Newsletter - July 10, 2019
क्लाइमेट चैंपियन’ फंसा कोयले और गैस की जाल में
विश्व मंच पर साफ ऊर्जा के तमाम वादों के बावजूद कोल पावर को लेकर भारत के हाथ बंधे हुये हैं। एक ओर सरकार ने थर्मल पावर प्लांट्स को अब भी कड़े नियमों में ढील दी हुई है वहीं दूसरी ओर पावर सेक्टर के संकट को देखते हुये लगता है कि सरकार कोयले और कोल-बेड-मीथेन (CBM) का मोह नहीं छोड़ पा रही है।
आर्थिक सर्वे ने भले ही क्लीन एनर्जी सेक्टर में करीब 23 लाख करोड़ रुपये के निवेशकी सलाह दी लेकिन बजट में सब टांय टांय फिस्स हो गया। इस क्षेत्र में किसी पैकेज का ऐलान होना तो दूर इस सेक्टर के विस्तार के लिये बजट में केवल 2.1% की बढ़ोतरी हुई – ₹ 5,146.63 करोड़ से ₹ 5,254 करोड़
इसके उलट कोयला मंत्रालय के बजट में पिछले साल के मुकाबले 48% की वृद्धि हुई है। दिलचस्प है कि कोयले और लिग्नाइट के खनन को पर सबसे अधिक ज़ोर है। इनके लिये धन आवंटन 500% बढ़ाया गया है – जहां 2017 में यह ₹ 159.28 करोड़ था वहीं अब इसे ₹ 937 करोड़ कर दिया गया है। चिंताजनक बात यह है कि इस बढ़ोतरी के बावजूद कोयला खदानों में काम करने वालों की सुरक्षा और मूलभूत ढ़ांचे में सुधार के लिये बजट 30% गिरा है।
माना जा रहा है कि बजट में बढ़ोतरी CBM को बढ़ावा देने के लिये है। देश में आज करीब 94800 करोड़ घन मीटर कोल-बेड-मीथेन का भंडार है। पिछले साल नियमों में ढील की वजह से कई कंपनियां इस क्षेत्र में कदम रखने की तैयारी में हैं। मीथेन एक बहुत खतरनाक ग्रीन हाउस गैस है और इस तरह के ईंधन में निवेश के खिलाफ खुदस्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चेयरमैन बयान दे चुके हैं।
क्लाइमेट साइंस
मॉनसून 2019: डूबती मुंबई, पानी को तरसता देश
मुंबई में जुलाई की शुरुआत मूसलाधार बरसात के साथ हुई। पूरा शहर जैसे थम गया। लोग जगह जगह फंसे रहे और हवाई उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। शहर में सीज़न की आधी बरसात (करब 1100 मिमी से अधिक) हो चुकी है। मुंबई समेत राज्य के अलग अलग इलाकों में भारी बरसात की वजह से दुर्घटनायें भी हुईं। जहां शहर में एक इमारत गिरीवहीं रत्नागिरी में पानी के जमाव की वजह से तिवरे बांध टूट गया। इन हादसों में कुल 40 से अधिक लोगों की जानें गई।
दूसरी ओर जुलाई का पहला हफ्ता ख़त्म हो जाने पर भी देश के कई हिस्सों में मॉनसून का इंतज़ार बना रहा। दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों के बहुत से हिस्सों में बरसात नहीं पहुंची। पुणे स्थित भारतीय मौसम विभाग के डी शिवानंद पाई के मुताबिक जून के अंत तक देश में सामान्य से 33% कम बारिश हुई।
यूरोप में गर्मी ने तोड़े रिकॉर्ड, जलवायु परिवर्तन का असर?
