जलवायु परिवर्तन, गरमी तोड़ने लगी सारे रिकॉर्ड

Newsletter - March 21, 2022

तापमान का ख़तरा: जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा ख़तरा हीटवेव और तापमान की असामान्य बढ़ोतरी में ही दिख रहा है। Photo: Economic Times

फरवरी ने बनाया रिकॉर्ड , मार्च में ही बरसने लगी आग

सर्दियों का मौसम जाते ही प्रचंड गर्मी का ग्राफ तेज़ी से बढ़ा है और मार्च के तीसरे हफ्ते में ही आग बरसने लगी है। हिन्दुस्तान टाइम्स के हिसाब से उत्तराखंड और हिमाचल में सामान्य से 7-8 डिग्री अधिक तापमान दर्ज किया गया है। पिछले हफ्ते मंगलवार को गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, विदर्भ और तेलंगाना में 39-41 डिग्री तक तापमान रिकॉर्ड किया गया।    

इससे पहले डाउन टु अर्थ ने नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट के हवाले से बताया कि फरवरी 2022 का महीना इतिहास का सातवां सबसे गर्म फरवरी का महीना था। इस वर्ष फरवरी 2022 का औसत तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 0.81 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था, जबकि फरवरी 2016 में तापमान 1.26 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था 

वैज्ञानिकों का कहना है कि इन इलाकों में जहां एक ओर साफ आसमान के कारण सोलर रेडिएशन और वॉर्मिंग अधिक है  वहीं पश्चिमी तट पर बहुत अधिक तापमान का कारण मुंबई और कोंकण में आने वाली ठंडी समुद्र हवा (सी-ब्रीज़) के मार्ग में आई रुकावट है। जानकार कहते हैं कि हीटवेव को लेकर मौसम विभाग की ताज़ा चेतावनियां आईपीसीसी रिपोर्ट से मेल खाती हैं। रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से कहा गया है कि भारतीय ज़िलों के परिदृश्य में 45% बदलाव (ट्री कवर, फॉरेस्ट कवर और वैटलेंड, मैग्रोव आदि) का रिश्ता इस अति मौसम की घटनाओं से है। 

ओलंपिक खेलों पर जलवायु परिवर्तन की मार 

खेलों पर बढ़ते तापमान की मार पड़ रही है और अब इस कारण दुनिया के कई शहर खेलों के कुंभ कहे जाने वाले ओलंपिक का आयोजन नहीं कर पायेंगे। डाउन टु अर्थ में छपी रिपोर्ट कहती है कि आने वाले दिनों में बढ़ते तापमान के कारण सभी जगह उन खेलों का आयोजन करना मुश्किल होगा जहां खिलाड़ियों को कठिन शारीरिक श्रम की ज़रूरत होती है। जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध का हवाला देते हुई मैराथन दौड़ों की व्यवहार्यता पर सवाल उठाये गये हैं। हाल के वर्षों में भीषण गर्मी के चलते कई धावकों को रेस छोड़नी पड़ी रही है। 

पिछले साल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन उच्चतम स्तर पर पहुंचे: आईईए विश्लेषण 

कोरोना महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये दुनिया के तमाम देशों द्वारा भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन के प्रयोग के कारण पिछले साल वैश्विक कार्बन इमीशन (उत्सर्जन) उच्चतम स्तर पर पहुंच गये।  अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के एक विश्लेषण के मुताबिक साल 2021 में ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ा कार्बन इमीशन 6% बढ़ गया। 

विश्लेषण बताता है कि इस उछाल की मुख्य वजह कोयले का बढ़ा प्रयोग था जिसका ज़्यादातर इस्तेमाल चीन में हुआ। इंडिपेन्डेंट में छपी ख़बर के मुताबिक यूरोप और अमेरिका में तेल और गैस की बढ़ी कीमतों और एक्सट्रीम वेदर के कारण कोयले के प्रयोग में बढ़ोतरी हुई। 

