विस्थापन के रूप में दिख रही है जलवायु परिवर्तन की मार

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - March 25, 2021

पलायन का नया रूप: पिछले कुछ दशकों से पलायन में क्लाइमेट चेंज और इसके कारण आपदाओं की भूमिका बढ़ती जा रही है।Photo: Medium.com

जलवायु संकट: पिछले छह महीने में हुए 1 करोड़ से अधिक लोग विस्थापित

जलवायु संकट की बड़ी मार विस्थापन के रूप में दिख रही है। पिछले 6 महीने में पूरी दुनिया में कुल 1.03 करोड़ लोग बाढ़, तूफान और चक्रवाती तूफान जैसी आपदाओं से विस्थापित हुए। यह बात इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट (आईएफआरसी) की ताज़ा रिपोर्ट में सामने आई है। यह रिपोर्ट इंटरनेशनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) के आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट के मुताबिक विस्थापितों में 60% एशिया में हैं। आईडीएमसी के मुताबिक हर साल करीब 2.27 करोड़ लोग मौसमी कारकों या आपदाओं के कारण पलायन कर रहे हैं। 

विशेषज्ञ रिपोर्ट बताती हैं कि धीमी गति से होने वाले प्रभावों (स्लो ऑनसेट) के कारण विस्थापन की मार बढ़ रही है हालांकि इसके सटीक आंकड़े जुटाना कठिन काम है। विश्व बैंक का अनुमान है कि सदी के अंत तक करीब 9 करोड़ लोग समुद्र जल स्तर के बढ़ने से ही विस्थापित हो जायेंगे। 

तटीय इलाकों पर समुद्र जल स्तर में ग्लोबल औसत की तुलना में चार गुना तेज़ वृद्धि: शोध 

हाल में किये गये एक अध्ययन से पता चला है कि समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों को जल स्तर में बढ़ोतरी का अधिक ख़तरा है क्योंकि वैश्विक औसत के मुकाबले तटों पर जल स्तर चार गुना तेज़ी से हो रहा है। साइंस पत्रिका नेचर में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि जहां दुनिया भर में समुद्र जल स्तर में औसत बढ़ोतरी 2.5 मिमी प्रति वर्ष है वहीं तटों पर यह बढ़ोतरी 7.8-9.9 मिमी प्रति वर्ष है। इस अध्ययन में सरकारों से कहा गया है कि वह समुद्र तटों पर जलवायु परिवर्तन के अधिक तीव्र प्रभावों को ध्यान में रखे और यहां रह रहे लोगों के एडाप्टेशन (अनुकूलन) के लिये उसी प्रकार नीति बनाये। भूजल के उपयोग और निकासी पर ध्यान देकर तटीय इलाकों में बाढ़ के बढ़ते खतरों से लड़ा जा सकता है। 

मनरेगा: जल संरक्षण योजना के फायदे 

पिछले करीब डेढ़ दशक में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत जल संरक्षण कार्यों का असर देश के कई गांवों में अलग-अलग तरह से दिखा है। जल दिवस के मौके पर डाउन-टु-अर्थ पत्रिका ने अपनी विशेष रिपोर्ट में  अनुसार देश के 15 राज्यों के 16 गांवों से इस योजना के तहत हुए काम का ब्यौरा पेश किया है। पत्रिका ने इन गांवों में मनरेगा का कामयाबियों की रिपोर्ट्स छापी हैं जिन्हें यहां पढ़ा जा सकता है। 

मिसाल के तौर पर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर के लोग कहते हैं कि उनका गांव सूखे के अभिशाप से मुक्त हो चुका है। इत्तिफाक से यह पहला गांव था जहां मनरेगा की शुरुआत हुई।  इसी तरह मध्य प्रदेश के सीधी ज़िले में कुल 19,590 जल संबंधित कार्यों को पूरा किया गया। जल संरक्षण कार्यक्रमों से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक पिछले डेढ़ दशकों से हो रहे कार्यों से गांव में औसतन 10-12 फीट की गहराई पर पानी मिलने लगा है। यह ग्रामीण महिलाओं के लिए एक वरदान साबित हुआ है क्योंकि पानी ढोने की जिम्मेदारी उन्हीं पर होती है।इसी तरह तमिलनाडु में 2004 की सुनामी से तबाह नागापट्टिनम में इस योजना की कामयाबी और केरल के पलक्कड ज़िले में महिलाओं द्वारा सूख चुकी जलधाराओं को पुनर्जीवित करने की कहानी शामिल है। मनरेगा कार्यक्रम की शुरुआत 2005 में यूपीए सरकार के दौरान हुई थी और कोरोना महामारी के वक्त इसने लोगों को रोज़गार देने में अहम भूमिका निभायी।