यूरोप गर्मियों में मीठी धूप के लिये जाना जाता है लेकिन इस साल वहां लू के थपेड़े चल रहे हैं। फ्रांस में तापमान 45.9 डिग्री हो गया जो एक रिकॉर्ड है। इससे पहले 2003 में फ्रांस में पारा 44.1 डिग्री तक पहुंचा था।
विश्व मौसम संस्थान (WMO) के प्रवक्ता ने कहा कि आने वाले दिनों में हीटवेव और तेज़ होंगी। साथ ही चेतावनी दी कि हर साल भीषण गर्मी का मौसम वक्त से जल्दी शुरू होगा और देर तक चलेगा। एक अन्य रिसर्च में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से यूरोप में चल रही ऐसी हीट वेव की संभावना अब 5 से 100 गुना तक बढ़ सकती है। उधर वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड ने कहा है कि हीववेव और सूखे की वजह से जंगलों में आग की घटनायें बढेंगी।
सूखा डाल सकता है भारत के खाद्य निर्यात पर असर
पानी की कमी का सीधा असर भारत के खाद्य निर्यात पर पड़ सकता है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने यह बात कही है। पानी की कमी का असर मूल रूप से धान की खेती पर पड़ रहा है। धान की पैदावार के लिये बहुत सारे पानी की ज़रूरत होती है। एक किलो चावल पैदा करने में किसानों को 4 से 5 हज़ार लीटर पानी की ज़रूरत होती है लेकिन पिछले साल 2018 में सामान्य से कम बरसात हुई और इस साल फिर से बरसात की कमी ने संकट को गहरा कर दिया है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर्यावरण पर भारी
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से भले ही इंसान की ज़िंदगी आसान हो रही हो लेकिन पर्यावरण पर इसका असर साफ दिख रहा है। एक शोध से पता चला है कि एक सामान्य AI ट्रेनिंग मॉडल 2,80,000 किलो कार्बन उत्सर्जित कर सकता है। एक अमेरिकी कार को बनाने और कबाड़ हो जाने तक सड़क पर चलाने में इससे 5 गुना कम कार्बन वातावरण में जाता है। असर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में मशीन को मानवीय भाषा सिखाने के लिये बहुत सारे डाटा का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिये इंटरनेट और कम्प्यूटर का हज़ारों घंटे इस्तेमाल बहुत सारी बिजली खर्च करता है जो पर्यावरण के लिये बेहद हानिकारक है।
क्लाइमेट नीति
आर्थिक सर्वे में जल-संकट की चेतावनी, बजट में सरकार ने सूखे से कन्नी काटी
एक ओर इस साल के आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि खेतीबाड़ी में पानी का बेहद किफायत के साथ उपयोग किया जाये वहीं अगले दिन संसद में पेश किये गये बजट में सरकार ने सूखे का ज़िक्र तक नहीं किया। हालांकि सरकार ने साल 2024 हर घर तक नल से पानी पहुंचाने का वादा किया है लेकिन सिंचाई के लिये बजट अब भी केवल 9681 करोड़ रुपये रखा गया है जो जल संकट को देखते हुये काफी कम है।
आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि कृषि में इस्तेमाल होने वाले पानी का 60% गन्ने और धान जैसे फसलों पर खर्च हो जाता है। सर्वे में चेतावनी दी गई है कि अगर हालात में बदलाव नहीं आया तो 2050 तक दुनिया भर में भारत एक ऐसा देश होगा जहां सूखे की मार सबसे अधिक होगी। कृषि की विकास दर में बढ़ोतरी पिछले 5 साल के सबसे निम्नतम स्तर पर है और बजट से किसानों को धक्का लगा है। किसानों का कहना है सरकार ज़ीरो बजट खेती की बात तो करती है लेकिन उसने इसके लिये बजट में केवल 25 करोड़ की बढ़ोतरी की जबकि रासायनिक खेती के लिये बजट 9990 करोड़ बढ़ाया है।