एक सदी से गर्म हो रही है कैरिबियाई कोरल रीफ: शोध 

एक नये अध्ययन में पाया गया है कि कैरिबियाई द्वीपों में कोरल रीफ (मूंगे की दीवारें जो समुद्री इकोसिस्टम का हिस्सा हैं)  कम से कम एक सदी से गर्म हो रही हैं। यह रिसर्च प्लस क्लाइमेट नाम के जर्नल में प्रकाशित हुई जिसमें कैरिबिया की 5,326 विशेष रीफ्स के 1871 से लेकर 2020 तक के आंकड़े एक साथ रखे गये हैं। यह स्टडी कहती है कि रीजनल वॉर्मिंग 1915 में शुरू हुई हालांकि कुछ इकोरीजन में यह उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में तेज़ी से बढ़ी। अध्ययन कहता है कि बीसवीं सदी के मध्य तक कुछ थमे रहने के बाद 1980 में कुछ क्षेत्रों में वॉर्मिंग का ग्राफ बढ़ा और 1990 में दूसरे इलाकों में तापमान बढ़ा। शोध के मुताबिक रीफ्स में तापमान  0.18 डिग्री सेंटीग्रेट प्रति दशक के हिसाब से बढ़ा है।

फ्लाइ ऐश को तालाबों में डालने से 50 मगरमच्छ मरे 

इस साल फरवरी में राजस्थान के कोटा शहर की एक झील में 50 मगरमच्छ मरे पाये गये हैं। इसके पीछे झील में फ्लाई ऐश का भरना वजह है। कोटा का काला तालाब एक नगर द्वारा चंबल नदी से जुड़ा है और जलीय जीवों के मामले में यह काफी समृद्ध रहा है। वन्य जीव कार्यकर्ताओं के हवाले से डाउन टु अर्थ मैग्ज़ीन की रिपोर्ट बताती है कि कोटा के इस पार्क में करीब 150 मगरमच्छ हुआ करते थे लेकिन अभी करीब 20 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट के तहत रिहायशी कॉलोनी और पार्क बनाने के लिये अर्बन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट नाम का एक ग्रुप यहां फ्लाई ऐश और मिट्टी को डाल कर तालाब सुखा रहा है जिससे इन मगरमच्छों की मौत हुई है। महत्वपूर्ण है कि वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत मगरमच्छ शेड्यूल -1 में संरक्षित जीव हैं और उन्हें मारने पर कड़ी सज़ा का प्रावधान है। 

2020-21 में प्राकृतिक आपदाओं के लिए अब तक केवल 29.72% बीमा दावों का ही भुगतान हुआ है। फोटो: Business Standard

साल 2020-21: प्राकृतिक आपदाओं में 1700 करोड़ के दावों का भुगतान नहीं

साल 2020 और 2021 में घटी प्राकृतिक आपदाओं के ₹ 1705.52 करोड़ के दावों का अब तक भुगतान नहीं हुआ है। यह बात बीमा रेग्युलेटरी अथॉरिटी (आईआरडीए) की सालाना रिपोर्ट में सामने आई है। चक्रवाती तूफान अम्फन, निसर्ग और महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में आई बाढ़ में हुये नुकसान की भरपाई के लिये बीमा कंपनियों के सामने दावे पेश किये गये थे 

रिपोर्ट बताती है कि अब तक केवल 29.72% (₹760.68  करोड़) के दावों का भुगतान हुआ है। यह आंकड़े महत्वपूर्ण हैं क्योंकि आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप – 2 की ताज़ा रिपोर्ट में बीमा को जलवायु संकट से निपटने में अडाप्टेशन (अनुकूलन) के लिये महत्वपूर्ण माना गया है।  

एसडीजी लक्ष्य: बिहार, झारखंड की हालत सबसे ख़राब, केरल सबसे ऊपर 

भारत के तीन राज्यों बिहार, झारखंड और असम ने पिछले साल  सस्टेनेबल डेवलपमेंट लक्ष्यों (एसडीजी) को लेकर सबसे कम कामयाबी हासिल की है जबकि केरल इस मामले में सबसे आगे है।  केरल जिसने कई एसडीजी मानकों में खराब प्रदर्शन किया लेकिन क्लाइमेट एक्शन के मामले में वह शीर्ष में रहा। पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। इस रिपोर्ट में देश के सभी 28 राज्यों को 17 में से 15 एसडीजी पर आंका गया और उन्हें 1 से 100 के स्केल पर रेटिंग दी गई। केरल 75 अंकों के साथ सबसे ऊपर रहा जबकि बिहार 52 पॉइन्ट्स के साथ सबसे नीचे रहा। 