क्लाइमेट नीति

पेड़ कटे और बजट भी: न केवल अलग अलग वजहों से जंगलों पर खतरा मंडरा रहा है बल्कि तमाम राज्य सरकारों ने वन विभाग के बजट पर भी कुल्हाड़ी चलाई है Photo: Souro Souvik on Unsplash

सोलह राज्यों ने की वन विभाग के बजट में कटौती

देश के 16 राज्यों में इस वित्त वर्ष में वन विभाग का बजट पिछले साल (2019-20) की तुलना में कम किया। अगर प्रतिशत में देखें तो पश्चिम बंगाल ने सबसे अधिक 52%  बजट घटाया जबकि उत्तरप्रदेश ने 44% और आंध्र प्रदेश ने 40% बजट कम किया। केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने यह आंकड़े एक सवाल के जवाब में संसद में दिये। इसी तरह तमिलनाडु, बिहार, गुजरात, झारखंड और महाराष्ट्र ने भी इस बजट में कमी की है। केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली ने 2019-20 में बजट 71 करोड़ से घटाकर वर्तमान वित्तवर्ष में 48 करोड़ कर दिया। 

वन भूमि पर चिड़ियाघर “वानिकी” का हिस्सा 

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की वन सलाहकार समिति ने फैसला किया है कि वन भूमि पर बने चिड़ियाघरों को अब “वानिकी” यानी फॉरेस्ट्री गतिविधि माना जायेगा। समिति की 17 फरवरी को हुई बैठक के बारे  में परिवेश वेबसाइट पर दी गई सूचना में यह बात शामिल है। अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर के मुताबिक मंत्रालय के अधिकारियों ने इस फैसले  को जायज़ ठहराया है। वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से वन भूमि पर पर्यटकों का आना बहुत बढ़ जायेगा जिससे संवेदनशील क्षेत्रों में जैव विविधता के लिये ख़तरा हो सकता है। 

वैसे वन सलाहकार समिति ने इससे पहले  इको टूरिज्म के लिये भी नियमों में ढील दे दी है जिसके तहत  संरक्षित वन क्षेत्र में केंद्र सरकार की अनुमति के बिना अस्थायी निर्माण कार्य हो सकता है। जानकारों का कहना है कि ये फैसले 1980 के वन संरक्षण क़ानून के तहत प्रावधानों को ढीला करने के लिये हैं। 

उत्तराखंड: सात हाइडिल प्रोजेक्ट्स को किया जायेगा पूरा 

उत्तराखंड सरकार ने फैसला किया है कि वह राज्य में सात निर्माणाधीन पनबिजली(हाइडिल) प्रोजेक्ट्स को पूरा करेगी। अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स ने मंत्रालय में सूत्रों के हवाले से यह ख़बर छापी है। महत्वपूर्ण है कि सरकार पर्यावरण कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद इन बांधों को बना रही है जबकि 7 फरवरी को आई आपदा में चमोली के दो पनबिजली प्रोजेक्ट – ऋषिगंगा और तपोवन (निर्माणाधीन) –  तबाह हो गये थे और कम से कम 72 लोगों की जान गई और कई लापता हैं। 

सरकार ने यह तय किया है जिस भी परियोजना पर 50% से अधिक काम हो चुका है उसे पूरा किया जायेगा। पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी राज्यसभा में दिये जवाब के बारे में ट्वीट करके कहा कि जिन प्रोजेक्ट्स को अनुमति दी गई है उन्हें पूरा किया जायेगा लेकिन गंगा के ऊपरी इलाकों में नये प्रोजेक्ट नहीं बनाये जायेंगे।