गर्मी का भारत के कामगारों की उत्पादकता पर असर
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का कहना है कि लगातार बढ़ रही गर्मी का असर मज़दूरों की उत्पादकता पर पड़ेगा और भारत इसका सबसे बड़ा शिकार होगा। ILO की रिपोर्ट कहती है कि भीषण गर्मी की वजह से कुल कार्य-समय यानी वर्किंग आवरका 2.2% नुकसान होगा। यह नुकसान पूरी दुनिया में 8 करोड़ लोगों की पूर्ण कालिक नौकरियां खत्म होने जैसा है। इनमें से करीब 3.4 करोड़ नौकरियों का नुकसान भारत को होगा।
संवेदनशील क्षेत्रों के लिये नोटिफिकेशन जारी
लम्बे इंतज़ार के बाद आखिरकार पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील 316 क्षेत्रों को सरकार ने इकोलॉजिकली सेंसटिव ज़ोन (ESZ) घोषित कर दिया। सरकार ने संसद में यह जानकारी दी है कि 651 में से 316 क्षेत्रों के लिये औपचारिक नोटिफिकेशन जारी हो गया। इन इलाकों में बड़े बांध बनाने, खनन करने और क्रशिंग यूनिट लगाने की अनुमति नहीं होगी। पर्यावरण के जानकार कह रहे हैं कि सरकार ने खानापूरी के लिये थोड़े से इलाकों को संरक्षित घोषित किया है और इससे कुछ अधिक फायदा नहीं होगा।
चीन का पाखंड: कथनी और करनी में अंतर
एक ओर चीन ने पेरिस समझौते के तहत क्लाइमेट एक्शन तेज़ करने का वादा किया वहीं दूसरी ओर सुंदरबन में बन रहे कोयला बिजलीघरों पर पर्दा डाल दिया। चीन सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है जो दुनिया के एक चौथाई से अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है। G-20 सम्मेलन में फ्रांस के साथ किये करार में चीन ने कार्बन उत्सर्जन कम करने संबंधी वादे का ऐलान तो किया जिससे कुछ उम्मीद बंधी की चिंताजनक स्तर पर प्रदूषण कर रहा देश कुछ कदम उठायेगा।
लेकिन अज़रबेज़ान में पिछले हफ्ते यूनेस्को की बैठक में चीन विश्व धरोहर सुंदरवन “संकटग्रस्त” धरोहरों की सूची में नहीं रखने दिया। भारत-बांग्लादेश सीमा पर बसा सुंदरवन मेनग्रोव का घना और सबसे बड़ा जंगल है और इस इलाके में चीन और बांग्लादेश दो कोयला बिजलीघर लगा रहे हैं। अगर सुंदरवन “संकटग्रस्त” धरोहरों में आ जाता तो इन बिजलीघरों के रास्ते में अडंगा लग सकता था। वैसे भारत भी सुंदरवन से सटे इलाके रामपाल में एक कोयला बिजलीघर लगा रहा है।
वायु प्रदूषण
बजट 2019: वायु प्रदूषण का ज़िक्र नहीं, “ब्लू स्काइ” विज़न गायब
पर्यावरण के जानकारों को हैरानी है कि सरकार ने बजट में वायु प्रदूषण जैसी विकराल समस्या का ज़िक्र तक नहीं किया। सरकार ने जल और ध्वनि प्रदूषण से निपटने के लिये 460 करोड़ रुपये रखे हैं जो तकरीबन पिछले साल के बजट जितना ही है। इसी साल जनवरी में केंद्र सरकार ने लंबे इंतज़ार के बाद नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) की घोषणा की जिसके तहत अगले 5 सालों में करीब 100 शहरों में प्रदूषण 35% कम किया जायेगा। लेकिन NCAP के लिये कोई रोडमैप या बजट नहीं है ताकि सरकार के “प्रदूषण मुक्त भारत” और “ब्लू-स्काइ” विज़न को पूरा किया जा सके।