वादे से काफी कम क्लाइमेट फाइनेंस किया अमेरिका ने  

अमेरिकी कांग्रेस ने इंटरनेशनल क्लाइमेट फाइनेंस के तहत एक बिलयन डॉलर (100 करोड़ अमेरिकी डॉलर) रकम मंज़ूर की है। वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टिट्यूट के मुताबिक यह ट्रम्प प्रशासन द्वारा मंज़ूर रकम से 387 मिलियन अधिक है। हालांकि बाइडेन ने 2024 तक 11.4 बिलियम डालर देने की बात कही है थी। मौजूदा रकम के हिसाब से 2050 तक ही यह 11.4 बिलयन डॉलर का वादा पूरा हो पायेगा। 

अमेरिकी कांग्रेस में पास किये गये बिल के मुताबिक 270 मिलियन डॉलर द्विपक्षीय क्लाइमेट फाइनेंस के लिये दिये गये हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाये गये ग्रीन क्लाइमेट फंड के लिये कुछ नहीं किया गया है।

चहुंमुखी ख़तरे: वायु प्रदूषण से होने वाले बहुतेरे ख़तरे सामने आ रहे हैं जिनमें नवजात शिशु और कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं। फोटो: Vox

अधिक वायु प्रदूषण वाले इलाकों में जन्म लेने वाले बच्चों का वज़न कम

वायु प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य को कई तरह के ख़तरे हैं यह बहुत सारी रिसर्च बता चुकी है। अब इस्राइल के हिब्रू विश्वविद्यालय की रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि अधिक वायु प्रदूषण झेल रही गर्भवती महिलायें सामान्य से कम वज़न के बच्चों को जन्म दे रही हैं और इन बच्चों का स्वास्थ्य वक्त बीतने के साथ नहीं सुधरता। अगर मां कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक परिवेश से है और उसके पोषण की व्यवस्था ठीक नहीं है तो उसके और बच्चे के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव कहीं अधिक पड़ता है।  इससे पहले भी वैज्ञानिक शोध वायु प्रदूषण से गर्भवती माताओं को होने वाले ख़तरे को सामने लाते रहे हैं जिनमें समय से पहले शिशु का जन्म, उनका अंडरवेट होना और जन्मजात बीमारियों का ख़तरा शामिल है। 

लम्बे समय तक वायु प्रदूषण में रहने से ऑटो-इम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ता है 

यूनिवर्सिटी ऑफ वेरोना के एक नये शोध में पता चला है कि लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के कारण ऑटोइम्यून बीमारियों का ख़तरा बढ़ता है यानी ऐसी बीमारियां जिनमें इंसान की प्रतिरक्षा प्रणाली ही उसके शरीर की कोशिकाओं पर हमला करने लगती है। शोध बताता है कि वायु प्रदूषण में लम्बे एक्सपोज़र के कारण रिम्युटॉइड आर्थिरिटिस (एक प्रकार का गठिया रोग) का ख़तरा 40% बढ़ जाता है। इसी तरह पाचन तन्त्र से जुड़ी बीमारी और आंतों में सूजन का खतरा भी 20% अधिक होता है। इसके अतिरिक्त त्वचा और गुर्दे समेत कई अंगों को नुकसान पहुंचाने वाले ऑटो इम्यून बीमारी ल्यूपस का ख़तरा भी 15% अधिक पाया गया। 

वैज्ञानिकों ने इस शोध के लिये जून 2016 से नवंबर 2020 के बीच 81,363 लोगों (महिलाओं और पुरुषों) पर अध्ययन किया। इसमें पीएम 10 के 30 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक  और पीएम 2.5 के 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक एक्सपोज़र वाले रोगियों की  स्टडी की गई।

उद्योगों के कारण दुनिया में बन रहे “सेक्रिफाइस ज़ोन”: संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ

 संयुक्त राष्ट्र के एक विशेषज्ञ ने चेतावनी दी है कि पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषकों के कारण स्ट्रोक, सांस की बीमारी और दिल के दौरे पड़ने के ख़तरे बढ़ रहे हैं। इस कारण पूरी दुनिया में “सेक्रिफाइस ज़ोन” बन रहे हैं और करोड़ों लोगों की जान को ख़तरा पैदा हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ डेविड बॉयड ने द गार्डियन को बताया कि दुनिया के सबसे गरीब और कमज़ोर समुदायों को इससे ख़तरा है और उद्योग ऐसे जानलेवा ज़ोन बनाने के लिये ज़िम्मेदार हैं। बॉयड ने यह बात संयुक्त राष्ट्र में जल्द ही पेश की जाने वाली रिपोर्ट से कुछ जानकारियां साझा करते हुये यह बातें कही हैं। 

