आपदा की अनदेखी: भारत जलवायु परिवर्तन की स्पष्ट मार होने के बावजूद यह हैरान करने वाला है कि केंद्र सरकार के बजट में सूखे के संकट का ज़िक्र तक नहीं है। फोटो: IndianExpress

आर्थिक सर्वे में जल-संकट की चेतावनी, बजट में सरकार ने सूखे से कन्नी काटी

एक ओर इस साल के आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि खेतीबाड़ी में पानी का बेहद किफायत के साथ उपयोग किया जाये वहीं अगले दिन संसद में पेश किये गये बजट में सरकार ने सूखे का ज़िक्र तक नहीं किया। हालांकि सरकार ने साल 2024 हर घर तक नल से पानी पहुंचाने का वादा किया है लेकिन सिंचाई के लिये बजट अब भी केवल 9681 करोड़ रुपये रखा गया है जो जल संकट को देखते हुये काफी कम है।

आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि कृषि में इस्तेमाल होने वाले पानी का 60% गन्ने और धान जैसे फसलों पर खर्च हो जाता है। सर्वे में चेतावनी दी गई है कि अगर हालात में बदलाव नहीं आया तो 2050 तक दुनिया भर में भारत एक ऐसा देश होगा जहां सूखे की मार सबसे अधिक होगी। कृषि की विकास दर में बढ़ोतरी पिछले 5 साल के सबसे निम्नतम स्तर पर है और बजट से किसानों को धक्का लगा है। किसानों का कहना है सरकार ज़ीरो बजट खेती की बात तो करती है लेकिन उसने इसके लिये बजट में केवल 25 करोड़ की बढ़ोतरी की जबकि रासायनिक खेती के लिये बजट 9990 करोड़ बढ़ाया है।  

गर्मी का भारत के कामगारों की उत्पादकता पर असर

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का कहना है कि लगातार बढ़ रही गर्मी का असर मज़दूरों की उत्पादकता पर पड़ेगा और भारत इसका सबसे बड़ा शिकार होगा। ILO की रिपोर्ट कहती है कि भीषण गर्मी की वजह से कुल कार्य-समय यानी वर्किंग आवरका 2.2% नुकसान होगा। यह नुकसान पूरी दुनिया में 8 करोड़ लोगों की पूर्ण कालिक नौकरियां खत्म होने जैसा है। इनमें से करीब 3.4 करोड़ नौकरियों का नुकसान भारत को होगा।

संवेदनशील क्षेत्रों के लिये नोटिफिकेशन जारी

लम्बे इंतज़ार के बाद आखिरकार पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील 316 क्षेत्रों को सरकार ने इकोलॉजिकली सेंसटिव ज़ोन (ESZ) घोषित कर दिया। सरकार ने संसद में यह जानकारी दी है कि 651 में से 316 क्षेत्रों के लिये औपचारिक नोटिफिकेशन जारी हो गया। इन इलाकों में बड़े बांध बनाने, खनन करने और क्रशिंग यूनिट लगाने की अनुमति नहीं होगी। पर्यावरण के जानकार कह रहे हैं कि सरकार ने खानापूरी के लिये थोड़े से इलाकों को संरक्षित घोषित किया है और इससे कुछ अधिक फायदा नहीं होगा। 

चीन का पाखंड: कथनी और करनी में अंतर

एक ओर चीन ने पेरिस समझौते के तहत क्लाइमेट एक्शन तेज़ करने का वादा किया वहीं दूसरी ओर सुंदरबन में बन रहे कोयला बिजलीघरों पर पर्दा डाल दिया। चीन सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक है जो दुनिया के एक चौथाई से अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार है। G-20 सम्मेलन में फ्रांस के साथ किये करार में चीन ने कार्बन उत्सर्जन कम करने संबंधी वादे का ऐलान तो किया जिससे कुछ उम्मीद बंधी की चिंताजनक स्तर पर प्रदूषण कर रहा देश कुछ कदम उठायेगा।

लेकिन अज़रबेज़ान में पिछले हफ्ते यूनेस्को की बैठक में चीन विश्व धरोहर सुंदरवन “संकटग्रस्त” धरोहरों की सूची में नहीं रखने दिया। भारत-बांग्लादेश सीमा पर बसा सुंदरवन मेनग्रोव का घना और सबसे बड़ा जंगल है और इस इलाके में चीन और बांग्लादेश दो कोयला बिजलीघर लगा रहे हैं। अगर सुंदरवन “संकटग्रस्त” धरोहरों में आ जाता तो इन बिजलीघरों के रास्ते में अडंगा लग सकता था। वैसे भारत भी सुंदरवन से सटे इलाके रामपाल में एक कोयला बिजलीघर लगा रहा है।

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