वायु प्रदूषण

प्रदूषण की हैट्रिक: दिल्ली लगातार तीसरे साल दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बना है, दुनिया के 70% सबसे प्रदूषित शहर भारत में हैं| Photo: Greenpeace Media

क़ानून पारित न होने से वायु प्रदूषण नियंत्रण आयोग खत्म

सरकार ने दिल्ली-एनसीआर इलाके में वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिये  पिछले साल अक्टूबर में एक अध्यादेश के ज़रिये “स्थायी” आयोग, कमीशन फॉर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम), बनाया था।  लेकिन पांच महीने के भीतर ही यह आयोग बेकार हो गया है क्योंकि सरकार अध्यादेश जारी करने के बाद इसे प्रभावी करने के लिये संसद में कानून नहीं लायी। 

यह आयोग दिल्ली और उससे लगे पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण लगाने के मकसद से बनाया गया था। इस आयोग के राज्यों के बीच तालमेल करने और एक करोड़ तक का जुर्माना और 5 साल तक की कैद की सज़ा का अधिकार दिया गया था। 

अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ के मुताबिक आयोग के सदस्यों को इसके खत्म हो जाने की जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स से मिली और वह इस फैसले से हैरान हैं।  विपक्ष ने सरकार से यह स्पष्टीकरण मांगा कि क्या संसद का सत्र खत्म होने से पहले इस अध्यादेश को क़ानून बनाया जायेगा या नहीं। 

पैसा देकर प्रदूषण का अधिकार? केंद्र की योजना पर जानकारों ने किया सवाल

केंद्र सरकार ने संकेत दिये हैं कि वह जल्द ही वायु, जल और अन्य प्रदूषण नियंत्रणों के लिये बना क़ानूनों की जगह एक ही क़ानून लायेगी। अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स ने पर्यावरण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से यह ख़बर दी है। यह क़ानून 1981 के एयर एक्ट, 1974 के वॉटर एक्ट और 1986 के पर्यावरण (संरक्षण) क़ानून की जगह लेगा। सरकार का तर्क है कि यह बिल वर्तमान कानूनों में ओवरलैपिंग के देखते हुए लाया जा रहा है।  

लेकिन जानकारों ने चेतावनी दी है कि इससे पर्यावरण को क्षति पहुंचाना आसान हो जायेगा और जुर्माना भरकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना आदत बन जायेगी। यह क़ानून इमिशन ट्रेडिंग और एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पोन्सिबिलिटी जैसे नये उपाय लायेगा। पर्यावरण कार्यकर्ता इसे बिना जनता की राय लिये बन्द कमरे में की गई बैठक बता रहे हैं। 

दिल्ली तीसरी बार दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी, सबसे प्रदूषित 50 में से भारत के 35 शहर शामिल 

पिछले तीन साल में लगातार तीसरी बार दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी घोषित हुई है। यह बात एयर क्वॉलिटी पर नज़र रखने वाले स्विटज़रलैंड स्थित ग्रुप आईक्यू एयर की रिपोर्ट में सामने आयी है। यह रिपोर्ट दुनिया के 106 देशों में कैंसर जैसी बीमारियों के लिये ज़िम्मेदार पीएम 2.5 कणों की सांध्रता के आधार पर तैयार की गई।  आईक्यू एयर के मुताबिक दुनिया के सबसे प्रदूषित 50 में से 35 शहर भारत में हैं। 

रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 में दिल्ली के भीतर पीएम 2.5 का सालाना औसत 84.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो कि बीजिंग के औसत स्तर से दोगुना है। ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया और आईक्यू एयर के विश्लेषण के मुताबिक साल 2020 में दिल्ली में समय पूर्व हुई 54,000 मौतों के पीछे वायु प्रदूषण एक कारक रहा। 

साइबेरिया में माइक्रोप्लास्टिक से वायु प्रदूषण 


साइबेरिया के 20 विभिन्न क्षेत्रों – अल्टाई पर्वत से लेकर आर्कटिक तक – से लिये गये बर्फ के नमूनों से इस बात की पुष्टि हुई है कि इन सुदूर क्षेत्रों में हवा के साथ प्लास्टिक पहुंच गया है। रूस की तोम्स्क स्टेट यूनिवर्सिटी (TSU) के वैज्ञानिक माइक्रोप्लास्टिक से प्रदूषित बर्फ और उससे ग्राउंड वॉटर के दूषित होने का पता लगा रहे हैं। उनका शोध कहता है कि इस बात पर अध्ययन कर रहे हैं कि  सिर्फ नदियां और समंदर ही नहीं माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी, हवा और जीवित प्राणियों में पहुंच गया है।


