहित कई साइटों पर विचार कर रही है। खबरों के अनुसार कंपनी महाराष्ट्र का चुनाव कर सकती है क्योंकि यहां पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद है। हालांकि बिज़नेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार गुजरात इस दौड़ में आगे है। इसके अलावा तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्य भी कंपनी के नियोजित 2-3 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रिक वाहन संयंत्र के लिए जमीन उपलब्ध कराने की दौड़ में हैं।

टेस्ला ने दुनिया भर में 10% कर्मचारियों को नौकरी से निकाला

इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की गिरती बिक्री और दाम कम करने की होड़ का हवाला देकर टेस्ला दुनिया भर से अपने 10% से अधिक कर्मचारियों की छंटनी कर रही है। सीईओ इलॉन मस्क ने एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, ‘लगभग हर पांच साल में हमें विकास के अगले चरण के लिए कंपनी को पुनर्गठित और सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता होती है’।

कंपनी के दो वरिष्ठ अधिकारियों — बैटरी डेवलपमेंट चीफ ड्रू बैगलिनो और पब्लिक पालिसी के उपाध्यक्ष रोहन पटेल ने भी — अपने प्रस्थान की घोषणा की है। मस्क ने उनकी पोस्ट पर उन्हें धन्यवाद दिया। हालांकि कुछ निवेशक इस बदलाव से चिंतित हैं।  

मस्क ने आखिरी बार 2022 में नौकरियों में कटौती की घोषणा की थी, जब उन्होंने कर्मचारियों को बताया था कि उन्हें अर्थव्यवस्था को लेकर ‘बहुत बुरा अंदेशा’ हो रहा है।

भारत में सभी तरह के इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ी: डीलर्स एसोसिएशन 

ऑटोमोटिव डीलरों के संगठन फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान भारत में सभी तरह के इलेक्ट्रिक वाहनों की खुदरा बिक्री में वृद्धि देखी गई

इलेक्ट्रिक यात्री वाहनों की कुल बिक्री वित्त वर्ष 2023 में 47,551 इकाइयों की तुलना में 2023-24 में बढ़कर 90,996 इकाई हो गई, जिसमें 91 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इसी तरह, वित्तीय वर्ष 2023-24 में इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों का पंजीकरण 30 प्रतिशत बढ़कर 9,47,087 इकाई हो गया, जबकि वित्त वर्ष 2023 में यह 7,28,205 इकाई था।

पिछले वित्त वर्ष में इलेक्ट्रिक थ्री-व्हीलर की खुदरा बिक्री 56 प्रतिशत बढ़कर 6,32,636 इकाई हो गई, जो वित्त वर्ष 2023 में 4,04,430 इकाई थी। 

इसी तरह, इलेक्ट्रिक कमर्शियल वाहनों की खुदरा बिक्री पिछले वित्त वर्ष में तीन गुना बढ़कर 8,571 इकाई हो गई, जबकि वित्तीय वर्ष 2022-23 में यह 3,111 इकाई थी। 

उत्तराखंड में लगेगा लिथियम-आयन बैटरी रीसाइक्लिंग प्लांट

उत्तराखंड के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने रेमाइन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से सितारगंज में लिथियम-आयन बैटरी (एलआईबी) रीसाइक्लिंग संयंत्र स्थापित किया है।

इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, परियोजना की कुल लागत लगभग 15 करोड़ रुपए है। मंत्रालय के तहत प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड ने परियोजना के लिए 7.5 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता देने का वादा किया है।

यह संयंत्र हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर मैटेरियल्स फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी (सीएमईटी) द्वारा विकसित स्वदेशी तकनीक का उपयोग करेगा। इस कदम से आयातित आवश्यक खनिज संसाधनों पर निर्भरता कम हो सकती है और रीसाइक्लिंग भी बढ़ने की संभावना है।