उधर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संसद में यह डाटा रखे सालाना पिछले 3 साल में कुल 95 दिन दिल्ली में ओज़ोन प्रमुख प्रदूषक रहा लेकिन जावड़ेकर ने प्रदूषण से हो रही मौतों के आंकड़े मानने से इनकार कर दिया। जावड़ेकर ने कहा कि वायु प्रदूषण से सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं लेकिन मृत्यु संबंधी आंकड़े सिर्फ कयास हैं।
बिजलीघरों से प्रदूषण: हरियाणा को एनजीटी का नोटिस
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हरियाणा के झज्जर के दो कोयला बिजलीघरों पर कड़ाई करते हुये उन्हें फ्लाई एश (प्लांट से निकलने वाली राख) फैलाने के लिये नोटिस दिया है। ट्रिब्यूनल ने महीने भर के भीतर सरकार से रिपोर्ट मांगी है और कहा है कि वह यह बताये कि इस समस्या से निबटने को लिये क्या प्लानिंग है। अब सरकार को अब उस पूरे इलाके की एयर क्वॉलिटी पर भी नज़र रखनी है और महीने भर में इस बारे में भी रिपोर्ट देनी है।
दिल्ली-एनसीआर: गैरक़ानूनी ईंट के भट्ठों पर कार्रवाई
वायु प्रदूषण फैलाने में ईंट के भट्ठों का बड़ा रोल रहता है और दिल्ली-एनसीआर के इलाके में पिछले कुछ वक्त में गैरक़ानूनी रूप से ये भट्ठे तेज़ी से पनपे हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश सरकार से कहा कि वह मोदीनगर-मुरादाबाद के इलाकों में चल रहे ऐसे भट्ठों पर कार्रवाई करे। सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया है कि वह तय नीति के तहत इन भट्ठा मालिकों से 3 महीने के भीतर जुर्माना वसूल करेगी।
अफ्रीकी और एशियाई-अमेरिकी झेल रहे हैं अधिक ज़हरीली हवा
अमेरिका में यूनियन ऑफ कन्सर्न्ड साइंटिस्ट (UCS) की ताज़ा रिसर्च बताती है कि उत्तर-पूर्व अमेरिका और मिड अटलांटिक में रह रहे अफ्रीकी या एशियाई अमेरिकी अपने श्वेत देशवासियों के मुकाबले औसतन 66% अधिक ज़हरीली हवा में सांस ले रहे हैं। इसकी वजह है कि जिन इलाकों यह अपेक्षाकृत ग़रीब और उपेक्षित आबादी रहती है वहां पर एयर क्वॉलिटी बहुत ख़राब है। पर्यावरण कार्यकर्ता इसे इन्वायरमेंटल रेसिज्म यानी पर्यावरणीय नस्लवाद कहते हैं। UCS के शोध में पता चला है कि अफ्रीकी-अमेरिकी करीब 61% अधिक ख़राब हवा और एशियाई-अमेरिकन तकरीबन 73% अधिक ज़हरीला हवा में सांस ले रहे हैं। इस हवा में PM 2.5 कणों की मौजूदगी अधिक है जो कि सांस की नलियों के रास्ते फेफड़ों और खून की नलियों तक पहुंच जाते हैं।
साफ ऊर्जा
सोलर कंपनियों को बजट ने किया निराश
इस साल के आर्थिक सर्वे ने भले ही 2030 तक साफ ऊर्जा के क्षेत्र में 33000 करोड़ अमेरिकी डॉलर यानी करीब 23 लाख करोड़ रुपये के निवेश की सलाह दी हो लेकिन बजट में निवेश को बढ़ाने के लिये किसी तरह के पैकेज का ऐलान नहीं किया गया है। इससे साफ ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रही कंपनियां निराश हैं। साफ ऊर्जा के विस्तार के लिये भी बजट में केवल 108 करोड़ की बढ़ोतरी की गई है जो करीब 2 प्रतिशत ही