साफ ऊर्जा 

नीतिगत मांग: साफ ऊर्जा के प्रोजेक्ट्स के हित में संसदीय समिति ने सरकार से एक नीतिपत्र जारी करने को कहा है| Photo: Bloomberg Quint

डिस्कॉम और पावर कंपनियों में अनुबंध पर संसदीय समिति ने सरकार से नीति पत्र जारी करने को कहा

साफ ऊर्जा की जल्दी गिरती कीमतों के बीच डिस्कॉम (वितरण कंपनियां) पावर कंपनियों के साथ लम्बी अवधि के बिजली खरीद अनुबन्ध करने में अनमनी हैं। इसे देखते हुए संसदीय समिति ने केंद्र सरकार से  इस बारे में एक नीतिपत्र जारी करने को कहा है ताकि उलझन और अस्पष्टता दूर की जा सके। संसदीय पैनल के मुताबिक किसी नये साफ ऊर्जा प्रोजेक्ट को कर्ज़ मिलने के लिये लम्बी अधिक का बिजली खरीद अनुबन्ध एक अनिवार्यता हो जाती है। 

जनवरी 2021की शुरुआत में देश में साफ ऊर्जा संयंत्रों की कुल क्षमता 92.54 गीगावॉट थी। इसमें सोलर के 38.79 गीगावॉट, पवन ऊर्जा के 38.68 गीगावॉट, बायोमास के 10.31 गीगावॉट और बाकी छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट हैं।  भारत को साल 2022 तक कुल 175 गीगावॉट साफ ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करना है और अभी उसने करीब आधा रास्ता ही तय किया है। समिति ने नोट किया कि अगले डेढ़ साल में 50 सोलर पार्क के ज़रिये 82.46 गीगावॉट साफ ऊर्जा क्षमता के संयंत्र लगाये जाने बाकी हैं। अभी केवल 20% पूरी तरह विकसित हैं जबकि 10% आंशिक रूप से डेवलप हैं। बाकी 70% पार्कों का  लक्ष्य हासिल नहीं हुआ है। 

बेसिक कस्टम शुल्क बढ़ने से सोलर की दरें तेज़ी से बढ़ेंगी: रिपोर्ट 

भारत ने साल 2030 तक 280 गीगावॉट सोलर पावर क्षमता लगाने का जो लक्ष्य रखा है सोलर उपकरणों पर 1 अप्रैल 2022 से लगने वाली बेसिक कस्टम ड्यूटी से प्रभावित होगा। यह बात इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च में कही गई है। रिपोर्ट कहती है कि इससे बिजली खरीद का सालाना खर्च 900 करोड़ बढ़ जायेगा और बिजली दरें बढ़ना लाजिमी है। 

केयर रेटिंग की एक और रिपोर्ट के मुताबिक केवल सेल आयात करने से सौर ऊर्जा की दरें 25-30 पैसा प्रति यूनिट बढ़ेगी जबकि मॉड्यूल आयात करने से 40-45 पैसे की अतिरिक्त वृद्धि होगी। जानकारों ने चेतावनी दी है कि यह कदम सौर ऊर्जा के विस्तार में बाधा बन सकता है क्योंकि अगले 12 महीनों में कुल 10 गीगावॉट के संयंत्र लगने हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि 2030 तक भारत के सामने 280 गीगावॉट सोलर का लक्ष्य है। अभी केवल चीन, थाइलैंड और विएतनाम से आयात होने वाले उपकरणों पर सेफगार्ड ड्यूटी लगती है लेकिन रिपोर्ट बताती है कि बेसिक कस्टम ड्यूटी सभी देशों से आने वाले उपकरणों पर लगेगी जिससे किसी भी देश से इसे आयात करना मुश्किल होगा। 