एरोसॉल प्रदूषण से धरती का तापमान बढ़ रहा है

वैज्ञानिकों ने पाया है कि केवल कार्बन डाई ऑक्साइड और मीथेन गैस के इमीशन के कारण ही जलवायु परिवर्तन नहीं हो रहा बल्कि इसके लिये एरोसॉल प्रदूषण भी ज़िम्मेदार है। एरोसॉल वातावरण में फैले महीने कण होते हैं जो नमी के साथ मिलकर एक गुबार बनाते हैं। वैज्ञानिक अब बता रहे हैं कि ग्रीन हाउस गैसों के अलावा मानव जनित एरोसॉल भी ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण हैं। रिसर्च बता रही है कि चीन, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में राख, सूट और ऑर्गेनिक कार्बन की वजह से मानव जनित एरोसॉल बढ़े हैं। 

वाहनों, फैक्ट्रियों और पानी के जहाज़ों के अलावा कोयला बिजलीघरों से निकलने वाले  धुंयें, पराली जलने और जंगलों या तेल भंडारों में लगने वाली आग इसे बढ़ाने वाले कारक हैं। औद्योगिक क्रांति के साथ साथ इन कारणों ने ज़ोर पकड़ा है और ग्लोबल वॉर्मिंग हुई है। 

बड़ा कदम: भारत की संचयी सौर ऊर्जा क्षमता 50 गीगावॉट को पार गई है जिसमें 7 गीगावॉट रूफटॉप सोलर है। फोटो -New Indian Express

एमएनआरई ने आरई निविदाओं के लिए बैंक गारंटी को घटाकर 3% किया

केंद्र ने परफॉरमेंस गारंटी डिपॉज़िट (निविदा में दी जाने वाली बैंक गारंटी) को घटाकर निविदाओं के मूल्य का 3% कर दिया है। नवंबर 2020 तक परफॉरमेंस बैक गारंटी (पीबीजी) 5% से 10% के बीच थी, जिसे कोविड-19 के बाद आर्थिक मंदी के दौरान डेवलपर्स की चल निधि बढ़ाने में सहायता करने के लिए 3% तक घटा दिया गया था। सरकार ने कहा कि 2% बयाना जमा राशि (ईएमडी) ली जाती रहेगी। मेरकॉम ने बताया कि डेवलपर्स उच्च पीबीजी और ईएमडी मूल्यों और राशि जारी करने में देरी के कारण चल निधि को लेकर चिंतित थे। 

ऊर्जा खरीद समझौतों पर नहीं हो सकती पुनः बातचीत, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा; वितरण कंपनियों का बकाया चुकाने के लिए दिया 6 महीने का समय

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि ऊर्जा अनुबंधों पर पुनः समझौता नहीं किया जा सकता है और राज्य को 6 सप्ताह के भीतर नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को लगभग 30,000 करोड़ रुपए का बकाया चुकाने का आदेश दिया है। यह मामला दो साल से लंबित है। ऊर्जा खरीद समझौतों पर फिर से बातचीत शुरू करने का आंध्र प्रदेश का कदम देश में पहला था, जिसके बाद गुजरात और पंजाब ने इसका अनुसरण किया।

आंध्र प्रदेश सरकार ने 2019 में 41 समझौतों पर फिर से बातचीत करने का फैसला किया, जिसके बाद वितरण कंपनियों ने पवन ऊर्जा डेवलपर्स से टैरिफ को 2.43 रुपए प्रति यूनिट और सौर संयंत्रों को कीमत में 2.44 रुपए प्रति यूनिट की कटौती करने के लिए कहा था।

भारत की संचयी सौर क्षमता 50 गीगावाट तक पहुँची

शोध फर्म मेरकॉम के अनुसार भारत की संचयी स्थापित सौर क्षमता फरवरी 2022 में 50 गीगावाट तक पहुंच गई है। इसमें से 43 गीगावाट क्षमता यूटिलिटी-स्केल सोलर की है और 7 गीगावाट रूफटॉप सोलर की। भारत 2022 तक 100 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य तक पहुँचने का प्रयास कर रहा है। मेरकॉम ने बताया कि वर्तमान में 53 गीगावाट क्षमता अपेक्षित है।