है। बड़े स्तर पर लगने वाले सोलर प्लांट के लिये कुछ उत्साहवर्धन ज़रूर है लेकिन पवन ऊर्जा के बजट में 3 प्रतिशत कटौती की गई है। यह हैरान करने वाला है कि साफ ऊर्जा मंत्रालय भले ही साल 2030 तक 5,00,000 मेगावॉट साफ ऊर्जा के संयंत्र लगाने की बात करता है लेकिन बजट में बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को साफ ऊर्जा की श्रेणी में नहीं गिना गया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि लगातार दूसरे साल नेशनल क्लीन एनर्जी फंड से कोई रकम योजनाओं के लिये नहीं दी गई है।
सरकार करेगी बीमार पड़ी UDAY योजना की मदद
बजट में यह अंदाज़ा लगता है कि सरकार पावर वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की सुविधा के लिये चलाई जा रही UDAY योजना को दुरस्त करना चाहती है। कर्ज़ से जूझ रही डिस्कॉम को राहत देने के लिये UDAY योजना 2015 में शुरू की गई थी लेकिन इस योजना की काफी आलोचना हुई है। पिछले महीने रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा कि कंपनियों के कुल कर्ज मार्च 2020 तक 2.28 लाख करोड़ हो जायेंगे। इस साल मार्च में यह आंकड़ा 2.28 लाख करोड़ और मार्च 2018 में करीब 1.85 लाख करोड़ था। UDAY योजना की शुरुआत के बाद वितरण कंपनियों के कर्ज 2.75 लाख करोड़ से 1.94 लाख करोड़ ज़रूर हुये लेकिन जल्दी ही हाल फिर बिगड़ने लगे। अब हाल यह है कि साफ ऊर्जा का भविष्य ही ख़तरे में दिख रहा है। मिसाल के तौर पर राजस्थान में 3 डिस्कॉम कंपनियों पर कुल 843 लाख करोड़ बकाया हो गया है।
जगन मोहन रेड्डी ने केंद्र को दिखाया अंगूठा, बिजली खरीद करार रिव्यू होंगे
राज्य की कमान संभालने के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने फैसला किया है कि पावर कंपनियों से साफ ऊर्जा क्षेत्र में किये गये बिजली खरीद अनुबंधों में बदलाव होगा। रेड्डी का कहना है कि चंद्रबाबू नायडू सरकार ने पावर कंपनियों से जो बिजली खरीद समझौते किये है उससे राज्य सरकार को 2,636 करोड़ का सालाना घाटा हो रहा है। रेड्डी ने विचाराधीन बिजली खरीद समझौतों को भी रद्द कर दिया है। इससे पहले केंद्रीय साफ ऊर्जा मंत्रालय के सचिव अनंत कुमार ने कहा था कि राज्य सरकार को बिजली खरीद समझौतों में बदलाव नहीं करना चाहिये क्योंकि इससे निवेशकों का भरोसा डगमगायेगा।
सोलर: पहली तिमाही में आयात 40% गिरा
आंकड़े बताते हैं कि 2019 की पहली तिमाही में भारत का सोलर पैनलों का आयात 40% गिर गया। इससे संकेत मिलता है कि देश में साफ ऊर्जा अभियान पटरी से उतर सकता है। मरकॉम इंडिया का विश्लेषण बताता है कि इस साल जनवरी से मार्च के बीच सौर ऊर्जा के कारोबार से जुड़े उपकरणों का आयात करीब 4500 करोड़ रुपये रहा जबकि पिछले साल की पहली तिमाही में यही आंकड़ा 7600 करोड़ रुपये था। चीन अब भी भारत के लिये बड़ा निर्यातक है लेकिन कुल व्यापार में 47% गिरावट आ गई। आयात में इस गिरावट के पीछे पिछले साल सरकार द्वारा लगाई गई 25 प्रतिशत इम्पोर्ट ड्यूटी है जिसका मकसद देश के भीतर उत्पादन को बढ़ाना देना था।
दिल्ली पुलिस ने अपनाया क्लीन एनर्जी का रास्ता