चीन ने साल 2020 में पवन ऊर्जा क्षमता 100 गीगावॉट बढ़ाई, पूरी दुनिया से अधिक

कोरोना महामारी के बावजूद साल 2020 में चीन ने कुल पूरी दुनिया द्वारा एक साल पहले लगाई गई पवन ऊर्जा की सम्मिलित क्षमता से अधिक पावर की पवन चक्कियां लगाई। यह बात ब्लूमबर्ग न्यू एनर्ज़ी फाइनेंस (बीएनईएफ) की रिपोर्ट में कही गई है।  चीन ने अपनी पवन ऊर्जा क्षमता में एक साल पहले की तुलना में 60% वृद्धि की।  


बैटरी वाहन 

बैटरी में क्रांति: एक यूरोपीय यूनिवर्सिटी की रिसर्च बताती है कि अब मासलेस बैटरी की दिशा में बढ़ना मुमकिन है|

बैटरी क्षेत्र में तरक्की से कम वज़न के उम्दा वाहनों की उम्मीद

बैटरी वाहनों की दुनिया में हर रोज़ नई रिसर्च हो रही है और कई पहलू चमत्कारिक लगते हैं। अब स्वीडन की चाल्मर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की रिसर्च बताती है कि कार्बन-फाइबर आधारित इलैक्ट्रिक बैटरियां 10 गुना बेहतर प्रदर्शन करती हैं और अब इन्हें वाहनों में लगाने की दिशा में बढ़ा जा सकता है।  महत्वपूर्ण है कि ये बैटरियां कार में परंपरागत बैटरियों की तरह फिट नहीं होंगी बल्कि कार की बॉडी का हिस्सा होंगी इसलिये इन्हें मास-लेस बैटरी भी कहा जा रहा है। 

इस दिशा में काम पिछले 20 साल से चल रहा है लेकिन टेक्नोलॉजी ने अब ये मुमकिन किया है कि यह नई बैटरियों में पॉज़िटिव इलैक्ट्रोड में एल्युमिनियम की पत्ती की जगह कार्बन फाइबर इस्तेमाल होगा जिसमें भार को ले जाने की क्षमता होगी। इस तरह की बैटरी 24 वॉट- घंटा प्रति किलो(Wh/kg) की स्टोरेज क्षमता वाली होगी जो लीथियम आयन की (100-265 Wh/kg) क्षमता से काफी कम है लेकिन शोधकर्ता कहते हैं कि वाहन का वजन कम हो जाने से कार को खींचने की क्षमता बढ़ जायेगी जिससे बेहतर रेन्ज हासिल की जा सकती है। 

सर्वे: 66% भारतीय खरीदना चाहते हैं बैटरी वाहन 

कार रिटेलिंग वेबसाइट  ‘कार देखो’  के सर्वे से पता चला है कि 66% भारतीय बैटरी वाहन खरीदने के इच्छुक हैं। इनमें से 53% ने इलैक्ट्रिक वाहनों के प्रति गहरी दिलचस्पी दिखाई है। सर्वे में हिस्सा लेने वाले 68% लोगों ने वाहनों से निकलने वाले धुंए के कारण पर्यावरण को नुकसान के प्रति फिक्र जतायी। कुल 43% लोगों के लिये यह बड़ी फिक्र थी कि उन्हें अपनी कार बैटरी को बार-बार चार्ज कराना पड़ेगा। सर्वे में 20% लोगों का कहना था कि लम्बी दूरी की यात्रा के लिये बैटरी वाहन भरोसेमन्द नहीं हैं और करीब 16% को लगता है कि वर्तमान चार्जिंग नेटवर्क पर्याप्त नहीं हैं।  

दिल्ली की ऑटो सेल में बैटरी वाहनों का हिस्सा बढ़ा 

दिल्ली में पिछले साल अगस्त में शुरू की गई इलैक्ट्रिक वाहन पॉलिसी के बाद गाड़ियों की बिक्री में बैटरी वाहनों का हिस्सा बढ़ा है। पिछले 3 महीनों में कुल 2,621 बैटरी वाहनों की बिक्री के बाद कुल नई बिक्री में बैटरी वाहनों का हिस्सा 0.2% से बढ़कर  2.21% गया। पिछले तीन साल में भारत में बैटरी वाहनों की कुल बिक्री तीन गुना हो गई है। जहां 2017-18 में यह 69,012 थी वहीं अब 2019-20 में यह 1,67,041 हो गई है। लोकसभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में यह जानकारी मिली। इस दौरान हीरो इलैक्ट्रिक वाहनों के बाज़ार की सबसे तेज़ खिलाड़ी रही जिसकी सेल में 15% का उछाल आया और कंपनी  ने 2020-21 में 50,000 वाहन बेचे।  कंपनी ने अपने उपभोक्ताओं की सुविधा के लिये 1,500 नये चार्जिंग स्टेशन लगाये हैं।