भारत ने 2021 में 10 गीगावाट की वृद्धि की थी, जो एक साल पहले की तुलना में 210% अधिक थी। हालांकि कुछ हद तक इसे कोविड-19 महामारी के दौरान सौर प्रतिष्ठानों में आई गिरावट के कारण समझा जा सकता है, लेकिन भारत में सौर स्थापन के आंकड़े 2017 से साल-दर-साल गिर रहे थे। यह देखते हुए उम्मीद है कि देश का सौर उद्योग इस वृद्धि का स्वागत करेगा। हालांकि आगामी नीतिगत बदलाव भारत के डाउनस्ट्रीम (पेट्रोलियम) क्षेत्र के लिए चिंता का विषय होंगे।

चीन 2030 तक गोबी मरुस्थल क्षेत्र में 450 गीगावॉट की स्थापना करेगा

क्लाइमेट चेंज न्यूज ने बताया कि चीन 2030 तक गोबी रेगिस्तान में 450 गीगावॉट पवन और सौर ऊर्जा क्षमता का निर्माण करने जा रहा है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित सौर और पवन ऊर्जा की कुल मात्रा के दोगुने से भी अधिक होगा। 

ग्रीनपीस ईस्ट एशिया के ली शुओ का हवाला देते हुए रिपोर्ट कहती है कि चीन के अविकसित पश्चिमी क्षेत्रों में 450 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापना चीन की जलवायु के लिए सकारात्मक है, लेकिन कोयले में कमी करना असली चुनौती है, जिसका उत्पादन भी बड़ी संख्या में बढ़ रहा है। इनर मंगोलिया प्रांत, जिसके अंतर्गत चीन का अधिकांश गोबी रेगिस्तान शामिल है, चीन में कोयले का सबसे बड़ा उत्पादक है। इस प्रांत में कोविड-19 महामारी के बाद का विकास मुख्यतः कोयले पर आधारित है। 

चीन ने सौर पैनलों के निर्माण की लागत को कम कर दिया है और वह इस तरह की परियोजनाओं में इन सस्ते घरेलू पैनलों का उपयोग करने में सक्षम है।

चीन से गठजोड़: भारत की कार निर्माता कंपनी एक्साइड ने चीनी कंपनी स्वोल्ट एनर्जी के साथ हाथ मिलाया है | Photo: Cleantechnica.com

भारत: ली-आयन बैटरी बनाने के लिए एक्साइड ने किया चीन की स्वोल्ट के साथ करार

भारत की सबसे बड़ी बैटरी निर्माता एक्साइड, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए ली-आयन बैटरी के निर्माण के लिए चीन की स्वोल्ट एनर्जी टेक्नोलॉजी लिमिटेड के साथ गठजोड़ करेगी। यह सौदा एक्साइड की बैटरी निर्माण क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक बहु-वर्षीय योजना का हिस्सा है। एक्साइड के बोर्ड ने सौदे के लिए एक ग्रीनफील्ड निर्माण इकाई को मंजूरी दी है जो हर साल कई गीगावाट बैटरी का उत्पादन करेगी। यह सौदा स्विट्जरलैंड के लेक्लांच एसए के साथ संयुक्त उद्यम के बाद इस क्षेत्र में एक्साइड का दूसरा प्रयास है। 

इसी बीच, रिलायंस न्यू एनर्जी नीदरलैंड-स्थित कोबाल्ट-मुक्त ली-आयन ईवी बैटरी निर्माता लिथियम वेर्क्स के पूरे बैटरी निर्माण पोर्टफोलियो का अधिग्रहण करेगी। यह सौदा कथित तौर पर $61 मिलियन का है और इसमें चीन में कंपनी की विनिर्माण इकाई शामिल होगी।

युलु करेगा अपने बैटरी-एज़-ए-सर्विस सेटअप का 100,000 यूनिट तक विस्तार  

भारत का पहला बैटरी-एज़-ए-सर्विस (BaaS) ऑपरेटर, युलु, कथित तौर पर बैटरी स्वैपिंग स्टेशनों के अपने मैक्स नेटवर्क का 10 शहरों में विस्तार करेगा। वर्तमान में बैंगलोर में स्थित और ऑटोमोटिव दिग्गज बजाज द्वारा समर्थित यह ऑपरेटर बैटरी स्वैपिंग स्टेशनों का एक नेटवर्क प्रदान करता है और अब तक 3 मिलियन स्वैप पूरा कर चुका है। यह सेवा प्रदान करने वाले वाहनों की संख्या वर्तमान 10,000 इकाइयों से 2022 के अंत तक 100,000 इकाइयों तक बढ़ाने की भी योजना बना रहा है।

