प्रदूषण की हैट्रिक: दिल्ली लगातार तीसरे साल दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बना है, दुनिया के 70% सबसे प्रदूषित शहर भारत में हैं| Photo: Greenpeace Media

क़ानून पारित न होने से वायु प्रदूषण नियंत्रण आयोग खत्म

सरकार ने दिल्ली-एनसीआर इलाके में वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिये  पिछले साल अक्टूबर में एक अध्यादेश के ज़रिये “स्थायी” आयोग, कमीशन फॉर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम), बनाया था।  लेकिन पांच महीने के भीतर ही यह आयोग बेकार हो गया है क्योंकि सरकार अध्यादेश जारी करने के बाद इसे प्रभावी करने के लिये संसद में कानून नहीं लायी। 

यह आयोग दिल्ली और उससे लगे पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में प्रदूषण के स्रोतों पर नियंत्रण लगाने के मकसद से बनाया गया था। इस आयोग के राज्यों के बीच तालमेल करने और एक करोड़ तक का जुर्माना और 5 साल तक की कैद की सज़ा का अधिकार दिया गया था। 

अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिन्दू’ के मुताबिक आयोग के सदस्यों को इसके खत्म हो जाने की जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स से मिली और वह इस फैसले से हैरान हैं।  विपक्ष ने सरकार से यह स्पष्टीकरण मांगा कि क्या संसद का सत्र खत्म होने से पहले इस अध्यादेश को क़ानून बनाया जायेगा या नहीं। 

पैसा देकर प्रदूषण का अधिकार? केंद्र की योजना पर जानकारों ने किया सवाल

केंद्र सरकार ने संकेत दिये हैं कि वह जल्द ही वायु, जल और अन्य प्रदूषण नियंत्रणों के लिये बना क़ानूनों की जगह एक ही क़ानून लायेगी। अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स ने पर्यावरण मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से यह ख़बर दी है। यह क़ानून 1981 के एयर एक्ट, 1974 के वॉटर एक्ट और 1986 के पर्यावरण (संरक्षण) क़ानून की जगह लेगा। सरकार का तर्क है कि यह बिल वर्तमान कानूनों में ओवरलैपिंग के देखते हुए लाया जा रहा है।  

लेकिन जानकारों ने चेतावनी दी है कि इससे पर्यावरण को क्षति पहुंचाना आसान हो जायेगा और जुर्माना भरकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना आदत बन जायेगी। यह क़ानून इमिशन ट्रेडिंग और एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पोन्सिबिलिटी जैसे नये उपाय लायेगा। पर्यावरण कार्यकर्ता इसे बिना जनता की राय लिये बन्द कमरे में की गई बैठक बता रहे हैं। 

दिल्ली तीसरी बार दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी, सबसे प्रदूषित 50 में से भारत के 35 शहर शामिल 

पिछले तीन साल में लगातार तीसरी बार दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी घोषित हुई है। यह बात एयर क्वॉलिटी पर नज़र रखने वाले स्विटज़रलैंड स्थित ग्रुप आईक्यू एयर की रिपोर्ट में सामने आयी है। यह रिपोर्ट दुनिया के 106 देशों में कैंसर जैसी बीमारियों के लिये ज़िम्मेदार पीएम 2.5 कणों की सांध्रता के आधार पर तैयार की गई।  आईक्यू एयर के मुताबिक दुनिया के सबसे प्रदूषित 50 में से 35 शहर भारत में हैं। 

रिपोर्ट बताती है कि साल 2020 में दिल्ली के भीतर पीएम 2.5 का सालाना औसत 84.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो कि बीजिंग के औसत स्तर से दोगुना है। ग्रीनपीस साउथ ईस्ट एशिया और आईक्यू एयर के विश्लेषण के मुताबिक साल 2020 में दिल्ली में समय पूर्व हुई 54,000 मौतों के पीछे वायु प्रदूषण एक कारक रहा। 

साइबेरिया में माइक्रोप्लास्टिक से वायु प्रदूषण 


साइबेरिया के 20 विभिन्न क्षेत्रों – अल्टाई पर्वत से लेकर आर्कटिक तक – से लिये गये बर्फ के नमूनों से इस बात की पुष्टि हुई है कि इन सुदूर क्षेत्रों में हवा के साथ प्लास्टिक पहुंच गया है। रूस की तोम्स्क स्टेट यूनिवर्सिटी (TSU) के वैज्ञानिक माइक्रोप्लास्टिक से प्रदूषित बर्फ और उससे ग्राउंड वॉटर के दूषित होने का पता लगा रहे हैं। उनका शोध कहता है कि इस बात पर अध्ययन कर रहे हैं कि  सिर्फ नदियां और समंदर ही नहीं माइक्रोप्लास्टिक मिट्टी, हवा और जीवित प्राणियों में पहुंच गया है।

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