दिल्ली पुलिस ने ऐलान किया है कि वह अपने सभी थानों और दफ्तरों पर सोलर पैनल लगायेगी। दिल्ली पुलिस का यह कदम बिजली का खर्च कम करने और साफ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये है। दिल्ली पुलिस सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया यानी SECI की मदद से अपने 200 भवनों में सोलर पैनल लगायेगी। इस मुहिम के तहत दिल्ली पुलिस के भवनों में कुल 3 से 4 मेगावॉट सौर ऊर्जा के पैनल लगेंगे।
बैटरी वाहन
आर्थिक सर्वे ने गिनाईं EV की अड़चनें, नीति आयोग का कड़ा रुख बरकरार
ताज़ा आर्थिक सर्वे ने उन कारणों को गिनाया जो बैटरी वाहनों की राह में अड़चन हैं। पिछली 4 जुलाई को संसद में पेश किये गये सर्वे में चार्जिंग स्टेशनों की कमी, बैटरियों के ऊंचे दाम और वाहनों की चार्जिंग में लगने वाला समय 3 प्रमुख कारण गिनाये गये हैं। सर्वे में कहा गया है कि देश भर में फास्ट चार्जिंग नेटवर्क फैलाने के लिये निवेश किया जाना चाहिये। सरकार ने बजट में निजी इस्तेमाल के लिये बैटरी कारों की खरीद पर डेढ़ लाख रुपये तक रकम को टैक्स फ्री करने का फैसला किया है।
उधर नीति आयोग ने ऑटो निर्माताओं की उस मांग को नहीं माना जिसमें ई-मोबिलिटी के लिये बाज़ार की मांग का खयाल रखते हुये व्यवहारिक रास्ता अख्तियार करने की अपील की गई थी। आयोग ने पिछली महीने दुपहिया ऑटो निर्माताओं को दो हफ्ते के भीतर 100% बैटरी वाहन उत्पादन का रोडमैप पेश करने का वक्त दिया।
दिल्ली में आयेंगी 1000 बैटरी बसें, केरल में 10 लाख EV
दिल्ली परिवहन निगम (DTC) राजधानी में 1000 इलैक्ट्रिक बसें उतारेगा। दिल्ली की सड़कों पर बैटरी बसों की यह सप्लाई केजरीवाल सरकार के 1000 बैटरी बसें खरीदने की योजना के अलावा है।
उधर केरल सरकार ने फैसला किया है कि वह 2022 तक राज्य में कुल 10 लाख बैटरी वाहन सड़कों पर उतारेगी। इनमें 3000 बैटरी बसें और 2 लाख दुपहिया वाहन होंगे। इसके अलावा 1000 मालवाहक बैटरी वाहन भी खरीदे जायेंगे। राज्य सरकार ने राजधानी त्रिवेंद्रम में साल भर के भीतर 100% बैटरी चालित पब्लिक ट्रांसपोर्ट का लक्ष्य रखा है। उधर आंध्र प्रदेश करीब 770 करोड़ की लागत से अपने 5 शहरों में कोई 350 बैटरी बस लाने की सोच रहा है।
जीवाश्म ईंधन
भारत के बिजली मानचित्र में रहेगा कोयले का राज
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि 2030 तक देश में बिजली उत्पादन का 50% कोयले से ही होगा। हालांकि तब तक देश में बने कुल बिजलीघरों की कुल क्षमता (total installed power capacity) का 65% साफ ऊर्जा होगी। इससे पता चलता है कि सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों की कुल उच्चतम उत्पादन क्षमता (peak power output), देश में बिजली की अधिकतम मांग (peak power demand) के अनुरूप नहीं है जिससे कोयले की ज़रूरत बनी रहेगी। भारत में कोयले की सालाना मांग करीब 100 करोड़ टन हो गई है लेकिन CEA की ताज़ा रिपोर्ट यह नहीं बताती कि अगर भारत इतने कोयले का इस्तेमाल करेगा तो फिर वह पेरिस में किये वादे के मुताबिक 2030 तक अपने कार्बन इमीशन की तीव्रता को 30-35% (2005 के स्तर पर) कम कैसे करेगा।