जीवाश्म ईंधन

बड़ा ऐलान: सरकार के कोयला उत्पादन बढ़ाने के हाल में दिये गये बयानों को देखते हुये कोल इंडिया के चेयरमैन का सोलर में निवेश का ऐलान काफी चौंकाने वाला है। Photo:Schott.com

कोल इंडिया तेज़ी से बढ़ेगा सौर ऊर्जा की ओर

दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी कोल इंडिया (सीआईएल) के चेयरमैन ने कहा है कि आने वाले दिनों में सीआईएल बढ़ चढ़ कर सोलर एनर्जी में निवेश करेगी। कंपनी ने 2024 तक इसके लिये 6000 करोड़ रुपये का बजट रखा है। माना जा रहा है कि इस दौरान कोल इंडिया 13,000-14,000 कर्मचारियों की छंटनी कर देगा क्योंकि छोटे स्तर की कई खदानें बन्द होंगी। सीआईएल के चेयरमैन ने कहा है कि अगले दो-तीन दशकों में कोयला क्षेत्र में कंपनी का बिजनेस कम होगा और नये सिरे से सोलर कोयले की जगह ऊर्जा का नया स्रोत बनेगा।

अभी इस बारे में अधिक जानकारी सार्वजनिक नहीं है लेकिन कंपनी के आला अधिकारी का यह बयान काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि सरकार ने कंपनी को साल 2023-24 तक 100 करोड़ टन सालाना कोयला उत्पादन का लक्ष्य दिया हुआ है। सरकार की रणनीति में साल 2050 तक भारत के एनर्जी सेक्टर में कोयला ईंधन का बड़ा स्रोत रहेगा। 

कोयले उत्पादन में वृद्धि से बढ़ेगा मीथेन उत्सर्जन 

सालाना 100 करोड़ टन कोयला उत्पादन का भारत सरकार का लक्ष्य ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरों को बढ़ा सकता है। ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ाने में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के बाद मीथेन दूसरा सबसे बड़ा कारक है। इससे जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे भारत जैसे देश के लिये संकट बढ़ सकता है। 

अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संगठन ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि अगले 20 साल में दुनिया भर की नई कोयला खदानों से होने वाले मीथेन उत्सर्जन का असर सालाना 1,135 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर होगा। कोयला खदानों से  जिन देशों का मीथेन उत्सर्जन सर्वाधिक होगा उनमें चीन (572 मिलियन टन सालाना) सबसे आगे है। ऑस्ट्रेलिया (233 मिलियन टन प्रतिवर्ष) और रूस (125 मिलियन टन सालाना) के बाद भारत का नंबर है जिसका उत्सर्जन 45 मिलियन टन प्रतिवर्ष रहेगा। 

यह उत्सर्जन भारत की 52 प्रस्तावित कोयला खदानों से अनुमानित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, अमेरिका, टर्की, पोलैंड और उजबेकिस्तान जैसे   देशों का 40-50% ग्रीन हाउस गैस इमिशन मीथेन के रूप में होगा। इस रिपोर्ट को जारी करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि कोयला खनन में होने वाला मीथेन इमीशन अब तक हमेशा ही पड़ताल के दायरे से बाहर रहा है जबकि ग्लोबल वॉर्मिंग के मामले में यह CO2  से अधिक खतरनाक गैस है। हालांकि कई दूसरे विशेषज्ञ कहते हैं कि मीथेन उत्सर्जन का मुद्दा तेल और गैस निकालने से अधिक जुड़ा है और कोयला सेक्टर में इसे कोई बड़ी चिन्ता नहीं माना जाना चाहिये।

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