रूस-यूक्रेन युद्ध से हुई निकल की कीमतों में 320% की जबरदस्त बढ़ोतरी

रूस और यूक्रेन के बीच सैन्य संघर्ष ने निकल (ईवी बैटरी का एक प्रमुख घटक) की कीमत में भारी वृद्धि की है — इतना कि लोकप्रिय इलेक्ट्रिक वाहनों (जैसे टेस्ला कारों) की इनपुट कीमतें बहुत कम समय में 1000 डॉलर तक बढ़ सकती हैं। रूस निकल का एक प्रमुख उत्पादक है, लेकिन वर्तमान में वह भारी वैश्विक प्रतिबंधों के अधीन है, जिसने इस धातु की आपूर्ति को बहुत सीमित कर दिया है। यहां तक ​​कि पिछले सप्ताह इस धातु की कीमत $101,000 टन तक पहुंच गई। यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से इस धातु प्रति टन कीमतों में 320% की वृद्धि हुई है।

अमेरिका: जो मैनचिन के बयान ने इलेक्ट्रिक वाहनों में सरकार के निवेश के बारे बढ़ाया संदेह

डेमोक्रेट सीनेटर जो मैनचिन ने इलेक्ट्रिक वाहन और ईवी चार्जर्स के लिए बाइडेन सरकार की फंडिंग के बारे में यह कहकर और भी अधिक संदेह उत्पन्न कर दिया है कि इसके परिणामस्वरूप देश को चीन से बैटरी प्राप्त करने के लिए ‘पंक्तिबद्ध’ होना पड़ेगा। मैनचिन के पास अमेरिकी सीनेट में महत्त्वपूर्ण स्विंग वोट है और उन्होंने देश में अन्तर्दहन इंजन (आईसीई) वाहनों को कम करने के लिए जो बाइडेन की जलवायु योजनाओं और उनके बिलों की लगातार आलोचना की है। मैनचिन ने यह भी कहा कि हेनरी फोर्ड ने मॉडल टी (अमेरिका की पहली बड़े पैमाने पर उत्पादित कार) का निर्माण किया, लेकिन गैस स्टेशनों का नहीं — उनका निर्माण बाजार ने किया। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका में पेट्रोल की कीमतें 4.30 डॉलर प्रति गैलन तक बढ़ गई हैं, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग (और उनमें रूचि) में तेजी से वृद्धि हुई है।

यूरोपीय संघ के अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन , रूस के ऊर्जा प्रभुत्व के खिलाफ मुखर रही हैं और 2027 तक रूसी तेल और गैस से दूर होने की तरफ रुख करते दिख रही हैं। फोटो: NewEurope.eu

यूरोपीय संघ ने 2027 तक रूसी तेल और गैस आयात को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए की बैठक

यूक्रेन पर रूसी सैन्य आक्रमण की त्वरित प्रतिक्रिया पर चर्चा करने के लिए यूरोपीय संघ के 27 देशों ने फ्रांस के वर्साय में बैठक की, जहां प्रस्ताव रखा गया कि 2027 तक रूसी तेल और गैस के आयात पर संघ की निर्भरता को समाप्त किया जाए। इसके बजाय अन्य देशों से अधिक एलएनजी आयात की जाएगी और हाइड्रोजन के उपयोग में वृद्धि की जाएगी। हालांकि इस प्रस्ताव का उद्देश्य है कि ‘जितनी जल्दी हो सके’ यह बदलाव लाया जाए, लेकिन संभावना है कि संघ सदस्य देशों के व्यक्तिगत ‘ऊर्जा मिश्रण’ चयन पर भी विचार करेगा। इसलिए इस बदलाव के लिए कोई निश्चित तिथि अभी तक निर्धारित नहीं की गई है।

वहीं यूक्रेन का कहना है कि चूंकि यूरोपीय संघ रूस को हर दिन ईंधन के लिए करोड़ों डॉलर का भुगतान करता है, इसलिए 2027 तक आयात समाप्त करने का निर्णय तात्कालिक दबाव डालने के लिए पर्याप्त नहीं है। यूक्रेन ने रूसी लकड़ी और लकड़ी के उत्पादों पर भी रोक लगाने का आह्वान किया जिससे प्रतिबंधों का प्रभाव शीघ्र हो सके।