कोयला अगले दो दशकों तक बना रहेगा भारत के एनर्जी सेक्टर की रीढ़

भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोयला अगले 20 साल तक भारत के ऊर्जा क्षेत्र की रीढ़ बना रहेगा और इसका प्रयोग घटाने के लिये क्रिटिकल मिनरल्स को लेकर एक सक्रिय नीति चाहिये।  रिपोर्ट में कहा गया है कि  न्यूक्लियर और नवीनीकरणीय ऊर्जा में व्यापक बढ़ोतरी किये बिना 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। 

इसी महीने जारी हुई रिपोर्ट के मुताबिक: नेट ज़ीरो को हासिल करने के लिये कोई अलादीन का चिराग नहीं है। इस ट्रांजिशन के लिए हमारी एनर्ज़ी बास्केट में बहुत सारी प्रौद्योगिकियों के ज़रिये कई तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है। अनुमान है कि कोयला अगले दो दशकों तक भारतीय ऊर्जा प्रणाली की रीढ़ बना रहेगा।”

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2070 में भारत के उत्सर्जन 0.56 से 1.0 बिलियन टन कार्बन डाइ ऑक्साइड के बीच होंगे। 

“यह उम्मीद है कि उत्सर्जन में शेष अंतर को वानिकी और वृक्ष आवरण के माध्यम से पाटा जायेगा जैसा कि हमारे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) में परिकल्पना की गई है।

उधर ऊर्जा मंत्रालय ने कहा है कि इस साल गर्मियों में अनुमानित 260 गीगावॉट की पीक पावर डिमांड को पूरा करने के लिये कोयला पर भारी निर्भरता रहेगी। हालांकि नवीनीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों की क्षमता लगातार बढ़ रही है लेकिन अधिकारी गर्मियों में इस उच्चतम मांग को पूरा करने के लिये ताप बिजलीघरों में कोयले का भंडार सुनिश्चित करने में लगे हैं। मौसम विभाग ने पूर्वानुमान जताया है कि अप्रैल और जून के बीच अत्यधिक गर्मी होगी जिस दौरान मध्य और प्रायद्वीपीय हिस्सों में हीटवेव सबसे बुरा असर दिखेगा। 

विश्व के बड़े देश गरीब देशों में लगा रहे करोड़ों डॉलर के प्रोजेक्ट 

जी-20 देशों ने जीवाश्म ईंधन का विस्तार रोकने के वादों के  बावजूद पिछले 3 साल में इसी कारोबार में 142 बिलियन डॉलर खर्च किये हैं। ये आर्थिक शक्तियां गरीब देशों में ऐसे प्रोजेक्ट्स को बढ़ा रही हैं। पर्यावरण और क्लाइमेट पर काम करने वाले समूह ऑइल चेंज इंटरनेशनल और फ्रेंड्स ऑफ अर्थ यूएस की रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि जी-20 समूह के विकसित और विकासशील देश जीवाश्म ईंधन प्रोजेक्ट को बढ़ा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2020 से 2022 के बीच कनाडा, जापान और साउथ कोरिया देश के बाहर इस तरह के फाइनेंस में सबसे आगे रहे और कोयले और तेल के मुकाबले गैस के प्रयोग पर अधिक पैसा लगाया जा रहा है। 

महत्वपूर्ण है कि जापान और कनाडा जी-7 समूह का हिस्सा हैं और इन देशों ने 2022 में संधि की थी कि देश के बाहर जीवाश्म ईंधन पर फंडिंग में रोक लगायेंगे। कोयले पर निवेश घटा है लेकिन तेल और गैस पर निवेश की रफ्तार बनी हुई है। इन देशों ने 2022 के अंत तक सभी प्रकार के जीवाश्म ईंधन के फेज डाउन यानी प्रयोग को कम करने की बात कही थी लेकिन यह पाया गया कि मार्च 2024 के मध्य तक जापान ऐसे प्रोजेक्ट्स पर पैसा लगा रहा है।    

अमेरिका, जर्मनी और इटली ने भी साल 2022-23 के अंत तक देश के बाहर जीवाश्म ईंधन प्रोजेक्ट्स पर सैकड़ों करोड़ डॉलर का निवेश किया। विश्व बैंक ने इस दौरान  प्रतिवर्ष 120 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर निवेश किया जिसका दो-तिहाई पैसा गैस प्रोजेक्ट्स में गया।