रूस से अधिक आयात करते हुए घरेलू कोयला उत्पादन को बढ़ावा देगा भारत 

निजी खनिकों की भूमिका को और मजबूत करते हुए भारत सरकार ने 8 मार्च को घोषणा की कि वह आयातित आपूर्ति पर देश की निर्भरता को कम करने के प्रयास में 2030 तक 350-400 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करेंगे। भारत के कोयला आयात का 90% ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया से आता है। यह घोषणा सरकार के ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की दिशा में एक और कदम है। यह कोल इंडिया के 2030 तक 1 बिलियन टन से अधिक उत्पादन के लक्ष्य में भी सहायक होगी। दिलचस्प बात यह है कि कोल इंडिया ने ‘3-4 वर्षों’ में नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य भी रखा है, हालांकि इसमें कोयला को जलाने से होने वाले उत्सर्जन शामिल नहीं है।

इसके अलावा, भारत जल्द ही रूस से और कोयला आयात कर सकता है क्योंकि रूस अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने उत्पादों को बेचने के लिए संघर्ष कर रहा है। प्रतिबंधों के कारण अधिकांश पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं से कट जाने के बाद, रूस चीन और भारत को विकल्प के रूप में देख रहा है, और कथित तौर पर एक रूबल-रुपया व्यापार तंत्र स्थापित करने पर विचार कर रहा है ताकि अंतरराष्ट्रीय स्विफ्ट भुगतान तंत्र से बाहर हो चुके रूसी बैंकों को भुगतान का विकल्प दिया जा सके।

भारत: एनटीपीसी विंध्याचल अद्वितीय कार्बन कैप्चर प्लांट स्थापित कर करेगा मेथनॉल का उत्पादन

भारत का सबसे बड़ा थर्मल पावर प्लांट एनटीपीसी विंध्याचल 2023 तक अपनी तरह का पहला कार्बन कैप्चर प्लांट स्थापित करेगा, जो रिलीज़ होने वाली सीओ2 को कैप्चर करेगा और उसे हाइड्रोजन से मिलाकर मेथनॉल का निर्माण करेगा। इस नई परियोजना को मध्य प्रदेश में 4,783 मेगावाट के विंध्याचल संयंत्र में लगाया जाएगा — यह सौर और जल विद्युत का भी उत्पादन करता है। एनटीपीसी के पारिस्थितिक पदचिह्न को कम करने के प्रयासों के तहत, बिजली संयंत्र के आसपास के क्षेत्र में 2.5 मिलियन पौधे लगाए गए हैं।  इसके अलावा, नीति आयोग ने ‘मेथनॉल अर्थव्यवस्था’ विज़न के तहत देश के लिए मेथनॉल का उपयोग करने के लक्ष्य निर्धारित किए हैं, और भारत के तेल आयात को कम करने के लिए परिवहन और ऊर्जा अनुप्रयोगों दोनों के लिए मेथनॉल ईंधन का उपयोग करने की योजना बनाई है।

ओजीसीआई 2030 तक आशुलोपी उत्सर्जन ‘नियर जीरो’ करने के लिए प्रतिबद्ध है

दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस ड्रिलर्स के संघ ऑयल एंड गैस क्लाइमेट इनिशिएटिव की सदस्य कंपनियों ने 2030 तक अपने आशुलोपी मीथेन उत्सर्जन को ‘नियर जीरो’ तक घटाने की प्रतिबद्धता जताई है। यह घोषणा सीओपी26 शिखर सम्मेलन की मांगों की दिशा में एक कदम है, जिसमें दशक के अंत तक मीथेन उत्सर्जन में 30% की कमी करने को कहा गया था। ओजीसीआई के अध्यक्ष ने माना है कि उद्योग द्वारा जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उत्सर्जन में कटौती एक अच्छा अल्पकालिक समाधान है और सदस्य (एक्सॉनमोबिल और शेल सहित) अपना वार्षिक मीथेन उत्सर्जन भी रिपोर्ट करेंगे — जो आईईए के अनुसार रिपोर्ट किए गए आंकड़ों की तुलना में 70% अधिक है।